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हरियाणा सीएम मनोहर लाल खट्टर ने अब नमाज़ को लेकर बहुत सही बात बोली है

गालियां देने से पढ़ना बहुत जरूरी है.

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आशुतोष चचा
7 मई 2018 (Updated: 7 मई 2018, 09:42 AM IST) कॉमेंट्स
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'नमाज ईदगाह या मस्जिद में ही पढ़ी जानी चाहिए.' ये बात हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर ने बोली थी. जब गुरुग्राम में कुछ उपद्रवियों का वीडियो वायरल हुआ था. ये गुंडे जय श्री राम के नारे लगाते हुए नमाज पढ़ने वालों को उठाकर भगा रहे थे. ये लोग बाद में अरेस्ट हुए. सीएम ने फिर ये बात कही थी. मामले ने तूल पकड़ा. तो आज यानी सोमवार को उन्होंने क्लियर किया कि किसी भी स्थान पर कानून व्यवस्था बनाना प्रशासन की जिम्मेदारी है. कोई शिकायत करता है तो दोषियों के खिलाफ एक्शन लिया जाएगा. लेकिन उनके मंत्री अनिल विज इस मुद्दे को सस्ते में छोड़ने के मूड में नहीं हैं. वो बोले हैं कि कभी कभार ठीक है लेकिन जमीन कब्जाने के लिए नमाज नहीं पढ़नी चाहिए. मशहूर लेखिका तसलीमा नसरीन ने भी सीएम के बयान से सहमति जताई और ये ट्वीट किया. जिसमें तस्वीरें हैं सड़क पर नमाज पढ़ रहे लोगों की.


सीएम का बयान बहुत सही है. लेकिन अधूरा है. नमाज के साथ उन्हें मोहर्रम के जुलूस, शबे बारात के हुड़दंग, कांवड़ यात्रा, गणेश विसर्जन, जगरातों की चीख पुकार पर भी सेम बात कहनी चाहिए. हमारे देश में कई धर्म परंपराओं को मानने वाले रहते हैं. वो सब जब अपनी धार्मिकता का खुले में प्रदर्शन करते हैं तो मुसीबत जन्म लेती है. हमारा दोस्त मुंबई में रहता है. वो बताता है कि जब गणेश विसर्जन की बारी आती है तो 10 दिनों तक डीजे की आवाजें आती हैं. बीमार लोग मौत मांगते हैं. कोई किसी की नहीं सुनता. कांवड़ यात्रा में यही हाल होता है. सारे ट्रैफिक रूल्स किनारे हो जाते हैं. सिस्टम सिर के बल खड़ा हो जाता है. मोहर्रम में भी यही होता है. जंगी ढोल बजा बजाकर लोग कानों में दर्द करा देते हैं.
कांवड़ यात्रा से ब्लॉक होती सड़कें, Image: Pinterest
कांवड़ यात्रा से ब्लॉक होती सड़कें, Image: Pinterest

नमाज खुले में नहीं पढ़ी जानी चाहिए. ऐसा एक पोस्ट हमारे पुराने साथी असगर ने फेसबुक पर किया था. बदले में उनको सिर्फ गालियां मिली थीं. उनकी बात से सहमत होने वाले कम लोग थे. असगर ने खुदा का फरमान याद दिलाया था कि तुम्हारी इबादत से किसी को तकलीफ नहीं होनी चाहिए. सड़क पर नमाज पढ़ने से आने जाने वालों को मुसीबत झेलनी पड़ेगी.
असगर की पोस्ट का स्क्रीनशॉट
असगर की पोस्ट का स्क्रीनशॉट

उसी मौके पर हमारे साथी मुबारक ने भी एक लेख लिखा था. कि ये तर्क फ़िज़ूल है कि जब इबादतगाहें मौजूद नहीं है तो लोग सड़कों पर ही पढ़ेंगे. या ये कि सरकारें मस्जिद बना दें. ये सरकार का काम नहीं है. मज़हब निजी मामला है. आप अपने लिए, अपने पैसे से, अपनी ज़मीन पर बना लीजिए जितनी चाहे मस्जिदें. सरकार क्यों बनाएं? कई मस्जिदें जगह की कमी का अपने तौर पर हल भी निकालती हैं. वहां जमात की नमाज़ें दो बार करवाई जाती हैं ताकि नमाज़ियों के सड़क पर खड़े होने की नौबत न आए. ये तरीका अनिवार्य क्यों नहीं किया जाता? नीयत दुरुस्त हो तो हल भी निकल ही आता है. सुधार की हर बात, निकाली गई हर कमी मज़हब पर हमला नहीं होती. कई बार ये जेन्युइन फ़िक्र भी होती है. जैसे कि असग़र की थी. जड़ता किसी भी मज़हब के लिए घातक है. थोड़े से बदलाव से कोई आफत नहीं आ जाती.
फिलहाल खबरों में लेटेस्ट अपडेट ये है कि हरियाणा वक्फ बोर्ड ने गुरुग्राम में वक्फ की दो दर्जन प्रॉपर्टीज पर अवैध कब्जा हटाने के लिए सरकार को लिस्ट सौंपी है. लिस्ट में 20 मस्जिदों के नाम हैं जहां गैर मुस्लिमों का कब्जा है. वक्फ बोर्ड ने उन पर वापस कब्जा दिलाने की मांग की है ताकि वहां मस्जिदें बन सकें और नमाज़ पढ़ी जा सके.
हरियाणा वक्फ बोर्ड द्वारा सौंपी गई लिस्ट
हरियाणा वक्फ बोर्ड द्वारा सौंपी गई लिस्ट

मनोहर लाल खट्टर का बयान बिल्कुल सही है. लेकिन नमाज़ पढ़ रहे लोगों को जाकर पीटना, नारेबाजी करना और उनको मारकर भगाना, ये कैसे जस्टिफाइड होगा? अगर आपको लगता है कि बंद होना चाहिए तो कानून बनाइए और एकदम से, हर किसी के लिए बंद करा दीजिए. लेकिन किसी को थपकी, किसी को धमकी नहीं मिलनी चाहिए. चलते चलते:
मेरा बस हो तो हर मस्ज़िद से रुए-जमीं को पाक करूंहर मंदिर को मिस्मार करूं, हर एक कलीसा ख़ाक करूं
: आनंद नारायण 'मुल्ला'.
मिस्मार - नष्ट, तबाह कलीसा - गिरिजाघर



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