'पति पक्ष के खिलाफ FIR ट्रेंड बना', बॉम्बे HC ने आगे कहा- शादी कोई कानूनी जंग नहीं
Bombay High Court की Nagpur Bench ने सुनवाई के दौरान महिलाओं द्वारा पति के अधिक से अधिक रिश्तेदारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के ट्रेंड पर चिंता जाहिर की है.

'शादी एक पवित्र बंधन है, कोई कानूनी जंग नहीं,' ये कहना है बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच का. कोर्ट ने क्रूरता, अननेचुरल सेक्स और दहेज प्रताड़ना के एक मामले में सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक जीवन में होने वाली कलह आजकल समाज में एक खतरा बन गया है. दो लोगों के बीच छोटी-छोटी बातों पर लड़ाई के कारण विवाह की अवधारणा को धक्का लग रहा है. जबकि हिंदू धर्म में इसे एक पवित्र बंधन माना गया है.
जस्टिस नितिन सांबरे और जस्टिस महेंद्र नेरलिकर की बेंच ने सुनवाई के दौरान महिलाओं द्वारा पति के अधिक से अधिक रिश्तेदारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के ट्रेंड पर चिंता जाहिर की है. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक विवाद के मामलों को एक अलग नजरिए से देखने की जरूरत है. 8 जुलाई को जारी किए गए आदेश में कोर्ट ने कहा
खारिज की एफआईआरयह बताने की जरूरत नहीं है कि पति पक्ष के कई व्यक्तियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने के हालिया ट्रेंड को देखते हुए, वैवाहिक विवादों के मामलों को एक अलग दृष्टिकोण से देखना जरूरी हो गया है. यदि पक्षकार शांति से रहने के लिए अपने विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लेते हैं, तो न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह प्रथम सूचना रिपोर्ट, आरोप पत्र या आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के अनुरोध पर विचार करके ऐसी कार्रवाईयों को प्रोत्साहित करे.
8 जुलाई 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच 'दहेज उत्पीड़न' के एक मामले में सुनवाई कर रही थी. इस मामले में नागपुर के बेलतरोड़ी थाने में एक महिला ने अपने पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ मामला दर्ज कराया था. एफआईआर के मुताबिक IPC की इन धाराओं में मामला दर्ज हुआ.
- सेक्शन 498-A : शादीशुदा महिला से पति या रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता
- सेक्शन 377 : अप्राकृतिक यौन संबंध
- सेक्शन 34 : किसी कॉमन इरादे को आगे बढ़ाने के लिए कई व्यक्तियों द्वारा किया गया काम
- दहेज रोकथाम कानून : सेक्शन 3 और 4
इन सेक्शंस के तहत महिला ने अपने पति, पति की बहनों और सास पर एफआईआर की थी. लेकिन सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया. एफआईआर खारिज करने का आदेश देते हुए 19 पन्नों के अपने आदेश में जस्टिस नेरलिकर ने कहा कि आजकल वैवाहिक जीवन में होने वाली कलह कई कारणों से समाज में एक समस्या बन गई है. इन वैवाहिक कलहों के कारण झगड़ रहे पक्षों के पास कानून में कई उपाय उपलब्ध हैं. दोनों के बीच की छोटी-छोटी बातें पूरी जिंदगी बर्बाद कर रही हैं. इसकी वजह से हिंदुओं में पवित्र माना जाने वाला विवाह भी खतरे में हैं.
जस्टिस नेरलिकर ने आगे कहा कि शादी एक सोशल कॉन्ट्रैक्ट मात्र नहीं है. ये एक आध्यात्मिक मिलन है जो दो आत्माओं को एक साथ जोड़ता है. हालांकि, आजकल उपरोक्त परिस्थितियों (वर्तमान केस) में इस पवित्रता को धक्का लगा है. दो व्यक्तियों के बीच तनाव और सामंजस्य की कमी इस तरह के संघर्ष का कारण बनती है.
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इस मामले में दोनों पक्षों के बीच समझौते पर जोर देते हुए कोर्ट ने कहा कि इस तरह के मामलों में अदालत एक सम्मानजनक समझौते का समर्थन करती है. कोर्ट ने पाया कि दोनों पक्षों ने अपने विवाद सुलझाकर ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहां वो अतीत में हुए विवादों को भुलाकर जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं. कोर्ट ने कहा,
ऐसी स्थिति में जहां वैवाहिक बंधन आपसी सहमति से समाप्त हो चुका है और पक्षकार अपने-अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए उत्सुक हैं. इसके अलावा, यदि आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की प्रार्थना पर विचार नहीं किया जाता है, तो यह उनके साथ अन्याय करने के समान होगा. इसलिए, पूर्ण न्याय करने के लिए, पिछले निर्णयों का सहारा लेकर, इस कार्यवाही को रद्द करने की प्रार्थना पर विचार किया जा सकता है.
न्यायाधीशों ने कहा कि इस मामले में, शिकायतकर्ता पत्नी ने एक हलफनामा दायर किया है और अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने पर कोई आपत्ति नहीं जताई है. बेंच ने कहा कि दोनों पक्षो के बीच यह समझौता बिल्कुल 'वास्तविक' था.
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