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रफ़ा पर हमला, युद्धविराम क्यों नहीं हो पा रहा?

रफ़ा पर हमला, युद्धविराम क्यों नहीं हो पा रहा?

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इज़रायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू
इज़रायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू
7 मई 2024
Updated: 7 मई 2024 21:14 IST
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तारीख़, 06 मई 2024. इज़रायल और बाकी दुनिया 1930 और 40 के दशक में हुए यहूदी नरसंहार को याद कर रही थी. इस मौके पर इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया. वहां बोले, हम अपनी बिछड़ी हुई संतानों को याद रखेंगे. उनका इशारा हमास की क़ैद में मौजूद 130 से अधिक बंधकों की तरफ़ था. 07 अक्टूबर 2023 को हमास और दूसरे फ़िलिस्तीनी गुटों ने इज़रायल पर आतंकी हमला किया. 11 सौ से अधिक लोगों की हत्या कर दी. 250 से अधिक को किडनैप कर गाज़ा पट्टी ले गए थे. नवंबर 2023 में सात दिनों के संघर्षविराम में लगभग 105 बंधक छूटे थे. मगर आधे से ज़्यादा लोग वहीं रह गए. आशंका है कि उनमें से लगभग 30 की मौत हो चुकी है. जैसे-जैसे समय बीत रहा है, बाकियों की सुरक्षित वापसी मुश्किल होती जा रही है. इज़रायल उन्हें छुड़ाने के लिए

तीन मोर्चों पर कोशिश कर रहा है.

- नंबर एक. डिप्लोमेटिक प्रेशर. ये मोर्चा अमेरिका ने संभाल रखा है. वो ईजिप्ट और क़तर के ज़रिए हमास पर दबाव बना रहा है.

- नंबर दो. मिलिटरी ऑपरेशन. इज़रायल ने हमास के हमले के तुरंत बाद जंग का एलान कर दिया था. शुरुआत हवाई हमले से हुई. बाद में ग्राउंड फ़ोर्स उतारी. इज़रायल ने अपने दो मकसद बताए.
पहला, बंधकों को छुड़ाना. और दूसरा, हमास की सैन्य क्षमता का खात्मा. आज जंग को सात महीने पूरे हो गए हैं. मगर इज़रायल के दोनों मकसद अधूरे हैं.

- इसलिए, तीसरे विकल्प की अहमियत बढ़ जाती है. ये रास्ता है, संघर्षविराम समझौता. इसको लेकर ईजिप्ट, क़तर, रूस और फ़्रांस में कई दौर की बातचीत हो चुकी है. इन बैठकों में इज़रायल और हमास, दोनों के प्रतिनिधि हिस्सा लेते हैं. वे अपनी-अपनी शर्तें बताते हैं. फिर उसपर मंथन होता है. अमेरिका और बाकी देश दोनों पक्षों को सेम पेज पर लाने की कोशिश करते हैं. ये कोशिश पिछले छह महीनों से लगातार चल रही है. मगर ऐन मौके पर मामला बिगड़ जाता है. 05 मई तक यही खेल चल रहा था.

फिर क्या हुआ?

06 मई की शाम को हमास ने संघर्षविराम की शर्तों पर हामी भर दी. बोला, हम ईजिप्ट और क़तर वाला प्रस्ताव मानने के लिए तैयार हैं. इस एलान के बाद पूरी दुनिया में हलचल मची. गाज़ा पट्टी में जश्न का माहौल बन गया. 

इज़रायल में क्या दिखा?

वहां सैकड़ों की संख्या में लोगों ने प्रोटेस्ट में हिस्सा लिया. प्रदर्शनकारियों ने तेलअवीव में एक मुख्य सड़क को ब्लॉक कर दिया. प्रधानमंत्री नेतन्याहू के घर के बाहर भी प्रदर्शन किया. प्रोटेस्ट करने वालों में बंधकों के परिवार के लोग भी थे. उनकी इकलौती मांग थी कि जंग खत्म की जाए. संघर्षविराम समझौते को माना जाए और बंधकों को वापस लाया जाए.
ये तो हुई गाज़ा और इज़रायल की हलचल. मगर कहानी यहीं तक सीमित नहीं थी. इज़रायल से लगभग 10 हज़ार किलोमीटर दूर अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन में भी चहलकदमी बढ़ी थी. राष्ट्रपति जो बाइडन ने तत्काल प्रभाव से नेतन्याहू को फ़ोन मिलाया. आधे घंटे तक बातचीत चली. इसमें संघर्षविराम प्रस्ताव और रफ़ा पर हमले की चर्चा हुई. फ़ोन कट होने के बाद अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के प्रवक्ता जॉन किर्बी बाहर आए. अब आपके मन में एक जिज्ञासा हो रही होगी. जिस प्रस्ताव पर हमास राज़ी हुआ, उसमें आख़िर था क्या?
क़तर के मीडिया संस्थान अलजज़ीरा के मुताबिक़, तीन फ़ेज में संघर्षविराम को लागू करने का प्लान है. हरेक फ़ेज 42 दिनों का होगा.

पहले फ़ेज में क्या होगा?

- इज़रायल और हमास के बीच लड़ाई पर अस्थायी रोक रहेगी.
- इज़रायली फ़ौज गाज़ा पट्टी के सघन आबादी वाले इलाकों से बाहर निकलेगी.
- इज़रायल के हवाईजहाज और ड्रोन्स हर रोज़ 10 घंटों तक गाज़ा पट्टी के ऊपर उड़ान नहीं भरेंगे. जिस दिन बंधकों को रिहा किया जाएगा, उस रोज़ 12 घंटों के लिए उड़ान बंद रहेगी.
- पहले फ़ेज में हमास 33 बंधकों को रिहा करेगा. इनमें ज़िंदा और मृतक दोनों हो सकते हैं. पहले फ़ेज में रिहा होने वाले बंधकों में महिलाएं, 50 बरस से ऊपर के लोग, बीमार और 19 से कम उम्र के गैर-सैनिक होंगे. हरेक इज़रायली बंधक के बदले इज़रायल अपनी जेल में बंद 30 फ़िलिस्तीनी क़ैदियों को छोड़ेगा. हरेक इज़रायली महिला सैनिक के बदले इज़रायल को 50 फ़िलिस्तीनी क़ैदी रिहा करने होंगे.
- इसके अलावा, राहत पहुंचाने वाली एजेंसियों को काम करने की छूट मिलेगी.

दूसरे फ़ेज में क्या होगा?

- इज़रायल-हमास के बीच जंग स्थायी तौर पर रोकी जाएगी.
- इज़रायली सेना गाज़ा पट्टी को पूरी तरह खाली कर देगी.
- हमास गाज़ा पट्टी में मौजूद सभी इज़रायली बंधकों को छोडे़गा. बदले में इज़रायल को फ़िलिस्तीनी क़ैदियों को रिहा करना होगा. फ़िलिस्तीनी क़ैदियों की संख्या अभी पता नहीं चली है.

अब तीसरे फ़ेज की शर्तें समझ लेते हैं.

- तीसरे फ़ेज में इज़रायल और गाज़ा में कै़द सभी बंधकों और क़ैदियों की अदला-बदली होगी.
- इस फ़ेज में गाज़ा पट्टी में पुनर्निर्माण का प्लान तैयार किया जाएगा.
- और, इज़रायल गाज़ा पट्टी से नाक़ेबंदी पूरी तरह हटा लेगा.

हमास ने इन्हीं शर्तों पर हामी भरी थी. उसकी हामी इज़रायल के उस निर्देश के कुछ ही समय बाद आई थी, जिसमें उत्तरी रफ़ा के लोगों को सुरक्षित जगह पर जाने के लिए कहा गया था. इज़रायल ने पर्चे भी गिराए. इसके बाद हज़ारों लोगों ने रफ़ा छोड़ना शुरू कर दिया. इस बीच हमास ने अचानक संघर्षविराम मानने की बात कही. अब इज़रायल के जवाब का इंतज़ार होने लगा. उसी पर लाखों लोगों का भविष्य और इज़रायल-हमास जंग की नियति टिकी थी. जो शुरुआती रुझान आए, उसमें इज़रायल नाखुश दिखा. उसने कहा, हमने जिन शर्तों पर मुहर लगाई थी, ये प्रस्ताव उससे काफ़ी अलग है.
इज़रायल किन शर्तों पर राज़ी हुआ था?

29 अप्रैल को अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और ब्रिटेन के विदेश मंत्री डेविड कैमरन सऊदी अरब में थे. वहां कैमरन ने प्रस्ताव की शर्तों पर कुछ हिंट दिए. बकौल कैमरन, हज़ारों फ़िलिस्तीनी क़ैदियों की रिहाई के बदले कुछ इज़रायली बंधक छोड़े जाएंगे. इस दौरान 40 दिनों का संघर्षविराम होगा. टाइम्स ऑफ़ इज़रायल की रिपोर्ट के मुताबिक़, इज़रायल ने 40 बंधकों को छोड़ने की मांग रखी थी. बाद में न्यूयॉर्क टाइम्स ने इज़रायली अधिकारियों के हवाले से दावा किया कि, इज़रायल 40 की बजाय 33 बंधकों पर संघर्षविराम करने के लिए तैयार है.

इसी पर हमास को जवाब देना था. पहले ख़बर आई कि 01 मई की शाम तक जवाब आ जाएगा. मगर टलते-टलते मामला 06 मई तक पहुंच गया. फिर जो जवाब आया, उसने इज़रायल को बुरी तरह नाराज़ कर दिया. जानकारों की मानें तो पिछले प्रस्ताव में नाक़ेबंदी हटाने जैसी कोई शर्त नहीं थी. इसलिए, जब हमास की हामी वाली शर्तें सामने आई, इज़रायल हैरान रह गया. ‘टाइम्स ऑफ़ इज़रायल’ की रिपोर्ट के मुताबिक़, इज़रायल को शर्तों में हुए बदलाव के बारे में कुछ नहीं बताया गया था. और तो और, हमास के एलान के बहुत देर बाद तक इज़रायल को ड्राफ़्ट तक नहीं मिला था.

अमेरिकी मीडिया संस्थान एक्सियोस की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नए प्रस्ताव के बारे में अमेरिका को पूरी जानकारी थी. मगर उसने इज़रायल को इसकी भनक तक नहीं लगने दी. इससे इज़रायल काफ़ी गुस्सा है. वो अमेरिका की भूमिका पर सवाल खड़े कर रहा है.

इज़रायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने भी नए प्रस्ताव को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि इसमें इज़रायल की बुनियादी शर्तों का भी ख़याल नहीं रखा गया है. हालांकि, इज़रायल ने अपना एक प्रतिनिधिमंडल काहिरा रवाना कर दिया है. वे संघर्षविराम की शर्तों पर आगे की चर्चा करेंगे. एक तरफ़ बातचीत की कोशिशें चल रहीं है, दूसरी तरफ़ गाज़ा में इज़रायली सेना तेज़ी से आगे बढ़ रही है. नेतन्याहू सरकार फ़रवरी 2023 से रफ़ा पर हमले की तैयारी कर रही है. रफ़ा, गाज़ा पट्टी के सुदूर दक्षिण में बसा है. ईजिप्ट की सीमा से लगा हुआ. वहां लगभग 15 लाख लोगों ने शरण ले रखी है. जंग से पहले रफ़ा की आबादी महज ढाई लाख थी.

गाज़ा पट्टी दो तरफ़ से इज़रायल और तीसरी तरफ़ से ईजिप्ट से घिरी है. चौथी दिशा में समंदर है. समुद्री सीमा पर इज़रायली नौसेना का पहरा है. हवाई सीमा पर भी इज़रायल का कंट्रोल है. बची ज़मीनी सीमा. वहां तीन बॉर्डर क्रॉसिंग्स हैं. दो इज़रायल की तरफ़ खुलती है. बेत हनून और करेम शलोम. इन दोनों को इज़रायल कंट्रोल करता है. जंग शुरू होने के बाद उसने दोनों को बंद कर दिया था. बाद में राहत अभियान के तहत कुछ ट्रकों को करेम शलोम क्रॉसिंग से जाने की इजाज़त दी गई. मगर 04 मई को वहां हमास ने हमला किया. इसमें चार इज़रायली सैनिक मारे गए. जिसके बाद वो बॉर्डर क्रॉसिंग भी बंद कर दी गई.

अब बची रफ़ा क्रॉसिंग. इसपर ईजिप्ट का कंट्रोल है. मगर उस रास्ते से एंट्री लेने या बाहर जाने के लिए इज़रायल का अप्रूवल लगता है. अभी तक रफ़ा के रास्ते ही अधिकतर मानवीय मदद गाज़ा में पहुंच रही थी. ऐसे समझिए कि रफ़ा क्रॉसिंग गाज़ा पट्टी और बाकी दुनिया को जोड़ने वाला पुल था.

इज़रायल का दावा है कि रफ़ा हमास का अंतिम गढ़ है. बंधकों को वहीं पर छिपाकर रखा गया है. जब तक हमारी सेना रफ़ा में नहीं घुसती, तब तक हमारा मकसद पूरा नहीं हो सकता.
इसलिए, इज़रायल हमले पर ज़ोर दे रहा था. पश्चिमी और मिडिल-ईस्ट के देश इसका विरोध कर रहे थे. उनका तर्क था कि रफ़ा पर हमले से लाखों बेगुनाह लोगों की जान ख़तरे में पड़ सकती है. 06 मई को नेतन्याहू के साथ बातचीत में बाइडन ने अपनी बात दोहराई. 

एक तरफ़ अमेरिका रफ़ा पर हमले से बचने की अपील कर रहा था. दूसरी तरफ़ इज़रायल पूरा मन बना चुका था. संघर्षविराम प्रस्ताव में फेरबदल के बाद उसको पूरा बहाना मिल गया. यही हुआ भी. वॉर कैबिनेट ने रफ़ा ऑपरेशन को हरी झंडी दिखा दी. 06 मई की देर रात इज़रायली टैंक रफ़ा में दाखिल होने लगे. सुबह होते-होते गाज़ा की तरफ़ वाली रफ़ा क्रॉसिंग इज़रायल के कब्ज़े में थी.
यानी, इज़रायल का रफ़ा ऑपरेशन आधिकारिक तौर पर शुरू हो चुका है. अब गाज़ा पट्टी की तीनों बॉर्डर क्रॉसिंग्स पर इज़रायल का कंट्रोल है. हमास ने कुछ दिन पहले कहा था कि, रफ़ा पर हमला इज़रायल की बड़ी ग़लती होगी. खामियाजा भुगतना होगा.

उसने अपने हालिया बयान में आरोप लगाया है कि, इज़रायल भुखमरी और नरसंहार की नीति पर काम कर रहा है. दुनिया को आगे आकर इज़रायल को संघर्षविराम के लिए मनाना चाहिए.
बाकी दुनिया से क्या रिएक्शन आए हैं?

- फ़िलिस्तीन अथॉरिटी (PA) ने अमेरिका से इज़रायल पर दबाव बनाने की मांग की है.
- यूनाइटेड नेशंस (UN) ने कहा है कि उसकी एजेंसियों को रफ़ा से एंट्री की इजाज़त नहीं दी जा रही है.
- चीन ने इज़रायल से रफ़ा ऑपरेशन रोकने की अपील की है.
- जॉर्डन ने UN सिक्योरिटी काउंसिल से दखल देने के लिए कहा है. ये भी कहा है कि नेतन्याहू को इसका अंज़ाम भुगतना होगा.
https://twitter.com/AymanHsafadi/status/1787803166374772821
- यूरोपियन यूनियन (EU) के फ़ॉरेन अफ़ेयर्स चीफ़ जोसेफ़ बॉरेल ने चिंता जताई है. बोले, इंटरनैशनल कम्युनिटी और EU के देशों की अपील के बावजूद नेतन्याहू ने रफ़ा पर हमला कर दिया है. हज़ारों लोगों की जान ख़तरे में है.
रफ़ा ऑपरेशन चालू होने के बाद मिडिल-ईस्ट में लगी आग फिर से भड़क गई है. अरब देश इससे खासे नाराज़ हैं. इस वीडियो की रेकॉर्डिंग तक अमेरिका का कोई रिएक्शन नहीं आया था. अगर वो पब्लिकली विरोध नहीं करता है, लेकिन अंदरखाने वो नाराज़गी ज़रूरत जताएगा. यूरोप के देशों का रिएक्शन भी देखने लायक होगा.

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