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क्या कपड़ों की दुकानें खुलने के बाद भी ट्रायल रूम में ताले लगे रह जाएंगे?

सवाल है कि अब ट्रायल रूम के कपड़े सैनिटाइज कैसे होंगे?

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कोरोना लॉकडाउन हटने के बाद बाजार में रौनक लौटने की राह दुकानदार भी देख रहे हैं और ग्राहक भी. (सांकेतिक तस्वीर)
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5 जून 2020 (Updated: 5 जून 2020, 06:29 IST)
Updated: 5 जून 2020 06:29 IST
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मैचिंग मास्क बड़े शौक से
पर ट्रायल चांदनी चौक से

कोरोना के जाने तक ट्रायल रूम बंद है

कपड़े को हाथ न लगाएं. हो सकता है वो 'क्वारंटीन' हो
आने वाले दिनों में मुमकिन है कि रेडीमेड गारमेंट स्टोर पर आपको इससे मिलते-जुलते स्टिकर नजर आएं. दरअसल, कोरोना लॉकडाउन हटने के बाद बाजार में रौनक लौटने की राह दुकानदार भी देख रहे हैं और ग्राहक भी. लेकिन रेडीमेड कपड़ों को लेकर एक बड़ी आशंका है. क्या लोग रेडीमेड गारमेंट स्टोर पर पहले की तरह ही कपड़ों के ट्रायल कर सकेंगे? अगर हां, तो उन कपड़ों को दुकानदार किस तरह सैनिटाइज करने वाले हैं?
'दी लल्लनटॉप' ने इस बारे में कुछ रेडीमेड गारमेंट स्टोर वालों से बात की. साथ ही कुछ दूसरे लोगों से भी बात की कि क्या कोरोना काल के बदले हुए हालात में वे दुकानों में ड्रेस ट्राय करने का मोह छोड़ पाएंगे?
हमने दुकानदारों से कुछ कॉमन सवाल पूछे -
# क्या आप ग्राहकों को ड्रेस ट्राय करने देंगे?
# ट्राय किए हुए ड्रेस को आप किस तरह सैनिटाइज करेंगे?
# क्या आपकी दुकान में मैचिंग मास्क आ गए?
इन सवालों के हमें कई तरह के जवाब मिले. कुछ दुकानदारों ने इन बातों को लेकर रणनीति तैयार कर रखी है. दूसरी ओर कुछ ग्राहक भी बदले हुए हालात से समझौता करने को तैयार नजर आए.
कपड़ों के कई फेमस ब्रांड के शोरूम अभी बंद पड़े हैं. इस वजह से उनकी तैयारियों के बारे में पता नहीं चल सका. हमने वैसे स्टोर से जुड़े लोगों से बात की, जो फिलहाल अपने प्रदेश की सरकार की गाइडलाइन को फॉलो करते हुए दुकान खोल रहे हैं.

सेफ्टी पर पूरा फोकस, पर ट्रायल बंद है

जम्मू का अजय गारमेंट्स. इसके ऑनर अजय त्रेहान ने बताया कि वे कोरोना वायरस से ग्राहकों और अपने स्टाफ की सुरक्षा के लिए क्या एहतियात बरत रहे हैं. उन्होंने कहा-
मेरा स्टोर काफी बड़ा है, इसके बावजूद हम एक बार में सिर्फ पांच कस्टमर को ही अंदर आने दे रहे हैं. पांच साल से कम के बच्चे और 60 साल से ऊपर के बुजुर्ग का अंदर आना फिलहाल मना है. दुकान के एक सेक्शन में एकसाथ केवल एक ग्राहक और एक स्टाफ ही रह सकते हैं. पूरा स्टोर हर दिन सैनिटाइज किया जा रहा है. हर कस्टमर और स्टाफ के लिए फेस मास्क लगाना अनिवार्य है. वॉचमैन इन चीजों पर पूरी नजर रखता है.
कपड़ों के ट्रायल और सैनिटाइजेशन को लेकर भी त्रेहान ने अपने स्टोर की पॉलिसी बताई. उन्होंने कहा-
हमारे यहां ट्रायल पर पूरी तरह पाबंदी है. कपड़ों को बाकी चीजों की तरह सैनिटाइज नहीं किया जा सकता, क्योंकि उनका कलर खराब हो सकता है. इसलिए हमने अपने स्टाफ से कह रखा है कि वे हाथों में ग्लव्स लगाकर हर दिन कपड़ों को शफल करते रहें. ऊपर का माल नीचे, नीचे का माल ऊपर. इस तरह वायरस का खतरा कम हो जाता है.
हालांकि त्रेहान ये भी कहते हैं कि उनके यहां ग्राहकों के लिए कपड़े एक्सचेंज करने की सुविधा बरकरार है. उनके मुताबिक, अगर कोई कस्टमर एक दिन ड्रेस खरीदता है और उसे दूसरे दिन लौटा देता है, तो इस पीरियड में वायरस वैसे ही 'खत्म' हो जाएगा.
शोरूम तो खुल जाएंगे लेकिन ट्रायल रूम खुलेंगे या नहीं ?
शोरूम तो खुल जाएंगे, लेकिन ट्रायल रूम खुलेंगे या नहीं ? (सांकेतिक तस्वीर)

