हरियाणा सीएम मनोहर लाल खट्टर ने अब नमाज़ को लेकर बहुत सही बात बोली है
गालियां देने से पढ़ना बहुत जरूरी है.
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फोटो - thelallantop
मशहूर लेखिका तसलीमा नसरीन ने भी सीएम के बयान से सहमति जताई और ये ट्वीट किया. जिसमें तस्वीरें हैं सड़क पर नमाज पढ़ रहे लोगों की.Occasionally agar kisi ko padhni pad jaati hai to dharm ki aazaadi hai.Lekin kisi jagah ko kabza karne ki niyat se namaaz padhna galat hai.Uski ijazat nahi di jaa sakti:Haryana Min Anil Vij on CM ML Khattar's statement that Namaz should be read in Mosques/Idgahs,not public spaces pic.twitter.com/hiV3LkcYvs
— ANI (@ANI) May 7, 2018
Namaz should be offered at mosque and Eidgah. Makes sense. Should be applicable for other worshipers too. Blocking public places not good. pic.twitter.com/cs76oKVFf6
— taslima nasreen (@taslimanasreen) May 6, 2018
सीएम का बयान बहुत सही है. लेकिन अधूरा है. नमाज के साथ उन्हें मोहर्रम के जुलूस, शबे बारात के हुड़दंग, कांवड़ यात्रा, गणेश विसर्जन, जगरातों की चीख पुकार पर भी सेम बात कहनी चाहिए. हमारे देश में कई धर्म परंपराओं को मानने वाले रहते हैं. वो सब जब अपनी धार्मिकता का खुले में प्रदर्शन करते हैं तो मुसीबत जन्म लेती है. हमारा दोस्त मुंबई में रहता है. वो बताता है कि जब गणेश विसर्जन की बारी आती है तो 10 दिनों तक डीजे की आवाजें आती हैं. बीमार लोग मौत मांगते हैं. कोई किसी की नहीं सुनता. कांवड़ यात्रा में यही हाल होता है. सारे ट्रैफिक रूल्स किनारे हो जाते हैं. सिस्टम सिर के बल खड़ा हो जाता है. मोहर्रम में भी यही होता है. जंगी ढोल बजा बजाकर लोग कानों में दर्द करा देते हैं.

कांवड़ यात्रा से ब्लॉक होती सड़कें, Image: Pinterest
नमाज खुले में नहीं पढ़ी जानी चाहिए. ऐसा एक पोस्ट हमारे पुराने साथी असगर ने फेसबुक पर किया था. बदले में उनको सिर्फ गालियां मिली थीं. उनकी बात से सहमत होने वाले कम लोग थे. असगर ने खुदा का फरमान याद दिलाया था कि तुम्हारी इबादत से किसी को तकलीफ नहीं होनी चाहिए. सड़क पर नमाज पढ़ने से आने जाने वालों को मुसीबत झेलनी पड़ेगी.

असगर की पोस्ट का स्क्रीनशॉट
उसी मौके पर हमारे साथी मुबारक ने भी एक लेख लिखा था. कि ये तर्क फ़िज़ूल है कि जब इबादतगाहें मौजूद नहीं है तो लोग सड़कों पर ही पढ़ेंगे. या ये कि सरकारें मस्जिद बना दें. ये सरकार का काम नहीं है. मज़हब निजी मामला है. आप अपने लिए, अपने पैसे से, अपनी ज़मीन पर बना लीजिए जितनी चाहे मस्जिदें. सरकार क्यों बनाएं? कई मस्जिदें जगह की कमी का अपने तौर पर हल भी निकालती हैं. वहां जमात की नमाज़ें दो बार करवाई जाती हैं ताकि नमाज़ियों के सड़क पर खड़े होने की नौबत न आए. ये तरीका अनिवार्य क्यों नहीं किया जाता? नीयत दुरुस्त हो तो हल भी निकल ही आता है. सुधार की हर बात, निकाली गई हर कमी मज़हब पर हमला नहीं होती. कई बार ये जेन्युइन फ़िक्र भी होती है. जैसे कि असग़र की थी. जड़ता किसी भी मज़हब के लिए घातक है. थोड़े से बदलाव से कोई आफत नहीं आ जाती.
फिलहाल खबरों में लेटेस्ट अपडेट ये है कि हरियाणा वक्फ बोर्ड ने गुरुग्राम में वक्फ की दो दर्जन प्रॉपर्टीज पर अवैध कब्जा हटाने के लिए सरकार को लिस्ट सौंपी है. लिस्ट में 20 मस्जिदों के नाम हैं जहां गैर मुस्लिमों का कब्जा है. वक्फ बोर्ड ने उन पर वापस कब्जा दिलाने की मांग की है ताकि वहां मस्जिदें बन सकें और नमाज़ पढ़ी जा सके.

हरियाणा वक्फ बोर्ड द्वारा सौंपी गई लिस्ट
मनोहर लाल खट्टर का बयान बिल्कुल सही है. लेकिन नमाज़ पढ़ रहे लोगों को जाकर पीटना, नारेबाजी करना और उनको मारकर भगाना, ये कैसे जस्टिफाइड होगा? अगर आपको लगता है कि बंद होना चाहिए तो कानून बनाइए और एकदम से, हर किसी के लिए बंद करा दीजिए. लेकिन किसी को थपकी, किसी को धमकी नहीं मिलनी चाहिए. चलते चलते:
मेरा बस हो तो हर मस्ज़िद से रुए-जमीं को पाक करूंहर मंदिर को मिस्मार करूं, हर एक कलीसा ख़ाक करूं
: आनंद नारायण 'मुल्ला'.
मिस्मार - नष्ट, तबाह कलीसा - गिरिजाघर
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