केजरीवाल और LG अनिल बैजल के झगड़े की वो बातें जो आपको नहीं पता होंगी
एक बार में सारा कंफ्यूज़न दूर हो जाएगा.
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 11 जून से उपराज्यपाल अनिल बैजल के सरकारी घर में अनशन पर बैठे हैं. यह कोई पहली बार नहीं है जब केजरीवाल और दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर (एलजी) के बीच विवाद हुआ हो. अरविंद केजरीवाल आरोप लगाते रहे हैं कि केंद्र सरकार एलजी के जरिए उन्हें परेशान करती है और काम नहीं करने देती. केंद्र सरकार और भाजपा इन आरोपों को गलत बताती रही हैं. ताजा विवाद आईएएस अफसरों की हड़ताल को लेकर है. केजरीवाल का कहना है कि दिल्ली के आईएएस अधिकारी महीनों से हड़ताल पर हैं. वो न सीएम का कहना मानते हैं न मंत्रियों का. एलजी के कहने पर वो ये हड़ताल कर रहे हैं.
किसी राज्यपाल (या उपराज्यपाल) के खिलाफ राज्य के एक चुने हुए मुख्यमंत्री का इस तरह का अनशन भारत में पहली बार हो रहा है. बात आखिर यहां तक पहुंची कैसे? दिल्ली के सीएम और दूसरे राज्यों के सीएम क्या अंतर है? ऐसे कई सवाल इस विवाद से प्रसंगिक हो गए हैं. हम इन सबके जवाब बताएंगे. पढ़िए.
एक क्लास हिस्ट्री की
दिल्ली में सारी लड़ाई राज्य और केंद्र के बीच शक्तियों के बंटवारे को लेकर है. कहने को शक्तियों का ये बंटवारा देश के सारे राज्यों में मुद्दा है. लेकिन जितना पेचीदा मामला दिल्ली का है, उसकी मिसाल देश में कहीं नहीं मिलती. यहां एक ही काम के लिए 5-5 एजेंसियां हैं. इसलिए कौनसा काम किसे करना है, बॉस कौन है, इसे लेकर भ्रम की स्थिति बनती रही है. ये पेचीदगी समझने के लिए आपको दिल्ली में प्रशासन के इतिहास पर एक छोटू सा क्रैश-कोर्स करना होगा.
दिल्ली विधानसभा, कभी कांग्रेस विधायकों से भरी रहती थी. आज यहां पार्टी का एक भी विधायक नहीं बैठता.
अमूमन दिल्ली विधानसभा का इतिहास 1993 के विधानसभा चुनाव के बाद से बताया जाता है. लेकिन दिल्ली विधानसभा का इतिहास असल में 1951 से शुरू होता है. इसी साल दिल्ली में पहला विधानसभा चुनाव हुआ था. आजादी के बाद रियासतों का एकीकरण हुआ. सरकार ने राज्यों को 'ए', 'बी', 'सी' और 'डी' चार कैटेगिरी में बांटा. 'सी' कैटेगिरी में 10 राज्य थे, जिसमें दिल्ली शामिल था. इन राज्यों में राज्यपाल की जगह चीफ कमिश्नर होता था. राज्य में विधानसभा भी थी. 1951-52 में दिल्ली विधानसभा का पहला चुनाव हुआ. कांग्रेस के ब्रह्म प्रकाश यादव मुख्यमंत्री बने.
1953 में भाषा के आधार पर राज्य बनाने के लिए फजल अली की अध्यक्षता में राज्य पुनर्गठन आयोग बना. इस आयोग की सिफारिशों के आधार पर 1956 में 14 राज्य और पांच केंद्रशासित प्रदेश बनाए गए. ये केंद्र शासित प्रदेश थे- दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा एवं अंडमान-निकोबार द्वीप समूह.
1956 में केंद्रशासित प्रदेश बना दिल्ली.
दिल्ली राज्य से केंद्रशासित प्रदेश बना, तो यहां विधासभा समाप्त हो गई. लेकिन चीफ कमिश्नर का पद बना रहा. इस पद के ज़रिए दिल्ली पर केंद्र सरकार का शासन चलने लगा. फिर अगले साल दिल्ली नगर निगम एक्ट आया और दिल्ली में नगर निगम बन गई. चीफ कमिश्नर और नगर निगम के ज़रिए दिल्ली में कामकाज होने लगा. लेकिन यह ज्यादा दिन नहीं चला. 1966 में दिल्ली प्रशासन अधिनियम बना. इसी अधिनियम के तहत दिल्ली सरकार में वो पद बना जो आगे चलकर इस राज्य के मुख्यमंत्रियों के जी का जंजाल बना - लेफ्टिनेंट गवर्नर. हिंदी में उप-राज्यपाल.
