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बुल्ली बाई एप के पीछे कौन था, मालूम चल गया!

ये लोग एक तीर से दो निशाने लगा रहे थे- मुस्लिम महिलाएं और सिख समुदाय.

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बाएं से दाएं. Bulli Bai एप का स्क्रीनशॉट और मुंबई पुलिस की हिरासत में एक आरोपी. (फोटो: Twitter/ANI)
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4 जनवरी 2022 (Updated: 4 जनवरी 2022, 04:56 PM IST) कॉमेंट्स
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'सुल्ली डील्स' मामले में दिल्ली और नोएडा पुलिस कोई गिरफ्तारी नहीं कर पाईं, लेकिन मुंबई पुलिस ने इसी के जैसे 'बुल्ली बाई' मामले में सफलता हासिल कर ली है. महाराष्ट्र के सूचना प्रोद्योगिकी विभाग के राज्यमंत्री सतेज पाटील ने 3 जनवरी की रात लगभग 10 बजे एक ट्वीट
के माध्यम से बताया था कि मामले में मुंबई पुलिस के हाथ एक कड़ी लग गई है. लेकिन तब पाटील ने नाम सार्वजनिक नहीं किए थे. बस इतना कहा था सरकार दोषियों के पीछे लगी है और उन्हें जल्दी ही कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा. दो आरोपी हिरासत में सतेज किस कड़ी की बात कर रहे थे, वो मंगलवार 4 जनवरी को मालूम चला. दरअसल 3 जनवरी को मुंबई पुलिस की साइबर सेल ने बेंगलुरु से एक 21 वर्षीय इंजीनियरिंग स्टूडेंट को हिरासत में लिया था. इसका नाम है विशाल कुमार झा. लेकिन विशाल को इस मामले में सहआरोपी बनाया गया है. मुंबई पुलिस की साइबर सेल ने उत्तराखंड से भी एक महिला को हिरासत में लिया है. उसे मुख्य आरोपी बनाया गया है.
समाचार एजेंसी एएनआई ने मुंबई पुलिस के हवाले से बताया है कि विशाल कुमार झा और ये महिला एक दूसरे को जानते थे. बुल्ली बाई एप से संबंधित तीन अकाउंट ये महिला ही हैंडल कर रही थी. विशाल कुमार झा ने खालसा सुपरिमेसिस्ट नाम से एक अकाउंट बनाया था. 31 दिसंबर के रोज़ विशाल ने दूसरे अकाउंट्स के ऐसे नाम रख दिए, जिनसे लगे कि उन्हें सिख लोगों ने बनाया है. फर्ज़ी खातों को खालसा पंथ से जुड़ा दिखाया गया. 4 जनवरी को मुंबई पुलिस ने विशाल कुमार झा को मुंबई की एक अदालत में पेश भी किया. यहां से उसे 10 दिन की पुलिस रिमांड में भेज दिया गया है. विशाल के बारे में शुरुआती जानकारी ये है कि वो मूलतः बिहार का रहने वाला है. बेंगलुरु में सिविल इंजीनियरिंग के दूसरे साल में पढ़ाई कर रहा है. जिन ट्विटर अकाउंट्स से एप पर पीड़ित मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें चढ़ाई गईं, उनके आईपी अड्रेस ट्रेस करते हुए पुलिस विशाल तक पहुंची.
संभव है कि कुछ जानकारी Indian Computer Emergency Response Team (Cert-In) की जांच में भी सामने आए. CERT से इस मामले में एक हाई लेवल कमेटी बनाकर राज्यों की पुलिस फोर्स के साथ तालमेल करने को कहा गया है. अब तक इस मामले में दिल्ली, मुंबई और हैदराबाद में विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज हो चुका है. इनमें दो समुदायों के बीच दुश्मनी पैदा करने और महिलाओं के यौन उत्पीड़न से जुड़ी धाराएं भी लगी हैं. बुल्ली बाई एप की ज़द में आई पीड़िताओं में कुछ नाबालिग बच्चियों के होने की बात भी सामने आई है. अगर ये साबित हो जाता है, तो ये देखना होगा कि क्या आरोपियों पर पॉक्सो के तहत भी मामला बनाया जाता है. एक तीर से दो निशाने! यहां हमारे कुछ सवाल हैं, जिन पर बात होना बहुत ज़रूरी है. विशाल पर आरोप लगा है. वो सिद्ध नहीं हुआ है. लेकिन क्या हमें ये सवाल नहीं पूछना चाहिए कि वो कौनसा माहौल था, जिसने विशाल या उस जैसे किसी दूसरे शख्स को बुल्ली बाई जैसा एप बनाने की प्रेरणा दी. फिलहाल ये जांच का विषय है कि विशाल इस काम को अकेले कर रहा था, या उसके साथ और बड़ा समूह काम कर रहा था. अगर ये कोई समूह था, तो और चिंता की बात है.
चिंता की बात वो चतुराई भी है, जिसके साथ बुल्ली बाई एप पर गुरुमुखी में चीज़ें लिखी गईं और इस एप का दोष सिख समुदाय पर मढ़ने की कोशिश की गई. किसान आंदोलन के बाद सिख समुदाय किस तरह निशाने पर आया है, ये किसी से छिपा नहीं है. 24 नवंबर 2021 को बीबीसी पर श्रुति मेनन और फ्लोरा कारमाइकल की एक रिपोर्ट
छपी- Farm laws: Sikhs being targeted by fake social media profiles.
बीबीसी की इस रिपोर्ट में Centre for Information Resilience (CIR) नाम के एक नॉन प्रॉफिट संस्थान की रिपोर्ट में सामने आई जानकारी को साझा किया गया है. CIR ने अपनी रिपोर्ट में ये पाया कि किसान आंदोलन के दौरान ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर फेक आईडीज़ का एक नेटवर्क खड़ा किया गया. लेकिन ये फेक आईडी बॉट्स द्वारा नहीं, असल इंसानों द्वारा चलाई जा रही थीं. इन प्रोफाइल्स को सिख नाम दिए गए थे. साथ में RealSikh जैसे हैशटैग चलाए जा रहे थे.
किसान आंदोलन के दौरान सिख समुदाय से आने वाले लोगों को निशाने पर लिया गया. (फोटो: PTI)
किसान आंदोलन के दौरान सिख समुदाय से आने वाले लोगों को निशाने पर लिया गया. (फोटो: PTI)

