The Lallantop
Advertisement

गुजारा भत्ता की 'बढ़ती' डिमांड से परेशान थे अतुल सुभाष, मेंटनेंस लॉ के तहत ये कैसे तय होता है?

अतुल ने अपने वीडियो में आरोप लगाया कि पत्नी उनसे ‘हमेशा पैसों की डिमांड’ करती रहती थी. उन्होंने निकिता को ‘लाखों रुपये’ दिए भी, लेकिन जब उन्होंने पैसे देने बंद कर दिए तो निकिता साल 2021 में उनके ‘बेटे को साथ में ले घर छोड़कर चली गईं’.

Advertisement
atul subhash modi murder case which includes maintenance law given by indian constitution
अतुल सुभाष ने सोशल मीडिया पर वीडियो अपलोड करके अपनी दास्तान बताई जिसमें मेंटेंनेंस देने की बात कही गई. (तस्वीर:सोशल मीडिया)
pic
शुभम सिंह
11 दिसंबर 2024 (Published: 11:15 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

बिहार के इंजीनियर अतुल सुभाष की मौत (Atul Subhash Suicide) के बाद मामले में लगातार नए अपडेट आ रहे हैं. अतुल ने 9 दिसंबर को 24 पन्नों का सुसाइड नोट और 90 मिनट का वीडियो बनाने के बाद अपनी जान दे दी. वीडियो और सुसाइड नोट में उन्होंने अपनी पत्नी निकिता सिंघानिया पर दहेज उत्पीड़न के झूठे केस में फंसाने का आरोप लगाया है. एक आरोप मेंटेनेंस को लेकर भी है. भारत का कानून मेंटेनेंस यानी भरण पोषण को लेकर क्या कहता है? और इस कानून में क्या पेच हैं?

"40 हज़ार देता हूं, 4 लाख रुपये की डिमांड कर रही थी"

बेंगलुरु में एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाले अतुल सुभाष ने 9 दिसंबर को करीब 90 मिनट का वीडियो अपलोड किया. बताया कि निकिता और वो बेंगलुरु में जॉब करते थे. दोनों की मुलाकात एक मैट्रिमोनियल साइट पर मैचिंग के बाद हुई थी. अप्रैल 2019 में उन्होंने शादी कर ली. अगले साल उनको बेटा हुआ. 

अतुल ने अपने वीडियो में आरोप लगाया कि पत्नी उनसे ‘हमेशा पैसों की डिमांड’ करती रहती थी. उन्होंने निकिता को ‘लाखों रुपये’ दिए भी, लेकिन जब उन्होंने पैसे देने बंद कर दिए तो निकिता साल 2021 में उनके ‘बेटे को साथ में ले घर छोड़कर चली गईं’.

अतुल ने अपने वीडियो में कहा कि पत्नी उन्हें बेटे से न मिलने देती है, न कभी उससे बात कराती है. मृतक ने ये भी आरोप लगाया कि वो पत्नी को प्रति माह 40 हजार रुपये बतौर मेंटेनेंस देते थे, लेकिन बाद में वो बच्चे को पालने के लिए हर महीने ‘2 से 4 लाख रुपये’ की डिमांड कर रही है. आजतक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, निकिता सिंघानिया ने अतुल पर 2 लाख रुपये महीना मेंटेनेंस का केस भी दायर किया था.

अतुल के वकील ने क्या कहा?

11 दिसंबर को उनके वकील दिनेश कुमार मिश्रा का भी बयान सामने आया है. उन्होंने कहा,

“बेंगलुरु में काम करने वाले अतुल की तनख्वाह 84 हजार रुपये महीना थी. निकिता सिंघानिया ने उनके खिलाफ (CrPC की धारा) 125 के तहत मेंटेनेंस का मुकदमा दायर किया था. कोर्ट ने सभी सबूतों के आधार पर बेटे के लालन-पालन के लिए हर महीने 40 हजार के मेंटेनेंस का ऑर्डर किया. चूंकि निकिता खुद कमा रही थी इसलिए उसके मेंटेनेंस का ऑर्डर नहीं किया गया. वह अपना खुद का खर्चा उठाने में सक्षम थी.”

क्या है CrPC 125?

CrPC की धारा 125 के तहत अदालत उन लोगों को भरण-पोषण के लिए भत्ते का अधिकार देती है जो इसमें असमर्थ हैं. जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की घर, कपड़ा, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए आर्थिक मदद करता है तो उसे मेंटेनेंस कहते हैं. CrPC 125 के तहत केवल पत्नी ही पति से मेंटेनेंस की डिमांड कर सकती है. इस धारा के तहत ये सभी लोग मेंटेनेंस की मांग कर सकते है.

# पत्नी और तलाकशुदा पत्नी (बशर्ते उसने दूसरी शादी ना की हो)
# नाबालिग संतान
# बालिग संतान (सिवाय शादीशुदा बेटी के), जो किसी शारीरिक या मानसिक दिक्कत के कारण अपना भरण-पोषण नहीं कर पा रहे हैं. 
# माता-पिता, जो अपना भरण-पोषण नहीं कर पा रहे हैं.

भत्ते पाने के लिए, इन सभी लोगों के पास आजीविका का कोई साधन नहीं होना चाहिए. तलाकशुदा मुस्लिम महिला भी CrPC की धारा 125 के तहत अपने अधिकारों के लिए मजिस्ट्रेट के पास जा सकती है. यह प्रावधान भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता (BNSS) में धारा 144 के तहत दिया गया है.

भारतीय कानून में मेंटेनेंस के लिए एक और प्रावधान है. यह प्रावधान हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act) के तहत दिया गया है. इसके मुताबिक, पति और पत्नी दोनों एक-दूसरे से मेंटेनेंस की डिमांड कर सकते हैं. इस कानून के तहत दो प्रकार के मेंटेनेंस होते हैं.

अंतरिम भत्ता

हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 24 के तहत अंतरिम भत्ता दिया जाता है. इसके तहत, जब तक मेंटेनेंस का केस चल रहा हो तब तक पति या पत्नी में से कोई भी अदालत से गुजारा भत्ता और मुकदमे के खर्च की डिमांड कर सकता है. बशर्ते, खर्च मांगने वाला आर्थिक रूप से कमजोर हो और खुद का खर्च नहीं उठा सकता हो. यह मेंटेनेंस अस्थायी होता है और मुकदमा चलने तक ही लागू रहता है.

अदालत यह देखती है कि भरण-पोषण मांगने वाला पक्ष आर्थिक रूप से कमजोर है और उसे दूसरे पक्ष से सहायता की आवश्यकता है. अदालत यह भी तय करती है कि मुकदमे के दौरान आवश्यक कानूनी खर्चों के लिए कितने पैसे दिए जाएं.

परमानेंट मेंटेनेंस भत्ता

हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 25 के तहत परमानेंट मेंटेनेंस का प्रावधान है. केस खत्म होने के बाद अदालत यह तय करती है कि आर्थिक रूप से कमजोर पक्ष को एकमुश्त राशि दी जाए या नियमित अंतराल पर भरण-पोषण प्रदान किया जाए. अदालत दोनों पक्षों की आय, संपत्ति और आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर यह फैसला देती है. पुनर्विवाह की स्थिति में या मेंटेनेंस की सुविधा लेने वाला जब खुद सक्षम हो जाता है तो भरण-पोषण बंद किया जा सकता है.

दिक्कतें क्या हैं?

कितना मेंटेनेंस देना होता है इसका कोई फिक्स अमाउंट तय नहीं किया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में यह राशि सैलेरी की 25 प्रतिशत तय की है. यानी पति को अपनी हर महीने की तनख्वाह का एक चौथाई हिस्सा अपनी पत्नी को मेंटेनेंस के रूप में देना होगा. लेकिन मेंटेनेंस खर्च देने के दौरान कई मामलों में दिक्कतें भी आती हैं. ज्यादातर केसों में देखा जाता है कि जब कोर्ट मेंटेनेंस देने का आदेश पति को दे देता है तब उसकी तरफ से आनाकानी की जाती है. लेकिन कानून कहता है कि कोर्ट ने अगर एक बार आदेश दे दिए तो पति उससे बच नहीं सकता.

अगर अतुल सुभाष का ही मामला देखें तो उनके वकील ने कहा,

“40 हजार रुपये मेंटेनेंस देने का आदेश दिया गया था. अगर यह उसे ज्यादा लगा और उसने इस आधार पर सुसाइट की है तो इसमें कोर्ट की गलती नहीं है.”

उन्होंने कहा कि अगर कोर्ट का आदेश गलत लग रहा है तो हाई कोर्ट जाकर अपील कर सकते थे. और वहां 40 हजार रुपये को कम कराने की दरख्वास्त कर सकते थे.

‘लाइव लॉ’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, हाई कोर्ट में जाकर अपील लगाने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं होता है. अगर कोर्ट पुनर्विचार याचिका स्वीकार कर मेंटेनेंस के आदेश को निरस्त कर देता है, तब मेंटेनेंस नहीं देना होता. लेकिन अगर कोर्ट ने आदेश नहीं दिया तो मेंटेनेंस देना ही पड़ता है. 

वीडियो: धारा 498A पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या टिप्पणी की?

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement