The Lallantop
Advertisement

कहानियों का 'प्रकाश' उदय हैप्पी बर्थडे

पढ़िए, देखिए उदय प्रकाश की कहानी 'नेलकटर' और 'राम सजीवन की प्रेम कथा'

Advertisement
Img The Lallantop
फोटो: उदय प्रकाश के फेसबुक अकाउंट से
pic
विकास टिनटिन
1 जनवरी 2016 (Updated: 1 जनवरी 2016, 01:10 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
लेकिन देखोहर पांचवें सेकंड पर इसी पृथ्वी पर जन्म लेता है एक और बच्चा और इसी भाषा में भरता है किलकारी और कहता है, 'मां'
भाषा में किलकारी भरने आज से 64 बरस पहले एक अनंत प्रकाश का उदय हुआ. कवि, कहानीकार उदय प्रकाश का जन्म हुआ. कलबुर्गी की हत्या के विरोध में सबसे पहले साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले उदय. कहा- अब चुप रहने का और मुंह सिलकर सुरक्षित कहीं छिप जाने का वक्त नहीं है. वरना खतरे बढ़ जाएंगे. उदय अपनी कहानियों के लिए जाने जाते हैं. उपरांत और मोहनदास कहानियों पर फिल्में भी बन चुकी हैं. उदय की कहानियों को कई इंटरनेशनल अवॉर्ड भी मिल चुके हैं. ये कहानियां वाणी प्रकाशन ने छापी हैं. क्योंकि आज उदय प्रकाश का बर्थडे है तो हम आपके लिए लाए हैं उनकी मशहूर कहानी- नेलकटर. और कहानी के बाद उदय प्रकाश की कहानी 'राम सजीवन की प्रेम कथा' पर देखिए रंगरेज थियेटर की पेशकश. पर पहले 'नेलकटर'

कहानी: नेलकटर

सावन में घास और वनस्पतियों के हरे रंग में हल्का अंधेरा-सा घुला होता है. हवा भारी होती है और तरल. वर्षा के रवे पर्तों में तैरते हैं.मैं नौ साल का था. इसी महीने राखी बंधती है. कजलैयां होती है. नागपंचमी में गोबर की सात बहनें बनाई जाती हैं. धान की लाई और दूध दोने में भरकर हम सांपों की बांबियां खोजते फिरते हैं. हरियरी अमावस भी इसी महीने होती है. मैं बांस की खूब ऊंची जेंड़ी बनाकर उस पर चढ़कर दौड़ता था. मेरी ऊंचाई कम से कम बारह फुट की हो जाती होगी.मां दक्षिण की ओर के कमरे में रहती थीं. बम्बई के टाटा मेमोरियल अस्पताल से उन्हें ले आया गया था. सिर्फ अनार का रस पीती थीं. वे बोलने के लिए अपने गले में डॉक्टरों द्वारा बनाई गई छेद में उंगली रख लेती थीं. वहां एक ट्यूब लगी थी. उसी ट्यूब से वे सांस लेती थीं.बहुत बारीक, ठंडी और कमज़ोर आवाज़ होती थी वह. कुछ-कुछ यंत्रों जैसी आवाज़. जैसे बहुत धीमे वाल्यूम में कोई रेडियो तब बोलता है जब बाहर खूब ज़ोरों की बारिश हो रही हो और बिजलियां पैदा हो रही हों, या तब जब सुई किन्हीं बहुत दूर के दो स्टेशनों के बीच कहीं अटक गई हो.मां को बोलने में दर्द बहुत होता होगा. इसलिए कम ही बोलती थीं. उस यंत्र जैसी आवाज़ में हम मां की पुरानी अपनी आवाज़ खोजने की कोशिश करते. कभी-कभी उस असली और मां जैसी आवाज़ का कोई एक अंश हमें सुनाई पड़ जाता. तब मां हमें मिलती, जो हमारी छोटी-सी समृति में होती थी.लेकिन मां सुनना सब कुछ चाहती थीं. सब कुछ. हम बोलते, लड़ते, चिल्लाते या किसी को पुकारते तो व्याकुलता से वे सुनतीं. हमारे शब्द उन्हें राहत देते होंगे. उनकी सिर्फ आंखें बची थीं, जिन्हें देखकर मुझे उम्मीद बंधती थी कि मां कहीं जाएगी नहीं मेरे पूरे जीवन भर रही आएंगी. मैं हमेशा के लिए उनकी उपस्थिति चाहता था. चाहे वे चित्र की तरह या मूर्ति की तरह ही रही आयें. और न बोलें.लेकिन उनके जीवित होने का विश्वास भी रहा आये, जैसा कि चित्रों के साथ नहीं होता. मैं कभी-कभी बहुत डर जाता था और रोता था. अपने जीवन में अचानक मुझे कोई एक बहुत खाली-बिल्कुल खाली जगह दिख जाती थी. यह बहुत डरावना होता था. उस दिन मां ने मुझे बुलाया. बाहर मैदान में घास का रंग गहरा हरा था. बादल बहुत थे और हवा में भार था. वह भीगी हुई थी.मां ने अपनी हथेली मेरे सामने फैला दी. दायें हाथ की सबसे छोटी उंगली की बगलवाली ऊंगली का नाखून एक जगह से उखड़ गया था. उससे उन्हें बेचैनी होती रही होगी. इस उंगली को सूर्य की उंगली कहते हैं. मैं समझ गया और नेलकटर लाकर मां की पलंग के नीचे फर्श पर बैठ गया. नेलकटर में लगी रेती से मुझे उनकी उंगली का नाखून घिसकर बराबर करना था. मां यही चाहती थीं. वह नेलकटर पिताजी इलाहाबाद से लाए थे, कुंभ के मेले से लौटने पर, दो साल पहले. नेलटकर में नीले कांच का एक सितार बना था.मां की उंगलियां बहुत पतली हो गई थीं उनमें रक्त नहीं था. पीली-सी त्वचा. पतंगी कागज़ जैसी. पीली भी नहीं, ज़र्द. और बेहद ठंडी. ऐसा ठंडापन दूसरी, बेजान चीज़ों में होता है. कुर्सियों, मेज़ों, किवाड़ों या साइकिल के हैडिल जैसा ठंडापन.और हाथ उनका इतना हल्का कैसे हो गया था ? कहां चला गया सारा वज़न ? वह भार शायद जीवन होता है, जिसे पृथ्वी अपने चुबंक से अपनी ओर खींचा करती है. जो अब मां के पास बहुत कम बचा था. उन्हें पृथ्वी खींचना छोड़ रही थी. मैंने उसकी हथेली थाम रखी थी. और नाखून को रेती से धीरे-धीरे घिस रहा था. मैं उनके नाखून को बहुत सुन्दर, ताज़ा और चिकना बना डालना चाहता था.मैं एक बार हंसा. फिर मुस्कराता ही रहा. मां को ढांढस बंधाने और उन्हें खुश करने का यह मेरा तरीका था. मैंने देखा, मां को नाखून का हल्का-हल्का रेती से घिसा जाना बहुत अच्छा लग रहा है. उसके चेहरे पर एक सुख था, जो एक जगह नहीं बल्कि पूरे शरीर की शान्ति में फैला हुआ था, उन्होंने आंखें मूंद रखी थीं.एक घंटा लगा. मैंने उनकी एक उगली ही नहीं, सारी उंगलियों के नाखून खूब अच्छे कर दिये. मां ने अपनी उंगलियां देखीं. यह कितना कमजोर और हार का क्षण होता है, जब नाखून जीवन का विश्वास देते हैं. कितने सुदंर और चिकने नाखून हो गये थे.मां ने मेरे बालों को छुआ. वे कुछ बोलना चाहती थीं. लेकिन मैंने रोक दिया. वे बोलतीं तो पूछतीं कि मैं सिर से क्यों नहीं नहाता? बालों में साबुन क्यों नहीं लगाता? इतनी धूल क्यों है? और कंघी क्यों नहीं कर रखी है? रात में ठंड थी. बाहर पानी ज़ोरो से गिर रहा था. सावन में रात की बारिश की अपनी एक गम्भीर आवाज़ होती है. कुछ-कुछ उस तरह जैसे दुनियां की सारी हवाएं किसी बड़े से घडे़ के अन्दर घूमने लग गयी हों. हर तरफ से बन्द.सुबह पांच बजे आंगन में पांच औरतें रो रही थीं. यह रोना नहीं था, विलाप था, पता चला मां रात में नींद में ही खत्म हो गयीं. मां खत्म हो गयीं.मैंने फिर कभी उनके घिसे हुए नाखून नहीं देखे. मैंने उस रात सोने से पहले अपने तकिए के नीचे वह नेलकटर रख दिया था. उसे मैंने बहुत खोजा. बल्कि आज तक. कई वर्षों बाद भी. लेकिन वह आज भी नहीं मिला. वह पता नहीं कहां खो गया था.हो सकता है वह किसी बहुत ही आसान-सी जगह पर रखा हुआ हो और सिर्फ़ मेरे भूल जाने के कारण वह मिल नहीं पा रहा हो. मैं अक्सर उसे खोजने लगता हूं. क्योंकि चीज़े कभी खोती नहीं हैं वे तो रहती ही हैं. अपने पूरे अस्तित्व और वज़न के साथ. सिर्फ़ हम उनकी वह जगह भूल जाते हैं.

देखिए: राम सजीवन की प्रेम कथा

https://www.youtube.com/watch?v=gwlthYIAz6s https://www.youtube.com/watch?v=IgSNCvnAONQ https://www.youtube.com/watch?v=OQX2t-r_1w8    

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement