"जब बेटे ने फिर सुनी पिता की आवाज़", AI कर रहा मरे हुए लोगों की डिजिटल क्लोनिंग
AI Voice Clone: यह तकनीक तेजी से लोकप्रिय हो रही है. लोग उन सवालों का जवाब पाने के लिए चैटबोट का सहारा लेते हैं, जो वे अपने प्रियजनों से उनके जीवनकाल में नहीं पूछ पाए थे.

रात के सन्नाटे में अचानक फोन पर मैसेज पिंग हुआ-"बेटा, कैसे हो?" वो ठिठक गया. नंबर उसके पिता का था. लेकिन पिता तो अब इस दुनिया में नहीं थे. असल में यह मैसेज किसी इंसान ने नहीं, बल्कि AI चैटबोट ने भेजा था. उस चैटबोट को पुराने मैसेज, ईमेल और वॉइस क्लिप्स से ट्रेन किया गया था-ताकि वह बिल्कुल उसी पिता की तरह जवाब दे सके.
यही है आज की नई हकीकत: मौत के बाद भी बातचीत.
जब बेटा पिता से दोबारा "मिला"ब्रिटिश समाचार पत्र द गार्डियन ने इस कहानी को "Griefbot" कहा. ऐसे चैटबोट्स, जो खोए हुए इंसान को फिर से "जीवित" कर देते हैं-कम-से-कम बातचीत के स्तर पर. रिपोर्ट कहती है कि यह तकनीक तेजी से लोकप्रिय हो रही है. लोग उन सवालों का जवाब पाने के लिए चैटबोट का सहारा लेते हैं, जो वे अपने प्रियजनों से उनके जीवनकाल में नहीं पूछ पाए थे. लेकिन साथ ही BBC चेतावनी देता है. यह राहत से ज़्यादा एक भावनात्मक जाल भी बन सकता है.
Microsoft का 'डिजिटल क्लोन'वॉशिंगटन पोस्ट बताता है कि 2021 में Microsoft ने एक पेटेंट फाइल किया था. इस पेटेंट में लिखा था कि सोशल मीडिया पोस्ट, वॉयस रिकॉर्डिंग और टेक्स्ट डेटा को मिलाकर किसी भी इंसान का डिजिटल क्लोन तैयार किया जा सकता है.
मतलब-आप चाहें तो अपने बचपन के शिक्षक से फिर से बात कर सकते हैं, या किसी फिल्म स्टार से मौत के बाद भी "गपशप" कर सकते हैं.
चीन और कोरिया - यादों की AI फैक्ट्रीAl Jazeera और NPR ने बताया कि चीन और दक्षिण कोरिया में यह टेक्नोलॉजी अब बिज़नेस मॉडल बन चुकी है.
परिवार, खासकर बूढ़े माता-पिता, अपने खोए हुए बच्चों की आवाज़ सुनने के लिए पैसा खर्च कर रहे हैं.
एक मां ने कहा-"जब चैटबोट मुझे मेरी बेटी की तरह जवाब देता है, मुझे लगता है वो कहीं गई ही नहीं थी."
लेकिन सवाल वही है-क्या यह राहत है, या बस यादों को और गहरा करने का तरीका?
समाचार एजेंसी Reuters इसे "Ethical Dilemma" कहता है. अगर कोई AI मृतकों की तरह बोल सकता है, तो उसका इस्तेमाल इमोशनल फ्रॉड के लिए भी हो सकता है.
कोई आपके प्रियजन का चैटबोट बनाकर आपसे पैसे वसूल सकता है, या आपकी निजता भंग कर सकता है.
Associated Press और BBC Future कहते हैं-AI चाहे कितनी भी हूबहू आवाज़ और अंदाज़ कॉपी कर ले, वह इंसान की रूह और जटिल भावनाओं को कभी दोहरा नहीं सकता.
आखिरकार, ये चैटबोट एक "प्रतिबिंब" हैं, असली इंसान नहीं.
मौत के बाद भी बातचीत… यह सुनने में एक साइंस-फिक्शन फिल्म जैसा लगता है.
लेकिन हकीकत यह है कि आने वाले वर्षों में शायद यह सामान्य हो जाए.
कोई अपने प्रियजन का चैटबोट रोज़ की दिनचर्या का हिस्सा बना लेगा. कोई इसे तकनीक की सबसे बड़ी उपलब्धि मानेगा. और कोई इसे इंसानी रिश्तों के साथ खिलवाड़.
पर इतना तय है-AI ने एक ऐसा दरवाज़ा खोल दिया है, जिसके पार यादें, रिश्ते और परलोक सब एक-दूसरे में घुलते नज़र आते हैं.
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