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प्रेग्नेंसी पीरियड, सिर्फ होने वाली मां में ही नहीं, पिता में भी कई बदलाव लाता है

घर-परिवार, दोस्त-रिश्तेदार सभी को न सिर्फ मां का, बल्कि होने वाले पिता का भी ख्याल रखना चाहिए.

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लल्लनटॉप
18 दिसंबर 2016 (Updated: 18 दिसंबर 2016, 01:43 PM IST) कॉमेंट्स
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अंकिता जैन. जशपुर छतीसगढ़ की रहने वाली हैं. पढ़ाई की इंजीनियरिंग की. विप्रो इंफोटेक में छह महीने काम किया. सीडैक, पुणे में बतौर रिसर्च एसोसिएट एक साल रहीं. साल 2012 में भोपाल के एक इंजीनियरिंग इंस्टिट्यूट में असिस्टेंट प्रोफेसर रहीं. मगर दिलचस्पी रही क्रिएटिव राइटिंग में. जबर लिखती हैं. इंजीनियरिंग वाली नौकरी छोड़ी. 2015 में एक नॉवेल लिखा. ‘द लास्ट कर्मा.’ रेडियो, एफएम के लिए भी लिखती हैं. शादी हुई और अब वो प्रेग्नेंट हैं. ‘द लल्लनटॉप’ के साथ वो शेयर कर रही हैं प्रेग्नेंसी का दौर. वो बता रही हैं, क्या होता है जब एक लड़की मां बनती है. पढ़िए सातवीं किश्त.
MOTHER IN MAKING “हॉस्पिटल के वेटिंग एरिया में डॉक्टर के आने पहले तक उसने मेरा हाथ जोर से पकड़ा हुआ था. घर में प्रेगनेंसी टेस्ट करने के बाद कई सारे सिमटम्स को मद्देनज़र रखते हुए हम डॉक्टर के पास कन्फर्मेशन के लिए आये थे. लेकिन मुझसे ज्यादा वो घबरा रहा था. मां बनने की जितनी उत्सुकता मुझे थी, पिता बनने की उतनी घबराहट और मोह उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी.” मां बनने के नौ महीनों में घर-परिवार-दोस्त-रिश्तेदार सभी मां का खूब ख्याल रखते हैं. खाने-पीने से लेकर उसकी छोटी-छोटी ज़रूरतों का. लेकिन पिता? उसका ख्याल कौन रखता है? मां बनने के लिए गर्भावस्था पर ढेरों किताबें बाज़ार में उपलब्ध हैं. ढेरों आर्टिकल इन्टरनेट पर पढ़े जा सकते हैं. लेकिन “एक पिता कैसे बने?”, “क्या करें जब पिता बने?” “एक बन रहे पिता का कैसे ख्याल रखें?” इस तरह की कोई विशेष किताब नौ महीनों वाली कहीं नहीं दिखती. हां, ये ज़रूर हर जगह लिखा रहता है कि पति को अपनी गर्भवती पत्नी के लिए ये करना चाहिए, वो करना चाहिए, ऐसे रखना चाहिए, वैसे रखना चाहिए. लेकिन ये कहीं नहीं लिखा रहता कि पति का किस तरह ध्यान रखना चाहिए. गर्भावस्था में बीत रहे इन कुछ महीनों में मैंने ये बातें महसूस कीं कि जितनी देखभाल की ज़रुरत मुझे है, उतने ही मानसिक सपोर्ट की ज़रुरत मेरे पति को भी है. वो ख़ुद भले ही जताएं न, लेकिन आजकल उनका भी मूड स्विंग होता है.
