न्यूक्लियर पावर से लैस होगा INS Vishal, मगर क्या भारत को इतने बड़े एयरक्राफ्ट कैरियर की जरूरत है?
Indian Navy एक तीसरा Aircraft Carrier बना सकती है. इस कैरियर का नाम INS Vishal होगा और ये एक Nuclear Powered Aircraft Carrier होगा. सवाल ये है कि Stealth Warfare के जमाने में एक भारी-भरकम कैरियर सही चॉइस है या Nuclear Submarine?

भारत अपना तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विशाल (INS Vishal) बना सकता है. रक्षा मंत्रालय की ओर से जारी टेक्नोलॉजी पर्सपेक्टिव केपेबिलिटी रोडमैप (TPCR 2025) के मुताबिक इंडियन नेवी (Indian Navy) के लिए एक एयरक्राफ्ट कैरियर बनाया जा सकता है जो 40 साल तक सर्विस में रहेगा. इस एयरक्राफ्ट कैरियर का नाम आईएनएस विशाल हो सकता है. साथ ही खबरें ये भी हैं कि ये एक न्यूक्लियर पावर (Nuclear powered Aircraft Carrier) से चलने वाला कैरियर होगा जो कई महीनों तक समुद्र में रह सकेगा. अब यहां सवाल है कि स्टेल्थ (Stealth) के जमाने में बजाए न्यूक्लियर सबमरीन (Nuclear Submarine) के एक 'विशाल' एयरक्राफ्ट कैरियर क्या एक 'सही' चॉइस है? और क्या हैं भारत के प्रस्तावित एयरक्राफ्ट कैरियर INS Vishal की खूबियां.

वॉरफेयर का तरीका दिन-ब-दिन बदलता जा रहा है. फाइटर जेट्स को एक समय डॉगफाइट (हवा में आमने-सामने दो जेट्स की लड़ाई) में इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन आज बियॉन्ड विजुअल रेंज (BVR) फाइट का दौर है. नेवी के एक समय विशाल जहाजों के बेड़े के लिए जाना जाता था, लेकिन आज पानी के नीचे खामोशी से चल रही, परमाणु मिसाइल दागने वाली सबमरीन का दौर है. कुलजमा बात ये है कि आज के दौर में शोर मचाने वाले हथियारों से ज्यादा खामोशी से हमला करने वाले हथियारों को तरजीह दी जा रही है. ऐसे में आज के समय में एक एयरक्राफ्ट कैरियर किस काम में आ सकता है? क्या ये समुद्र में अपनी ताकत दिखाने माने पावर प्रोजेक्शन के काम आता है, या आज की जंग में इसका इस्तेमाल होगा? एक-एक कर के समझते हैं.

इसको समझने के लिए कि एयरक्राफ्ट कैरियर ज्यादा बेहतर है या सबमरीन, ये जानने के लिए हमें इतिहास के पन्नों में झांकना होगा. बात दूसरे विश्वयुद्ध की है जब हिटलर नाम का एक शख्स पूरी दुनिया जीतने के इरादे से यूरोप के देशों पर हमला करने लगा. कई देश जीत लिए. ये वो दौर था जब जर्मन सेना बहुत शक्तिशाली थी, खासकर उनकी नेवी. 1941 में पर्ल हार्बर पर हमला होने तक अमेरिका जंग में नहीं कूदा था, लेकिन हर हफ्ते वो हजारों टन खाना और राहत सामग्री ब्रिटेन और अपने मित्र देशों को भेजता था जिससे वो हिटलर का सामना कर सकें. लेकिन हिटलर की नेवी उसमें से अधिकतर जहाजों को डुबा देती थी. यहां तक कि ब्रिटेन के कई विशाल एयरक्राफ्ट कैरियर्स भी जर्मन नेवी की U-Boats कही जाने वाली सबमरीन्स का शिकार बन गए.

ये सबमरीन्स पानी के नीचे घात लगाए खामोशी से मित्र देशों (Allied Powers) के जहाजों का इंतजार करती, और मौका मिलते ही अपने टॉरपीडो से हमला कर उन्हें तबाह कर देती थीं. ब्रिटेन की रॉयल नेवी का शानदार एयरक्राफ्ट कैरियर HMS Courageous पहला मॉडर्न कैरियर था जो 17 सितंबर, 1939 को एक जर्मन U-Boat का शिकार बना. ये जर्मन U-Boats का शिकार करने निकला था, लेकिन खुद उनका शिकार बन गया. इस नुकसान की वजह से रॉयल नेवी ने तुरंत अपने सभी कैरियर्स को एंटी-सबमरीन मिशंस से हटा लिया. लेकिन इसके बाद भी जर्मनी के U-81 और U-73 बोट्स, रॉयल नेवी के HMS Ark Royal और HMS Eagle को डुबाने में कामयाब रहे. इसके बाद मित्र देशों ने अपनी स्ट्रेटेजी बदली, लेकिन तब तक जर्मन नेवी उनका अच्छा-खासा नुकसान कर चुकी थी.

भारत के संदर्भ में देखें तो एयरक्राफ्ट कैरियर का सबसे बेहतरीन इस्तेमाल 1971 की जंग में हुआ था. INS विक्रांत से उड़ने वाले जंगी जहाजों ने पाकिस्तानी नौसेना को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया. पाकिस्तान ने विक्रांत को निशाना बनाने के लिए अपनी सबसे उन्नत सबमरीन PNS Ghazi को भेजा. लेकिन भारत के डिस्ट्रॉयर INS Rajput ने इसे विशाखापत्तनम के पास डिटेक्ट कर तबाह कर दिया. लेकिन अगर PNS Ghazi विक्रांत के करीब पहुंच जाती तो और उसे डुबाने में कामयाब होती तो जंग का रुख बदल सकता था. यही वजह है कि कोई भी एयरक्राफ्ट कैरियर अकेले ऑपरेट नहीं करता. उसके साथ कई जहाजों का बेड़ा चलता है. इसे ही कैरियर बैटल ग्रुप कहते हैं.

कुल मिला कर देखें तो एयरक्राफ्ट कैरियर का मुख्य रोल एयरफोर्स की पहुंच को और आगे बढ़ाना है. उदाहरण के लिए अगर कभी ऐसी स्थिति आए कि भारत और चीन में जंग हो जाए तो इसमें निश्चित तौर पर सबसे बड़ा रोल आर्मी का होगा. लेकिन नेवी इस जंग में गेमचेंजर साबित होगी क्योंकि भारत के अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के ठीक नीचे से गुजरता है 'स्ट्रेट ऑफ मलक्का'. ये वो समुद्री रुट है जहां से चीन अपना 60 प्रतिशत से अधिक तेल मंगवाता है. इसके अलावा भी उसके अधिकतर व्यापार इसी रास्ते से होते हैं. अगर भारत को इस रास्ते को ब्लॉक कर चीन पर दबाव बनाना है तो वो अपने एयरक्राफ्ट कैरियर्स और उनपर मौजूद विमानों से आसानी से ब्लॉक कर सकता है. एयरक्राफ्ट कैरियर्स का एक रोल और है कि उन पर मौजूद विमानों को उड़ान के लिए एयरबेस पर निर्भर नहीं रहना पड़ता. इसलिए विमानों का 'रेंज' काफी बढ़ जाता है. ऐसे में एयरक्राफ्ट कैरियर समुद्र में लंबी दूरी तक ऑपरेशन करने में सक्षम हैं. लेकिन यहां भी एक दिक्कत है.

समस्या ये है कि पुराने एयरक्राफ्ट कैरियर्स डीजल या गैस पावर से संचालित होते हैं. जबकि नए और आधुनिक कैरियर न्यूक्लियर पावर्ड के भी हैं. डीजल और गैस पावर्ड कैरियर्स को कम से कम एक हफ्ते में रीफ्यूलिंग की जरूरत पड़ती है. वहीं न्यूक्लियर कैरियर्स कई महीनों तक पानी में रह सकते हैं. वजह, इनमें ऊर्जा के लिए एक न्यूक्लियर रिएक्टर का इस्तेमाल होता है. भारत का प्रस्तावित एयरक्राफ्ट कैरियर INS Vishal भी न्यूक्लियर पावर का हो सकता है.
भारत के लिए क्या बेहतर: कैरियर या सबमरीन?इस सवाल का जवाब इस पर निर्भर करता है कि भारत की जरूरत क्या है? क्या भारत अमेरिका की तरह पूरी दुनिया के समुद्र में अपनी पावर को प्रोजेक्ट करना चाहता है? या भारत को हिंद महासागर के आसपास के एरिया की हिफाजत और निगरानी करनी है? हम इतना जानते हैं कि भारत ने कभी कब्जे के इरादे से किसी देश पर हमला नहीं किया. न ही उसकी मंशा किसी दूसरे के झगड़े में कूदने की रही है. अगर कहीं मध्यस्थता की बात आती भी है तो भारत ने मिलिट्री के इस्तेमाल की जगह हमेशा कूटनीति और बातचीत का रास्ता अपनाने पर जोर दिया है. दूसरी बात कि भारत की मंशा कभी भी अपना पावर प्रोजेक्ट करने की नहीं रही. भारत ने हमेशा अपनी सीमाओं में रह कर, दूसरे देशों की संप्रभुता का सम्मान किया है.

ऐसे में अगर भारत तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर बनाता है तो उसे इसकी तैनाती को लेकर एक स्ट्रेटेजी तय करनी होगी. एक बात और है कि TPCR 2025 के तहत अगर भारत अपना तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर बनाना शुरू कर देता है तो इसे बनते-बनते कम से कम 10 साल लगेंगे. साथ ही ये 65 हजार टन का एयरक्राफ्ट कैरियर होगा. ऐसे में मुमकिन है कि ये न्यूक्लियर पावर से चलने वाला कैरियर हो क्योंकि इतने बड़े कैरियर को चलाने के लिए अगर डीजल या गैस पावर का इस्तेमाल किया जाए तो ये तकनीकी और पर गुजरे जमाने का कैरियर माना जाएगा. क्योंकि विक्रांत जैसे 45 हजार टन के कैरियर तो डीजल-गैस पावर वाले हो सकते हैं, जिन्हें हर 8-10 दिन पर रीफ्यूल करना पड़ता है. लेकिन 65 हजार टन के कैरियर को बार-बार रीफ्यूल करना पड़े तो ये निश्चित तौर पर एक Bad Deal कहा जाएगा.

दूसरी ओर जहां तक बात है सबमरीन की तो भारत पहले से INS अरिहंत और INS अरिघात जैसी न्यूक्लियर सबमरीन का इस्तेमाल कर रहा है. ऐसे में इन्हें बनाने और इनके मेंटेनेंस के लिए जो इकोसिस्टम चाहिए, वो पहले से मौजूद है. तो इस लिहाज से सबमरीन ज्यादा बेहतर विकल्प जान पड़ता है. साथ ही आज का जमाना स्टेल्थ तकनीक का है. फाइटर जेट्स किसी भी कीमत पर रडार से बचना चाहते हैं. भारत समेत कई और देश अपना खुद का स्टेल्थ विमान विकसित करने में लगे हुए हैं.
ऐसे में 'स्टेल्थ वॉरफेयर' के लिहाज से देखें तो दूर से ही नजर आने वाले और रडार पर आसानी से दिखने वाले एयरक्राफ्ट कैरियर्स से बेहतर विकल्प सबमरीन है जो बिना नजर आए अपना काम कर देती है. साथ ही पानी के नीचे होने की वजह से रडार और सोनार जैसी तकनीक के लिए भी इन्हें पकड़ना या खोजना मुश्किल होता है. क्योंकि पानी के भीतर रडार की तरंगें उस तरह से ट्रेवल नहीं कर पाती जिस तरह वो हवा में करती हैं. अब आखिर में ये समझते हैं कि भारत का प्रस्तावित एयरक्राफ्ट कैरियर INS Vishal कैसा हो सकता है? और क्या खासियत होगी इसमें?

INS Vishal को भारत का तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर कहा जा रहा है. लेकिन जब तक ये बन कर तैयार होगा, तब तक शायद INS Vikramaditya के रिटायरमेंट की तारीख नजदीक आ जाएगी. 4 फरवरी 2025 को बिजनेस स्टैंडर्ड में एक रिपोर्ट छपी. इसके मुताबिक इंडियन नेवी ने तीसरे एयरक्राफ्ट कैरियर की मांग की लेकिन सरकार ने नेवी को इसकी बजाए सबमरीन पर ध्यान केंद्रित करने को कहा. चीन लगातार अपने न्यूक्लियर कैरियर के प्रोग्राम में तेजी ला रहा है. ऐसे में ये जरूरी है कि कम से कम 2 एयरक्राफ्ट कैरियर हमेशा नेवी के पास हों. तीसरे कैरियर को मंजूरी मिल भी जाती है तो इसे बनते-बनते कम से कम 10-12 साल लगेंगे. ऐसे में इसे तीसरे कैरियर नहीं बल्कि INS Vikramaditya की जगह लेने वाले कैरियर के रूप में देखा जाना चाहिए. अगर भारत ये कैरियर बनाता है तो अमेरिका और फ्रांस के बाद वो तीसरा ऐसा देश होगा जिसके पास एक न्यूक्लियर पावर वाला एयरक्राफ्ट कैरियर होगा. फिलहाल भारत का प्रस्तावित प्रोजेक्ट INS Vishal है जो एक 65 हजार टन का एयरक्राफ्ट कैरियर होगा. इस कैरियर में कुछ संभावित फीचर्स हो सकते हैं जैसे
- 55 विमानों की क्षमता: 40 फिक्स्ड विंग एयरक्राफ्ट और 15 हेलीकॉप्टर
- परमाणु पावर: लंबे समय तक समुद्र में रह सकेगा
- इलेक्ट्रॉमाग्नेटिक एयरक्राफ्ट लॉन्च सिस्टम (EMALS): जिससे एक मैगनेट की मदद से भारी विमानों को टेक-ऑफ करवाया जा सकेगा.
- लेजर और डायरेक्ट एनर्जी हथियार से लैस
- कॉम्बैट मैनेजमेंट सिस्टम: इससे कैरियर अपने विमानों को बेहतर डायरेक्शन दे पाएगा
- ऑटोमैटिक लैंडिंग सिस्टम: खराब मौसम में भी GPS और रडार की मदद से विमानों सुरक्षित लैंडिंग
- रफाल मरीन जैसे उन्नत नेवल विमान
- TEDBF: ट्विन इंजन डेक बेस्ड फाइटर जो कि एक उन्नत क्षमता वाला प्रस्तावित प्रोजेक्ट है
- सर्विलांस ड्रोन्स से लैस
अगर इस प्रोजेक्ट को मंजूरी मिलती है तो निश्चित तौर पर ये समुद्र में इंडियन नेवी की ताकत में इजाफा करेगा. लेकिन सवाल है कि क्या कोचि शिपयार्ड या कोई दूसरी संस्था जो इसे बनाएगी, क्या वो समय पर इसकी डिलीवरी दे पाएगी? क्योंकि भारत में स्वदेशी रक्षा उत्पाद बनते तो अच्छे हैं, लेकिन उनकी डिलीवरी में हुई देरी सेनाओं की ऑपरेशनल क्षमता पर बुरा असर डालती हैं.
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