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Goa Shack Policy: समंदर किनारे वाली झोपड़ियों पर सरकार ने क्या किया जो बवाल?

Goa में आई नई शैक पॉलिसी, मालिक विरोध में क्यों हैं? शैक में रुकने वालों को नहीं मिलेंगे शैक्स?

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गोवा में समुद्र के तटों के किनारे टूरिस्ट्स के लिए इन झोपड़ियों में रहने-खाने, आराम करने की व्यवस्था रहती है (फोटोसोर्स- PTI और आजतक)
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शिवेंद्र गौरव
25 सितंबर 2023 (Published: 05:39 PM IST) कॉमेंट्स
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गोवा जाने वाले टूरिस्ट्स, समंदर किनारे (Goa Beaches) की आराम देह झोपड़ियों को लेकर बहुत एक्साइटेड रहते हैं. इन्हीं झोपड़ियों (Shacks) के लिए गोवा सरकार (Goa Goverment) कुछ नए नियम ला रही है. इसके लिए हाल ही में अगले तीन सालों के लिए गोवा राज्य शैक पॉलिसी (Goa State Shack Policy 2023-2026) को मंजूरी दी गई है. मगर इस व्यापार से जुड़े लोग इस नई पॉलिसी के विरोध में हैं. नई नीति में क्या नियम शामिल किए गए हैं, इनका विरोध क्यों हैं, विस्तार से जानेंगे.  

क्या हैं नियम?

गोवा में समुद्र के किनारे आम तौर पर बांस, लकड़ी के पोल और ताड़ के पत्तों से झोपड़ियां (Shacks) बनाई जाती हैं. गोवा आने वाले देश-विदेश के टूरिस्ट इन झोपड़ियों में ठहरते हैं. गोवा में इन झोपड़ियों के लिए बनी पॉलिसी के तहत मूल रूप से गोवा के रहने वाले बेरोजगार लोग टूरिस्ट सीजन के दौरान बीच पर अस्थायी रूप से शैक्स रख सकते हैं. इंडियन एक्सप्रेस अखबार की एक खबर के मुताबिक, पीक टूरिस्ट सीजन 1 सितंबर से 31 मई तक का तय किया गया है. 10 जून तक इन झोपड़ियों को हर हाल में हटाना होगा. पॉलिसी के मुताबिक, उत्तरी गोवा में तय किए गए बीचेज़ पर 259 शैक्स लगाने की अनुमति है, जबकि दक्षिणी गोवा में 105 शैक्स लगाई जा सकती हैं. 2023-24 के टूरिस्ट सीज़न में दक्षिण गोवा के केरी बीच में शैक के लिए लाइसेंस नहीं दिया जाएगा. क्योंकि इस इलाके में सरकार बीच के कटाव को रोकने के लिए काम कर रही है. बाकी जगहों पर शैक्स ऑपरेट करने के लाइसेंस के लिए अनुभव के आधार पर कैटेगरी तय की जाएंगी और फिर ड्रॉ के आधार पर लाइसेंस दिए जाएंगे. इसके साथ ही एक परिवार एक ही शैक चला सकेगा.

