'हमसे फायदा नहीं तो गठबंधन तोड़ दे', BJP से इतने खफा-खफा क्यों हैं संजय निषाद?
Sanjay Nishad का बयान सिर्फ एक नाराजगी नहीं, बल्कि भाजपा और निषाद पार्टी के रिश्तों में बढ़ती खटास का साफ संकेत है. संजय निषाद के बयान के कुछ ही देर बाद बीजेपी ने डैमेज कंट्रोल की शुरुआत कर दी.

उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों हलचल मची हुई है, और इसकी वजह हैं योगी आदित्यनाथ सरकार के कैबिनेट मंत्री और निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद. गोरखपुर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान संजय निषाद ने ऐसा बयान दे डाला कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) के खेमे में खलबली मच गई. उन्होंने खुलेआम कह दिया, "भाजपा को लगता है कि हम लोगों से फायदा नहीं, तो गठबंधन तोड़ दे."
यह बयान सिर्फ एक नाराजगी नहीं, बल्कि भाजपा और निषाद पार्टी के रिश्तों में बढ़ती खटास का साफ संकेत है. संजय निषाद के बयान के कुछ ही देर बाद बीजेपी ने डैमेज कंट्रोल की शुरुआत कर दी. इंडिया टुडे से जुड़े कुमार अभिषेक की रिपोर्ट के मुताबिक सूत्रों ने बताया कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष से लेकर प्रदेश के संगठन महामंत्री तक ने संजय निषाद से बात की कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि उन्होंने इतना बड़ा बयान भाजपा के खिलाफ दे दिया, वो भी मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र गोरखपुर से.
26 अगस्त को गोरखपुर में मीडिया से बात करते हुए संजय निषाद ने बीेजेपी पर भड़कते हुए कहा,
"भाजपा को लगता है कि हम लोगों से फायदा नहीं मिल रहा है तो गठबंधन तोड़ दे. क्यों छुटभैया नेता से अपशब्द करवा रहे हैं. राजभर को राजभर के नेता अपशब्द उल्ट-पुल्टा बोलते रहते हैं. RLD के एक नेता हैं बेचारे... जाटों का वोट दिलवाया RLD ने. क्या उनके नेता जो हैं जाट, उनकी पार्टी के खिलाफ बोलेंगे?"
आखिर क्यों भड़के संजय निषाद?
रिपोर्ट के मुताबिक, संजय निषाद को लगता है कि भाजपा अपने निषाद चेहरों को आगे कर निषाद पार्टी को कमजोर करने में जुटी है. यही नहीं, कई नेता ऐसे हैं जो बड़े नाम तो नहीं हैं, लेकिन निषाद पार्टी के नेताओं के बारे में जिलों में अनर्गल बयानबाजी कर रहे हैं और उन्हें बीजेपी के दूसरे नेता शह दे रहे हैं. इसी को लेकर भाजपा संजय निषाद के निशाने पर आ गई है.
रिपोर्ट के मुताबिक योगी सरकार में मंत्री जयप्रकाश निषाद और फतेहपुर की पूर्व सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति संजय निषाद के निशाने पर हैं. उनके अलग-अलग बयान पर संजय निषाद ने बीजेपी को घेर लिया है.
संजय निषाद ने आजतक से फोन पर बातचीत में बताया कि साध्वी निरंजन ज्योति ने उनके कुछ फैसलों पर सवाल उठाए हैं. मसलन, मछुआरों को नदियों में मुक्त अधिकार देने को साध्वी निरंजन ज्योति ने 'नदियों को बेच देना' करार दिया.
वहीं, योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री जेपी निषाद पर संजय निषाद ने कहा,
"जेपी निषाद मेरे परिवार पर अनर्गल बयान दे रहे हैं, जो कतई स्वीकार नहीं होगा. दूसरे दलों से आए पीयूष रंजन निषाद सरीखे नेता जिन्होंने निषाद पार्टी को हराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी, उन्हें भाजपा अपना शूटर बनाकर मेरे खिलाफ इस्तेमाल कर रही है. इसके अलावा संत कबीर नगर के बीजेपी के कई ब्राह्मण चेहरे और विधायकों ने निषाद पार्टी के खिलाफ काम किया है."
बता दें कि अभी हाल ही में निषाद पार्टी ने दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में अपना स्थापना दिवस मनाया था. इसमें राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के सभी सहयोगी दल मौजूद थे, लेकिन भाजपा का कोई नेता नहीं आया. इसे भी संजय निषाद ने मुद्दा बनाया और कहा कि क्या बीजेपी उनसे इतनी 'विरक्त' हो चुकी है कि उनके कार्यक्रम का बहिष्कार करने लगी है.
संजय निषाद ने एक तरह से सहयोगी दलों की तरफ से बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. राष्ट्रीय लोकदल (RLD) के सर्वोच्च नेता जयंत चौधरी के खिलाफ जिस तरीके की बात योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने कही, उससे भी संजय निषाद खफा हैं. उन्हें लग रहा है कि बीजेपी एक-एक करके अपने सहयोगियों को टारगेट कर रही है. बता दें कि लक्ष्मी नारायण चौधरी ने RLD के जयंत चौधरी को BJP के लिए 'पनौती' करार दिया था.
बीजेपी को भी लगने लगा है कि संजय निषाद की जो पकड़ निषाद वोटरों पर थी वो 2024 के लोकसभा चुनाव में ढीली पड़ गई है. इसकी वजह संजय निषाद का 'अपने परिवार के लिए ज्यादा प्रेम' माना जा रहा है. यानी जब-जब बीजेपी ने संजय निषाद को गठबंधन में कुछ दिया तो उन्होंने उसे सबसे पहले अपने परिवार में बांटा.
बीजेपी से गठबंधन होने के बाद संजय निषाद ने बेटे को भाजपा से सांसद बनाया. दूसरे बेटे को निषाद पार्टी से विधायक बनाया. संजय निषाद खुद MLC बने और मंत्री भी. रिपोर्ट कहती है कि परिवारवाद के आरोप लगने की वजह से उनका नुकसान होना भी शुरू हो गया है और निषाद वोटरों पर उनकी जबरदस्त पकड़ ढीली हुई है.
निषाद वोटों के अलम-बरदार होने का दावा करने वाले संजय निषाद के खिलाफ समाजवादी पार्टी ने भी इसी मुद्दे को खूब उछाला था. इसकी वजह से ही बीजेपी सभी निषाद सीटें हार गई, जबकि सपा सुल्तानपुर सीट भी निषाद चेहरे को हराकर जीत गई.
कहा जा रहा है कि शायद संजय निषाद को भी इसका एहसास अब तेजी से होने लगा है कि उनका परिवार प्रेम उनकी सियासत पर भारी पड़ रहा है. इसीलिए उन्होंने अपने बेटे को पार्टी के प्रभारी से हटा दिया, जो भाजपा में होते हुए भी निषाद पार्टी के प्रभारी पद पर तैनात थे.
रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले दिनों में संजय निषाद भाजपा पर और हमलावर होंगे, क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर बीजेपी के साथी बनकर वे सियासत करते रहे तो उनकी निषाद पॉलिटिक्स का नुकसान हो जाएगा. इसलिए, दूसरे सहयोगी दलों की तर्ज पर संजय निषाद भी अपनी अहमियत और पहचान अलग बनाए रखना चाहते हैं.
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