असल में गलती किसी की नहीं बल्कि हमारे नज़रिए की है. मां बनने में नौ महीने लगते हैं. धीरे-धीरे मां अपने बच्चे को समझना, उसे महसूस करना और उससे प्यार करना सीखती है. लेकिन हम चाहते हैं कि पिता ये सब पहले दिन से ही करने लगे. वो उसी दिन पूरी तरह पिता बन जाए जिस दिन उसे ये खबर मिली कि वो पिता बनने वाला है. तो भैया, ये तो सरासर नाइंसाफी है. हमें बन रहे पिता को भी पिता बनने के लिए उतना ही समय देना चाहिए जितना मां को दिया जाता है.
मैंने अपने कुछ दोस्तों से बात की, कुछ बनने वाली माओं से, और कुछ पिताओं से. जो बातें और अनुभव सामने आये, उन्हें यहां लिख रही हूं.
“वो पहले सुबह दुकान जाते थे, दोपहर का खाना भी वहीं टिफिन से खाते थे, लेकिन अब वो दोपहर में घर आने लगे हैं. आकर सीधे मेरे पेट पर हाथ रखते हैं. कुछ देर उससे बातें करते हैं. फिर मुझे नसीहतें देकर चले जाते हैं”“पहले वो मेरी हर छोटी गलती पर डांट देते थे, अब जैसे उनका गुस्सा छू हो गया है. अब वो मुझे प्यार से समझाते हैं.”“पहले वो दोस्तों के साथ रात-बिरात कहीं भी निकल जाते थे. एडवेंचर का शौक है इसलिए खतरे मोल लेने से चूकते नहीं थे, लेकिन अब वो जाने से पहले सारे खतरों को नाप-तोल लेते हैं. अब वो अपनी ज़िन्दगी को रिस्क में डालने से डरने लगे हैं.”
ये कुछ बातें मुझे मेरी सहेलियों ने बताईं. जब मैंने उनसे पूछा कि मां बनने के दौरान तुम्हारे पतियों में क्या परिवर्तन आये? हमने महसूस किया कि “मां बनने के बाद औरत पहले से मजबूत और पुरुष पहले से ज्यादा कमज़ोर हो जाता है”. वो डरने लगता है. उसकी मर्दानगी उसके माथे पर नहीं चढ़ती, बल्कि उसे चेतावनी देती रहती है कि तेरे कंधों पर तेरे बच्चों की ज़िम्मेदारी है. वो सोचने लगता है कि एक पिता के बिना हिंदुस्तानी समाज में उसके बच्चों के लिए कितनी मुश्किलें सामने आ सकती हैं. कुछ ऐसा ही मुझे मेरे पुरुष मित्रों ने बताया, जब मैंने उनसे पूछा कि पिता बनने के दौरान आप क्या-क्या बदलाव महसूस कर रहे हैं.
“मैं पहले से अधिक ज़िम्मेदार महसूस करने लगा हूं. अब जब भी ख़ुशी आती है घबराहट साथ लाती है. पत्नी पर पहले से ज्यादा प्यार उमड़ता है. वो कोई लापरवाही करती है तो पहले से ज्यादा गुस्सा भी आता है”“शादी के बाद मैं कभी पत्नी को मायके छोड़ने नहीं गया था. वो एक इंडिपेंडेंट वीमेन है, और मुझे उस पर फक्र है कि उसे छोटी-छोटी चीज़ों और सफ़र के लिए मेरी डिपेंडेंसी नहीं रहती. वो अपने सारे काम ख़ुद कर लेती है. लेकिन अब जब वो मां बनने वाली है, मैं उसे एक पल भी अकेला नहीं छोड़ना चाहता. यहां तक कि उसे उसके मायके भेजने में भी डरता हूं. कहीं उसे कुछ हो न जाए, ये घबराहट हर पल मेरे मन में रहती है. अब मैं कार संभलकर चलाता हूं. उसके कहने से पहले उसकी बातें समझने की कोशिश करता हूं.”“बाकी सब तो ठीक है लेकिन कभी-कभी मुझे जलन होती है कि मैं मां क्यों नहीं बन सकता? अपनी पत्नी की तरह मैं अपने बच्चे को अपने अन्दर क्यों नहीं पाल सकता? ज़िन्दगी में यही वो मौका है जब एक औरत एक आदमी को बिना कुछ कहे ये अहसास दिला देती है कि कौन कितना काबिल और ताकतवर है.” ये वो बातें हैं जो मेरे पुरुष मित्रों ने मुझसे कहीं.
