तारीख़: व्यापार के लिए मुग़ल बादशाह के आगे गिड़गिड़ाने वाली कंपनी इतनी ताक़तवर कैसे बन गई?
आज ही के दिन जारी हुआ था रॉयल चार्टर.
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रॉयल चार्टर से कंपनी स्थापित हुई और इसने बाकी यूरोपियन देशों को साइडलाइन कर दिया.
तारीख- 31 दिसंबर
ये तारीख़ जुड़ी है एक चार्टर से. जिसके तहत एक कंपनी की स्थापना हुई थी. व्यापार करने के इरादे से बनाई गई ये कंपनी बाद में अपना राज चलाने लगी. उन्होंने अपनी सेना तक बना ली थी. एक समय में इसका सिक्का ब्रिटिश सरकार से भी ज़्यादा बोलने लगा था. क्या है पूरा मामला? विस्तार से जानते हैं. ये कहानी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की है. जिसने भारत में अंग्रेज़ी शासन की नींव रखी.ये सब शुरू हुआ है ‘एज ऑफ़ डिस्कवरी’ से. 15वीं सदी की शुरुआत से 17वीं सदी तक का समय. जब यूरोप के देश अपनी सीमाओं से बाहर निकले. नई ज़मीनों की तलाश में. अपने-अपने हितों को साधने के लिए. किसी को व्यापार में मुनाफ़ा कमाना था. कोई नए मुल्क़ों को अपना ग़ुलाम बनाना चाहता था. तो, किसी को संपत्तियों की लूट करनी थी.
इस स्केल पर व्यापार या लूट समंदर के रास्ते ही संभव थी. यूरोप के देश जहाजों को बेहतर बनाने पर काम करने लगे. उन्होंने समंदर में सफ़र को आसान बनाने पर जोर दिया. इस प्रोसेस में पुर्तगाल सबसे आगे था. वहीं का एक जहाजी वास्कोडिगामा सन 1498 में कालीकट के तट पर पहुंचने में कामयाब रहा. समंदर के रास्ते भारत तक पहुंचने वाला पहला यूरोपियन यात्री.

वास्कोडिगामा. (लिस्बन के नेशनल आर्ट म्यूज़ियम में लगी पेंटिंग)
हालांकि, वहां उसका स्वागत नहीं हुआ. एक समय ऐसा भी आया, जब वास्कोडिगामा को स्थानीय लोगों से लड़ाई करनी पड़ी. उसके कई साथियों की हत्या हो गई. वास्कोडिगामा को जान बचाकर वापस भागना पड़ा. वो तीन साल बाद वापस लौटा. इस बार उसने बदला लिया. और, पुर्तगालियों को भारत में बसाकर ही दम लिया.
वास्कोडिगामा से पहले भी कई जहाजियों ने भारत पहुंचने की कोशिश की थी. मसलन, कोलम्बस रास्ता भटककर अमेरिका पहुंच गया. कई जहाजी तो समंदर में ही खो गए. उनका कभी पता नहीं चल सका. कई समुद्री लुटेरों का शिकार बन गए. इसके बावजूद मिशन ऑन रहा.
यूरोप को एशिया के इस हिस्से में इतनी दिलचस्पी क्यों थी? वो इतना कुछ गंवाकर भी यहां कब्ज़ा क्यों चाहते थे? सबसे बड़ी वजह थी, मसाले. यूरोप में मसाले उपजते नहीं थे. उनके लिए मसाले सोने से भी ज़्यादा क़ीमती थे. पुर्तगालियों ने इस खाई को पाट दिया. फिर इस खेल में स्पेन भी शामिल हो गया.
पुर्तगाल और स्पेन का एकतरफ़ा राज चलने लगा. फिर आया साल 1588 का. इस साल एक लड़ाई हुई. निर्णायक वाली. स्पेन के राजा थे फ़िलिप द्वितीय. उन्होंने 130 जहाज़ों वाली नौसेना तैयार की थी. आधुनिक गोला-बारुदों से लैस. इसका नाम था ‘Invincible Armada’. हिंदी में कहें तो अजेय आर्मडा.
फ़िलिप द्वितीय ने इंग्लैंड पर हमला करने का हुक़्म दिया. स्पेन की नौसेना उस दौर में सबसे ताक़तवर थी. लेकिन उस साल उनकी क़िस्मत दगा दे गई. अजेय आर्मडा पराजित हो गई. समंदर में स्पेन के एकाधिकार पर गहरी चोट लगी. स्पेन दबा. और, इंग्लैंड को आगे निकलने का रास्ता मिल गया.
सन 1600 का साल आया. बरस का अंतिम दिन. 31 दिसंबर को कुछ अंग्रेज़ व्यापारी महारानी एलिज़ाबेथ प्रथम से मिलने पहुंचे. उन्होंने भारत के साथ व्यापार की इच्छा प्रकट की. वो ज़रूरी रकम लगाने के लिए तैयार थे. महारानी ने परमिशन दे दी. एक चार्टर लाया गया. इसके जरिए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत के साथ व्यापार की खुली छूट मिल गई. उन्हें अपने हितों की रक्षा के लिए लड़ाई करने, सेना रखने और हमला करने का अधिकार भी मिला.

