शरीर में किस-किस तरह से घुसते हैं कीड़े? तरीके जान सावधानियां बरतना शुरू कर देंगे!
अगर थ्रेडवर्म, हुकवर्म और फाइलेरियल वर्म नाम के पैरासाइट्स शरीर में पहुंच जाएं, तो ये बड़ी दिक्कतें पैदा कर सकते हैं. डॉक्टर से इस बारे में आज सबकुछ जान लीजिये.

‘मिट्टी, कीचड़ पर नंगे पैर मत चलो. वरना कोई कीड़ा काट लेगा.' ‘इतना मीठा मत खाओ. दांत में कीड़े लग जाएंगे.’ 'अरे, स्किन पर क्या हो गया? कुछ नहीं, कीड़े ने काट लिया.'
उफ्फ! कीड़ामय माहौल हो गया पूरा. ये कीड़े सिर्फ मिट्टी या गंदे पानी में ही नहीं रहते. कई बार हमारे शरीर में भी पहुंच जाते हैं और फिर बड़ा आतंक मचाते हैं. बोलचाल की भाषा में हम इन्हें कीड़े कहते हैं. लेकिन, मेडिकल भाषा में इन्हें वर्म (Worms In Body) कहा जाता है. तीन तरह के वर्म हमारे शरीर में बहुत आम हैं. ये हैं थ्रेडवर्म, हूकवर्म और फाइलेरियल वर्म. ये तीनों ही पैरासाइट्स यानी परजीवी हैं. ये शरीर में पहुंचकर उसे गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं. मगर, आखिर ये हमारे शरीर में पहुंचते कैसे हैं? ये हमें बताया डॉक्टर भूषण भोले ने.
थ्रेडवर्म
थ्रेडवर्म को पिनवर्म भी कहा जाता है. आमतौर पर, ये बच्चों में पाया जाता है. लेकिन, बड़े-बुज़ुर्ग भी इसकी चपेट में आ सकते हैं. इसका सबसे आम लक्षण गुदाद्वार (Anus) के आसपास खुजली होना है. ये खुजली रात में ज़्यादा होती है, क्योंकि वर्म रात में यहां आकर अंडे देता है. अंडे देने की वजह से ही खुजली होती है. इससे बचने के लिए बार-बार हाथ धोएं. अंडरगारमेंट या तौलिया किसी के साथ शेयर न करें. इसकी जांच के लिए टेस्ट मौजूद है. स्टूल एग्ज़ामिनेशन के ज़रिए इसका पता लगाया जा सकता है. इसके इलाज के लिए दवाएं भी मौजूद हैं. जब भी थ्रेडवर्म के लक्षण दिखें यानी गुदाद्वार के आसपास खुजली हो, तो डॉक्टर से मिलकर इलाज कराएं.
हुकवर्महुकवर्म के अंडे आमतौर पर गंदे पानी या मिट्टी में पाए जाते हैं. जब हम नंगे पैर गंदे पानी या मिट्टी के संपर्क में आते हैं. तब ये अंडे स्किन के ज़रिए हमारे खून में पहुंच जाते हैं. फिर वहां से फेफड़ों के ज़रिए आंत में पहुंचते हैं. आंत में ये अंडे वर्म में बदल जाते हैं. इनकी वजह से एनीमिया यानी खून की कमी हो सकती है. प्रोटीन की कमी हो सकती है. पेट दर्द और डायरिया भी हो सकता है. इसकी जांच करना आसान है. स्टूल एग्ज़ामिनेशन के ज़रिए इसका भी पता लगाया जा सकता है.
हुकवर्म से बचने के लिए नंगे पैर न चलें. हमेशा जूते, चप्पलें पहनें. मानव मल को फर्टिलाइज़र के तौर पर पौधों या सब्ज़ियों में इस्तेमाल न करें.

फाइलेरियल वर्म का इंफेक्शन आमतौर पर मच्छर के काटने से होता है. खासतौर पर क्यूलेक्स मच्छर के काटने से ये वर्म हमारे खून में पहुंच जाता है. जब ये मच्छर किसी इंफेक्टेड व्यक्ति को काटता है. तब उसके खून में मौजूद वर्म मच्छर के शरीर में चले जाते हैं. फिर वही मच्छर जब दूसरे व्यक्ति को काटता है, तो वर्म उस व्यक्ति के खून में पहुंच जाता है. खून में पहुंचने के बाद ये वर्म एडल्ट वर्म में बदल जाते हैं. ये एडल्ट वर्म अंडे देते हैं, और फिर वो खून के ज़रिए पूरे शरीर में फैलते हैं. इससे जो कॉम्प्लिकेशन होते हैं, उन्हें फाइलेरियल (फाइलेरिएसिस) और एलिफेंटाइसिस कहा जाता है. इसमें स्किन की नसें ब्लॉक होने की वजह से चमड़ी मोटी हो जाती है, जिसे एलिफेंटाइसिस कहते हैं. पैर, हाथ, चेहरे और अंडकोष की स्किन में भी इसका इंफेक्शन हो सकता है. जिसकी वजह से, इसमें कभी-कभी पानी भर जाने की समस्या भी हो सकती है. अगर इंफेक्शन बढ़ जाए तो काफी गंभीर कॉम्प्लिकेशंस हो सकते हैं.
इसके इलाज के लिए दवाइयां मौजूद हैं. बचने के लिए सबसे ज़रूरी है कि मच्छर के काटने से बचें. अगर कोई व्यक्ति ऐसे देश में घूमने जा रहा है, जहां फाइलेरियल वर्म काफी ज़्यादा पाए जाते हैं, तो पहले से दवा लेकर बचाव शुरू किया जा सकता है. इससे इंफेक्शन का ख़तरा कम हो जाता है.
देखिए, इन वर्म्स से बचा जा सकता है. बचने का तरीका बहुत आसान है. बस आपको साफ़-सफ़ाई का ध्यान रखना है. अगर इनसे जुड़े लक्षण दिखते हैं, तो तुरंत डॉक्टर से मिलना है ताकि इंफेक्शन बढ़ने न पाए.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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