28 जनवरी 2021 (Updated: 28 जनवरी 2021, 05:12 PM IST) कॉमेंट्स
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आज के दिन ही 71 साल पहले सुप्रीम कोर्ट की पहली सुनवाई हुई थी. साल था 1950. लेकिन इस दिन तक आने से पहले भी न्यायपालिका ने लंबा सफर तय कर लिया था. न्याय को लेकर भारत में सदियों से अलग अलग परंपराएं रहीं. आज जिस रूप में हम न्यायपालिका को देखते हैं, उसकी शुरुआत हम 1774 से मान सकते हैं. ब्रिटेन के राजा जॉर्ज तृतीय के राज में 26 मार्च को 1774 को कलकत्ता में Supreme Court of Judicature की स्थापना हुई. कुछ-कुछ आज की सुप्रीम कोर्ट की तरह ही इस सुप्रीम कोर्ट के पास भी अंग्रेज़ शासन में न्यायिक फैसले देने के सभी अधिकार थे. इसके बाद 1800 में मद्रास और 1823 में बंबई में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना हुई.
1861 में आया इंडिया हाई कोर्ट्स एक्ट
इसके तहत कलकत्ता, मद्रास और बंबई की सुप्रीम कोर्ट को भंग करके यहां हाई कोर्ट की स्थापना की गई. अपने अपने इलाकों के लिए पहले वाली सुप्रीम कोर्ट जैसे अधिकार थे.
आधुनिक भारत का जो सुप्रीम कोर्ट हमें नज़र आता है, उसके सबसे करीब आया फेडरल कोर्ट ऑफ इंडिया. इसे 1935 के गवर्मेंट ऑफ इंडिया एक्ट के तहत बनाया गया था. तब इसका काम था प्रांतों के बीच के विवादों पर सुनवाई करना और हाईकोर्ट्स के फैसलों के खिलाफ अपीलों की सुनवाई करना. भारत पराधीन था, तो प्रांतों के झगड़ों को प्रिवी काउंसिल भी सुनता था.
1947 में हम आज़ाद हो गए और भारत के लिए एक संविधान बनाने पर काम शुरू हुआ. संविधान में संविधान के रखवाले के रूप में सुप्रीम कोर्ट की कल्पना की गई. भारत एक गणतंत्र बनना चाहता था. इसलिए प्रिवी काउंसिल की व्यवस्था खत्म कर दी गई. 26 जनवरी को जब संविधान लागू हो गया, तो दो दिन बाद सुप्रीम कोर्ट की भी विधिवत शुरुआत हुई. 28 जनवरी 1950 को छह जजों की पीठ ने एक समारोह में सर्वोच्च न्यायालय में कामकाज की रस्मी शुरुआत की. इन छह जजों की पीठ में कौन कौन शामिल था, ये आज के दिन खुद भारत के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबड़े ने याद किया -
तत्कालीन CJI हरिलाल कानिया, जस्टिस फ़ज़ल अली, जस्टिस पतंजलि शास्त्री, जस्टिस एमसी महाजन, जस्टिस बिजॉन मुखर्जी और जस्टिस एसआर दास
इस समारोह में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू अपनी कैबिनेट के कई मंत्रियों के साथ मौजूद थे. साथ में थे देश के पहले अटॉर्नी जनरल एमसी सीतलवाड़. संयोग ये कि पंडित नेहरू और उनकी कैबिनेट में कई वकील थे. जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई हाई प्रोफाइल केस लड़े थे. तब भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद भी वकील ही थे.
सुप्रीम कोर्ट न्यायपालिका में सर्वोच्च संस्था है. वो संसद के बनाए कानून की व्याख्या कर सकता है. उसके दिए आदेश पूरे भारत में लागू होते हैं और वो विधायिका और कार्यपालिका के ऐसे किसी भी कदम को रोक सकता है, जो संविधानसम्मत न हो. ऐसी ही भारी भरकम ज़िम्मेदारी के चलते न्यायविद याद दिलाते रहते हैं कि मुख्यतया सुप्रीम कोर्ट का काम संसद के कानून की व्याख्या और राज्यों के बीच उपजने वाले विवादों को निपटाना है. लेकिन अब अमूमन ऐसे सारे मामले सुप्रीम कोर्ट तक चले जाते हैं, जिनके नाम के आगे चर्चित लग जाता है.
खैर, ये बहस फिर कभी के लिए छोड़ते हैं. आज सुप्रीम कोर्ट का हैप्पी बर्थडे है. और खुद CJI एस ए बोबड़े ने कहा है कि इस दिन को हर साल एक उत्सव की तरह मनाया जाना चाहिए. और इस बात पर भारत सरकार के दो सबसे बड़े वकील - अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता भी सहमत हैं. तो हो सकता है कि आने वाले वक्त में ऐसा होने लगे.