ये 13 लाख लोग अब क्या करेंगे? ट्रंप के टैरिफ से भारत का कालीन उद्योग परेशान
भारत पर लगाए गए नए टैरिफ से Bhadohi Carpet Industry पर भी संकट के बादल छा गए हैं. काम लगभग ठप होने की कगार पर है. जिससे लाखों कामगारों की नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं.
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भारत को आज यानी 27 अगस्त से अमेरिका के 50 प्रतिशत के भारी टैरिफ (US Tariff) का सामना करना पड़ रहा है. नए टैरिफ के बाद से अमेरिकी बाजार में भारतीय उत्पादों का निर्यात बहुत मुश्किल हो जाएगा. इन उत्पादों में कपड़े, टेक्सटाइल, हीरे-जवाहरात, झींगे, कालीन और फर्नीचर शामिल हैं. भारत पर लगाए गए नए टैरिफ से भारतीय कालीन उद्योग (Indian Carpet Industry) पर भी संकट के बादल छा गए हैं. काम लगभग ठप होने की कगार पर है. जिससे लाखों कामगारों की नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं.
आजतक से जुड़े महेश जायसवाल की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय कालीन का 60 फीसदी हिस्सा अकेले अमेरिका में निर्यात किया जाता है. भारत के कश्मीर, जयपुर, पानीपत, आगरा, वाराणसी, मिर्जापुर और भदोही में बने कालीन विदेशों में निर्यात किए जाते हैं. दावा है कि कुल निर्यात का अकेले 60 फीसदी हिस्सा भदोही कालीन उद्योग का है. ऐसे में अमेरिका के टैरिफ वार से भारतीय कालीन की कीमत अमेरिकी बाजारों में अचानक बढ़ गई है.

रिपोर्ट के मुताबिक, कालीन निर्यातकों का मानना है टैरिफ लगने के बाद अमेरिकी व्यापारी कालीनों के आयात से कतराने लगे हैं. जो थोड़े बहुत अमेरिकी इंपोर्टर रुचि दिखा भी रहे हैं, तो वो अपने नुकसान की भरपाई भारतीय निर्यातकों से कराना चाहते हैं. जिस वजह से सौदा घाटे का साबित हो रहा है. इसलिए, बड़े पैमाने पर तैयार माल कंपनियों में डंप हो रहा है.

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पड़ोसी देशों को होगा फायदाकालीन निर्यात संवर्धन परिषद के सदस्य और एक्सपोर्टर असलम महबूब ने बताया कि अमेरिकी टैरिफ से जहां एक तरफ भारतीय कालीन उद्योग का नुकसान हो रहा है. वहीं, भारत के प्रतिस्पर्धी और पड़ोसी देशों को इससे फायदा पहुंचेगा. चूंकि इन देशों पर अमेरिका ने भारत की अपेक्षा कम टैरिफ लगाया है. इसलिए पाकिस्तान और अफगानिस्तान के हाथ से बने कालीन, जबकि चीन और तुर्किए के मशीन से बने कालीनों की मांग अमेरिकी बाजारों में बढ़ जाएगी. जिससे पड़ोसी देशों को फायदा होगा. उन्होंने सरकार से मांग करते हुए कहा,
सरकार टैरिफ पर 50 फीसदी का बेल आउट पैकेज दे और बंद पड़ी पुरानी इंसेंटिव स्कीम को दोबारा शुरू करे. जिससे उद्योग को बर्बाद होने से बचाया जा सके.

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ये 13 लाख लोग अब क्या करेंगे?कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के सदस्य और एक्सपोर्टर संजय गुप्ता ने बताया कि इस उद्योग में ग्रामीण स्तर के लोग अपनी आजीविका चला रहे हैं. उन्होंने कहा कि अमेरिका ने जो भारत पर टैरिफ लगाया है, यह बहुत ही गलत है. आगे कहा,
यह सीधा-सीधा कालीन उद्योग और बुनकरों पर हमला है. यह ऐसा सेक्टर है, जहां ग्रामीण भारत के 20 लाख लोग काम करते हैं. एक्सपोर्ट का 60 फीसदी हिस्सा अमेरिका जाता है, इसलिए 13 लाख लोग सीधे तौर पर अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं.
उन्होंने कहा कि अगर 13 लाख लोग बेरोजगार होते हैं, तो वे किसी न किसी तरीके से अपनी जीविका के लिए मुंबई और दिल्ली के लिए पलायन करेंगे. असलम महबूब ने कहा कि भारत में जब सुई भी नहीं बनती थी, तब भी कालीन बनते थे. इसका इतिहास 400–500 साल पुराना है. यह भारत की हैरिटेज है, प्राइड है, जो अब खतरे में आ गया है. इसे आगे बढ़ाने का काम सरकार का है.
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