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निज्जर के बाद अब NIA के निशाने पर अर्शदीप सिंह डल्ला

अर्शदीप सिंह डल्ला के कारीबियों के घर NIA ने छापे मारे हैं. आरोप है कि फिलहाल डल्ला कनाडा में रहकर टारगेट किलिंग्स करता है.

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विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कनाडा में रह रहे भारतवंशियों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई है.
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सिद्धांत मोहन
27 सितंबर 2023 (Updated: 27 सितंबर 2023, 12:05 AM IST) कॉमेंट्स
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भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कल न्यूयॉर्क में जब UN को संबोधित किया तो उन्होंने कहा था कि सियासी सहूलियत के हिसाब से आतंकवाद, चरमपंथ और हिंसा पर एक्शन नहीं लेना चाहिए. उन्होंने कनाडा का नाम तो नहीं लिया, लेकिन लोग इतने सयाने तो हैं ही कि उन्होंने मतलब निकाल लिया था. जयशंकर का निशाना साफ था.

लेकिन अपने इस भाषण के बाद वो न्यूयॉर्क के काउंसिल ऑफ फ़ॉरेन रिलेशन गए. वहां उनसे बातचीत हुई. सवाल पूछे गए कि कनाडा ने भारतीय एजेंसी पर आरोप लगाए हैं, उस पर भारत ने कुछ कहा है? एस जयशंकर ने बताया

"हमने कनाडा से बोला है कि ये भारत सरकार की नीति नहीं है. अगर आपके पास कोई विशिष्ट जानकारी है तो हमें बताएं. हम इस पर विचार करने के लिए तैयार है."

जयशंकर ने आगे कहा,

"हमने कनाडा को वहां हो रहे संगठित अपराध की जानकारी दी थी. बड़ी तादाद में प्रत्यर्पण के अनुरोध भी किए थे. वहां कई आतंकियों की पहचान हुई है. आप ये समझते हैं कि वहां क्या हो रहा है? वहां के राजनीतिक कारणों से हमारी चिंताएं बढ़ी हैं. हमारे राजनयिकों को धमकाया जा रहा है. हमारे दूतावासों पर हमले किए जा रहे हैं. वहां अक्सर हमारे देश की राजनीति में दखल देने की बातें की जाती हैं. अक्सर इन सब बातों को लोकतंत्र के नाम पर सही ठहरा दिया जाता है."

ये भारत का सीधा हमला था. न नाम छुपाए जा रहे थे, न शब्द पीसे जा रहे थे. साफ कहा जा रहा था कि कनाडा के राजनीतिक कारणों से वहां रह रहे भारतवंशी खतरे में हैं. और इन सब बातों के बीच भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी NIA भी एक्शन में हैं. पंजाब, दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, चंडीगढ़, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश.  7 राज्य और 53 लोकेशन.  27 सितंबर के दिन NIA ने इन राज्यों में छापे मारे हैं. और ये सारे छापे एक बड़े गैंगस्टर से रिलेटेड हैं - अर्शदीप सिंह डल्ला. इसके अलावा कुछ और गैंग और लोगों के सहयोगियों के ठिकाने पर छापे मारे गए हैं. इनमें नाम आता है -

लॉरेंस बिश्नोई गैंग

दविंदर बंबीहा गैंग

काला जठेड़ी गैंग

सुक्खा दुनके गैंग

लेकिन ये बाद वाले गैंगों पर NIA का फोकस कम है, ज्यादा फोकस है डल्ला पर. लेकिन डल्ला की कहानी आगे बताएंगे. पहले जान लेते हैं इस छापेमारी का मकसद.

NIA ने इस रेड को लेकर एक बयान जारी किया है. NIA ने कहा है कि इन छापों का मकसद ड्रग्स, हथियार और पैसे के नेक्सस की कमर तोड़ना है. NIA ने इन तीनों गैंग के बारे में बताया है कि ये गैंग पाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात यानी UAE, कनाडा और पुर्तगाल में बैठे ड्रग स्मगलर्स और आतंकियों के साथ काम करते हैं. साथ ही इन गैंग के लोग अलग-अलग प्रदेशों की जेलों में बंद हैं. जेल में प्लानिंग करते हैं और बाहर मौजूद उनके गुर्गे उन प्लानिंग को हकीकत को तब्दील करते हैं. ये प्लानिंग अमूमन मर्डर की होती है. NIA ने कुछ ऐसे केसों के नाम भी गिनाए हैं.

- महाराष्ट्र के बिल्डर संजय बियानी का मर्डर 
- खनन व्यापारी मेहाल सिंह का मर्डर 
- कबड्डी खिलाफी संदीप नांगल अंबिया का मर्डर  

पिछले साल ये मर्डर इन तीन गैंग से जुड़े लोगों ने कराए. हालांकि NIA ने ये भी कहा है कि इन गैंग को इंडिया में चलाने वाले कई लोग इंडिया छोड़कर भाग गए. और अब विदेशों में बैठकर ऑपरैट कर रहे हैं. रेड के समय एक अरेस्ट की भी खबर आ रही है. पंजाब के फिरोजपुर से सुंदर उर्फ जोरा को अरेस्ट किया गया है. जोरा डल्ला का करीबी है. उसके लिए काम करता है.

अब बात डल्ला की. डल्ला 2020 में इंडिया छोड़कर भाग गया था. उसे शरण मिली हुई है कनाडा में. अर्शदीप डल्ला कनाडा में रहकर टारगेट किलिंग करवाता है, पैसे की उगाही करता है, खालिस्तानी आतंकियों के छोटे-मोटे ऑपरेशन में पैसे लगाता है. स्मगलिंग से भी पैसे मिलते हैं, और उगाही से पैसे निकालने हों तो निशाने पर होते हैं पंजाबी म्यूज़िक और मूवी इंडस्ट्री में काम करने वाले प्रोड्यूसर और डायरेक्टर. उन्हें धमकी देकर पैसे निकाले जाते हैं. काम करने वाला डल्ला.

और साथ ही नाम आता है डल्ला के सबसे करीबी यार का, उसके सबसे भरोसेमंद गैंग मेम्बर का. उसक नाम है हरदीप सिंह निज्जर. जी... वही निज्जर, जिसका कनाडा में मर्डर हुआ तो आनन-फानन में कनाडा ने भारत को दोषी ठहरा दिया. वही निज्जर को कनाडा की नजर में एक धर्मगुरु है, लेकिन भारत ने सबूत रखे हैं कि वो एक खालिस्तानी आतंकी है. कनाडा में बैठकर ये दोनों ... निज्जर और डल्ला... क्या काम करते रहे हैं? सबसे पहले दोनों ने मिलकर खालिस्तान टाइगर फोर्स यानी KTF बनाया. और इससे कहानी आगे बढ़ती है.

खबरें बताती हैं कि डल्ला और निज्जर लोकल प्रदर्शन और प्रोटेस्ट के अलावा हत्यारों की फौज खड़ी की. 700 से ज्यादा शूटर. कैसे भर्ती होते हैं ये शूटर? पंजाब में भर्ती किए जाते हैं, फिर कनाडा बुलवाकर हथियारों की ट्रेनिंग देकर पंजाब वापिस भेज दिया जाता है. जब ये शूटर पंजाब वापिस आते हैं तो उन्हें हत्या करने या धमकाने के लिए हथियार चाहिए होते हैं.  उन्हें हथियार कैसे मिलते हैं? पाकिस्तान से. खबरों में पाकिस्तान में बैठे एक शख्स नवीन बाली का नाम सामने आ रहा है. डल्ला और निज्जर बाली से कान्टैक्ट करते हैं. पैसे भिजवाए जाते हैं. और ड्रोन के जरिए भारतीय सीमा के अंदर हथियार गिराए जाते हैं. इंडिया में हथियारों की रसीद और उनके डिस्ट्रब्यूशन का काम देखता है बंबिहा गैंग. शूटरों तक हथियार पहुंचा दिए जाते हैं. कई खबरों में इस डल्ला के कनेक्शन लश्कर से जुड़े कुछ आपरेटिव के साथ बताए जाते हैं, हथियारों में ये लोग भी डल्ला की मदद करते हैं.

डल्ला के ये जो शूटर पंजाब में बैठकर काम करते हैं, उन्हे पैसों की भी जरूरत होती है. तो उन्हें स्थानीय रूप से पेमेंट नहीं किया जाता है, उन्हें पैसे सीधे कनाडा से मिलते हैं. इसमें MTSS यानी Money Transfer Service Scheme का सहारा लिया जाता है. MTSS क्या है?  विदेशों से भारत में पैसा भेजने की स्कीम.  इसका इस्तेमाल रिश्तेदार अमूमन आपस में मनी ट्रांसफर के लिए करते हैं.

डल्ला की कारस्तानी इतनी ही नहीं है. पंजाब पुलिस ने कई मौकों पर डल्ला पर आरोप लगाए है कि वो अपने स्थानीय गुर्गों की मदद से पंजाब में बैठे कुछ धर्मगुरों की हत्या करवाना चाहता है, कई बार ऐसे अटैक प्लान किए गए, लेकिन हत्या की नहीं जा सकी. लेकिन डल्ला कई बार उगाही और रंगदारी के केसों में मर्डर करवाकर खुश हो चुका है.

उड़ती खबरें तो ये भी बताती हैं कि अगर डल्ला और उसके यार निज्जर में मर्डर काउंट की तुलना हो तो डल्ला ने ज्यादा लोगों की हत्या की हुई है.

अब निज्जर मारा जा चुका है. 20 सितंबर को डल्ला का करीबी सुक्खा दुनके भी कनाडा में मारा गया था. डल्ला पर खुद भारत ने 10 लाख का इनाम रखा हुआ है. और डल्ला के इंडिया के ठिकानों पर छापेमारी चालू है. इशारा साफ है, भारतीय एजेंसियां डल्ला के आतंक का पूरा सिस्टम बिगाड़ देना चाहती हैं. उम्मीद है कि ऐसे आतंकियों को उनकी सही जगह पहुंचाने में एजेंसियों को जल्द सफलता मिले.

कनाडा और खालिस्तानी आतंकियों के बाद चलते हैं सुप्रीम कोर्ट.

देश की बड़ी अदालतों यानी हाईकोर्टस में जजों की कमी है. और ये खबर बताने के पहले हम आपको कुछ आंकड़े स्क्रीन पर दिखाते हैं –

- देश के सुप्रीम कोर्ट में कितने केस पेंडिंग हैं - 80 हजार 591 केस.
- देश के तमाम हाईकोर्ट में कितने केस पेंडिंग हैं - 60 लाख 72 हजार 729 केस.
- इस 60 लाख में से लगभग 45 लाख केस ऐसे हैं, जो बस बीते एक साल से पेंडिंग हैं.

अब सामान्य ज्ञान का प्रश्न है कि इतने केसों का निस्तारण कैसे होगा? ज़ाहिर सी बात है कि केसों की सुनवाई और सुनवाई के ऑर्डर के बाद. और कोर्ट का ऑर्डर देंगे जज. और देश में जजों की स्थिति ये है कि सुप्रीम कोर्ट में जजों की कुल पोस्ट है 34, इसमें से 2 खाली हैं. और तमाम हाईकोर्टों में कुल 1174 जजों की कुर्सी है, और इसमें से खाली हैं 340 कुर्सियां. सुप्रीम कोर्ट में तो कमी एकबानगी कम लगती है, लेकिन हाईकोर्ट में देखें तो साफ तौर पर पता चलता है कि जजों की स्ट्रेंथ ही पूरी नहीं है.

अब इसी संख्या को पूरा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम लगातार जजों के नाम केंद्र सरकार के पास भेज रहा है, लेकिन केंद्र सरकार कोई एक्शन नहीं ले रही है. और अब इसी बात को लेकर सुप्रीम कोर्ट और सरकार में फिर से झगड़ा हो गया है. और सरकार के सबसे बड़े वकील यानी अटर्नी जनरल आर वेंकटरमानी को सुप्रीम के जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कोर्ट में जमकर सुनाया है. कहा है कि सरकार की देर की वजह से बहुत सारा फ्रेश टैलेंट अदालतों में जजों की कुर्सी तक नहीं पहुँच पा रहा है.

दरअसल एक संस्था है - एडवोकेट्स एसोसिएशन ऑफ बेंगलुरू. इस संस्था ने एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की. इस याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार के खिलाफ अदालत की अवमानना का केस चलाए. कारण बताया कि सरकार जजों की नियुक्ति में देर कर रही है. अब इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट में 26 सितंबर को सुनवाई हुई और चूंकि सरकार इस केस में एक पार्टी है, तो सरकार के वकील को कोर्ट में खड़ा होकर सुनना पड़ रहा है.

दी हिंदू की खबर के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने इतने नामों को चुनकर सरकार के पास भेजा हुआ है. वो लोग लॉ की प्रैक्टिस छोड़कर बेंच से जुड़ना चाह रहे हैं. लेकिन सरकार नामों की छंटनी में व्यस्त है. सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि सरकार किसी एक नाम के ऊपर किसी दूसरे नाम को प्रीफर कर रही है, ऐसा करने का कारण भी किसी को नहीं मालूम. ऐसे में जो लोग जजों की बेंच ज्वाइन करना चाह रहे हैं, वो सरकार की इस देरी का शिकार हो रहे हैं.

इसके बाद जस्टिस कौल और जस्टिस धूलिया ने कहा कि सरकार की इस देर की वजह से कुछ लोगों ने संभावित जज की लिस्ट से अपने नाम वापिस ले लिए. जजों ने कहा कि ज्यूडीशीयरी ने अच्छे टैलेंट  खो दिए. और अब लोग आना नहीं चाह रहे हैं.

अब आगे बढ़ने के पहले आपको बता दें कि देश में जजों की नियुक्ति कैसे होती है? अभी जो कायदा है कि सबसे सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के सीनियर जजों का समूह आपसी सलाह मशविरे के बाद सरकार को कुछ नाम भेजता है. इन नामों को अलग-अलग कोर्ट में जज के रूप में नियुक्त करने के लिए. फिर कानून मंत्रालय की ओर से इन नामों को अमूमन अप्रूव कर दिया जाता है, नियुक्ति भी हो जाती है. अब ये बात भी है कि समय-समय पर इस कॉलेजियम द्वारा जज बनाने की व्यवस्था को बदलने की बात होती रहती है. क्योंकि सरकारों को लगता है कि जज मनमाने ढंग से जजों की कुर्सी पर लोगों को बिठाते हैं. इस फैसले में सारी सरकारों को लगता है कि जजों की नियुक्ति में सरकारों का भी मत होना चाहिए.अब लौटते हैं खबर पर. कोर्ट में चल रही बहस पर.  

लेकिन अब मौजूदा सरकार पर आरोप हैं कि वो कॉलेजियम द्वारा भेजे हुए ताज़ा नामों पर देर कर रही है. कितने दिनों से देर? खबरों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने 70 लोगों के नाम नवंबर 2022 में सरकार को भेजे थे.. तब से लगभग 11 महीने होने को आए हैं, सरकार की ओर से कोई एक्शन नहीं लिया गया है. लगभग 11 महीनों की देर.  

सुप्रीम कोर्ट ने तो सरकार से ये भी कहा कि आपको अगर हाईकोर्ट कॉलेजियम से नाम मिलते हैं, तो बेसिक काम ये है कि आपको उन नामों को सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम भेजना होता है. ताकि हम इस पर विचार कर सकें. फिर कोर्ट ने सरकार से कहा कि आपने तो इतना बेसिक काम तक नहीं किया.

सरकार ने केवल नई नियुक्ति में ही ढिलाई नहीं बरती, ट्रांसफर में भी ऐसा ही हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को 26 लोगों के ट्रांसफर का भी कागज़-पत्तर भेजा था, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार ने उस पर भी काम नहीं किया.

इस पर सरकार का क्या रीस्पान्स रहा? अटर्नी जनरल आर वेंकटरमानी ने कहा कि उन्हें इस बारे में और जानकारी जुटाने के लिए एक हफ्ते का वक्त चाहिए. सुनवाई की अगली तारीख मुकर्रर हुई 9 अक्टूबर. लेकिन अपनी किताब में अगली तारीख लिखते हुए जजों ने साफ शब्दों में कह दिया–

"चूंकि आपने समय मांगा है, इसलिए मैं कुछ कह नहीं रहा हूं. लेकिन अगली बार मैं बहुत कुछ कहूंगा."

अब ये प्रैक्टिस कितनी जरूरी है, और कितनी जल्द होनी चाहिए, हम आपको एक उदाहरण से बताते हैं. उदाहरण है मणिपुर का.  इस साल फ़रवरी में मणिपुर हाइकोर्ट के जज एमवी मुरलीधरन को हाईकोर्ट का कार्यकारी (एक्टिंग) चीफ़ जस्टिस नियुक्त किया गया. नियुक्ति के कुछ ही महीनों बाद जस्टिस मुरलीधरन ने एक आदेश पास किया, जिसमें मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने को लेकर उचित सर्वे और कार्रवाई करने की बात कही गई. इसी आदेश के सामने आने के बाद मणिपुर में निर्णायक हिंसा शुरू हुई और कुकी-मैतेई एक दूसरे की लाशें गिराने लगे. जब गृहमंत्री अमित शाह मणिपुर के तीन दिनों के दौरे पर थे, तो उन्होंने भी कोर्ट के आदेश की निंदा की थी. जी. कोर्ट के आदेश की निंदा-सराहना का अधिकार आपको कानून ही देता है, बस हर शिकायत के साथ उसे मानना नागरिक की जिम्मेदारी है.

बहरहाल ये आदेश पास करने वाले जस्टिस मुरलीधरन थे तो एक्टिंग चीफ़ जस्टिस. उन्हें कुर्सी से हटना ही था, और नए जज को कुर्सी पर बैठना था. लिहाजा जुलाई में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने मणिपुर हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस के तौर पर दिल्ली हाईकोर्ट के जज सिद्धार्थ मृदुल का नाम भेजा. कॉलेजियम के सुझाए नाम को केंद्र सरकार ने मणिपुर सरकार को भेज दिया. मणिपुर सरकार को इसे स्वीकार करना था. फिर फ़ाइल केंद्र के पास आती और फिर नियुक्ति होती. लेकिन कॉलेजियम की सिफ़ारिश अभी तक मणिपुर सरकार और केंद्र सरकार के बीच अटकी हुई. परमानेंट चीफ़ जस्टिस की नियुक्ति भी लटकी हुई है, और एक विवादजनक आदेश पारित करने वाले जज अभी तक कुर्सी पर हैं. और नए चीफ जज की फ़ाइल का लटकना भी इसी ताज़ातरीन हियरिंग - जो कल सुप्रीम कोर्ट में हुई - में आ गया. इस पर भी कोर्ट ने सरकार को सुनाया. और सरकार ने क्या कहा , वो तो हमने आपको बता ही दिया. समय मांग लिया.

अब बात मणिपुर की. 

मणिपुर जो करीब पांच महीनों से जातीय हिंसा के संघर्ष में झुलस रहा था. यहां परिस्थितियां सामान्य होने की ओर जा रही थीं कि लेकिन फिर से पुराने हालातों की पुनरावृत्ति होती नज़र आ रही है. इंफाल के दो लापता युवाओं की डेडबॉडी की तस्वीर वायरल होने के बाद राज्य में आक्रोश भयानक बढ़ चुका है. घटना के विरोध में कल भी हजारों स्टूडेंट सड़कों पर उतरे थे. और आज भी उतरे हैं. पुलिस से झड़प भी हुई थी. रात में भी इंफाल की सड़कों पर जमकर हंगामा और प्रदर्शन हुआ. और आज सुबह होते ही पूरा प्रदर्शन और हिंसा फुल स्केल में लौट आई.

मणिपुर के जमीनी हालात तो हमने समझ लिए अब बात दो छात्रों की हत्या के मामले में सरकार के स्तर पर क्या एक्शन हुए-

- 23 सितंबर को मणिपुर में इंटरनेट सेवा बहाल हुई, छात्रों के शवों की तस्वीरें वायरल हुईं. विरोध प्रदर्शन बढ़ा,
- 26 सितंबर को अगले 5 दिनों के लिए मोबाइल इंटरनेट सेवा पर प्रतिबंध लगा दिया गया. 
-  27 से 29 सितंबर को स्कूलों को बंद करने का आदेश पास कर दिया गया.
- 19 थानों को छोड़कर पूरे राज्य को 'अशांत' घोषित कर दिया गया है.

इस आखिरी प्वाइंट पर आप ध्यान दीजिए. 19 थाना क्षेत्र छोड़कर पूरे मणिपुर को अशांत घोषित किया गया. अशांत घोषित होना, यानी वहां आर्म्ड फोर्सेस की उपस्थिति का बढ़ना. लेकिन ये 19 थाना क्षेत्र कौन से हैं? इनमें से अधिकतर घाटी के इलाके के थाना क्षेत्र हैं. यानी पहाड़ी के इलाके, जहां कुकी जनसंख्या ज्यादा रहती है, उन इलाकों को अशांत घोषित किया गया. जिन थाना क्षेत्रों को अशांत नहीं घोषित किया गया, वो मैतेई इलाके में शामिल हैं. प्रोटेस्ट कहां हैं? और फोर्स किधर मूव करेगी? अशांति ज्यादा कहां हैं? आप अंदाज खुद लगाइए.

इस मामले पर राजनीतिक बयानबाजी भी तेज हो गई है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने 26 सितंबर को 'एक्स (ट्विटर) ' पर लिखी एक पोस्ट में मणिपुर के सीएम एन बीरेन सिंह को Incompetent यानी अयोग्य मुख्यमंत्री बताते हुए उनकी बर्खास्तगी की मांग की थी. और आज इस मुद्दे पर कांग्रेस की ओर से एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई गई जिसमें कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा किया

खबर लिखे जाने तक बीजेपी की ओर से कांग्रेस के इन हमलों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. लेकिन 26 सितंबर की रात सीएम बीरेन सिंह का एक बयान ज़रूर सामने आया था. उन्होंने 'एक्स (ट्विटर)' पर जानकारी दी थी कि राज्य और केंद्र सरकार दोनों अपराधियों को पकड़ने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं. इसके लिए वो लगातार गृह मंत्री अमित शाह के संपर्क में हैं. इसके साथ बीरेन सिंह ने बताया था कि मामले की जांच में तेजी लाने के लिए सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर अजय भटनागर के नेतृत्व वाली एक टीम इंफाल आने वाली है. और आज ये टीम इंफाल पहुंच भी चुकी है. 

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