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न दर्द न चीरा, आरामदायक है पानी में बच्चे की डिलीवरी, लेकिन किसे करानी चाहिए?

वॉटर बर्थ डिलीवरी में प्रेग्नेंट महिला को पानी से भरे एक टब में बिठाया जाता है. इसी में बच्चे का जन्म होता है. वॉटर बर्थ डिलीवरी, बाकी दोनों डिलीवरी की तुलना में आरामदायक होती है.

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what is water birth delivery and how it is done
वॉटर बर्थ डिलीवरी बहुत आरामदायक होती है (फोटो: Getty Images)
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अदिति अग्निहोत्री
10 जून 2025 (Published: 05:01 PM IST)
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जब बच्चा पैदा होता है, तो मां को बहुत दर्द होता है. अक्सर महिलाएं कहती हैं कि ये दर्द कई हड्डियां टूटने जैसा होता है. ऐसा लगता है, जैसे जान निकल जाएगी. नॉर्मल डिलीवरी में ये भयंकर दर्द, बच्चे के बाहर आने तक रहता है.

अगर महिला का सी-सेक्शन यानी सिज़ेरियन डिलीवरी हो रही है तब दर्द तो ज़्यादा महसूस नहीं होता. लेकिन, रिकवरी में बहुत टाइम लगता है. क्योंकि, इसमें मां के पेट में चीरा लगाकर बच्चे को निकाला जाता है. सी-सेक्शन में डिलीवरी के दौरान दर्द भले न हो, पर बाद में दर्द से हालत ख़राब हो जाती है. रिकवरी भी देर से होती है.

ये तो हुई दो तरह की डिलीवरी की बात. वैसे एक ऐसी डिलीवरी भी है जिसमें दर्द भी कम होता है और कोई चीरा लगाने की ज़रूरत भी नहीं पड़ती. इस डिलीवरी का नाम है ‘वॉटर बर्थ डिलीवरी.’(Water Birth Delivery) इसमें बच्चे का जन्म गुनगुने पानी से भरे एक टब में होता है. पर, बच्चा किसी टब में कैसे पैदा हो सकता है? वो भी ऐसा टब, जिसमें पानी भरा हो. चलिए समझते हैं. 

वॉटर बर्थ डिलीवरी क्या है? ये कैसे की जाती है?

ये हमें बताया डॉक्टर दीपिका अग्रवाल ने. 

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डॉ. दीपिका अग्रवाल, डायरेक्टर, गायनेकोलॉजी, सी.के.बिड़ला हॉस्पिटल, गुरुग्राम

वॉटर बर्थ डिलीवरी यानी जब महिला बर्थिंग पूल (एक खास तरह का टब) में बच्चे को जन्म देती है. वॉटर बर्थ डिलीवरी के लिए बर्थिंग पूल चाहिए. इसे हवा भरने वाले पंप की मदद से फुलाया जाता है. फिर इसमें ताज़ा और साफ पानी डाला जाता है. पानी का तापमान 30 से 38 डिग्री सेल्सियस होता है. पानी को पहले चेक किया जाता है, ताकि उसमें कोई कीटाणु या गंदगी न हो. बर्थिंग पूल के अंदर एक लाइनर (एक तरह की प्लास्टिक शीट) लगाया जाता है. हर डिलीवरी के बाद उस लाइनर को बदला जाता है.

जब महिला का लेबर पेन शुरू हो जाता है, तब उसे बर्थिंग पूल में जाने की सलाह दी जाती है. पूल में आने के बाद लगातार बैठे रहना ज़रूरी नहीं है. अगर महिला थक जाए, तो नर्स की मदद से उसे बाहर निकाला जा सकता है. महिला चाहे तो कमरे में घूम सकती है. बर्थिंग बॉल (बड़ी फूली हुई गेंद) का इस्तेमाल कर सकती हैं. कमरे में मौजूद बेड पर लेट सकती है. इस दौरान कोई दवा नहीं दी जाती. महिला के शरीर में अपने आप हल्की-हल्की कई सिकुड़न होती हैं, जो बच्चे को बाहर आने में मदद करती हैं. ये तरीका महिलाओं के लिए सुकून देने वाला और आरामदायक होता है.

वॉटर बर्थ डिलीवरी के फ़ायदे

वॉटर बर्थ डिलीवरी में गुनगुने पानी का इस्तेमाल किया जाता है, जो 37 से 38 डिग्री सेल्सियस का होता है. इसमें मां को डिलीवरी के दौरान कम दर्द होता है. डिलीवरी बहुत आरामदायक होती है. इसमें मां को कोई दवा नहीं दी जाती. उसके शरीर पर कोई चीरा भी नहीं लगाया जाता. गुनगुने पानी की वजह से पेरिनियम नरम हो जाता है. पेरिनियम वो जगह है जहां से बच्चा निकलता है. इससे मां को ज़्यादा अंदरूनी चोट नहीं लगती और अगर थोड़ी लगती भी है तो जल्दी ठीक हो जाती है. 

बच्चे के लिए भी डिलीवरी नर्म और सुरक्षित होती है. इसमें बच्चे को बाहर निकालने के लिए खींचा नहीं जाता. न ही मां से ज़ोर लगाने को कहा जाता है. मां खुद पानी में बैठकर प्राकृतिक तरीके से बच्चा बाहर निकालती है.

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वॉटर बर्थ डिलीवरी में मां पानी से भरे एक टब में बैठकर बच्चे को जन्म देती है (फोटो: Getty)
वॉटर बर्थ डिलीवरी के रिस्क क्या हैं?

बच्चों में एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया होती है, जिसे डाइविंग रिफ्लेक्स कहते हैं. इसका मतलब है कि बच्चा पानी के अंदर सांस नहीं लेता. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बच्चा मां के अंदर भी पानी (लाइकर) में रहता है. डिलीवरी के दौरान बच्चा एक पानी के पूल से दूसरे पानी के पूल में आता है. हालांकि, अगर कोई एक्सपर्ट डिलीवरी नहीं करा रहा, तब बच्चा पानी में सांस ले सकता है. डिलीवरी के दौरान बच्चे को खींचना या ज़ोर लगाना बिल्कुल नहीं होता, वरना वो सांस लेने लगेगा. इंफेक्शन की बात करें, तो वॉटर बर्थ डिलीवरी में इंफेक्शन का रिस्क बहुत कम होता है, 1% से भी कम. डिलीवरी चाहे पूल के अंदर हो या बाहर, ये रिस्क उतना ही रहता है.

वॉटर बर्थ डिलीवरी किन लोगों के लिए नहीं है?

सबसे पहली बात, वॉटर बर्थ डिलीवरी केवल वो डॉक्टर्स ही करा सकते हैं जिनके पास खास ट्रेनिंग होती है. इसके लिए एक्सपर्ट नर्सों की भी ज़रूरत होती है. 

वॉटर बर्थ डिलीवरी का एक क्राइटेरिया है. जैसे मां का वज़न 100 किलो से ज़्यादा नहीं होना चाहिए. प्रेग्नेंसी बिना किसी कॉम्प्लिकेशन (जटिलता) के होनी चाहिए. प्रेग्नेंसी फुल टर्म होनी चाहिए, मतलब 37 से 40 हफ्ते तक होनी चाहिए. अगर प्रेग्नेंसी में डायबिटीज़, हाइपरटेंशन जैसी कोई समस्या हो, या आर्टिफिशियल तरीके से लेबर पेन शुरू करना पड़ा हो, तो वॉटर बर्थ डिलीवरी नहीं कराई जा सकती. अगर पहले सी-सेक्शन डिलीवरी हुई हो, तो भी वॉटर बर्थ डिलीवरी नहीं करा सकते. 

वॉटर बर्थ डिलीवरी में कोई दवा इस्तेमाल नहीं की जाती. जुड़वा बच्चे (ट्विन प्रेग्नेंसी) होने पर भी ये तरीका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. बच्चे का सिर नीचे की तरफ होना चाहिए, यानी बच्चा उल्टा नहीं होना चाहिए.

अगर कोई महिला प्रेग्नेंट है. और, वॉटर बर्थ डिलीवरी के बारे में सोच रही है. तो, एक बार डॉक्टर से राय-मशविरा करने के बाद ही इसे कराएं. साथ ही, ये भी ध्यान रखें कि वॉटर बर्थ डिलीवरी कोई स्पेशलिस्ट डॉक्टर ही करे, जिसे ऐसी डिलीवरीज़ कराने का अनुभव हो. 

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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