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लोगों को परेशान मत कीजिए... बॉम्बे हाई कोर्ट ने ED को खूब सुनाया, एक लाख का जुर्माना भी लगा दिया

Bombay HC ED: कोर्ट में जज ने ED के एक्शन को ‘दुर्भावनापूर्ण’ बताते हुए कहा- ‘मुझे ऐसा कॉस्ट लगाना ही होगा, जो मिसाल बने.’

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Court Imposes Rs 1 Lakh Cost On ED
ED और शिकायतकर्ता पर एक-एक लाख का जुर्माना लगाया गया है. (प्रतीकात्मक फ़ोटो - PTI)
22 जनवरी 2025 (Published: 04:18 PM IST) कॉमेंट्स
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बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए जांच एजेंसी ED को कड़ी फटकार लगाई है (Bombay High Court on ED). कोर्ट ने कहा है कि ED जैसी एजेंसियों को एक कड़ा संदेश दिया जाना चाहिए, ताकि वो कानून के दायरे में रह कर काम करें. एजेंसियां कानून अपने हाथ में नहीं ले सकतीं और इस तरह नागरिकों को प्रताड़ित नहीं कर सकतीं.

कोर्ट ने ED पर एक रियल्टी डेवलपर के ख़िलाफ़ (बिना विवेक का प्रयोग किए) जांच शुरू करने पर एक लाख रुपये का कॉस्ट लगाया है. साथ ही, शिकायतकर्ता पर एक लाख रुपये का कॉस्ट लगाया गया है. मामला मुंबई के रियल एस्टेट डेवलपर राकेश जैन और एक खरीदार के बीच का था. 21 जनवरी को बॉम्बे हाई कोर्ट में जस्टिस मिलिंद जाधव की सिंगल बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी.

Bombay HC ने ED को क्या सुनाया?

बॉम्बे हाई कोर्ट ने राकेश जैन को जारी नोटिस को रद्द कर दिया है. इस दौरान पीठ ने कोर्ट ने ED के एक्शन को ‘दुर्भावनापूर्ण’ बताते हुए कहा- ‘हमें ऐसा कॉस्ट लगाना ही होगा, जो मिसाल बने.’ लाइव लॉ की ख़बर के मुताबिक़ कोर्ट ने आगे कहा,

ED ने और शिक़ायतकर्ता ने जो भी किया है सबकुछ ‘बदनीयती’ से किया है (ग़लत नीयत से). मनी लॉन्ड्रिंग की साजिश छिपकर रची जाती है और अंधेरे में अंजाम दी जाती है. लेकिन हमारे सामने पेश ये मामला PMLA कानून लागू करने की आड़ में अत्याचार का एक क्लासिक उदाहरण है.

Prevention of Money Laundering Act(PMLA) यानी धन शोधन निवारण अधिनियम. ये वही एक्ट है, जिसके तहत मनी लॉन्ड्रिंग के ख़िलाफ़ ED अमूमन एक्शन लेती है. जज ने मनी लॉन्ड्रिंग को लेकर इस बात को पॉइंट आउट किया कि ये अपराध तब माना जाता है, जब कोई जानबूझकर अपने निजी फायदे के लिए पूरे राष्ट्र या समाज के हितों को ताक पर रख दे.

मिलिंद जाधव की सिंगल बेंच ने आगे कहा,

इस केस में धोखाधड़ी का कोई भी फैक्ट मौजूद नहीं हैं. ऐसा कोई कानून नहीं है, जो डेवलपर को बिक्री समझौते (सेल अग्रीमेंट) करने और उसी प्रॉपर्टी में अतिरिक्त सुविधाओं/मरम्मत के लिए किसी अलग यूनिट से डील करने से रोकता हो. मुंबई शहर में विकास इसी तरह होता है.

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पूरा मामला क्या है?

दरअसल, ED रियल एस्टेट डेवलपर राकेश जैन के ख़िलाफ़ मनी लॉन्ड्रिंग जांच शुरू की थी. राकेश के ख़िलाफ़ विले पार्ले पुलिस स्टेशन में एक प्रॉपर्टी खरीदार ने शिकायत दर्ज कराई थी. इस शिकायत में खरीदार ने राकेश के ख़िलाफ़ समझौते के उल्लंघन और धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया था. शिकायत में कहा गया कि खरीदार ने राकेश से दो फ्लोर खरीदे और 4 करोड़ रुपये में रेनोवेशन का अग्रीमेंट किया.

अग्रीमेंट के तहत काम पूरा कर 2007 तक खरीदार को कब्ज़ा सौंप दिया जाना था. मगर रियल एस्टेट डेवलपर राकेश जैन ने देरी कर दी. उसकी दलील थी कि खरीदार के कहने के चलते फ्लोर में बड़े-बड़े बदलाव हुए, जिससे ऑक्यूपेशन सर्टिफ़िकेट (OC) नहीं जारी की जा सकी. इसी पर खरीदार ने राकेश के ख़िलाफ़ चीटिंग का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी. शिकायत के आधार पर पुलिस ने चार्जशीट दायर की. जिसे 2012 में ED को सौंप दिया गया.

रिपोर्ट्स बताती हैं कि ED ने अपनी जांच में पाया कि खरीदार के पैसों से डेवलपर राकेश ने अन्य प्रॉपर्टीज़ खरीद ली हैं. ऐसे में स्पेशल PMLA कोर्ट ने उन प्रॉपर्टीज़ को जब्त करने का आदेश दे दिया. ये ऑर्डर 08 अगस्त, 2014 को जारी किया गया था. फिर इसी ऑर्डर के खिलाफ़ राकेश बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंचे. इसी पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने उसकी इस अपील पर सुनवाई की. वहीं, डेवलपर के ख़िलाफ़ चल रही कार्यवाहियों (Proceedings) को ख़ारिज कर दिया है.

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