The Lallantop
Advertisement

Chandrayaan 3: विक्रम लैंडर में लगी 20 ग्राम की ये चीज स्पेस में गूगल मैप का काम करेगी!

लैंडर में लगी छोटी सी ये डिवाइस, एस्ट्रोनॉट्स को रास्ता दिखाएगी. अगले मिशनों के दौरान स्पेसक्राफ्ट्स को भी बड़ी मदद मिलेगी.

Advertisement
Lunar mission lra device
विक्रम लैंडर (बाएं) और उसके साथ चांद पर पहुंची डिवाइस LRA (दाएं) (फोटो सोर्स- आज तक, NASA)
23 जनवरी 2024 (Updated: 23 जनवरी 2024, 17:55 IST)
Updated: 23 जनवरी 2024 17:55 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

14 जुलाई को ISRO ने चंद्रयान-3 लॉन्च किया था. मिशन सफल रहा. इसके विक्रम लैंडर में एक छोटू सा उपकरण लगा था- LRA. ये बस 20 ग्राम का होता है. ये उपकरण भी अब कमाल कर रहा है. विक्रम लैंडर में लगे इसी LRA और इसके कमाल के बारे में बात करेंगे. आसान भाषा में. 

(ये भी पढ़ें: विक्रम लैंडर ने क्या किया जो अंतरिक्ष यात्री चांद पर जाकर वापस आ सकेंगे?)

नासा ने क्या किया?

आगे कुछ भी समझने से पहले 2 शब्दों के बारे में जान लेते हैं क्योंकि ये दोनों शब्द आगे कई बार आने वाले हैं.

# LRO - ये नासा का एक रोबोटिक स्पेसक्राफ्ट है- Lunar Reconnaissance Orbiter. 

# LRA - LRA यानी लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर एरे (Laser Retroreflector Array). ये विक्रम लैंडर में लगा एक उपकरण है.

ISRO और NASA ने LRO के जरिए विक्रम लैंडर के LRA का 'लेजर रेंज मेजरमेंट' किया है. माने LRA से आने वाले सिग्नल को डिटेक्ट किया है. बीती 12 दिसंबर, 2023 को प्रयोग तब किया गया जब चांद पर रात थी. नासा के मुताबिक, LRO ने अपने अंदर लगे लेज़र से विक्रम लैंडर की तरफ लाइट दागी. इस वक़्त लैंडर, चांद के साउथ पोल रीजन में एक क्रेटर (गढ्ढे) के पास था. LRO से 100 किलोमीटर दूर. लेजर से दागी गई लाइट जब टकराकर वापस आई तो ये साफ़ हो गया कि ये लाइट LRA से रिफ्लेक्ट होकर आई है.

बता दें कि पृथ्वी से कोई सैटेलाइट कितनी दूर है, ये जानने के लिए पृथ्वी से उस सेटेलाइट पर लाइट छोड़ी जाती है. लाइट के वापस आने में जितना वक़्त लगता है, उसी हिसाब से सेटेलाइट की पृथ्वी से दूरी और उसकी सटीक पोजीशन का पता लग जाता है. लेकिन LRO खुद में एक चलता-फिरता सेटेलाइट है. ये पहली बार है जब किसी मूविंग सेटेलाइट की लोकेशन जानने के लिए चांद पर मौजूद LRA की मदद ली गई. LRO के लेजर अल्टीमीटर ने LRA से निकले सिग्नल्स सफलतापूर्वक डिटेक्ट कर लिए. इससे क्या फायदा है, ये समझें, उससे पहले LRA के बारे में जानना जरूरी है.

LRA क्या है?

LRA एक गोल चकती के आकार का इंस्ट्रूमेंट है. हेमीस्फीयर. आकार कितना? गोल वाले बिस्किट जितना. वजन भी बेहद कम. महज 20 ग्राम. ये शीशे की तरह काम करता है. लेकिन शीशा है नहीं. ये असल में प्रिज्म से बना है. विक्रम लैंडर के जरिए इसे चंद्रयान-3, चांद पर छोड़ आया है. LRA की तकनीक बहुत मुश्किल तो नहीं है, लेकिन बड़े काम की है. स्पेस में चक्कर काट रही सैटेलाइट्स और एस्ट्रोनॉट्स के लिए LRA, एक GPS की तरह काम कर रहा है.

LRA कैसे काम करता है?

LRA के अंदर 1.27 सेंटीमीटर डायमीटर के 8 'क्वार्टज़ कॉर्नर क्यूब प्रिज्म' हैं. यानी ऐसे प्रिज्म जो क्वार्टज़ (वो मटीरियल, जिससे शीशा बनता है) के बने हैं और जिनका आकर एक क्यूब के कोने जैसा है. बीचोंबीच में नुकीला. ये सभी प्रिज्म एल्युमीनियम के फ्रेम में जड़े हुए हैं. रेट्रोरिफ्लेक्टर में कॉर्नर क्यूब प्रिज्म ही इस्तेमाल किए जाते हैं. इसके पीछे एक ख़ास वजह है. ये प्रिज्म, इसके ऊपर आने वाली प्रकाश की किरणों को वापस उसके सोर्स की तरफ यानी उसी दिशा में रिफ्लेक्ट कर देते हैं. रेट्रोरिफ्लेक्टर से फायदा ये होता है कि कोई किरण जब इस पर गिरती है तो किसी और दिशा में नहीं रिफ्लेक्ट होती, बल्कि जिस दिशा से आई है उधर ही वापस चली जाती है. रिफ्रेक्शन वाली प्रोसेस.

corer cube prism
कार्नर क्यूब प्रिज्म (फोटो सोर्स- विकीमीडिया कॉमन्स )
इसमें ख़ास बात क्या है?

ऐसे समझिए कि अगर किसी सामान्य शीशे पर बाएं तरफ से 20 डिग्री के एंगल से कोई प्रकाश की किरण पड़े तो वो किरण टकराकर उसी दिशा में दाएं तरफ 20 डिग्री के एंगल से रिफ्लेक्ट (परावर्तित) हो जाएगी. माने दिशा वही लेकिन एंगल विपरीत. ये प्रकाश के परावर्तन का सामान्य नियम है- आपतन कोण बराबर परावर्तन कोण. आपने फिजिक्स में पढ़ा ही होगा. नीचे चित्र में देख सकते हैं.

यहां i और r बराबर हैं. 

 

लेकिन कॉर्नर क्यूब प्रिज्म की खासियत ये है कि ये आने वाली किरण को पहले इसके अंदर ही एक एंगल पर घुमा देता है, फिर बाहर, ठीक उसी दिशा में रिफ्लेक्ट कर देता है जिस दिशा से किरण आई थी. LRA में ऐसे प्रिज्मों के इस्तेमाल से रिफ्लेक्ट होने पर किरण या सिग्नल बिखरता नहीं.
 

यहां किरण, उसी दिशा और उसी कोण से परावर्तित हो रही है.

साथ ही 8 प्रिज्मों के इस्तेमाल से LRA एक बड़ा एरिया कवर करता है. और किसी ऑर्बिटर से आने वाली लाइट का इस्तेमाल करके, लैंडर की सही लोकेशन और ऑर्बिटर से लैंडर की सटीक दूरी बताता है.

क्या फायदे हैं?

LRA एक फिजिकल डिवाइस है. इसके अंदर कोई बैटरी नहीं है. बस इसमें लगे प्रिज्म को काम करना है. भले ही इसका वजन सिर्फ 20 ग्राम हो, ये बरसों तक अपनी जगह पर बना रहकर एक फिक्स्ड रिफ्लेक्टर पॉइंट की तरह काम कर सकता है. क्योंकि यहां न के बराबर वातावरण है. कोई हवा-तूफान नहीं आता. वैज्ञानिकों के अनुसार, इस सफल प्रयोग के बाद LRA चांद पर एक लोकेशन मार्कर की तरह काम करेगा. इसकी मदद से चांद के अलावा, स्पेस में एस्ट्रोनॉट्स और सैटेलाइट्स की सटीक लोकेशन बताई जा सकती है. इस एक्सपेरिमेंट्स से जो डेटा मिला है, उसकी मदद से हमारी चांद की डायनामिक्स, उसकी अंदरूनी संरचना और उसके गुरुत्वाकर्षण की समझ बेहतर होगी.

पहला अपोलो मिशन 1969 में लॉन्च किया गया था. इसके तहत इंसानों को चांद पर भेजा गया था. इसके बाद अब NASA एक और ऐसा मिशन प्लान कर रहा है- मिशन आर्टेमिस. वैज्ञानिकों का ये भी कहना है कि आर्टेमिस मिशन के दौरान LRA की मदद से स्पेसक्राफ्ट और एस्ट्रोनॉट्स, चांद पर कम रोशनी वाली जगहों (जैसे साउथ पोल, जहां हमेशा रात रहती है) पर भी उतर सकेंगे.

(इस रिपोर्ट को लिखने में हमारे साथ इंटर्नशिप कर रहे सार्थक ने मदद की है.)

वीडियो: चंद्रयान 3 के रोवर को चांद पर क्या क्या मिला, सब पता चला

thumbnail

Advertisement

Advertisement