The Lallantop
Advertisement

ED की शक्तियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं, तीन जजों की पीठ करेगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट 2022 के उस फैसले की समीक्षा करेगा, जिसने प्रवर्तन निदेशालय (ED) को मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA) के तहत लोगों को गिरफ्तार करने, समन भेजने तथा निजी संपत्ति पर छापेमारी करने की असीमित शक्तियां दी थीं.

Advertisement
Supreme Court will hear on Enforcement Directorate ED powers, reconstitute a bench of three judges
सुप्रीम कोर्ट 2022 के फैसले की समीक्षा करेगा (फोटो: आजतक)
pic
अर्पित कटियार
5 मई 2025 (Updated: 5 मई 2025, 08:08 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

सुप्रीम कोर्ट ने लगभग दो साल पुराने फैसले की समीक्षा करने के लिए तीन जजों की पीठ का पुनर्गठन किया है, जिसने प्रवर्तन निदेशालय (ED) को मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA) के तहत लोगों को गिरफ्तार करने, समन भेजने तथा निजी संपत्ति पर छापेमारी करने की असीमित शक्तियां दी थीं. ये पीठ 7 मई को मामले की सुनवाई करेगी.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, इस पीठ में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह शामिल हैं. इससे पहले जस्टिस सूर्यकांत, सीटी रविकुमार और उज्जल भुइयां की पीठ इस मामले को देख रही थी. हालांकि, जस्टिस रविकुमार 5 जनवरी को रिटायर्ड हो गए, जिसके बाद कोर्ट को पीठ के पुनर्गठन की जरूरत महसूस हुई. रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले कुछ महीनों में इस मामले की सुनवाई कई बार स्थगित हुई है. कोर्ट ने इस मामले में पेश हुए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और एएम सिंघवी को आश्वासन दिया है कि इस मामले की दो दिन तक बिना रुके सुनवाई होगी. इस मामले में केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए.

ED शक्तियों पर आपत्ति

याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि कोर्ट के 2022 के फैसले ने एक आरोपी व्यक्ति के मूल अधिकारों को छीन लिया. जिसमें प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट (ECIR) आरोपी को न देना भी शामिल हैं. याचिका में कहा गया कि इस फैसले ने निर्दोष साबित करने का भार अभियोजन पक्ष के बजाय आरोपी के कंधों पर डाल दिया. 545 पेज के फैसले में जमानत के लिए PMLA की विवादित "दोहरी शर्तों" को बरकरार रखा गया था. इन शर्तों के मुताबिक, मामले के आरोपी को तभी जमानत मिलेगी, जब वह मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों के खिलाफ अपनी बेगुनाही साबित कर सके. अगर आरोपी को जमानत मिल भी जाती है, तो उसे यह साबित करना होगा कि जमानत पर रहते हुए उसके कोई अपराध करने की संभावना नहीं है.

ये भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल एक्सेस को मौलिक अधिकार बताया, KYC नियमों को लेकर भी दिए निर्देश

इसके बाद पुनर्विचार याचिकाओं में ये तर्क दिया गया है कि एक विचाराधीन कैदी के लिए यह साबित करना बहुत मुश्किल है कि वह दोषी नहीं है. एक तो वह जेल में है और उसके साथ ED ने प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट साझा नहीं की है. विपक्ष अक्सर दावा करता है कि सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने के लिए इस कानून का इस्तेमाल करती है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने PMLA को मनी लॉन्ड्रिंग के विरुद्ध कानून बताया था न कि प्रतिद्वंद्वी राजनेताओं के विरुद्ध चलाया जाने वाला हथियार.

वीडियो: सुप्रीम कोर्ट और सरकार में तकरार, जस्टिस बी.आर. गवई ने क्या पूछ लिया?

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement