The Lallantop
Advertisement

प्रोफेसर अली खान को मिली बेल, SC ने पूछा- महिला अफसरों के अपमान वाला बयान कहां है?

Professor Ali Khan Mahmudabad Bail: ये मामला एक सोशल मीडिया पोस्ट से जुड़ा है. 8 मई को प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद ने फेसबुक पर एक लंबा पोस्ट लिखा था. इसमें उन्होंने आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान की आलोचना की थी. इसी पोस्ट में कर्नल सोफिया कुरैशी का भी जिक्र किया गया था.

Advertisement
professor Ali Khan Mahmudabad
प्रोफेसर को अंतरिम जमानत मिल गई है. (फाइल फोटो: इंडिया टुडे)
pic
अनीषा माथुर
font-size
Small
Medium
Large
21 मई 2025 (Updated: 21 मई 2025, 01:02 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणियों के साथ अशोक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद (Professor Ali Khan Mahmudabad) को अंतरिम जमानत दे दी है. हालांकि कोर्ट ने इस मामले की जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. प्रोफेसर के पोस्ट को लेकर कोर्ट ने कहा कि स्पेशल इन्वेस्टिगेटिव टीम (SIT) से मामले की जांच कराई जाए. इस दौरान अली खान अपने पोस्ट से संबंधित कोई दूसरा पोस्ट या आर्टिकल नहीं लिखेंगे. ना ही मीडिया में कोई बयान देंगे.

ये मामला एक सोशल मीडिया पोस्ट से जुड़ा है. 8 मई को प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद ने फेसबुक पर एक लंबा पोस्ट लिखा था. इस पोस्ट को लेकर उन पर आरोप लगे कि उन्होंने कर्नल सोफिया कुरैशी का अपमान किया. 18 मई को प्रोफेसर को गिरफ्तार किया गया था. इसके बाद हरियाणा की एक अदालत ने उन्हें 14 दिनों की ज्यूडिशियल कस्टडी में भेज दिया था.

‘इस समय ये सही नहीं...’

बुधवार, 21 मई को इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

हर किसी को अपनी बात कहने का अधिकार है. लेकिन क्या बेवजह इतने सांप्रदायिक मुद्दों पर बात करने का ये सही समय है? देश के सामने एक बड़ी चुनौती है. दुश्मन हमारे देश में घुस आए और हमारे लोगों पर हमला किया! वो (प्रोफेसर) इस मौके पर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश क्यों कर रहे हैं? 

शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि प्रोफेसर को इस बात को इस तरह से कहना चाहिए था, ताकि किसी की भावना को ठेस ना पहुंचे. कोर्ट ने कहा,

प्रोफेसर इस समय ये बयान क्यों दे रहे हैं? वो इंतजार कर सकते थे. हमें समझ में नहीं आता कि लोग इस स्थिति में ये बातें क्यों कह रहे हैं… हर कोई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात कर रहा है, ऐसा करने का अधिकार... आपका कर्तव्य कहां है! कोई भी अपनी राय दे सकता है लेकिन अभी क्यों? एक विद्वान प्रोफेसर के पास इस्तेमाल करने के लिए शब्दों की कमी नहीं हो सकती. आपको दूसरों को ठेस पहुंचाए बिना अपनी बात कहने का अधिकार है.

कोर्ट ने मामले की जटिलता को समझने के लिए एक SIT के गठन का आदेश दिया. उन्होंने कहा,

जटिलता को समझने और पोस्ट में इस्तेमाल की गई भाषा की उचित समझ के लिए, हम डीजीपी हरियाणा को तीन आईपीएस अधिकारियों की एक SIT गठित करने का निर्देश देते हैं जो हरियाणा या दिल्ली से संबंधित नहीं होंगे. SIT का नेतृत्व पुलिस महानिरीक्षक करेंगे और सदस्यों में से एक महिला अधिकारी होंगी.

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कई और भी सख्त टिप्पणियां कीं. आगे ये भी कहा,

वो बयान कहां है जिसमें उन्होंने (प्रोफेसर ने) महिला अधिकारियों का अपमान करने का प्रयास किया है? एफआईआर में कहा गया है कि वो महिलाओं का अपमान कर रहे हैं... लेकिन बयान कहां है?

वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट में प्रोफेसर का पक्ष रखा. उन्होंने कोर्ट में प्रोफेसर का पोस्ट पढ़कर सुनाया. इसके बाद उन्होंने तर्क दिया कि ये पोस्ट देशभक्ति से भरा हुआ है. उन्होंने आगे कहा,

जो लोग बिना सोचे समझे युद्ध की मांग कर रहे हैं... ये वाली टिप्पणी मीडिया के लिए है. यहां उन्हीं की बात की जा रही है.

हालांकि, कोर्ट इस बात से संतुष्ट नहीं दिखा. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा,

युद्ध के गंभीर परिणामों पर टिप्पणी करते हुए अब ये (प्रोफेसर) राजनीति पर उतर आए हैं? कृपया बयान फिर से पढ़िए. ये स्पष्ट है कि वो दक्षिणपंथी टिप्पणीकारों को संबोधित कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें: अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने 'ऑपरेशन सिंदूर' की प्रेस कॉन्फ्रेंस पर उठाए सवाल, पुलिस उठा ले गई

प्रोफेसर अली खान ने लिखा क्या था?

अपने पोस्ट में प्रोफेसर अली खान ने आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान की आलोचना की थी. उन्होंने कहा था कि 'ऑपरेशन सिंदूर' के जरिए भारत ने पाकिस्तान को सख्त संदेश दिया है कि अब से किसी भी तरह की आंतकी घटनाओं को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. इसी पोस्ट में कर्नल सोफिया कुरैशी का भी जिक्र किया गया था. साथ ही भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर भी टिप्पणी की गई थी.

प्रोफेसर ने अपने पोस्ट में लिखा था,

कुछ लोग बिना सोचे-समझे युद्ध की मांग कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने कभी युद्ध देखा नहीं है. मॉक ड्रिल में भाग लेने से कोई सैनिक नहीं बनता. युद्ध बहुत भयानक होता है. इसमें सबसे ज्यादा नुकसान गरीबों का होता है, और इसका फायदा सिर्फ राजनेताओं और डिफेंस कंपनियों को मिलता है. युद्ध कभी-कभी अनिवार्य हो जाता है, लेकिन ये भी सच है कि राजनीतिक समस्याओं का हल कभी सैन्य कार्रवाई से नहीं हुआ है.

उन्होंने कर्नल सोफिया कुरैशी का जिक्र करते हुए लिखा,

बहुत से दक्षिणपंथी विचारकों ने कर्नल सोफिया कुरैशी की तारीफ की, जो अच्छी बात है. लेकिन उनको उसी तरह उन लोगों के लिए भी आवाज उठानी चाहिए जो भारत में मॉब लिंचिंग, बुलडोजर एक्शन और नफरत की राजनीति के शिकार हुए हैं. दो महिला सैनिकों को प्रेस कॉन्फ्रेंस में रिपोर्ट पेश करना एक अच्छी बात है, लेकिन अगर जमीन पर हालात नहीं बदलते तो ये सब केवल दिखावा ही रहेगा.

प्रोफेसर ने AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी के बारे में लिखा,

जब एक प्रमुख मुस्लिम नेता ने ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ कहा तो पाकिस्तानियों ने उन्हें ट्रोल किया. इस पर भारतीय दक्षिणपंथी लोगों ने उनका बचाव ये कहकर किया कि ‘वो हमारे मुल्ला हैं.’ ये बात मजाक लग सकती है, लेकिन ये दिखाता है कि सांप्रदायिकता कितनी गहराई तक भारतीय राजनीति में घुस चुकी है.

पोस्ट के आखिर में भी उन्होंने उस प्रेस कॉन्फ्रेंस का जिक्र किया जिसकी बीफ्रिंग कर्नल सोफिया कुरैशी ने की थी. उन्होंने लिखा,

मेरे लिए ये प्रेस कॉन्फ्रेंस एक क्षणिक झलक थी, शायद एक भ्रम और संकेत. एक ऐसे भारत की जो उस तर्क को चुनौती देता है जिसके आधार पर पाकिस्तान बनाया गया था. सरकार मुसलमानों की जो स्थिति दिखाने की कोशिश कर रही है, वो जमीनी हकीकत से अलग है. लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस से ये भी पता चलता है कि भारत अपनी विविधता को लेकर एकजुट है और एक विचार के रूप में पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है.

उनके इस बयान के बाद 12 मई को स्वत: संज्ञान लेते हुए हरियाणा राज्य महिला आयोग ने नोटिस जारी किया था.

वीडियो: सवाल- प्रोफेसर खान के पोस्ट में क्या एंटी नेशनल था, रेणु भाटिया कोई जवाब ही नहीं दे पाईं

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement