ओ पहाड़ और बर्फ के दीवानो, हिमाचल के इस गांव को आपकी ज़रूरत है
हिमाचल के इस गांव की तुरंत मदद नहीं की गई, तो यहां के सारे लोग मारे जाएंगे.

पहाड़, बर्फ और ट्रेकिंग के शौकीन जब कहीं घूमने का प्लान बनाते हैं, तो हिमाचल उनकी लिस्ट में सबसे ऊपर होता है. यहां घूमने के लिए लाहौल-स्पीति जैसी जगह हैं, एडवेंचर गेम्स के लिए बीर जैसी जगह है, ट्रेकिंग के लिए मलाना और खीरगंगा जैसे ट्रेक हैं. मैदानी इलाकों से आने वाला शायद ही कोई ऐसा पर्यटक होता होगा, जो यहां बस न जाना चाहता हो. पर इस खूबसूरत हिमाचल का एक और पहलू भी है. यहां कई इलाकों में ज़िंदगी आसान नहीं है. हिमाचल की भाषा में कहें, तो जो जितना 'ऊपर' रहता है, उसके पास संसाधन उतने ही कम होते हैं और शारीरिक मेहनत ज़्यादा. इनके लिए पहाड़ और ट्रेकिंग मूड रिफ्रेश करने वाली चीज़ नहीं हैं, बल्कि रोज़मर्रा के चैलेंज हैं.

ऐसे इलाकों के मूल निवासियों को मज़ा कम, दिक्कत ज़्यादा होती है. वो अलग बात है कि वो लोग उसके आदती हो जाते हैं.
हम आपको हिमाचल के इस पहलू के बारे में क्यों बता रहे हैं
क्योंकि हिमाचल के कांगड़ा जिले में बड़ा भंगाल नाम का एक गांव है. बेहद दुर्गम इलाके में बसा ये गांव बैजनाथ ब्लॉक में आता है, जो चारों तरफ से धौलाधर, पंगी और मणिमहेश पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा है. पास में रावी नदी बहती है और गांव की आबादी महज़ 500 लोगों की है. इस गांव में आने का कोई सीधा रास्ता नहीं है. हमेशा ऊंचे पहाड़ों और दर्रों का रास्ता लेना पड़ता है. ये रास्ते भी बर्फ की वजह से साल के 8 महीने बंद रहते हैं. तब गांव में जाने के लिए रावी नदी से सटी खतरनाक चट्टान का रास्ता लेना पड़ता है. चट्टान पर चलते समय अगर एक बार भी पैर फिसला, तो ज़िंदगी की कोई गारंटी नहीं.

बड़ा भंगाल की भौगोलिक स्थिति आप इस तस्वीर से समझ सकते हैं.
क्या है इस गांव की समस्या
बड़ा भंगाल एक किनारे पर बसा है, जिसकी बाउंड्री तीन जिलों से लगती है- चंबा, लाहौल स्पीति और कुल्लू. बाकी तरफ का इलाका कांगड़ा में आता है. इस गांव की तरफ जाने वाले रास्ते को ऊहल नदी बीच से काटती है. इस नदी पर लकड़ी का एक अस्थाई पुल बना था, जो पिछले साल भारी बारिश में बह गया. वहीं गांव में आने का एक और रास्ता थमसर दर्रा भूस्खलन की वजह से बंद हो गया. इससे गांव में राशन और रोज़मर्रा की दूसरी ज़रूरी चीज़ों की सप्लाई रुक गई.

ऐसे रास्तों से होकर लोग बड़ा भंगाल पहुंचते हैं
पलाचक और झोडी नाम के इलाकों में भूस्खलन होने की वजह घोड़ों के चलने लायक रास्ता भी बंद हो गया, जिसे सरकार ने दोबारा बनवाने की ज़हमत नहीं उठाई. जब लोगों ने घुमावदार रास्ता बनाने की कोशिश की, तो वहां भी स्लाइडिंग हो गई और रास्ता नहीं बन पाया. राशन वगैरह की सप्लाई बंद होने से बीते एक साल में हालात इतने खराब हो गए कि बड़ा भंगाल अकाल जैसे हालात झेल रहा है. यहां कोई मदद नहीं पहुंच पा रही है और लोगों के भूखे मरने की नौबत आ गई है.

बड़ा भंगाल के लोग
तो अब इन लोगों का क्या होगा
हिमाचल में काफी घूम चुके पर्यटक भी इस गांव के बारे में नहीं जानते हैं. वैसे जो इसकी हालत जानते भी हैं, वो भी मदद की हिम्मत नहीं जुटा पाते. ऐसे में प्रफेशनल क्लाइंबिंग करने वाले रिजुल ने इस गांव की मदद करने की ठानी है. उन्होंने अपने ही पेशे के कुछ और लड़कों को साथ में जोड़ा है और कुछ एडवेंचर लवर्स भी रिजुल के साथ जुड़े हैं. #SaveBadaBhangal के नाम से अपना कैंपेन चला रहे रिजुल अभी इंटरनेट पर लोगों से डोनेशन इकट्ठा कर रहे हैं. लोगों की मदद से जो पैसा इकट्ठा होगा, उससे रिजुल की टीम बड़ा भंगाल के लोगों के लिए राशन, दवाएं और कंबल वगैरह खरीदेगी और 10 अगस्त को गांव के लिए कूच करेगी.

रिजुल, जिन्होंने अपने ही पेशे के लोगों को अपने साथ जोड़ा और वो बड़ा भंगाल के लोगों की मदद करने जा रहे हैं.
मदद करने और डोनेशन संबंधी जानकारी के लिए यहां क्लिक करें

बड़ा भंगाल गांव में बने मकान
रिजुल इस जगह के बारे में और भी बहुत कुछ बताते हैं
कांगड़ा के रहने वाले रिजुल देशभर में प्रफेशनल क्लाइंबिंग करते हैं. उन्होंने बड़ा भंगाल को करीब से देखा है. वो बताते हैं, 'बड़ा भंगाल अपने आप में बड़ा इलाका है. पर गांव में रहने वाले लोग मई से सितंबर तक ही यहां रह पाते हैं. जब धीरे-धीरे बर्फ गिरनी शुरू होती है और ठंड बढ़ती है, तो लोग निचले इलाके में आ जाते हैं. ज़्यादातर बीर जाते हैं और गुनेड़ नाम के गांव में रहते हैं. गुनेड़ में बड़ा भंगाल के कुछ लोगों की अपनी ज़मीन है, लेकिन ज़्यादातर किराए के घरों में रहते हैं. मई में जब हालात सुधरते हैं, तो लोग वापस जाते हैं. यहां एक सरकारी सेकेंड्री स्कूल भी है, जो सर्दियों में बीर में शिफ्ट कर दिया जाता है. एक NGO मिनी हाइडल प्रॉजेक्ट के ज़रिए थोड़ी-बहुत बिजली देता है.'

गांव में जो हेलिपैड बना है, उसकी हालत ऐसी नहीं है कि वहां हेलिकॉप्टर लैंड कराया जा सके.
पर दिक्कत ये है कि ठंड में भी सिर्फ जवान लोग ही नीचे आ पाते हैं. 50-60 बुजुर्गों को कमज़ोर शरीर की वजह से ऊपर ही रहना पड़ता है. ठंड के महीनों में वही जानवरों की देखभाल करते हैं. रिजुल बताते हैं, 'यहां जून से 15 सितंबर तक सप्लाई होती थी. रास्ता टूटने की वजह से पिछले साल से कोई सप्लाई नहीं हो पाई है. सरकार रास्ते को ठीक नहीं करा पाई. हवाई मदद पहुंचाने की बात कही गई थी, लेकिन खराब मौसम के चलते वो भी नहीं हो पाया. दूसरी तरफ खुद मुख्यमंत्री हेलिकॉप्टर पर निर्भर रहते हैं. यहां फोन नहीं हैं. नेटवर्क नहीं है. बात करने के लिए लोग सैटेलाइट फोन पर निर्भर रहते हैं, जो अपनी मर्ज़ी से चलता है.'

ठंड के दिनों में कुछ लोगों को गांव में ही रुकना पड़ता है, ताकि जानवरों और घरों की देखरेख हो सके. ये समय 8 महीने तक का होता है.
बड़ा भंगाल के लोगों का गुज़ारा कैसे होता है
गांव के ज़्यादातर लोग बहुत ज़्यादा पढ़े नहीं हैं. इनका मुख्य व्यवसाय भेड़ पालन है और राशन की ज़िम्मेदारी सरकार पर है. ये भेड़-बकरियां बेचकर पैसे कमाते हैं, जिससे इनका काम चलता है. रिजुल बताते हैं कि गांव के ज़्यादातर लोग ठाकुर-राजपूत कास्ट के हैं. सरकार ने इन्हें ओबीसी कैटेगरी में रखा है, लेकिन इनकी मांग है कि इन्हें ट्राइब का दर्जा दिया जाए. भेड़ पालने की वजह से इन लोगों के लिए मक्के का आटा और नमक बेहद ज़रूरी है. इनके बिना भेड़ें मर भी सकती हैं. लेकिन भेड़ों का छोड़िए, अभी इनके पास खुद के खाने का सामान भी खत्म हो रहा है.

प्रशासन के पास मदद की गुहार लेकर पहुंच छोटा भंगाल के लोग.
पॉलिटिक्स यहां भी है, लेकिन किसी के भले के लिए नहीं है
बड़ा भंगाल बैजनाथ विधानसभा के तहत आता है. हिमाचल के इतिहास में आज तक कोई भी नेता यहां वोट मांगने के लिए नहीं आया है. वजह है आबादी. अब 500 वोटों के लिए कौन ही नेता अपना समय ज़ाया करे. यहां के लोग एक बार चुनाव का बायकॉट भी कर चुके हैं, लेकिन संख्या कम है, तो विरोध की भी कोई सुनवाई नहीं होती. चुनावी मौसम में राहत सामग्री वगैरह पहुंच जाती है, लेकिन ज़रूरत के समय कुछ नहीं पहुंचता. बड़ा भंगाल का इलाका वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी के तहत आता है. तो जब जिला प्रशासन ने रास्ता बनाने की प्लानिंग भी की, तो वन विभाग ने इसकी इजाज़त नहीं दी. इसमें पिसे गांव के लोग.

ऐसी खबरें खूब छपीं कि सरकारी मदद आएगी, लेकिन कोई मदद नहीं आई.
रिजुल और उनकी टीम बड़ा भंगाल के लोगों की मदद करेगी कैसे
बड़ा भंगाल के लोगों तक सिर्फ दो तरीकों से मदद पहुंचाई जा सकती है. पहला, हेलिकॉप्टर से एयरड्रॉप करके. दूसरा, मनाली की तरफ कल्हेनी दर्रे से. दर्रे का रास्ता काफी लंबा है, लेकिन घोड़ों के सहारे तय किया जा सकता है. रिजुल और उनकी टीम इसी रास्ते से घोड़ों की मदद से राहत सामग्री बड़ा भंगाल तक ले जाएगी. उनका अंदाजा है कि सामान के साथ ये रास्ता तय करने में उन्हें पांच दिन का वक्त लग जाएगा. जो सामान वो ले जा रहे हैं, उसमें दाल, चावल, नमक, आटा, चीनी, सब्ज़ियां, दवाइयां और गर्म कपड़ों जैसी चीज़ें हैं.

बड़ा भंगाल की हालत के बारे में पहले भी खबरें छप चुकी हैं, लेकिन इससे लोगों का कोई भला नहीं हुआ.
क्या बड़ा भंगाल में टूरिस्ट आते हैं
हां. एडवेंचर लविंग टूरिस्ट यहां आते हैं, लेकिन उनकी संख्या एक साल में 200 से ज़्यादा नहीं होती. इनमें भी आधे विदेशी होते हैं. रिजुल बताते हैं कि भारत के टूरिस्ट्स की संख्या भी पिछले ही कुछ बरसों में बढ़ी है. सरकारी लोग भी काम लगने पर आते हैं. टूरिस्ट्स ट्रेकिंग के लिए मनाली वाले रास्ते का इस्तेमाल करते हैं. ट्रेकिंग का सीज़न जून से 15 सितंबर तक रहता है, लेकिन इससे बड़ा भंगाल के लोगों को कोई खास फायदा नहीं होता, क्योंकि टूरिस्ट अपने गाइड पीछे से ही लेकर आते हैं.
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