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28 साल की महिला रोज खा रही 70 रोटियां, फिर भी नहीं मिटती भूख, डॉक्टर्स भी उलझे

MP News: मंजू सौंधिया के घरवालों का कहना है कि दूसरी तरह की दवाएं लेने पर उन्हें लूज मोशन की समस्या होती है. इसलिए वो दवाएं नहीं ले पा रहीं. फिलहाल मंजू के परिवार वालों को सलाह दी गई है कि उनकी रोटी की आदत छुड़ाई जाए.

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28 साल की मंजू सौंधिया को तीन साल पहले ये समस्या आनी शुरू हुई थी. (फोटो- आजतक)
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पंकज शर्मा
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11 सितंबर 2025 (Published: 10:15 PM IST)
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मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले में एक महिला अजीब तरह की समस्या से जूझ रही है. वो दिनभर में 60 से 70 रोटियां खाती है. लेकिन इसके बावजूद कमजोरी महसूस करती रहती है. परिवार गरीब है, ऐसे में उनके सामने आर्थिक तंगी की भी समस्या आ रही है. डॉक्टर्स भी अभी तक उसकी इस समस्या का सही इलाज ढूंढ नहीं पाए हैं.

सुठालिया तहसील के नेवज गांव की रहने वाली 28 साल की मंजू सौंधिया एक हाउसमेकर हैं. उनके दो बच्चे हैं. तीन साल पहले तक वो बिल्कुल स्वस्थ थीं. लेकिन फिर उन्हें ये समस्या आने लगी. मंजू सौंधिया की दिनचर्या में ऐसी तब्दीली आई कि वो हर कुछ मिनट में रोटी खाती और पानी पीती रहती हैं.

बाद में मंजू सौंधिया को स्थानीय डॉक्टर्स को दिखाया गया. लेकिन फिर भी कोई हल न निकला. डॉ. कोमल दांगी ने आजतक को बताया कि छह महीने पहले मंजू उनके पास गई थीं. उन्हें घबराहट थी, ऐसे में भर्ती कर इलाज किया गया. कमजोरी की शिकायत के बाद उन्हें मल्टीविटामिन दवाएं दी गईं.

डॉ. कोमल दांगी का मानना है कि मंजू सौंधिया को साइकियाट्रिक डिसऑर्डर है. इसलिए उन्हें लगता है कि उन्होंने खाना नहीं खाया. मन को शांत करने के लिए वो बार-बार रोटी खाती हैं और पानी पीती हैं. डॉ. कोमल दांगी ने मंजू को भोपाल के मनोचिकित्सक आरएन साहू के पास जाने की सलाह दी थी.

लेकिन जब मनोचिकित्सक ने मंजू को देखा, तो उनका कहना था कि उन्हें कोई मानसिक बीमारी नहीं है. मंजू सौंधिया के घरवालों का कहना है कि दूसरी तरह की दवाएं लेने पर उन्हें लूज मोशन की समस्या होती है. इसलिए वो दवाएं नहीं ले पा रहीं. फिलहाल मंजू के परिवार वालों को सलाह दी गई है कि उनकी रोटी की आदत छुड़ाई जाए. इसके लिए उन्हें खिचड़ी, फल या अन्य खाद्य पदार्थ दिए जाएं. ताकि उनके मानसिक आदत को सुधारा जा सके.

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मंजू के भाई चंदरसिंह सौंधिया का कहना है कि मंजू की शादी सिंगापुरा के राधेश्याम सौंधिया से हुई थी. वो अब मायके और ससुराल आती-जाती रहती हैं. बच्चे ससुराल में ही रहते हैं. परिवार वालों ने भी बताया कि इलाज के दौरान उनकी आर्थिक स्थिति भी खराब हो गई है. अब वे सरकारी मदद की उम्मीद कर रहे हैं.

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