RSS के सौ साल: मोहन भागवत ने गांधी, टैगोर और हिंदूराष्ट्र का जिक्र कर बहुत कुछ साफ कर दिया
‘हिंदू’ होने की व्याख्या करते हुए भागवत ने कहा, “इसका मतलब है कि अपने-अपने रास्ते से चलो. अपना जो रास्ता मिला है स्वाभाविक रूप से उस पर श्रद्धा रखो. बदलो मत और न दूसरे को बदलो. दूसरों की श्रद्धा को स्वीकार करो और उसका अपमान न करो. ये परंपरा जिनकी है वो हिंदू हैं.”

RSS प्रमुख मोहन भागवत का कहना है कि देश और समाज की जागृति राजनीति से नहीं होगी, बल्कि समाज में स्थानीय नेतृत्व खड़ा करना होगा. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 साल पूरे होने जा रहे हैं. इस मौके पर सरसंघचालक मोहन भागवत ने दिल्ली में आयोजित ‘व्याख्यानमाला’ में लोगों को संबोधित किया. इसमें उन्होंने महात्मा गांधी, रवींद्रनाथ टैगोर और हिंदूराष्ट्र के हवाले से काफी कुछ कहा.
मोहन भागवत ने टैगोर के ‘स्वदेशी समाज’ निबंध का हवाला देते हुए कहा कि गांव-गांव गली में ऐसे नायक चाहिए, जिनका चरित्र शुद्ध हो और जो देश के लिए जीवन-मरण का वरण करता है. संघ प्रमुख ने आगे कहा कि ऐसे नायकों के जीवन से जो वातावरण बनता है, समाज उससे ही अपनी कृति बदलता है.
देश निर्माण में समाज की भूमिका पर जोर देते हुए मोहन भागवत ने कहा,
हमें ठेका देने की आदत लग गई है. हम नेता को, पार्टी को या सरकार को देश बनाने का ठेका दे देते हैं कि तुम देश का कल्याण करो. और खुद क्या करते हैं? मीनमेख निकालकर केवल चर्चा करते रहते हैं. जैसे हम होंगे. वैसे ही हमारे प्रतिनिधि होंगे. वैसी पार्टियां होंगी और वैसे ही नेता होंगे.
मोहन भागवत ने कहा कि भारत पर अनेक लोगों ने राज किया. अंग्रेजों और तुर्कों से लेकर भारत में हजारों राजा हुए. फिर भी राष्ट्र के रूप में यह देश हमेशा से एक था. अलग-अलग समय पर देश में अनेक राजा और अनेक व्यवस्थाएं थीं, लेकिन फिर भी यहां एक ‘राष्ट्र’ था. महात्मा गांधी के हिंद स्वराज के एक हिस्से का जिक्र करते हुए भागवत ने कहा,
“गांधी जी ने लिखा है कि ‘एक युवा वृद्ध से कहता है- अंग्रेजों के आने के कारण देश में रेलवे लाइन आ गई और सारा देश एक बन गया. इस पर गांधीजी उत्तर देते हैं कि ये बात भी तुम्हें अंग्रेजों ने सिखाई है. क्योंकि, अंग्रेजों के आने से बहुत पहले भी हमारा देश एक था.’”
मोहन भागवत ने 'हिंदूराष्ट्र' पर भी बात की. कहा कि इसे लेकर सवाल उठते रहते हैं लेकिन इसका राजनीतिक सत्ता से कोई लेना-देना नहीं है. उन्होंने कहा,
राष्ट्र का हम ट्रांसलेशन करते हैं नेशन. ये कॉन्सेप्ट वेस्टर्न है. नेशन के साथ स्टेट जुड़ता है जबकि राष्ट्र के साथ स्टेट आवश्यक नहीं है. हमारा राष्ट्र पहले से है. ‘हिंदू’ शब्द निकालकर आप विचार करेंगे तो भी हमारा एक राष्ट्र है.
सरसंघचालक ने आगे कहा कि हिंदूराष्ट्र शब्द का सत्ता से कोई मतलब नहीं है. हिंदूराष्ट्र के विद्यमान रहते जो-जो शासन रहा है, वो शासन हमेशा पंथ और संप्रदाय का विचार करने वाला शासन नहीं रहा है. उसमें सबके लिए न्याय समान है. इसलिए जब हिंदूराष्ट्र कहते हैं तो किसी को छोड़ नहीं रहे हैं और किसी का विरोध भी नहीं कर रहे हैं.
‘हिंदू’ होने की व्याख्या करते हुए भागवत ने कहा, “इसका मतलब है कि अपने-अपने रास्ते से चलो. अपना जो रास्ता मिला है स्वाभाविक रूप से उस पर श्रद्धा रखो. बदलो मत और न दूसरे को बदलो. दूसरों की श्रद्धा को स्वीकार करो और उसका अपमान न करो. ये परंपरा जिनकी है वो हिंदू हैं.”
भागवत ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूरे भारत में सबको संगठित करने के लिए है. 142 करोड़ लोगों का देश है तो यहां बहुत से मत होंगे ही. मत अलग होना अपराध नहीं है. ये तो प्रकृति का दिया गुण है. अलग-अलग विचार एक साथ सुने जाते हैं और फिर सहमति बनती है तो उससे प्रगति होती है.
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