कहानी आदमखोर बाघिन की, जिसने राजनीति से लेकर सेव टाइगर प्रोजेक्ट तक में हंगामा मचा दिया है!
सरकार के कितने ही संसाधन, डिपार्टमेंट और पैसे उस यूनिक प्रोजेक्ट में लगे थे, जो सुंदरी के चलते बंद होता लग रहा है.
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सांकेतिक इमेज (ये तस्वीर मछली नाम की बाघिन की है. ‘रणथम्भौर की रानी’ के नाम से फेमस इस बाघिन ने एक चौदह फीट लंबे मगरमच्छ को युद्ध में पछाड़ डाला था.)
राष्ट्रगानों के लेखक की तरह ही बांग्लादेश और भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों में जो एक और चीज़ कॉमन है वो है बंगाल टाइगर. ये दोनों ही देशों का राष्ट्रीय पशु है. लेकिन फिर भी दोनों ही देशों में टाइगरों की संख्या लगातार गिर रही है. 2010 तक भारत में 1800 के लगभग टाइगर थे. 2014 में ये बढ़कर 2200 के लग’बाघ’ हो गए.
सुंदरी - भाग 1
28 जून, 2018
बाघों की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व से ‘सुंदरी’ नाम की बाघिन को ओडिशा के सतकोसिया टाइगर रिज़र्व शिफ्ट किया गया. दो साल की बाघिन सुंदरी को जंगल में सीधे नहीं छोड़ दिया गया बल्कि उसके लिए एक ढाई एकड़ का बाड़ा बनाया गया. कुछ दिनों उसे इसी बाड़े में रखा गया जिससे कि शुरुआत में वो बदले हुए क्लाइमेट के साथ अपने को अनुकूलित कर ले.ये शिफ्टिंग ‘अंतर्राज्यीय स्थानांतरण प्रोग्राम’ के अंतर्गत थी. मने ‘दो राज्यों के बीच बाघों या अन्य जानवरों की अदलाबदली’ वाले प्रोग्राम के अंतर्गत. ये ‘केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय’ और ‘राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण’ का पायलट प्रोजेक्ट है. इसके लिए केंद्र सरकार ने संबंधित विभागों को 25 करोड़ की राशि भी उपलब्ध करवाई है.

अब आप कहेंगे कि सिर्फ बाघिन से ही बाघों की संख्या कैसे बढ़ाई जा सकती है? तो आपको बताते हैं कि 21 जून, 2018 को यानी जुम्मा-जुम्मा दस दिन पहले ही यहां एक नर बाघ को भी शिफ्ट किया गया था. नाम था कान्हा. अभी तक उसे भी सुंदरी के बगल वाले बाड़े में रखा गया था.
इन दोनों के ‘रिलोकेशन’ और ‘रिलेशन’ की सफलता से ही उन बाकी चार बाघों का भवितव्य भी जुड़ा था जिन्हें सरकार मध्यप्रदेश से उड़ीसा शिफ्ट करने की सोच रही थी.
जहां टोटल में बाघों की संख्या बढ़ रही थी, बेशक बहुत मंथर गति से ही सही, वहीं पिछले दस सालों में सतकोसिया में 8 में से सिर्फ 2 बाघ बचे थे. और दोनों की उम्र भी हो चली थी इसलिए उनसे वंश बढ़ने की उम्मीद करना बेमानी थी.
खासतौर पर तब जबकि दोनों ही मादा थीं. इसलिए ये कदम उठाया गया. और ये कदम भारत में पहली बार उठाया गया था. इसीलिए तो इसकी सफलता के ऊपर काफी चीज़ें टिकी थीं.
17 अगस्त, 2018
सब कुछ प्लान के अनुसार चल रहा था. बाड़ा खोलकर ‘सुंदरी’ को जंगल में छोड़ दिया गया था. उसे छोड़ने से पहले उसका पूरा मेडिकल चेकअप किया गया. ये सारी प्रक्रिया राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की गाइडलाइंस के अंडर में पूरी हुई. कान्हा को कुछ दिनों पहले ही बाड़े से आज़ाद किया गया था.*** टाइगर रिज़र्व ***
ये शब्द आपको इस स्टोरी में बार-बार सुनने को मिलेगा इसलिए आइए पहले इसे समझ लें. बाघों की संख्या को बढ़ाने के लिए देश के कोने-कोने में टाइगर रिज़र्व मार्क किए गए हैं. (नोट: बनाए नहीं गए हैं, बल्कि मार्क किए गए हैं.)ये वो प्राकृतिक स्थल हैं जहां पर बाघ उनके लिए अनुकूलित जंगलों में विचरण कर सकते हैं, जी सकते हैं. भारत के कुछ फेमस टाइगर रिज़र्व में बांधवगढ़ नेशनल पार्क, रणथम्भौर नेशनल पार्क, जिम कॉर्बेट पार्क आते हैं. अब इन्हीं टाइगर रिज़र्वस को वन विभाग प्रजनन केंद्र की तरह यूज़ करने की प्लानिंग कर रहा है. रिज़र्व में मानव का न्यूनतम हस्तक्षेप हो इसलिए कड़े कानून बनाए गए हैं.