इनमें से कई अकाउंट्स में पंजाबी सेलेब्रिटीज़ की तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया था. इन अकाउंट्स से लगातार ऐसे ट्वीट और पोस्ट डाले जा रहे थे, जिनसे लगे कि किसान आंदोलन को खालिस्तानी समूहों द्वारा हाईजैक कर लिया गया है. इसके साथ सिख समुदाय से जुड़ी बातों को उग्रवाद से जोड़कर दिखाया जा रहा था. जो सिख इन बातों से असहमति जताते, उन्हें इन अकाउंट्स से फेक सिख बताया जा रहा था.
बीबीसी की रिपोर्ट बताती है कि इस पूरे ऑपरेशन में हिंदू राष्ट्रवाद और भारत सरकार के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की गई, वो भी सिख नाम के हैंडल्स से. ये इसलिए भी परेशान करने वाला था, क्योंकि इन फेक अकाउंट्स में से कई को समाचार वेबसाइट्स ने अपनी खबरों तक में एम्बेड कर लिया था. कई दूसरी हस्तियों ने इन्हें शेयर किया था. इसका मतलब लोग ये समझ नहीं पा रहे थे कि ये एक प्रोपेगैंडा ऑपरेशन था. जब CIR की रिपोर्ट सामने आई, तो ट्विटर ने इन खातों को ये कहते हुए बंद कर दिया कि ये ट्विटर की पॉलिसी के खिलाफ काम कर रहे थे. आरोपियों की मानसिकता क्या है? हमने ये बार-बार होते देखा है. सुल्ली डील्स या बुल्ली बाई जैसे एप्स सिर्फ एक तरह का टार्गेट नहीं चुनते. ये एक तीर से दो निशाने लगाते हैं. जैसे बुल्ली बाई एप के मामले में मुस्लिम महिलाओं के साथ साथ सिख समुदाय को भी बदनाम करने की कोशिश नज़र आती है. कुछ वक्त पहले की ही बात है, टी20 वर्ल्ड कप के एक मुकाबले में भारत की मेन्स क्रिकेट टीम पाकिस्तान की टीम से हार गई. इसके बाद हार का दोष मोहम्मद शमी पर मढ़ दिया गया. क्यों, ये अलग से बताने की ज़रूरत नहीं है. तब क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली ने मुखर होकर मोहम्मद शमी का बचाव किया था.
इसके बाद विराट कोहली की बेटी को ऑनलाइन धमकी मिली. हमें ये कहते हुए भी अफसोस हो रहा है कि ये एक बच्ची को दी गई रेप की धमकी थी. तब इस बात का प्रचार किया गया कि ये धमकी पाकिस्तान से आई है. लेकिन 2 नवंबर 2021 को ऑल्ट न्यूज़ पर छपी मुहम्मद ज़ुबैर की रिपोर्ट
बताती है कि जिस अकाउंट से धमकी आई थी, वो पाकिस्तानी नहीं, भारतीय था. 11 नवंबर को इंडियन एक्सप्रेस में श्रीनिवास जनयाला की रिपोर्ट
छपी. इसमें इस भारतीय का नाम भी सामने आ गया. ये आईआईटी हैदराबाद से 2019 में पासआउट हुआ रामनागेश अकुबाथिनि था. इसे एक फूड डिलिवरी एप द्वारा उस साल सबसे बड़े पैकेजेस में से एक पर हायर भी किया गया था. बावजूद इसके रामनागेश इस तरह की हरकतें करता पकड़ा गया.
मोहम्मद शमी का समर्थन करने पर विराट कोहली की बेटी के रेप की धमकी दी गई. (फोटो: AP)
मोहम्मद शमी का समर्थन करने पर विराट कोहली की बेटी के रेप की धमकी दी गई. (फोटो: AP)

इसीलिए इस सवाल का वज़न बहुत है कि रामनागेश या विशाल कुमार झा जैसे लोगों के कामों के पीछे किस तरह की मेंटल कंडिशनिंग काम करती है. और कौन लोग इनके साथ काम करते हैं. और सबसे ज़्यादा ज़रूरत है इस बात की कि इन्हें दंड और काउंसिलिंग दोनों मिलें. दंड इसलिए, ताकि दूसरे इनके नक्शे कदम पर न चलें. और काउंसिलिंग, ताकि ये लोग समझें कि इनसे क्या गलती हुई और इससे कौनसा खतरा है.
अंग्रेज़ी में एक शब्द है डीह्यूमनाइज़ेशन. व्यक्ति से उसकी इंसानी पहचान छीन लेना. तब वो एक वस्तु हो जाता है. जिसके साथ फिर किसी भी तरह के अन्याय को जायज़ ठहराया जा सकता है. सुल्ली डील्स और बुल्ली बाई ऐसी ही कोशिशों का नाम है.

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