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गॉलस्टोन्स से कैसे पता चलता है कि गॉलब्लैडर में कैंसर होगा या नहीं?

गॉलब्लैडर को पित्त की थैली भी कहते हैं. ये लिवर के ठीक नीचे होता है. साल 2022 में हमारे देश में गॉलब्लैडर कैंसर के 21,780 केस मिले थे.

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gallbladder cancer connection with gallstones research
गॉलस्टोन्स होने पर गॉलब्लैडर कैंसर का रिस्क बढ़ जाता है
14 अप्रैल 2025 (Published: 03:39 PM IST) कॉमेंट्स
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गॉलब्लैडर यानी पित्ताशय. ये एक पित्त की थैली होती है, जो पेट के उपरी हिस्से में, सीधे हाथ की तरफ होती है. लिवर के नीचे. इसका मेन काम होता है, जो बाइल यानी पित्त हमारे लिवर के अंदर बन रहा है, उसे इकट्ठा करना. जब भी हम कोई ऐसा खाना खाते हैं जिसमें फैट होता है, तब ये बाइल गॉल ब्लैडर से निकलता है और छोटी आंत में जाता है. फिर उस फैट वाले खाने को पचाने में मदद करता है.

ये हुआ गॉल ब्लैडर पर एक छोटा सा क्रैश कोर्स. इसमें होने वाले कैंसर को कहते हैं गॉलब्लैडर कैंसर.

साल 2022 में दुनियाभर में गॉलब्लैडर कैंसर के 1 लाख 22 हज़ार से ज़्यादा मामले सामने आए थे. करीब नवासी हज़ार लोगों की मौत भी हुई थी. ये डेटा WHO की एजेंसी International Agency For Research On Cancer ने जारी किया है. अगर हिंदुस्तान की बात करें, तो 2022 में हमारे देश में गॉलब्लैडर कैंसर के 21,780 केस मिले थे. करीब 16,407 लोगों की इससे मौत भी हुई थी.

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अगर खास तरह के गॉलस्टोन्स हैं, तो गॉलब्लैडर कैंसर होने का रिस्क बढ़ जाता है (फोटो: Getty Images)

भारत के जिन राज्यों में गॉलब्लैडर कैंसर के मामले सबसे ज़्यादा हैं, उनमें से एक है असम. पहले माना जाता था कि असम और दूसरी जगहों पर इस कैंसर के बढ़ने की वजह आर्सेनिक से दूषित पानी है. लेकिन, अब एक नई स्टडी हुई है. इस स्टडी से पता चला है कि कुछ खास तरह के गॉलस्टोन्स, गॉलब्लैडर कैंसर का रिस्क बढ़ा देते हैं. गॉलब्लैडर में बनने वाली पथरी को पित्त की पथरी या गॉलस्टोन कहते हैं. अगर इस गॉलस्टोन में कोलेस्ट्रॉल या हेवी मेटल्स ज़्यादा हैं, तो व्यक्ति को गॉलब्लैडर कैंसर होने का ख़तरा बढ़ जाता है. हेवी मेटल्स ऐसे मेटल्स होते हैं, जिनकी थोड़ी मात्रा भी शरीर को बहुत नुकसान पहुंचाती है. जैसे लेड, मर्क्युरी, आर्सेनिक वगैरह.

इस रिसर्च को असम की तेज़पुर यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने किया है. अमेरिकन केमिकल सोसायटी की जर्नल ‘केमिकल रिसर्च इन टॉक्सिकोलॉजी’ ने इसे छापा है. रिसर्च के लिए रिसर्चर्स ने लोगों के दो ग्रुप्स बनाए और कुल 40 गॉलस्टोन्स के सैंपल लिए. इनमें से एक ग्रुप में 30 लोग शामिल थे. इन्हें सिर्फ गॉलस्टोन था. वहीं, दूसरे ग्रुप के 10 लोगों को गॉलस्ट्रोन्स और गॉलब्लैडर कैंसर, दोनों था.

फिर इन सारे गॉलस्टोन्स की स्टडी की गई. पता चला कि कैंसर के मरीज़ों में जो गॉलस्टोन्स थे, उनमें कोलेस्ट्रॉल बहुत ज़्यादा था. वो दिखने में क्रिस्टल की तरह लग रहे थे और परतदार थे. इन गॉलस्टोन्स में टॉक्सिक तत्व भी काफी ज़्यादा थे. जैसे आर्सेनिक, क्रोमियम, मर्क्युरी, आयरन और लेड वगैरह. ये सारे तत्व हमारे शरीर के सेल्स को नुकसान पहुंचाने और कैंसर फैलाने के लिए जाने जाते हैं.

यानी सिर्फ गॉलस्टोन्स से कैंसर का रिस्क नहीं बढ़ता. गॉलस्टोन किस तरह का है, और किन चीज़ों से मिलकर बना है. ये भी कैंसर होने, न होने की वजह बनती है.

अगर किसी व्यक्ति के गॉलस्टोन में कोलेस्ट्रॉल और टॉक्सिक मेटल्स बहुत ज़्यादा हैं. तो उसे कैंसर होने का ख़तरा हो सकता है. रिसर्च के मुताबिक, कैंसर फैलाने वाले ये तत्व गंदे पानी, खाने और मिट्टी के ज़रिए शरीर में जा सकते हैं.

ये तो हुई रिसर्च की बात. हमने डॉक्टर अरुण कुमार गोयल से पूछा कि अगर किसी व्यक्ति को गॉलब्लैडर कैंसर होता है, तो उसे क्या लक्षण दिखते हैं और इसका इलाज कैसे किया जाता है?

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डॉ. अरुण कुमार गोयल, चेयरमैन, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, एंड्रोमेडा कैंसर हॉस्पिटल, सोनीपत

डॉक्टर अरुण कहते हैं कि वैसे तो गॉलब्लैडर कैंसर के लक्षण बहुत साफ नहीं दिखते. ये ज़्यादातर तभी सामने आते हैं, जब कैंसर बढ़ जाता है. हालांकि, अगर आपके पेट के दाहिने हिस्से में, ऊपर की ओर बहुत दर्द हो रहा है. पेट फूला हुआ रहता है. अचानक तेज़ी से वज़न घट रहा है. या आपको पीलिया हो गया है. तब आपको सावधान हो जाना चाहिए और तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए. अगर कैंसर होने का पता शुरुआती स्टेज में ही चल जाए. तो इलाज करना आसान हो जाता है.

जब आप डॉक्टर के पास जाएंगे. तो वो आपका ब्लड टेस्ट करेंगे. ये देखने के लिए, कि लिवर ठीक से काम कर रहा है या नहीं. इसके बाद कुछ इमेजिंग टेस्ट होंगे. जैसे अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन और MRI. अगर इन टेस्ट्स से गॉलब्लैडर कैंसर का पता चलता है, तो फिर कैंसर की स्टेज पता की जाएगी. और, उस हिसाब से आगे इलाज होगा.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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