बहरहाल, न्यूनतम मानव हस्तक्षेप के बावज़ूद इन बाघों पर नज़र रखना भी ज़रूरी है, जिससे कि इसकी जनसंख्या, इनकी बीमारी या इनके बारे में वो सूचनाएं मिल सकें जो इन्हें जीवित रखने और इनकी संख्या में वृद्धि के लिए ज़रूरी हैं. इसके चलते इनकी बॉडी में चिप और जीपीएस जैसे आधुनिक और माइक्रो उपकरण लगाए जाते हैं, कान्हा और सुंदरी को जंगल में छुट्टा छोड़ने से पहले भी यही काम किया गया.
12 सितंबर, 2018
सुंदरी आदमखोर बन गई! उसने गांव की एक औरत को मार डाला. औरत का नाम कैलाशी गरनायक. हाथीबड़ी गांव की रहने वाली. कैलाशी सुबह तालाब में नहाने गई थी लेकिन काफी देर तक उसकी कोई खोज-खबर न मिलने पर गांव वालों ने उसकी खोज-खबर लेना शुरू की. कैलाशी तो नहीं मिली लेकिन उसकी लाश मिली. लोगों ने बताया कि उसके शरीर पर बाघ के हमले के निशान थे. कैलाशी 45 साल की थी.गांव के लोगों ने बताया कि उन्होंने दूर से देखा कि सुंदरी कैलाशी की लाश के पास ही खड़ी थी. लोगों के शोर और पटाखों की आवाज़ सुनकर वो भाग खड़ी हुई. दरअसल गांव में जब किसी खोए हुए को ढूंढा जाता है तो पटाखे, टीन और ढोल बजाए जाते हैं, ताकि आसपास कोई जानवर हो भी तो भाग जाए.
13 सितंबर, 2018
कैलाशी की मौत के बाद अनुगुल जिले के लगभग सभी गांव के लोगों का गुस्सा सातवें आसमान में था. सतकोसिया टाइगर रिजर्व के बफरजोन में लगभग 200 गांव बसे हुए हैं. इन गांववालों ने वन विभाग के ऑफिस में आग लगा दी. ये लोग सुंदरी को वापस भेजने की मांग करने लगे. उन्होंने कहा कि हम शव का अंतिम संस्कार तब तक नहीं करेंगे जब तक सुंदरी को लेकर कोई निर्णय नहीं लिया जाता. खबर आई कि ओडिशा सरकार ने सुंदरी को मध्यप्रदेश वापस भेजने का निर्णय ले लिया है और ये काम अगले 15 दिनों में कर दिया जाएगा. इस आश्वस्ति और 8 घंटे की बातचीत और झिकझिक के बाद गांववालों का गुस्सा कुछ शांत हुआ और उन्होंने जो चक्का जाम किया हुआ था उसे भी तभी जाकर खोला. लेकिन तब तक वन विभाग की काफी प्रॉपर्टी जल चुकी थी जिसमें उनकी 5 नावें भी शामिल थीं.
कैलाशी के पति को बीस हज़ार रुपए दिए गए. जो वादा किए गए चार लाख के मुआवज़े की एक किश्त सरीखी थी.
आगे जो भी हो लेकिन इस एक घटना से पूरे रिलोकेशन प्रोगाम को गहरा झटका लग चुका था. इसके कुछ ही दिनों पहले दो बातें और हुईं. पहली इंडियन एक्सप्रेस से एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसमें बताया गया कि सतकोसी रिज़र्व के बाघ बाकी बाघों से अलग हैं और दूसरी जगह के बाघों को यहां शिफ्ट करके इस प्रोजेक्ट ने दरअसल एनटीसीए के प्रोटोकोल का उल्लंघन किया है और पारिस्थितिक-तंत्र के हिसाब से भी ये गलत है.
दूसरी घटना सतकोसी के आसपास रहने वालों का आंदोलन था जो कैलाशी की मौत के चलते नहीं था बल्कि उससे पहले से ही चल रहा था. इन लोगों का कहना था कि नए बाघ पालतू जानवरों और मानवों के लिए खतरा हैं और यदि बाघों को वन विभाग ने यहां से नहीं हटाया तो वे लोग इनको खुद मार देंगे.
14 सितंबर, 2018
ओडिशा के वन और पर्यावरण मंत्री बिजॉयश्री रूत्रे की तरफ से बयान आया कि बाघ को कहां शिफ्ट करना है कहां नहीं ये बिना भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के अप्रूवल के निर्धारित नहीं किया जा सकता.इससे ये बात क्लियर हो गई कि ओडिशा की सरकार ने रिलोकेशन को लेकर या तो कोई निर्णय लिया ही नहीं था या ले ही नहीं सकती थी. हां उसने और फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने तनावपूर्ण स्थिति से निपटने के लिए कुछ वादे गांववालों से ज़रूर कर दिए थे.
बिजॉयश्री ने कहा कि अभी तक क्लियर नहीं है कि महिला की मृत्यु बाघिन के द्वारा ही हुई है. और ये पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आने पर ही पता चल पाएगा. उन्होंने जोड़ा कि महिला के शरीर में देखे गए चोट के निशान उन निशानों से मेल नहीं खाते जो आमतौर पर बाघ के हमले से बनते हैं.
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