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16 साल के इस बच्चें ने अपनी ही मां को मार डाला, वजह जानकर आप भी सोचने पर मजबूर हो जाएंगे

इससे पहले देर हो आप ये जरूर जांच लें कि कहीं आपके बच्चे को भी तो ऑनलाइन गेमिंग की लत नहीं लग गई है.

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सांकेतिक फोटो (इंडिया टुडे)
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निखिल
8 जून 2022 (Updated: 8 जून 2022, 02:04 AM IST) कॉमेंट्स
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हम सब के मन में कभी न कभी ऐसे खयाल आते हैं, जिनपर हम अमल कर दें, तो हम अपराधी कहलाएंगे. बावजूद इसके, हम सब अपराधी नहीं हैं. क्षणिक आवेश के उस क्षण को हमने बीत जाने दिया. क्योंकि हमारे विवेक ने हमारा साथ दिया. कंप्यूटर की भाषा में कहें तो हम सबके भीतर एक फायरवॉल है, जो ठीक-ठाक काम कर लेती है. फिर आखिर वो कौनसी चीज़ है, जो एक 16 साल के लड़के को अपनी मां की हत्या करने पर मजबूर कर देती है? वो भी सिर्फ इतनी सी बात पर, कि मां ने ऑनलाइन गेम खेलने से मना किया था.

लखनऊ के इस दिल दहला देने वाले मामले के बारे में जितनी बातें आप जानेंगे, आपका सिर घूमता जाएगा. दो दिन तक मां की लाश घर पर रही. बेटे ने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेला, फिल्में देखीं और पार्टी तक की. और इस सब के दौरान चौथी में पढ़ने वाली उसकी छोटी बहन इतनी डरी हुई थी कि किसी से कुछ कह नहीं पाई. घर-परिवार वाले और पड़ोस के लोग कह रहे हैं कि उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि ऐसा कुछ हो सकता है. 

ये इस तरह का इकलौता मामला होता, तो एक पूरा लल्लनटॉप शो इस वाकए के नाम नहीं करते. लेकिन बीते दिनों में ऐसे कई मामले देखे गए जब बच्चों ने अचानक ऐसे कदम उठा लिए, जो आम समझ से बाहर रहे. कभी किसी की जान ले ली, तो कभी अपनी जान दे दी. इन मामलों में एक चीज़ कॉमन थी - सोशल मीडिया और गेमिंग. इसीलिए दी लल्लनटॉप शो में आज हम लखनऊ वाले मामले के बहाने ये तफसील से समझेंगे कि इंटरनेट पर मौजूद चीज़ें बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को किस तरह प्रभावित करती हैं. और वो कौनसे संकेत हैं, जिन्हें देखकर आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि किसी बच्चे को मदद की ज़रूरत है.

मामला क्या है?

पश्चिम बंगाल स्थित सेना के एक ठिकाने पर तैनात एक सैनिक परेशान हैं. दो दिन से वो अपनी पत्नी से बात करना चाह रहे हैं, लेकिन वो फोन नहीं उठा रहीं. 7 जून की शाम अचानक उनका बेटा उन्हें फोन करके कहता है कि एक इलेक्ट्रीशियन ने घर में घुसकर मम्मी को गोली मार दी. ये खबर सुनकर किसी के भी पैरों तले ज़मीन खिसक सकती है. बावजूद इसके, सैनिक अपने भाई को फोन करके अपने घर जाने को कहते हैं. क्योंकि घर पर अब भी उनका 16 साल का बेटा और करीब 10 साल की बच्ची मौजूद हैं. परिजन तुरंत घटना वाले घर पहुंचते हैं और पुलिस को सूचना दी जाती है.