अल्ट्रावॉयलेट रेज से सैनिटाइज होंगे कपड़े

इंदौर के उषानगर में रेडीमेड मेंस वेयर की दुकान से जुड़े सौरभ जैन इस तरह की समस्या से निपटने को लेकर काफी उत्साहित नजर आए. वे अपने ग्राहकों को सैनिटाइजर के साथ-साथ फ्री मास्क देने को तैयार हैं. कपड़ों को 'क्वारंटीन' किए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा-
मान लीजिए किसी ग्राहक ने ड्रेस को ट्राय किया और उसे पसंद भी कर लिया. ऐसे में तो वो कपड़ा उसके साथ ही चला जाएगा. जो कपड़े ट्रायल के बाद रह जाएंगे, उन्हें हम 72 घंटे के लिए अल्ट्रावॉयलेट रेज में रख देंगे. वैसे स्टीम आयरन तो हमारे पास होता ही है. ये भी एक विकल्प हो सकता है.
सौरभ का मानना है कि मार्केट में जल्द ही कोई न कोई ऐसा उपकरण जरूर आ जाएगा, जिससे दुकानों के ढेर सारे कपड़े आसानी से सैनिटाइज किए जा सकेंगे.
मैचिंग मास्क के बारे में उन्होंने कहा कि अभी ये सिर्फ सोशल मीडिया पर ही आया है. पीछे से माल की मैन्युफैक्चरिंग बंद है, इस वजह से ऐसे मास्क किसी स्टोर तक नहीं पहुंच पाए हैं.

ट्रायल! ना भाई ना

पटना के शेखपुरा में रेडीमेड गारमेंट का एक बड़ा स्टोर है- श्रीगणेश. उस स्टोर से जुड़े राकेश से जब ट्रायल को लेकर सवाल किया गया, तो उन्होंने 'ना' में जवाब दिया. उनका कहना है कि अभी वे सीधा कस्टमर के साइज के मुताबिक ही कपड़े निकालकर दे रहे हैं. उन्होंने कहा-
जो लोग ट्रायल के लिए जोर दे रहे हैं, उन्हें समझाया-बुझाया जा रहा है. कपड़ों को सैनिटाइज करने का प्रोसेस अभी काफी लंबा-चौड़ा है. आने वाले दिनों में जब कोई आसान तरीका आएगा, तो हम भी उसे अपनाएंगे.
क्या ट्राय किए गए कपड़ों को एक तय वक्त तक अलग-थलग छोड़ देना इस समस्या का हल हो सकता है? इस सवाल के जवाब में राकेश ने बताया कि ये कोई व्यावहारिक समाधान नहीं लगता. उन्होंने कहा-
हो सकता है कि कोई ग्राहक एक ड्रेस खरीदने से पहले 5-10 आइटम ट्राय करे. इस तरह तो हमारे पास रोजाना कम से कम 500 कपड़े जमा हो जाएंगे. ऐसे में इतने सारे कपड़ों को कहां-कहा और किस तरह अलग रखा जा सकता है? शादी-ब्याह, लगन के टाइम में तो ये काम और भी मुश्किल है.
मैचिंग मास्क बाजार में आ गए क्या, इसके जवाब में उन्होंने भी यही कहा कि अभी ये किसी के पास नहीं पहुंचा है.
ये तो हुई दुकानदारों की बात. अब देखते हैं कि खरीदार बदले हुए हालात में ट्रायल से परहेज करने को तैयार हैं या नहीं.