बादशाह जहांगीर के दरबार में हाज़िरी लगाने वाला विलियम हॉकिन्स.
अपने देश में परमिशन तो मिल गई. अब उन्हें भारत में अपनी ज़मीन तैयार करनी थी. इसके लिए रेकी की गई. कई सालों तक मुआयना चला. फिर 1608 में विलियम हॉकिन्स भारत पहुंचा. ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रतिनिधि बनकर. वो मुग़ल बादशाह जहांगीर से मिला. वो तीन साल तक जहांगीर के साथ रहा. फिर उसे सूरत में फ़ैक्ट्री स्थापित करने की अनुमति मिली.
1613 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपनी नींव रखी. इसके बाद उन्होंने मुग़ल बादशाहों से रिश्ते बनाए. उन्हें टैक्स में छूट के लिए राज़ी किया. नई जगहों पर फ़ैक्ट्री स्थापित करने की इजाज़त ली. उन्होंने फ़ैक्ट्रियों की सुरक्षा के लिए सेना की तैनाती भी की. इन सब सुविधाओं के बदले कंपनी बाहरी आक्रमण से मुग़लों को बचाने के लिए राज़ी हो गई.
ये एक चाल थी. जो आगे चलकर भारत की ग़ुलामी का आधार बनी. एक तरफ़ ईस्ट इंडिया कंपनी का कद बढ़ रहा था, वहीं दूसरी तरफ़ मुग़ल साम्राज्य पतन की तरफ था. 1707 में औरंगज़ेब की मौत हो गई. वो आख़िरी काबिल बादशाह साबित हुआ. औरंगज़ेब ने ईस्ट इंडिया कंपनी को कंट्रोल में रखा था. उसके बाद के बादशाह अय्याशी और आपसी लड़ाई में व्यस्त हो गए. उन्होंने कंपनी की तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया.
1750 के दशक में बंगाल सबसे धनी राज्य था. मुग़ल साम्राज्य का आधा राजस्व वहीं से आता था. ईस्ट इंडिया कंपनी लंबे समय से नज़रें गड़ाए थी. 1756 में सिराज़ुद्दौला बंगाल के नवाब बने. उन्होंने कंपनी को हद में रहने की चेतावनी दी. कंपनी ने मीर ज़ाफ़र के साथ संधि कर ली.

प्लासी की लड़ाई भारत के इतिहास का एक निर्णायक मोड़ थी.
जून, 1757 में प्लासी का युद्ध हुआ. रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल को जीत लिया. सिराजुद्दौला को क़ैद कर लिया गया. बाद में उनकी हत्या कर दी गई. मीर ज़ाफ़र को कठपुतली बनाकर बंगाल की गद्दी पर बिठाया गया. कंपनी ने बदले में मालगुजारी वसूली. मीर ज़ाफ़र जब अपने ही जाल में फंस गया, उसने पीछा छुड़ाने की सोची. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. कंपनी ने सीधे शासन करना शुरू किया. वो ब्रिटिश सरकार की मैनेजिंग एजेंसी बन गई थी.
ईस्ट इंडिया कंपनी को राजनीति का स्वाद लग चुका था. आने वाले सालों में भारत के अधिकांश हिस्सों पर कंपनी का राज चला. स्थानीय शासक बतौर एजेंट काम करने लगे. टैक्स का अधिकतर हिस्सा कंपनी के पास पहुंचता था. ईस्ट इंडिया कंपनी के पास ढाई लाख सैनिकों की सेना थी. कंपनी जो चाहती, वो करवाती थी. उस वक़्त एक मशहूर कहावत चलती थी- 'दुनिया ख़ुदा की, मुल्क बादशाह का और हुक्म कंपनी बहादुर का.’
बीच-बीच में अंग्रेज़ों का विरोध भी हुआ. टीपू सुल्तान और मराठा वीरों ने कंपनी को तगड़ी टक्कर दी. लेकिन कंपनी बहादुर हमेशा बीस साबित हुई. सबसे बड़ा विरोध सामने आया 1857 में. पहले स्वाधीनता संग्राम में. जब देश के कई हिस्सों में बगावत शुरू हुई. कंपनी ने इस विद्रोह को कुचल दिया. हज़ारों लोगों को बेरहमी से मारा गया. ये अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ पहला संगठित विद्रोह था. असंतोष की आग लगातार फैल रही थी.
ब्रिटेन में बैठी सरकार को लगा, इस तरह बहुत दिनों तक शासन नहीं चल सकेगा. 1858 में गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया ऐक्ट लाकर ब्रिटिश सरकार ने शासन सीधे अपने हाथों में ले लिया. कंपनी की सेना का ब्रिटिश सेना में विलय कर दिया गया. सन 1874 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को भंग कर दिया गया.