बरेली से 70 किलोमीटर दूर. एक गांव है जियानागला. कुछ शरारती लोग होते हैं. जिनको अमन पसंद नहीं होता. बखेड़ा खड़ा करना चाहते हैं. उन्हीं में से कुछ लोगों ने गांव का माहौल बिगाड़ने के लिए पोस्टर लगा दिए होंगे, ‘मुसलमानों गांव छोड़ दो. बीजेपी की सरकार आ गई है. अगर नहीं छोड़ा तो वही करेंगे जो ट्रंप अमेरिका में कर रहा है.’ इस सोच पर बात करने से पहले राहत इन्दौरी की एक नज़्म याद आ रही है. पहले उसे पढ़ लीजिए. नज़्म थोड़ी तल्ख़ लहजे में है, मगर सच के करीब है.
अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो, जान थोड़ी है
ये सब धुआं है कोई आसमान थोड़ी हैलगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में
यहां पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी हैमैं जानता हूं के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी हैहमारे मुंह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुंह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी हैजो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी हैसभी का ख़ून है शामिल यहां की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
पोस्टर चिपकाए जाने के बाद से गांव में तनाव है. इन पोस्टरों में लिखा है, ‘उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार आ गई है. मुसलमानों गांव खाली कर दो. नहीं तो वही करेंगे जो अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप अपने देश में मुसलमानों के साथ कर रहे हैं. जल्दी ही फैसला कर लो, क्योंकि अब तुम गांव में रहने के लायक नहीं रहे.’
ये पोस्टर एक-दो जगह नहीं बल्कि करीब दो दर्जन जगहों पर लगे थे. इन पोस्टर में बतौर संरक्षक बीजेपी के एक सांसद का नाम लिखा हुआ है. किसने ये पोस्टर लगाएं हैं उस जगह ‘अज्ञात (गांव के हिंदू)’ लिखा गया है. इन पोस्टरों में 30 दिसंबर तक गांव छोड़ने की चेतावनी दी गई है.
इन पोस्टरों की जानकारी पुलिस को मिली. पुलिस ने ये पोस्टर हटवा दिए हैं. इन पोस्टरों को सोमवार की सुबह देखा गया था. गांव वालों का कहना है कि उन्हें नहीं पता कि यह किसने और कब लगाए.

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक ये पोस्टर बीजेपी की प्रचंड जीत के अगले ही दिन लग गए थे. गांव के प्रधान रेवा राम का कहना है, ‘हम लोग आधी रात के करीब सोने गए थे. जब सुबह उठे तो देखा कि पूरे गांव में ऐसे पोस्टर लगे हैं. कुछ गांव वालों ने विरोध जताया. हमने पुलिस को इस बारे में जानकारी दी.’
इस गांव में करीब 2,500 की आबादी है. जिनमें करीब 200 मुस्लिम बताए जाते हैं. गांव वालों का कहना है कि इससे पहले कभी यहां कोई ऐसी बात नहीं हुई, जिसमें सांप्रदायिकता की बात हो. सब लोग मिलजुलकर रहते हैं. जिस तरह से पोस्टर पर अज्ञात लिखा है, उसी तरह पुलिस ने भी अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है. पूछताछ के लिए गांव के ही 5 लड़कों को पुलिस ने हिरासत में भी लिया. माहौल न बिगड़े, इसके लिए पुलिस फ़ोर्स भी तैनात किया गया है.
जिला प्रशासन के आला अफसरों ने गांव का दौरा किया. लेकिन अभी ऐसा कुछ पता नहीं चला कि पोस्टर किसने लगाए. पुलिस प्रिंटिंग और फोटोस्टेट का काम करने वालों से पूछताछ कर रही है.
वैसे तो पूरी उम्मीद है कि ये पोस्टर चंद लोगों का ही काम है. लेकिन ये उन लोगों की उस सोच को दर्शाता है, जिसमें उन्हें लगता है कि सरकार बदलने के बाद मुस्लिमों को देश छोड़ देना चाहिए. ये खतरनाक सोच है समाज के लिए भी. और सरकार के लिए भी. क्योंकि इससे सरकार की गलत इमेज बनती है, भले ही सरकार का कोई लेना-देना न हो. पुलिस को सख्ती से काम लेना चाहिए, ताकि माहौल न बिगड़े और अमन बना रहे.
पोस्टरबाज़ी से गांव में तनाव हो गया था. शरारती लोग भी यही चाहते थे. गांव वालों को ही नहीं, हर इंसान को ऐसे शरारती लोगों से बचने की ज़रूरत है. क्योंकि जब कहीं भी फिज़ा ख़राब होती है तो उसकी ज़द में बाकी भी आ जाते हैं. ये शरारती दिलों में नफरत डालना चाहते हैं. समझदारी इसमें ही है कि गांव के लोग आपस में मिलकर ऐसे लोगों की पहचान करें. मोहब्बतों को कायम करें. क्योंकि दिलों की दरार भरी नहीं जाती. तो इस दरार को आने ही न दें. बरेली के ही शायर हैं वसीम बरेलवी. ये शेर उनका ही है,
तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते
इसीलिए तुम्हें हम नज़र नहीं आतेमोहब्बतों के दिनों की यही खराबी है
ये रूठ जाएं तो लौट कर नहीं आते
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