बिना ट्रायल के कपड़े, ना भाई ना

दीप्ति सिंह नोएडा की एक प्राइवेट फर्म में काम करती हैं. जब उनसे कपड़ों के ट्रायल को लेकर सवाल किया गया, तो उन्होंने बड़ी साफगोई से अपनी बात रखी-
अब तक तो मैं एक ड्रेस खरीदने से पहले पांच से लेकर 10 तक कपड़े ट्राय करती आई हूं. मुझ पर किस कलर, डिजाइन या साइज का कपड़ा फब रहा है, ये तो ट्रायल के बाद ही जाना जा सकता है. वैसे भी जब कस्टमर पूरे पैसे देगा ही, तो वो अपनी पसंद की चीज क्यों न चुने?
दीप्ति ने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि आखिर बड़े-बड़े स्टोर में 5-10 ट्रायल रूम होते हैं, इनका भी कुछ मतलब होता है. मतलब जो भी हो, कपड़े सैनिटाइज करने का तरीका दुकानदारों को ही निकालना है.

सिर्फ साइज देखकर ही कपड़े ले लूंगा

आशीष चौरसिया जालंधर में नौकरी करते हैं. ब्रांडेड कपड़े पहनने के शौकीन हैं. कपड़ों की खरीदारी को लेकर उनका नजरिया साफ है. उन्होंने कहा-
मैं कपड़ों को दूर से देखकर ही पसंद या नापसंद कर लूंगा. किस ब्रांड में किस साइज के कपड़े मुझ पर फिट आएंगे, ये मुझे अच्छी तरह मालूम है. वैसे भी अभी के दौर में तो ट्रायल से तो बचना ही बेहतर है.
आशीष ने ये भी कहा कि वे जो भी ड्रेस घर ले जाएंगे, उसे अच्छी तरह धोने के बाद ही इस्तेमाल करेंगे. कोरोना के दौर में आखिर कोई रिस्क क्यों ले.

ब्रांडेड और लोकल से फर्क पड़ता है

राजेश रोशन फाइनेंशियल एडवाइजर हैं. कपड़ों के ट्रायल को लेकर उनका राय मिली-जुली है. उनका कहना है कि ब्रांडेड और लोकल कपड़ों के साइज में फर्क होता है. समस्या यही है. उन्होंने कहा-
मेरी बॉडी ही कुछ ऐसी कि मुझ पर किसी खास ब्रांड और साइज के कपड़े एकदम फिट आ जाते हैं. यही वजह है कि ब्रांडेड कपड़ों के ट्रायल की मुझे कभी जरूरत नहीं महसूस होती. लेकिन लोकल टाइप कपड़ों को सिर्फ ऊपर-ऊपर देखकर खरीद लेना मेरे लिए बहुत मुश्किल है.
राजेश ने बताया कि दिल्ली के कश्मीरी गेट इलाके में तिब्बती शरणार्थियों का बहुत बड़ा मार्केट है. उस मार्केट से अब तक वो धड़ल्ले से शर्ट-पैंट खरीदा करते थे. लेकिन बदले हुए हालात में अब उन्हें वहां से शॉपिंग करने का मोह कुछ वक्त के लिए छोड़ना पड़ जाएगा.

अंडरगारमेंट्स खरीदने में ज्यादा मुश्किल होगी

भावना (बदला हुआ नाम) कहती हैं कि ऑनलाइन शॉपिंग का ऑप्शन होने के बावजूद कुछ कपड़े सीधा स्टोर जाकर लेना ही ठीक रहता है. उनका मानना है कि अगर कपड़ों की दुकानों में ट्रायल की सुविधा नहीं मिलेगी, तो सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को होगी, खासकर अंडरगारमेंट्स खरीदने में. उन्होंने कहा-
कई बार ब्रांड चेंज होने से इन कपड़ों के साइज में फर्क आ जाता है. ये बात हर तरह की लॉन्जरी पर भी लागू होती है. उन चीजों को बिना ट्रायल के खरीदने में और मुश्किल होगी, जो सिर्फ स्मॉल, मीडियम या लार्ज साइज लिखकर आते हैं.
भावना ने कहा कि जब ब्रांडेड गारमेंट्स के ही साइज में ही अंतर आ जाता है, तो फिर लोकल के बारे में क्या कहना? इनमें तो भारी हेर-फेर होना आम बात है.
जाहिर है, कपड़ों पर वायरस कितने घंटे या कितने दिन टिकता है, इस बारे में पुख्ता और प्रामाणिक जानकारी अभी किसी के पास नहीं है. रिसर्च में भी हर दिन कोई न कोई नई बात सामने आ जा रही है. फिर भी इतना जरूर है कि बाजारों में दुकानदार ग्राहकों की हिफाजत के लिए, उन्हें रिझाने के लिए कुछ अलग हटकर सोचने लगे हैं. दूसरी और लोग-बाग भी 'कोरोड पर ना निकले' के नारे के पीछे छोड़कर मार्केट की ओर तेजी से पांव बढ़ाने लगे हैं.


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