7 जून को ही रात 9 बजे के करीब लखनऊ पुलिस की एक टीम अपने साथ फॉरेंसिक लैब के लोगों को लेकर वारदात वाले घर पर पहुंचती है. मृतका का 16 साल का बेटा पुलिस को बताता है कि घर में बिजली का काम चल रहा था. और एक इलेक्ट्रीशियन का आना जाना लगा रहता है. 6 जून को किसी बात पर इलेक्ट्रीशियन और मां के बीच बहस हो गई, जिसके बाद इलेक्ट्रीशियन ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी. इसका मतलब घटना एक दिन पहले की थी.

लड़का और परिजन घटना बयान कर रहे हैं, लेकिन पुलिस का ध्यान लगा हुआ है उस तेज़ दुर्गंध पर जो हत्या के कमरे ही नहीं, पूरे घर में भारी पड़ी है. शव सड़ना शुरू हो चुका है. ये सब एक दिन में होना असंभव है. और यहीं से पुलिस के दिमाग में शक पैदा होता है, कि उसे बताई जा रही कहानी में गड़बड़ है. पुलिस शुरुआती मुआयने में ये भी पाती है कि घर में घुसने का सिर्फ एक रास्ता है - सामने वाला दरवाज़ा. वहां किसी के जबरन घुसने के निशान नहीं हैं. न ही पड़ोसियों ने किसी को घुसते देखा. पुलिस को एक और बात समझ से परे लगती है. हत्या के लिए इस्तेमाल हुई है सैनिक की लाइसेंसी पिस्टल, जो कि घर पर ही रखी थी. इलेक्ट्रीशियन को कैसे मालूम था कि पिस्टल कहां रखी है.

इसके बाद पुलिस अपना पूरा ध्यान लगाती है उन लोगों पर, जो घर पर रहते थे. मां, बेटा, बेटी और एक पालतू कुत्ता. मां की हत्या हो चुकी है. बेटा जो बता रहा है, वो न सिर्फ अटपटा है, बल्कि उसकी कॉल डीटेल से भी मैच नहीं कर रहा. तब पुलिस 10 साल की बच्ची को भरोसे में लेकर पूछती है. बुरी तरह सहमी हुई बच्ची किसी तरह पुलिस को बताती है - भैया ने मम्मी को मारा है. तब पुलिस ने लड़के सख्त होकर पूछताछ की, और उसने जो बताया, वो आप लखनऊ पुलिस की ईस्ट ज़ोन के ADCP एस.एम. कासिम आबिदी का कहना है, 

"घटना शनिवार, 4 जून देर रात और रविवार 5 जून तड़के के बीच की है. ये तीनों सोए हुए थे. पिता की एक लाइसेंसी पिस्टल अलमारी में रखी हुई थी, लड़के कओ पता था कि पिस्टल कहां रखी है. उसने पिस्टल उठाकर अपनी मां पर हमला कर दिया, मां की मौके पर हि मौत हो जाती है. फिर ये अपनी बहन को लेकर दूसरे कमरे में चला गया, जहां ये सओ जाता है लेकिन बहन नही सो पाती. अगले दिन रोज की तरह ही अपने रूटीन के हिसाब से काम करता है. उसके बाद क्रिकेट खेलता है, पार्टी करने दोस्तों तक को घर बुलाता है. उसने किसी कओ शक नही होने दिया कि ऐसा कुछ हो चुका है."

लड़का इस तरह से सारा काम कर रहा था मानो कोई मशीन हो, जो बिना किसी भाव के अपना काम करती रहती है. ADCP कासिम ने आगे बताया कि दुर्गंध रोकने के लिए बेटा रूम फ्रेशनर का इस्तेमाल कर रहा था. पड़ोसियों को ये बता रखा था कि दादी की तबीयत खराब है और इसीलिए मम्मी चाचाजी के यहां गई हुई हैं. बहन को वो पड़ोसी के यहां ले जाकर खाना खिला रहा था, लेकिन वो बेचारी कुछ बोल नहीं पाई क्योंकि उसे धमकी दे रखी थी कि कुछ कहा, तो तुम्हारा भी वही हाल कर दूंगा. वो तो जब शव की दुर्गंध को छिपाना नामुमकिन हो गया, तब लड़के को अपने पिता को फोन करना ही पड़ा.

इस पूरे घटनाक्रम में सबसे हैरतअंगेज़ वो कारण था, जिसके चलते लड़के ने अपनी मां की जान ली. पुलिस को लड़के ने क्या बताया -

"लड़के ने ये बाते कि उसकी मां उसे फ्रीडम नही देती थी, मोबाइल पर गेम नहीं खेलने देती थी. घटना से पहले शनिवार को लड़के की मां ने घर में 10 हजार रुपए रखे थे, जो उन्हें मिलते नही हैं. इसके चलते वो उसकी पिटाई कर देती है. लेकिन बाद में वो पैसे मिल जाते हैं. इसी बात से वो लड़का मां से इतना नाराज हो गया कि उसने उन्हें मार दिया."  

जितनी बातें पुलिस को एक दिन की जांच में समझ आ गईं, उन बातों की तरफ परिवार या पड़ोसियों का ध्यान कभी नहीं गया. लड़के का अपने गुस्से और भावनाओं पर काबू नहीं था. लेकिन इसे शायद लड़कपन समझ लिया गया. ADCP कासिम बताते हैं कि लड़के ने गेमिंग एडिक्ट होने की बात कबूली है. पबजी और उस जैसे अन्य गेम वो घंटों तक खेलता रहता था. सोशल मीडिया साइट इंस्टाग्राम का बड़ा शौकीन था. चूंकि पिता बाहर थे, इसीलिए मां ही थीं, जो उसे टोकती थीं क्योंकि बोर्ड परीक्षा का साल था. और इसी के चलते लड़के ने मान लिया था कि उसकी खोई हुई आज़ादी के आड़े उसकी मां ही आ रही है.

आज तक से जुड़े संवाददाता आशीष श्रीवास्तव ने लड़के के चाचा से भी बात की. चाचा का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान बच्चों ने मोबाइल और इंटरनेट का इस्तेमाल काफी किया है लेकिन इसका ये मतलब तो नही कि कोई अपनी मां की हत्या कर दे.

ऐसे कुछ और मामलों के बारे में भी जानिए

ये बहुत महत्वपूर्ण बात है कि कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई के चलते बच्चों का स्क्रीन टाइम बेतहाशा बढ़ा है. और इसके चलते गेमिंग और सोशल मीडिया से उनका मोह बढ़ा है. और इस लत का नतीजा क्या होता है, हम लगातार देखते रहे हैं. कुछ मिसालें यहां आपको बता देते हैं 
1. दिसंबर 2021 में मुंबई में एक 15 साल का लड़का अपने घर से भाग गया क्योंकि माता-पिता उसे गेमिंग को लेकर टोकते थे. मां-बाप ने फोन से सिम निकालकर रखना चालू किया, तो लड़का रेलवे स्टेशन जैसी ओपन वाईफाई वाली जगहों पर जाकर गेमिंग करने लगा. जब टोका जाता, तो लड़का अपने गुस्से को काबू नहीं रख पाता. आखिरकार एक दिन घर से भाग ही गया. पुलिस में शिकायत की गई. लड़के के साथ पबजी खेलने वाले बच्चों से संपर्क किया गया. और इन्हीं में से एक के यहां, लड़का मिल गया.

2. दिसंबर 2021 में ही राजस्थान के नागौर ज़िले में एक 16 साल के लड़के ने अपने 12 साल के चचेरे भाई की गला दबाकर हत्या कर दी. क्योंकि दोनों के बीच ऑनलाइन गेम्स के पेमेंट टोकन को लेकर झगड़ा हो गया था. इसके बाद उसने लाश को खेत में गाड़ दिया. और सोशल मीडिया के ज़रिए परिवार से 5 लाख की फिरौती भी मांग ली.

3. अब पिछले महीने, माने मई 2022 की इस खबर को देखिए. गुजरात के राजकोट में एक 17 साल के लड़के ने खुदकुशी कर ली. मां ने पुलिस को बताया कि लड़के को पबजी की लत थी.

थोड़ा पबजी के बारे में भी जानिए 

यहां बार बार एक खेल का नाम आ रहा है - पबजी. पबजी दरअसल अंग्रेज़ी शब्द PlayerUnknown's Battlegrounds का शॉर्ट फॉर्म है - PUBG. पबजी इंटरनेट पर खेला जाता है. अलग-अलग लोग एक ही खेल में शामिल हो सकते हैं. खेलते हुए आपस में बात भी कर सकते हैं. खेलते हुए लगेगा का आप एक कमांडो हैं और एक असली मिशन पर हैं. ऐसे खेलों को हम कहते हैं बैटल रोयाल गेम्स. PUBG इनकी एक चर्चित किस्म है. लेकिन ऐसा नहीं है कि सारे लोग PUBG ही खेलते हैं. बैटल रोयाल जॉनर के कई और खेल हैं, जिनमें मारधाड़ है. और जो इतने लोकप्रिय हैं, कि उनकी लत लगने की शिकायतें मिलती रहती हैं. पबजी का उल्लेख अलग से इसलिए किया क्योंकि आप ऑनलाइन गेमिंग की लत और उसके चलते सूसाइड या हत्या की खबरें तलाशेंगे, तो पबजी का ज़िक्र खूब सारी खबरों में मिलता है.

विशेषज्ञ क्या कहते हैं? 

लखनऊ में जो हुआ, उसे लेकर पुलिस की जांच अभी जारी है. और दोषी या निर्दोष का फैसला न्यायालय से होगा. लेकिन यहां तक आते आते ये स्थापित हो जाता है कि सोशल मीडिया और ऑनलाइन गेमिंग के चलते बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. इसे लेकर हमने बात की डॉ आरती से, जो सर गंगाराम अस्पताल में क्लिनिकल साइकॉलिजिस्ट हैं. डॉ आरती ने इस तरफ इशारा किया कि लखनऊ वाले मामले में गेमिंग की लत से इतर कारण भी हो सकते हैं. डॉ आरती, ने हमें बताया, 

"गेमिंग की लत के अलावा भी मानसिक बीमारी होगी. गेमिंग की लत का पहला लक्षण है, जब आप मना करते हैं तो उसे गुस्सा आएगा. दूसरा ये कि वो खाने-पीने के बजाए उस चीज को प्राथमिकता देगा जिसकी उसे लत है. किसी से मिलना जुलना कम हो जाता है. कई बार डिप्रेशन या एंग्जाइटी जैसी समस्या के चलते भी बच्चे ऑनलाइन गेमिंग में ज्यादा समय बिताते हैं."

डॉ आरती की ये बात गेमिंग और गेमिंग की लत को देखने का एक नया नज़रिया पेश करती है. हमें ये देखना होगा कि बच्चे के स्वभाव में जो बदलाव आ रहा है, वो गेमिंग के कारण है, या फिर गेमिंग अपने आप में किसी दूसरी समस्या के चलते शुरू हुई. 

अब आते हैं इस सवाल पर कि लखनऊ जैसी अनहोनी से पहले कैसे मालूम किया जाए कि किसी बच्चे को मदद की ज़रूरत है. इस पर डॉ आरती बताती हैं, कि जब भी आप बच्चे को मना करेंगे उसका मूड बदल जाएगा, उसे गुस्सा आएगा. उसे सिर्फ गेम की चिंता होगी और पढ़ाई, दोस्त खाने-पीने की तरह उसका ध्यान नही होगा. और सबसे जरूरी लक्षण ये है कि गेमिंग की लत लगने के बाद बच्चें अकसर देर रात तक गेम खेलते हैं वे सोने का खयाल भी नही करते, जिसकी वजह से पढ़ाई में ध्यान नही लगेगा और वह चिढ़ चिढ़ा हो जाएगा. धीरे-धीरे वो खुद को समाज और आसपास के वातावरण से अलग कर लेते हैं. जब माता-पिता बच्चों में इन लक्षणों को दो-तीन महीनों से देख रहें हो तो उन्हें मदद लेनी चाहिए.

मोबाइल फोन और इंटरनेट आज के समय का शाश्वत सत्य है. हम खुद इनकी गिरफ्त में हैं. तो बच्चों से ये उम्मीद करना कि वो इनके पंजे से बच जाएंगे, नादानी है. कोरोना काल में जब स्कूल बंद हुए तो बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ा, और इंटरनेट से उनका रिश्ता भी. अब बच्चे गेमिंग और इंटरनेट ओवरडोज़ के शिकार हो रहे हैं.

2021 में आई ''इंडियन एकैडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स गाइडलाइंस ऑन स्क्रीन टाइम एंड एडोलसेंट्स'' के मुताबिक भारत में 96 फीसद नवजात बच्चे 10 महीने की उम्र के भीतर स्मार्टफोन के संपर्क में आ रहे हैं. कुछ मामलों में तो 2 -2 महीने के नवजात तक मोबाइल फोन देखने लगते हैं. जबकि विशेषज्ञ बताते हैं कि 18 महीने से छोटे बच्चों को डिजिटल मीडिया से पूरी तरह दूर रखा जाना चाहिए. और दो से पांच साल के बच्चों को दिन में एक घंटे से ज़्यादा मोबाइल से संपर्क नहीं रखना चाहिए.

कई मामलों में बच्चे अपने अभिभावकों से ज़्यादा डिजिटल स्किल रखते हैं और इसीलिए वो माता-पिता को भरोसा दिलाने में कामयाब रहते हैं कि उन्हें किसी निगरानी की ज़रूरत नहीं. आत्म नियंत्रण कम होता है, इसीलिए बच्चे किसी भी इनाम के लालच में गेमिंग के आदी बनते जाते हैं. ये इनाम कुछ भी हो सकता है - पॉइंट्स, या कोई शील्ड या फिर जीत की खुशी. इसीलिए सारे खेलों में जीतने और खोजने के लिए बहुत कुछ रखा जाता है. गेम डिज़ाइन ही इस तरह से किया गया है, कि लोग लंबे समय तक उसे खेलते ही रहें. छोटे-छोटे इनाम पाने का ये सिलसिला वक्त के साथ इतना हावी हो जाता है, कि गेमिंग से इतर किसी और चीज़ का महत्व बच्चा समझ ही नहीं पाता. और तब पैदा होती है अनहोनी की गुंजाइश.

मोबाइल फोन या गेमिंग अपने आप में खराब नहीं हैं. और न ही इनके चलते हमारे बच्चे बिगड़ रहे हैं. वो मोबाइल ही था, जिसने आपके बच्चों को कोरोना काल में क्लास से दूर रहते हुए भी क्लास तक पहुंचाया. और गेमिंग एक स्किल है. आप ये जानकर हैरान होंगे कि ऐसी जगहों पर, जहां तेज़ रिफ्लेक्स की ज़रूरत होती है, मिसाल के लिए फाइटर पायलट, वहां गेमर्स बहुत अच्छा प्रदर्शन करते हैं. इससे ये स्थापित है कि सारा खेल चुनाव का है. हमें चुनना होगा कि हमें मोबाइल और गेमिंग से क्या चाहिए. और चूंकि बच्चे सारी चीज़ें अपने से नहीं समझ सकते, इसीलिए आपको इस चुनाव में उनकी मदद करनी होगी. उनके साथ खड़े होना होगा. मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सतर्क रहना होगा. ये छोटे-छोटे काम कर लेंगे, तो आप महफूज़ रहेंगे, आपके बच्चे महफूज़ रहेंगे.

वीडियो: 16 साल के बच्चे ने मां को मार डाला, वजह जानकार आप सोच में पड़ जाएंगे

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