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Highway Hypnosis: इसे समझ लिया तो गाड़ी चलाते वक्त जिंदगी थोड़ी और सेफ हो जाएगी

हाल में मुंबई-नागपुर समृद्धि हाईवे पर एक और दुर्घटना में दो परिवार खत्म हो गए. बीते कुछ महीनों में इस हाईवे पर कई हादसे हुए जिनमें 39 लोगों की मौत हो गई.

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Highway hypnosis
हाईवे हिप्नोसिस एक मानसिक स्थिति है. (फोटो सोर्स- Getty और Unsplash)
2 जून 2023 (Updated: 2 जून 2023, 23:53 IST)
Updated: 2 जून 2023 23:53 IST
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बीते दिनों सूरत के रहने वाले दो परिवार मुंबई-नागपुर समृद्धि हाईवे (Mumbai Nagpur Samruddhi Expressway) पर हुए एक्सीडेंट में मारे गए. महाराष्ट्र पुलिस (Maharashtra Police) ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि दिसंबर 2022 में इस हाईवे का उद्घाटन हुआ था. तब से इस हाईवे पर हुए हादसों में 39 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और 143 लोग घायल हुए हैं. पुलिस ने ये भी कहा कि इन हादसों की एक बड़ी वजह हाईवे हिप्नोसिस है. आज इसी हाईवे हिप्नोसिस की बात करेंगे.

हाईवे हिप्नोसिस

हाईवे माने, चौड़ी सड़क. ऐसी सड़क जिस पर आम शहरी सड़कों से कहीं ज्यादा स्पीड पर गाड़ियां चलती हैं. और हिप्नोसिस माने सम्मोहन. लेकिन यहां बेसुधी या बेहोशी शब्द का इस्तेमाल करना उचित होगा.

हाईवे हिप्नोसिस इससे अलग है. इसे White Line Fever भी कहा जाता है. ये कोई बीमारी नहीं है. एक मानसिक स्थिति है. साल 1921 में पहली बार एक आर्टिकल में इस मनःस्थिति का जिक्र किया गया था. फिर साल 1929 में एक स्टडी आई. उसमें कहा गया कि गाड़ी चलाने वाले लोग आंखें खुली रखकर भी सो जाते हैं. और गाड़ी की स्टीयरिंग ऑपरेट करते रहते हैं. 50 के दशक के आस-पास इस सिद्धांत को रोड एक्सीडेंट से जोड़कर देखा जाने लगा. और साल 1963 में अमेरिका की रटगर्स यूनिवर्सिटी में काम करने वाले मनोविज्ञानी जीडब्ल्यू विलियम्स ने पहली बार 'हाईवे हिप्नोसिस' नाम का शब्द गढ़ा था.

इसे समझने के लिए पहले ऑटोमेटिसिटी समझते हैं. सुबह चाय के साथ अखबार के पन्ने पलटते हुए अगर ध्यान, किचन में हो रही खटपट की तरफ हो तो याद नहीं रहता कितने पन्ने पलट डाले. और चाय का प्याला कब खाली हो गया. न चाय फ़ैली और न ही अखबार फटा. भले ही ये ध्यान न हो कि खबर क्या पढ़ी है. इसे ऑटोमेटिसिटी कहते हैं. 

एक और उदाहरण से समझिए. बचपन में साइकल से स्कूल से घर तक का सफ़र करते वक़्त हमें कभी रास्ता याद नहीं करना पड़ता था. हम पैडल पर पैर मारते, हैंडल को जरूरत भर मोड़ते हुए, साथ वाले दोस्त से बात करते हुए घर पहुंच जाते थे. ये भी ऑटोमेटिसिटी यानी स्वचालितता का उदाहरण है. यानी जब हम एक काम करने में पारंगत हो जाते हैं, या जब वो हमारी आदत में आ जाता है तो वो स्वतः ही होने लगता है. बिना कोई सजगता बरते.

ऑटोमेटिसिटी की स्थिति में जब हमें कुछ देर के लिए गाड़ी चलाते वक़्त ये ध्यान ही नहीं रहता कि उस बीच क्या-क्या हुआ. माने जब हम पार्शियल या पूरी तरह एक तरीके की एम्नेशिया में चले जाते हैं, तो इसे हाईवे हिप्नोसिस कहते हैं.

इसमें क्या होता है? ऐसे समझिए कि एक सीधा और बिना भीड़-भाड़ का रास्ता. आप सामने एक जगह, एकटक देख रहे हैं. एक्सीलेरेटर पर पैर जितना होना चाहिए उतना ही है. स्टीयरिंग को जितना घुमाना है आप उतना ही घुमा रहे हैं. कुल मिलाकर गाड़ी चल रही है. और कुछ देर बाद आपके को-पैसेंजर ने आपको टोका तो आपको ध्यान आया कि आप तो कहीं खो गए थे. पिछले कुछ मिनटों में क्या हुआ, कौन सा साइनबोर्ड निकला, कौन सा माइलस्टोन निकला, कितने किलोमीटर चल आए, आपको नहीं पता. पता भी है तो ठीक-ठीक नहीं बस कुछ धुंधला सा याद है.

हाईवे हिप्नोसिस होती कैसे है?

ऑटो इंश्योरेंस देने वाली कंपनी टाटा AIG के मुताबिक, हाईवे हिप्नोसिस की स्थिति में गाड़ी पर ड्राइवर का पूरा कंट्रोल रहता है. लेकिन उसे अपने आस-पास का कुछ ध्यान नहीं रहता. इसकी वजह है इनैक्टिविटी. यानी निष्क्रियता. जब हम साइकल से चलते हैं तो ऑटोमेटिसिटी काम करती है. लेकिन हम मानसिक रूप से निष्क्रिय नहीं होते. क्योंकि साइकिल चलाते वक्त हम कुछ न कुछ शारीरिक मेहनत कर ही रहे होते हैं. और अमूमन हम थोड़ी या भीड़-भाड़ वाली जगह पर साइकल चला रहे होते हैं. इसलिए हमारा कॉन्सेंट्रेशन भी ज्यादा रहता है. यही मामला बड़ी गाड़ी के साथ भी है. जब हम शहर में गाड़ी चला रहे होते हैं तो ट्रैफिक के चलते हम पूरी तरह सजग होते हैं. शहरों में सफ़र भी छोटा होता है. इसलिए हमारा दिमाग पूरी तरह एक्टिव रहता है.

लेकिन हाईवेज़ पर, दूर-दूर तक कोई एक्टिविटी नहीं हो रही होती है. सिर्फ गाड़ियां चल रही होती हैं. एक जैसा माहौल होता है. और घंटों तक ऐसा ही बना रहता है. ऐसे में ऑटोमेटिसिटी की वजह से हम गाड़ी तो चलाते रहते हैं, लेकिन हमारा ब्रेन स्विच ऑफ हो सकता है. यानी कहें तो उसकी सजगता बेहद कम हो सकती है.

हाईवे हिप्नोसिस की स्थिति में गाड़ी चला रहे व्यक्ति का दिमाग थोड़ी देर या घंटों के लिए भी इसी स्थिति में बना रह सकता है. व्यक्ति को समय का अंदाजा भी नहीं रहता. और ऐसे में कई बार जानलेवा हादसा होने की भी संभावना होती है.

एक और चीज, हाईवे हिप्नोसिस, फैटीक्ड ड्राइविंग (fatigued driving) से अलग है. फैटीक्ड ड्राइविंग माने नींद पूरी न होने की वजह से या थकान की वजह से सुस्ती या आधी नींद में गाड़ी चलाना. हाईवे हिप्नोसिस में किसी दूसरी गाड़ी के हॉर्न या किसी नई चीज के अचानक सामने आने से या साथ बैठे को-पैसेंजर के टोकने से दिमाग वापस सचेत भी हो जाता है. लेकिन फैटीक्ड ड्राइविंग कहीं ज्यादा खतरनाक स्थिति है.

तो आख़िरी सवाल, हाईवे हिप्नोसिस से बचने के लिए क्या करें?

हाईवे पर गाड़ी से लंबा सफ़र तय करते वक़्त थोड़ी-थोड़ी देर बाद ब्रेक लेना चाहिए. कार से बाहर आकर अगर संभव हो तो थोड़ा चल-फिर लेना चाहिए. कई बार एक्सपर्ट्स ये भी सलाह देते हैं कि लंबी दूरी के लिए गाड़ी चलाते वक्त को-पैसेंजर के साथ थोड़ी-बहुत बात करते रहना चाहिए. कॉफ़ी-चाय वगैरह पी लेने से भी कुछ सजगता आती है.

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