'सिर्फ आरोपी होने पर प्रॉपर्टी नहीं तोड़ सकते, कानूनी प्रक्रिया जरूरी', रिटायर्ड जजों ने कहा
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश R. M. लोढ़ा ने कहा कि किसी अपराध में संलिप्तता का मतलब ये नहीं है कि उस व्यक्ति की प्रॉपर्टी तोड़ दी जाएगी.

प्रयागराज हिंसा के मुख्य आरोपी मोहम्मद जावेद के घर पर 12 जून को बुलडोजर चलाया गया. प्रशासन ने इस घर को अवैध तरीके से बनाया गया बताया. इधर मोहम्मद जावेद के वकील ने प्रशासन की कार्रवाई को गैरकानूनी बताते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका डाल दी. इस बीच सोशल मीडिया पर बहुत से सवाल उठे. बहुत सी बातें हुईं. अब कुछ रिटायर्ड जजों ने इस कार्रवाई को गैरकानूनी बताया है. इंडिया टुडे इन रिटायर्ड जजों से विस्तार से बात की है.
जज क्या बोले?सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश R. M. लोढ़ा ने कहा,
'भारत के सभी नागरिकों के लिए क़ानून की सही प्रक्रिया का पालन किया जाना है. किसी अपराध में संलिप्तता का मतलब ये नहीं है कि उस व्यक्ति की प्रॉपर्टी तोड़ दी जाएगी. अगर विवाद उसकी प्रॉपर्टी से जुड़ा है, तो एक उचित कोर्ट ऑर्डर जरूरी है. और उस व्यक्ति को एक नोटिस भी दिया जाना चाहिए. लेकिन बिना नोटिस के या किसी दूसरे क्राइम के लिए प्रॉपर्टी तोड़ देने की कानून की नजर में कोई वैधता नहीं है. किसी व्यक्ति ने भले ही जघन्य अपराध किया हो, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि सरकार उसकी प्रॉपर्टी तोड़ सकती है. अपराध में शामिल व्यक्ति को सजा देने के लिए कोर्ट को जरूरी ऑर्डर पारित करने होंगे.'
इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे, गोविंद माथुर ने भी प्रयागराज डेवलपमेंट अथॉरिटी के एक्शन को गलत बताया, उन्होंने कहा,
'किसी आपराधिक मामले के आरोपी पर 'आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973' के हिसाब से कार्रवाई की जाती है, और दोषी पाए जाने पर उसे भारतीय दंड संहिता या फिर किसी दूसरे विशेष क़ानून, जिसका उसने उल्लंघन किया हो, उसके अनुसार सजा दी जाती है. बिना दोष सिद्ध हुए किसी भी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती है.'
यह पूछने पर कि क्या ऐसा लगता है कि एक विशेष समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है, जस्टिस माथुर बोले,
'मुझे नहीं पता कि प्रयागराज डेवलपमेंट अथॉरिटी का इरादा क्या है, लेकिन वो वक़्त जब ये कार्रवाई की गई है, उससे ये इम्प्रेशन बनता है कि लोगों के एक विशेष वर्ग के खिलाफ़ अनुचित कार्रवाई हुई है.'
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्ती चेलमेश्वर ने इंडिया टुडे को बताया,
‘क़ानून की कुछ प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए. और ये हर मामले में जरूरी है. किसी व्यक्ति पर कोई केस है, तो ये किसी प्रॉपर्टी को गिराने का आधार नहीं हो सकता. प्रॉपर्टी उस इलाके के म्युनिसिपल कानूनों के तहत आएगी और ये देखना पड़ेगा कि उस व्यक्ति को नोटिस जारी किया गया है या नहीं. और अगर नोटिस जारी नहीं किया गया है, तो वह मामले के निपटारे के लिए सक्षम अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है. अगर उस व्यक्ति को नोटिस मिल चुका है और उसने क़ानून के तहत उस नोटिस को चैलेन्ज नहीं किया है, तो ये उसकी गलती है. म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ने नियम के मुताबिक़ काम किया है. और अगर उस व्यक्ति के अधिकारों का हनन हुआ है तो वो कोर्ट जा सकता है.’
इनके अलावा दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज रहे जस्टिस S.N. धींगरा और जस्टिस राजीव सहाय एंडलॉ ने बात की. उन नियमों के बारे में बताया जिनके तहत उचित तरीके से किसी अवैध अतिक्रमण को हटाया जा सकता है. जस्टिस ढींगरा ने कहा,
‘कानून में यह बिल्कुल साफ है कि हमारे पास भारत में नेगेटिव इक्वलिटी की कोई जगह नहीं है. ऐसे तो हर कोई आकर कहेगा कि एक व्यक्ति के खिलाफ़ कार्रवाई नहीं की गई तो दूसरे के खिलाफ़ क्यों की गई. कोई भी नकारात्मक समानता का दावा नहीं कर सकता. इसके अलावा किसी भी गैरकानूनी इमारत गिराना है तो ये नियमों के मुताबिक़ ही होगा. अगर प्रशासन इस प्रक्रिया का पालन नहीं करता है, तो व्यक्ति सक्षम अदालत तक जा सकता है.’
जस्टिस एंडलॉ कहते हैं,
‘अगर कोई निर्माण अवैध है तो इसे हटाया जाएगा. लेकिन क़ानून ये भी कहता है कि क़ानून सबके लिए एक समान होना चाहिए. इसका इस्तेमाल सेलेक्टिवेली नहीं किया जा सकता. कोई पिक एंड चूज़ पॉलिसी नहीं हो सकती. केवल किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप है, तो ये उसकी प्रॉपर्टी को डेमोलिश करने का आधार नहीं है. किसी इमारत को गिराना नियमों के तहत होना चाहिए.
जस्टिस ने आगे कहा कि अगर सार्वजनिक जमीन पर अतिक्रमण है, तो नोटिस की जरूरत नहीं है. साथ ही अगर किसी ने सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया है और कई वर्षों तक उस पर किसी का ध्यान नहीं गया, तो वे बेईमानी से यह नहीं कह सकते कि उन्हें दंडित किया जा रहा है क्योंकि उन्होंने सरकार के खिलाफ आवाज उठाई है.
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