अचानक से उठने-बैठने पर चक्कर आ रहे? ये वर्टिगो के लक्षण हैं
वर्टिगो होने पर व्यक्ति को खूब चक्कर आते हैं. शरीर का बैलेंस बिगड़ जाता है. उठने-बैठने, सिर घुमाने या फिर झुकने पर सबकुछ घूमने लगता है. जबकि हकीकत में कुछ नहीं घूम रहा होता. आज जानिए ये कैसे होता है और इससे बचें कैसे.
.webp?width=210)
आप सोफे पर बैठे हैं. अचानक उठे तो ऐसा लगा, जैसे चारों ओर सब कुछ गोल-गोल घूम रहा है. आपको चक्कर आने शुरू हो गए. इससे आपका बैलेंस बिगड़ा और आप गिरते-गिरते बचे.
आपको लगा कि हल्का-सा चक्कर आ गया. लेकिन ये कोई मामूली चक्कर या कमज़ोरी नहीं है. ये है वर्टिगो. वर्टिगो होने पर व्यक्ति को खूब चक्कर आते हैं. शरीर का बैलेंस बिगड़ जाता है. उठने-बैठने, सिर घुमाने या फिर झुकने पर सबकुछ घूमने लगता है. जबकि हकीकत में कुछ नहीं घूम रहा होता.
अभी गर्मी का मौसम है. इस मौसम में वर्टिगो की दिक्कत और ज़्यादा बढ़ जाती है. क्यों होता है ऐसा? चलिए समझते हैं. ये भी समझेंगे कि वर्टिगो क्या है. ये क्यों होता है. गर्मियों में वर्टिगो की समस्या क्यों बढ़ जाती है. समर वेकेशन्स में सफर के दौरान वर्टिगो से कैसे बचें और इससे निजात पाने के लिए कुछ खास एक्सरसाइज़ क्या हैं?
वर्टिगो क्या होता है?ये हमें बताया डॉक्टर अनीता भंडारी ने.

वर्टिगो एक इंग्लिश शब्द है, जिसका मतलब होता है चक्कर आना. इसमें ऐसा लगता है जैसे सब कुछ घूम रहा हो या शरीर का बैलेंस बिगड़ गया हो. चक्कर आने या बैलेंस बिगड़ने की वजह से बुज़ुर्ग ज़मीन पर गिर सकते हैं. वर्टिगो क्यों होता है, इसके लिए कान की बनावट समझने की ज़रूरत है. हमारा कान दो काम करता है- सुनना और शरीर का बैलेंस बनाए रखना. कान के अंदर क्रिस्टल्स (कण), एक खास लिक्विड और बैलेंस नर्व होती है. ये सभी मिलकर हमारे शरीर के बैलेंस को कंट्रोल करते हैं.
चक्कर कई वजहों से आ सकते हैं. कभी-कभी कान के अंदर कैल्शियम के छोटे कण (क्रिस्टल्स) हिल जाते हैं. ऐसा चोट लगने, गिरने, ज़ोरदार एक्सरसाइज़ या झटके से उठने-बैठने से हो सकता है. कैल्शियम और विटामिन D की कमी से भी ऐसा हो सकता है. जब मरीज़ को चक्कर आता है, तो जांच की जाती है कि कान के अंदर कैल्शियम का कौन-सा कण कहां फंसा है. जब लोकेशन पता चल जाती है, तो फंसे हुए कण को खास एक्सरसाइज़ से सही जगह पर लाया जा सकता है. इसमें दवा की ज़रूरत नहीं होती, सिर्फ एक्सरसाइज़ से ठीक हो सकता है.
एक और कारण होता है, बैलेंस नर्व में इंफेक्शन जिससे उसके काम करने की क्षमता एकदम कम हो जाती है. इसे वेस्टिबुलर न्यूरिटिस कहा जाता है. इसमें मरीज़ को तेज़ चक्कर आते हैं. बिस्तर से उठने में दिक्कत होती है. उल्टियां भी हो सकती हैं. एक बार वर्टिगों का पता चलने पर दवाओं और एक्सरसाइज़ से इसे पूरी तरह ठीक किया जा सकता है. ये एक्सरसाइज़ घर पर भी की जा सकती है.
एक और वजह होती है वेस्टिबुलर माइग्रेन (ऐसा माइग्रेन जो वर्टिगो से जुड़ा हो). माइग्रेन की दिक्कत 20 से 45 साल की उम्र के लोगों में देखी जाती है. इसमें मरीज़ का बैलेंस बिगड़ जाता है. सिरदर्द और चक्कर आते हैं. फोकस करने में भी परेशानी होती है. टेस्टिंग से इस कारण का भी पता लगाया जा सकता है.

- गर्मियों में तेज़ धूप और बढ़ती गर्मी वर्टिगो की समस्या बढ़ा देती है
- खासकर वेस्टिबुलर माइग्रेन वाले मरीज़ों को ज़्यादा परेशानी होती है
- धूप में जाने, तेज़ रोशनी, तेज़ आवाज़ और कम पानी पीने से लक्षण उभरने लगते हैं
- कैफीन वाली चीज़ें, जैसे चाय-कॉफी पीने से भी इस पर बुरा असर डालता है
- मोबाइल या कंप्यूटर स्क्रीन पर ज़्यादा समय बिताने और लगातार स्क्रॉल करने से भी दिक्कत बढ़ती है
गर्मियों में सफर के दौरान वर्टिगो से कैसे बचें?- गर्मियों में सफर के दौरान माइग्रेन के मरीज़ों को मोशन सिकनेस होती है
- उन्हें कार या बस में सफर करते समय घबराहट होने लगती है
- अच्छी बात ये है कि इससे बचा जा सकता है
अगर आपको वर्टिगो है, तो ट्रैवलिंग से पहले डॉक्टर की सलाह लेकर कोई दवाई ले लें, ताकि मोशन सिकनेस न हो. वहीं, अगर आपको खूब चक्कर आते हैं. सिर घूमता है, तो भी डॉक्टर से ज़रूर मिलें ताकि इस दिक्कत की वजह पता की जा सके. ये चेक किया जा सके कि कहीं आपको वर्टिगो तो नहीं है.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
वीडियो: सेहत: प्रोटीन पाउडर खरीदना छोड़िए, इन चीज़ों से घर पर ही बना डालिए