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दुनिया में 100 करोड़ लोग मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर्स से परेशान, WHO की रिपोर्ट में बड़े खुलासे

मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर्स का असर इंसान के सोचने-समझने की क्षमता, व्यवहार और इमोशंस पर पड़ता है. इंसान डिप्रेशन और एंग्ज़ायटी महसूस करता है. ये दोनों ही कंडीशंस दुनिया में बहुत आम हैं.

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who says over a billion people living with mental health disorders like anxiety and depression
एंग्ज़ायटी और डिप्रेशन हर उम्र के व्यक्ति को हो सकता है (फोटो: Freepik)
5 सितंबर 2025 (Published: 03:02 PM IST)
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पूरी दुनिया में 100 करोड़ से ज़्यादा लोग मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर्स से जूझ रहे हैं. ये कहना है WHO यानी वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन का. संस्था ने 2 सितंबर को मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर्स से जुड़े कुछ आंकड़े जारी किए हैं. 

मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर्स का असर इंसान के सोचने-समझने की क्षमता, व्यवहार और इमोशंस पर पड़ता है. इंसान डिप्रेशन और एंग्ज़ायटी महसूस करता है. ये दोनों ही कंडीशंस दुनिया में बहुत आम हैं. ये किसी भी उम्र और आय वर्ग के लोगों को हो सकती हैं.

WHO की रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे आम मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर एंग्ज़ायटी और डिप्रेशन हैं. साल 2021 में ये दोनों मेंटल हेल्थ से जुड़ी दो-तिहाई कंडीशंस के लिए अकेले ज़िम्मेदार थे. 2011 से 2021 के बीच जितनी तेज़ी से दुनिया की आबादी बढ़ी, उतनी ही तेज़ी से मेंटल डिसऑर्डर्स से जूझ रहे लोगों की संख्या भी बढ़ी.

पुरुषों में ADHD यानी अटेंशन-डेफिसिट/हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर, ऑटिज़्म और इडियोपैथिक डिसऑर्डर ऑफ इंटेलेक्चुअल डिवेलपमेंट ज़्यादा पाया गया. इडियोपैथिक डिसऑर्डर ऑफ इंटेलेक्चुअल डिवेलपमेंट का मतलब है, जब किसी व्यक्ति में इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी हो, लेकिन उसकी वजह पता न चल पाए.

वहीं महिलाओं में एंग्ज़ायटी, डिप्रेशन और ईटिंग डिसऑर्डर ज़्यादा पाया गया.

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 50 से 69 साल के लोगों को डिप्रेशन सबसे ज़्यादा होता है (फोटो: Freepik)

एंग्ज़ायटी के लक्षण आमतौर पर डिप्रेशन से पहले दिखाई देते हैं. मगर 40 साल के बाद, डिप्रेशन के मामले एंग्ज़ायटी से ज़्यादा पाए जाते हैं. 50 से 69 साल के लोगों को डिप्रेशन सबसे ज़्यादा होता है.

WHO की रिपोर्ट बताती हैं कि युवाओं में मौत की एक बड़ी वजह यही है. दुनियाभर में, हर 100 में से 1 मौत खुद की जान लेने से होती है. यहां तक कि एक इंसान औसतन 20 बार कोशिश करता है. सिर्फ 2021 में करीब 7 लाख 27 हज़ार लोगों ने अपनी जान ले ली. 15 से 29 साल की महिलाओं में जान जाने की ये दूसरी सबसे बड़ी वजह थी. इसी ऐज ग्रुप के पुरुषों में मौत की ये तीसरी सबसे बड़ी वजह थी.

रिपोर्ट में कोविड-19 का भी ज़िक्र हुआ है. दरअसल उस वक्त एक्सपर्ट्स आशंका जता रहे थे कि कोविड-19 महामारी के दौरान लोगों में स्वेच्छा से जीवन समाप्त करने की दर बढ़ जाएगी. वजह? लोगों का अलग-थलग रहना यानी सोशल आइसोलेशन, अकेलापन, घरेलू हिंसा, नौकरी जाना और आर्थिक तंगी वगैरह.

लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बस एक एक्सेप्शन था. दिल्ली. यहां महिलाओं में अपनी जान लेने के मामले बढ़ गए.

ये तो तय है, मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर्स एक बड़ी आबादी को प्रभावित करते हैं. इसके बावजूद देश अपने हेल्थ बजट का सिर्फ 2% ही मेंटल हेल्थ पर खर्च करते हैं. और, डिप्रेशन से जूझ रहे सिर्फ 9% लोगों का ही सही इलाज हो पाता है. 

भारत में कितने लोग डिप्रेशन से जूझ रहे हैं. WHO की रिपोर्ट में इसका जिक्र नहीं है. पर साल 2019 में Indian Journal of Psychiatry में एक स्टडी छपी थी. इसमें WHO के हवाले से बताया गया था कि भारत में साढ़े 5 करोड़ से ज़्यादा लोग डिप्रेशन से जूझ रहे हैं. वहीं साढ़े 3 करोड़ से ज़्यादा लोग एंग्ज़ायटी से जूझ रहे हैं.  

ये तो केवल रिपोर्टेड डेटा है. सोचिए! हमारे देश में कितने सारे लोग चुपचाप एंग्जायटी, डिप्रेशन जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं. इसलिए अगर आप या आपके आसपास कोई डिप्रेशन या एंग्ज़ायटी से ग्रसित है, तो हालत बिगड़ने का इंतज़ार न करें. तुरंत किसी मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट से मिलें ताकि इन डिसऑर्डर्स को बढ़ने से रोका जा सके.

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