कुछ सख्तियां की गई हैं

-नए लोग इस व्यापार से जुड़ें, इस बाबत सरकार ने पात्रता की शर्तों में भी कुछ ढील दी है. नई पॉलिसी में कहा गया है कि 90 फीसद तक शैक्स उन्हें दी जाएंगी जिन्हें इस बिज़नेस का कम से कम एक साल का अनुभव हो जबकि 10 फीसद शैक्स उन्हें अलॉट की जाएंगी जिन्हें कोई एक्सपीरियंस नहीं है. जबकि इससे पहले 90 फीसद तक शैक्स उन्हें दी जाती थीं जिन्हें इनके बिज़नेस का कम से कम 3 साल का अनुभव हो. 
-गोवा का खाना न मिलने की टूरिस्ट्स की शिकायतों का हवाला देकर, नई नीति में गोवा के व्यंजन परोसना जरूरी कर दिया गया है.
-एक 'डिजिटल कोस्ट' बनाए जाने का भी प्रस्ताव है. इस तट पर जो भी झोपड़ियां हैं उन्हें पॉइंट ऑफ़ सेल (POS) मशीनें दी जाएंगी. ताकि टूरिस्ट्स को डिजिटल लेनदेन की सुविधा दी जा सके. 
-झोपड़ी किराए पर देना अब और भारी पड़ सकता है. ऐसा करने पर जुर्माना 10 लाख रुपए से बढ़ाकर 25 लाख रुपए कर दिया गया है. शौचालय गंदा होने पर 10 हजार रुपए का जुर्माना लगेगा.  -नई पॉलिसी में एक क्लॉज़ ऐसा भी है जिसे शैक्स चलाने वाले लोगों के भारी विरोध के बाद सरकार ने ख़त्म करने का फैसला लिया है. इस नियम के मुताबिक, शैक्स के लिए वही लोग आवेदन कर सकते हैं जिनकी उम्र 18 से 60 साल के बीच है. पुरानी पॉलिसी में उम्र से जुड़ी कोई पाबंदी नहीं थी.

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विरोध क्यों हो रहा है?

उम्र की पाबंदी वाले नियम का विरोध कर रहे व्यापरियों के मुताबिक, ये झोपड़ी चलाने वालों को बाहर (धंधे से) करने और बाहरी लोगों को लाने का एजेंडा है. 

बीते दिनों गोवा के पर्यटन मंत्री रोहन खौंटे, तटीय इलाके के विधायकों और झोपड़ी वालों के एसोसिएशन के बीच बैठक हुई थी. इसके बाद रोहन खौंटे ने कहा,

"कुछ झोपड़ी मालिकों का दावा था कि अगर किसी 70 से 75 साल की उम्र के व्यक्ति को एक झोपड़ी अलॉट होती है, तो मुमकिन है वो उसे किसी और को किराए पर दे सकता है. इसीलिए हम एज लिमिट लेकर आए. अगर झोपड़ी मालिक की उम्र 65 से 70 के बीच है तो वो अप्लाई करके अपनी झोपड़ी अपनी अगली पीढ़ी को चलाने के लिए दे सकते हैं."

टूरिस्ट डिपार्टमेंट के मुताबिक, 60 साल से ज्यादा उम्र वाले 194 लोगों ने लाइसेंस के लिए अप्लाई किया था, इनमें से 90 लोगों को लाइसेंस दिए गए थे.

हालांकि अख़बार के मुताबिक, गोवा शैक ओनर्स वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष क्रूज़ कार्डोज़ो का आरोप है कि सरकार ने इन मुद्दों को लेकर चर्चा नहीं की. वे कहते हैं,

"कोई बिज़नेस चलाने के लिए रिटायरमेंट की उम्र कैसे तय हो सकती है? ट्रेडिशनल झोपड़ी मालिकों को बेरोजगार करने और यहां से विस्थापित करने का इरादा था. विरोध के बाद ही सरकार, उम्र की पाबंदी वाले इस नियम को हटाने पर राजी हुई है. क्या विधानसभाओं में नेताओं के रिटायरमेंट की उम्र को लेकर कोई पॉलिसी है?"

क्रूज़ आगे कहते हैं,

"सरकार दावा कर रही है कि इस धंधे में आने वाले नए लोगों की मदद के लिए ढील दी गई है. लेकिन किसी नए व्यक्ति के लिए झोपड़ी चलाना मुश्किल होगा. इस व्यापार के लिए कौशल और जानकारी चाहिए."

सफाई रखने के नियमों को लेकर भी शंका है. वेलफेयर सोसाइटी के सेक्रेटरी जॉन लोबो कहते हैं कि पॉलिसी के मुताबिक, शैक्स के आसपास के इलाके को साफ़ रखने के लिए मालिक जिम्मेदार है. लेकिन इस पॉलिसी में सफाई की सटीक परिभाषा नहीं दी गई है.

जॉन आरोप लगाते हुए कहते हैं,

"ये चीजें मनमाने तरीके से तय की जाती हैं, ताकि विभाग औचक निरीक्षण कर सके और झोपड़ी में कुछ न कुछ गंदगी होने का दावा करके जुर्माना वसूल सके."

जॉन इस नियम की भी आलोचना करते हैं कि झोपड़ी के लाइसेंस के लिए अप्लाई करने वाले के पास कोई रोजगार या पेंशन नहीं होनी चाहिए. और वो किसी भी तरीके से किसी दूसरे धंधे में नहीं लगा होना चाहिए.

लोबो कहते हैं,

"झोपड़ी बनाने की लागत कम से कम 15 लाख रुपए है. ये लागत 1 करोड़ रुपए तक जा सकती है. कोई बेरोजगार इस पैसे की व्यवस्था कहां से करेगा? इसीलिए झोपड़ियां अक्सर दूसरे राज्यों के लोगों को किराए पर दे दी जाती हैं. सरकार को सब्सिडी देनी चाहिए या लोन स्कीम लानी चाहिए."

'ज्यादा वक्त के लिए मिले लाइसेंस'

लोबो मांग करते हैं कि लाइसेंस 3 साल से ज्यादा वक़्त के लिए दिया जाए. वो कहते हैं कि अगर किसी ने झोपड़ी में बड़ी रकम लगाई है, और तीन साल बाद अगले ड्रॉ में उसे लाइसेंस नहीं मिला तो उसे दुकान बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

पॉलिसी के मुताबिक, अगर एक लाइसेंसधारी की मृत्यु हो जाए तो उस सीजन के लिए उसके कानूनी वारिस को झोपड़ी चलाने की अनुमति होगी. लेकिन अगले सीजन में वेटिंग लिस्ट में अगले नंबर वाले एप्लिकेंट को लाइसेंस दे दिया जाएगा.  

झोपड़ी चलाने वाले एक व्यक्ति का कहना है कि ये नियम गलत है. लाइसेंस 3 साल के लिए रिन्यू होता है, इसलिए किसी झोपड़ी संचालक की मौत हो जाने पर उसके वारिस को भी तीन साल तक झोपड़ी चलाने की अनुमति देनी चाहिए.

नई नीति के तहत, झोपड़ी के बाहर मेज, कुर्सी, डेक बेड्स, छतरी वगैरह को 15 मीटर के दायरे के अंदर लगाना है. और इस एरिया के चारों तरफ बाड़ेबंदी करनी है. झोपड़ी वालों का कहना है कि इससे टूरिस्ट्स और मछुआरों को आने-जाने में दिक्कत होगी. इसके अलावा सीवेज, कचरे के निपटान को लेकर भी झोपड़ी मालिक सरकार से चर्चा करना चाहते हैं.

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लाइसेंस मिलने में देर

झोपड़ी मालिकों का कहना है कि सीजन शुरू होने से कम से कम एक महीने पहले एक अस्थायी लाइसेंस जारी कर देना चाहिए. क्रूज़ कहते हैं कि सितंबर ख़त्म होने को है, लेकिन अभी तक लाइसेंस की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई. पॉलिसी का ड्राफ्ट बीते हफ्ते ही हमारे साथ साझा किया गया था, कुछ मुद्दों पर अभी भी चर्चा चल रही है. लाइसेंस जारी होने के बाद भी हमें कई विभागों से अनुमति लेनी होती है. क्रूज़ के मुताबिक, झोपड़ी लगाने में भी 15 दिन का वक्त लगता है. जगह तय होने में भी कई दिन लगते हैं. ऐसे में झोपड़ी का व्यापार करने वाले दो महीने देरी से चल रहे हैं, जिससे उनको नुकसान होगा.

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