लेकिन उप-राज्यपाल अकेले दिल्ली नहीं भेजे गए. उनकी अध्यक्षता में 56 निर्वाचित और 5 मनोनीत सदस्यों वाली मेट्रोपोलियन काउंसिल भी बनी. हालांकि इस काउंसिल के पास विधायी शक्तियां नहीं थी. माने ये अपने दम पर कानून नहीं बना सकती थी. यह केवल केंद्र सरकार को सलाह देने का काम करती थी. आखिरी फैसला केंद्र का ही होता था. एलजी के पद पर रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स या सेना के रिटायर्ड अधिकारियों की नियुक्ति होती थी. ये सभी हमेशा केंद्र में सत्ताधारी दल के करीबी ही होते थे. यह तरीका चला 1990 तक.
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली.
1991 में दिल्ली की किस्मत फिर बदली. देश के संविधान में 69वां संशोधन हुआ. इसके तहत 'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली एक्ट' बना. इस अधिनियम से दिल्ली में फिर से विधानसभा का गठन हुआ. लेकिन इस विधानसभा में बैठने वाली दिल्ली सरकार की शक्तियां लिमिटेड रखी गईं. जैसे दिल्ली सरकार में और राज्यों की तरह गृह विभाग नहीं रखा गया. ये ज़िम्मेदारी केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास ही रखी गई. इसी वजह से दिल्ली पुलिस दिल्ली सरकार के कंट्रोल में नहीं आती है. वो देश के गृहमंत्री को रिपोर्ट करती है. इसी तरह दिल्ली में ज़मीन से जुड़े कानून भी केंद्र के ही बनाए होते हैं. दिल्ली विधानसभा इन मसलों पर विचार नहीं कर सकती.
एक बात और है. 69वें संशोधन के तहत उप-राज्यपाल को किसी राज्य के राज्यपाल से कहीं ज्यादा शक्तियां दी गईं. दिल्ली में प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति, ट्रांसफर, प्रमोशन सबका जिम्मा एलजी के पास ही है. दिल्ली सरकार का हर फैसला एलजी की मुहर से ही लागू होता है. और ये मुहर 'रबर स्टैंप' वाली नहीं है. एलजी न चाहें तो मुहर लगाने से मना भी कर सकते हैं. दिल्ली सरकार के फैसले पलट भी सकते हैं.
आज के विवाद की जड़ कहां है?
1993 में आए मदनलाल खुराना से लेकर 2013 तक रहीं शीला दीक्षित तक दिल्ली सरकार का उप-राज्यपाल या केंद्र सरकार से कोई विवाद खुलकर सामने नहीं आया था. क्योंकि ज़्यादातर केंद्र और दिल्ली में एक ही पार्टी की सरकार रही (शीला दीक्षित के कार्यकाल में 1998 से 2004 का वक्त छोड़ दें तो). 2013 में दिल्ली के सीएम बने 'आप' के अरविंद केजरीवाल. तब केंद्र में यूपीए की सरकार थी और दिल्ली के एलजी थे नजीब जंग.
केजरीवाल को मुख्यमंत्री की शपथ भी नजीब जंग ने ही दिलवाई थी.
जनवरी 2014 में डेनमार्क की एक महिला पर्यटक के साथ दिल्ली में रेप हुआ. केजरीवाल ने इलाके के पुलिस अधिकारियों को निलंबित करने की मांग की. इससे कुछ दिन पहले केजरीवाल सरकार के एक मंत्री सोमनाथ भारती की कुछ पुलिसवालों से झड़प हो गई थी. आम आदमी पार्टी ने इन पुलिसवालों को सस्पेंड करने की भी मांग की. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसके बाद सीएम केजरीवाल अपने मंत्रियों के साथ रेल भवन के सामने धरने पर बैठ गए. दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार पहली बार खुलकर आमने-सामने थे. दो दिन बाद एलजी ने संबंधित पुलिसवालों को छुट्टी पर भेज दिया जिसके बाद केजरीवाल का धरना खत्म हुआ. लेकिन एलजी और अरविंद केजरीवाल के बीच अदावत की शुरुआत हो गई.
जनवरी 2014 में एलजी और केंद्र सरकार के खिलाफ धरने पर बैठ गए थे केजरीवाल.
फरवरी 2015 में अरविंद केजरीवाल फिर से मुख्यमंत्री बने. इस बार वो कांग्रेस की बैसाखी से आज़ाद थे. अपने दम पर सरकार चला रहे थे. लेकिन एलजी के 'बॉस' बदल गए थे. केंद्र में भाजपा की सरकार आ गई थी. वही भाजपा, जिसे केजरीवाल ने दिल्ली में सरकार बनाने से रोक दिया था. नतीजतन एक बार फिर केजरीवाल और एलजी आमने-सामने होने लगे. अरविंद केजरीवाल बार-बार केंद्र सरकार पर एलजी के जरिए परेशान करने का आरोप लगाने लगे. आम आदमी पार्टी के कई विधायकों को पुलिस ने गिरफ्तार किया. इसके बाद ये तकरार और ज्यादा बढ़ गई. तत्कालीन दिल्ली पुलिस कमिश्नर बीएस बस्सी और केजरीवाल के बीच कई बार खुलेआम बयानबाजी भी हुई. दिसंबर 2015 में केजरीवाल के ऑफिस पर सीबीआई ने रेड की. इसकी वजह उनके मुख्य सचिव पर भ्रष्टाचार का एक पुराना मामला बताया गया. इस रेड के बाद तो केजरीवाल ने पीएम मोदी को खुले में अपशब्द कहे. इसके बाद केंद्र और दिल्ली के बीच की खाई और बड़ी हो गई.
CBI रेड के बाद केजरीवाल ने मोदी पर तीखी टिप्पणियां की थीं.
नवंबर 2016 में दिल्ली हाइकोर्ट ने आदेश दिया कि दिल्ली सरकार का सर्विस डिपार्टमेंट एलजी के तहत काम करेगा. माने केंद्र के इशारे पर. इसका मतलब ये हुआ कि सभी सरकारी अधिकारी एलजी के ही आदेशों का पालन करेंगे. दिसंबर 2016 में उपराज्यपाल नजीब जंग ने इस्तीफा दे दिया. उनकी जगह अनिल बैजल ने ली. लेकिन जंग
खत्म नहीं हुई. केजरीवाल बार-बार कहते रहे कि दिल्ली के प्रशासनिक अधिकारी उनकी बात नहीं सुनते हैं. सब अधिकारी एलजी के निर्देशों पर काम कर रहे हैं. एलजी के साथ यह टकराव कोर्ट तक पहुंच गया. नवंबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट से केजरीवाल सरकार को बड़ा झटका लगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के तहत 'दिल्ली सरकार' का मतलब दिल्ली का कैबिनेट नहीं, दिल्ली का उप-राज्यपाल है. इससे एलजी की ताकत को चुनौती समाप्त हो गई.
केजरीवाल बैजल के सोफे पर क्यों जमे हुए हैं?
19 फरवरी, 2018 को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के घर पर दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ कथित तौर पर मारपीट हुई. दिल्ली के आईएएस अधिकारियों ने इसका दोषी 'आप' विधायकों और कार्यकर्ताओं को बताया और मारपीट के विरोध में हड़ताल पर चले गए. उन्होंने सरकार से सुरक्षा की मांग की. कथित मारपीट के मामले में आप के कुछ विधायकों की गिरफ्तारियां भी हुईं. सीएम केजरीवाल और डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया से भी इस मामले में पूछताछ हुई.
दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश.
अरविंद केजरीवाल का कहना है कि तब से कोई भी आईएएस अधिकारी काम पर वापस नहीं आया. न तो सीएम की किसी बैठक में ये अधिकारी शामिल होते हैं न मंत्रियों की किसी बैठक में. अधिकारी फोन तक नहीं उठा रहे. न ही कोई आदेश मान रहे हैं. इसके चलते विकास के काम रुक रहे हैं. इल्ज़ाम लगाया कि चूंकि दिल्ली के अधिकारी एलजी को रिपोर्ट करते हैं, उन्हीं की शह पर यह सब हो रहा है.
इस कथित हड़ताल को खत्म करवाने के लिए 11 जून को केजरीवाल अपने कुछ मंत्रियों के साथ एलजी निवास पहुंचे. लेकिन एलजी उनसे नहीं मिले. तो केजरीवाल एलजी के गेस्ट रूम में धरने पर बैठ गए. अगले दिन से मंत्रियों ने उपवास भी शुरू कर दिया. यही धरना-उपवास अभी तक जारी है. चार और राज्यों - बंगाल, केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने केजरीवाल का समर्थन किया है.
एलजी निवास में धरने पर केजरीवाल.
आईएएस क्या कह रहे हैं?
इस पूरे मामले पर एलजी ने अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. लेकिन हर बीतते दिन के साथ आईएएस लॉबी की लानत मलानत हो रही थी. तो केजरीवाल के आरोपों का जवाब देते हुए 17 जून को दिल्ली आईएएस एसोसिएशन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की कर कहा कि कोई भी अधिकारी हड़ताल पर नहीं है. उन्होंने कुछ कामों का ब्योरा भी दिया और कहा कि उनपर लगाए सभी आरोप बेबुनियाद हैं.
आईएएस एसोसिएशन की प्रेस कॉन्फ्रेंस ने इस पूरे मसले पर कंफ्यूज़न और बढ़ा दिया है. कम से कम आरोप-प्रत्यारोप के मामले में गेंद एक बार फिर केजरीवाल के पाले में चली गई है. आम आदमी पार्टी ने 17 जून को पीएम आवास घेरने की कोशिश भी की. लेकिन इजाज़त न होने के चलते 'आप' कार्यकर्ता लौट गए. इसी दिन चार राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने नीति आयोग की बैठक में पीएम मोदी से कह दिया कि वो दिल्ली में चल रहे विवाद में दखल दें. लेकिन खबर लिखे जाने तक सुलह की गुंजाइश कहीं नज़र नहीं आ रही थी.
फिलहाल दिल्ली और केंद्र सरकार का विवाद चलते रहने की ही संभावना है.
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