इनके अलावा अगर हम डॉक्टर्स की और वैज्ञानिक तथ्यों की मानें, तो होने वाले पिताओं में भी कई ऐसे लक्षण देखने को मिलते हैं, जैसे माओं में दिखते हैं. जैसे उबकाई आना, मॉर्निंग सिकनेस, नौसा, मूड स्विंग, वजह बढ़ना आदि. विज्ञान इस स्थिति को couvade या sympathetic pregnancy कहता है. इस टर्म के अंतर्गत लेबर और डिलीवरी वाले समय पुरुष की मानसिकता, उसे महसूस होने वाली भावनाएं, पत्नी के लिए तकलीफों का अहसास भी शामिल हैं. couvade असल में एक फ्रेंच शब्द है जो couver से बना है. हिंदी में देखें तो couver का मतलब है सुलगना, समझे. माने मां बनने के दौरान जितना एक औरत सुलगती है, उतना ही मानसिक रूप से कई पुरुष भी. हां, पुरुषों के मामले में “हर पुरुष” नहीं कहा जा सकता. क्योंकि समाज में ऐसे भी कई उदाहरण मिल जाते हैं, जहां पुरुषों द्वारा अपनी गर्भवती पत्नियों पर शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना देते हुए देखा गया है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सभी को हम एक ही डब्बे में बंद कर दें. वैज्ञानिकों द्वारा किये गए शोधों और प्रैक्टिकल उदाहरणों से ये सामने आया कि जिन पुरुषों के मन में अपनी गर्भवती पत्नी के लिए ज्यादा सहानुभूति, ज्यादा परवाह रहती है, या जो couvade जैसी सिचुएशन से गुज़रते हैं, उनका अपने होने वाले बच्चे से सामान्य की अपेक्षा ज्यादा जुड़ाव रहता है.
सन 2000 से अब तक होने वाली कई ऐसी स्टडीज में यह देखा गया कि, पिता बनने वाले पुरुषों में सिंगल पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा हार्मोनल बदलाव होते हैं. जन्म से ठीक पहले पुरुषों में Rolactin हाइएस्ट पॉइंट पर होता है. जन्म के तुरन्त बाद के समय में Testosterone लोवेस्ट हो जाता है. Estradiol का लेवल जन्म के पहले से जन्म के बाद में बढ़ता है और Cortisol लेबर और डिलीवरी के समय अपने पीक पर होता है.
अब समझे? एक बच्चे के जन्म में सिर्फ मां ही हार्मोनल बदलावों से नहीं गुज़रती है बल्कि एक पिता को भी अपने अन्दर दुनियाभर के बदलावों को झेलना पड़ता है. फर्क सिर्फ इतना है कि भाव हम सिर्फ मां को देते हैं. पिता पर पूरी ज़िम्मेदारी डाल देते हैं कि, बेटा अपने अन्दर के बदलावों को एक तरफ रखो पहले बीवी का ख्याल रखो. ख्याल रखने में कोई बुराई नहीं लेकिन हमें भी उसका ख्याल रखने की ज़रुरत है जो पिता बनने वाला है. अब यह और समझाने की ज़रुरत नहीं कि क्यों, घर-परिवार-दोस्त-रिश्तेदार सभी को न सिर्फ मां का बल्कि पिता का भी ख्याल रखना चाहिए. हां, उसे शारीरिक परिवर्तनों से नहीं गुज़ारना पड़ेगा, लेकिन मानसिक परिवर्तनों को समझने के लिए उसे हमारी ज़रुरत है.
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