'सबसे अक़्लमंद जीवित व्यक्ति' कहे जाने वाले युवाल की कोरोना से जुड़ी 28 बातें, सदियां याद रखेंगी
'संकट के समय में लोग बहुत जल्दी अपना विचार बदल सकते हैं.'

44 साल के युवाल येरुसलम के हिब्रू विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग में प्रोफेसर हैं. हाल ही में इंडिया टुडे ग्रुप की ई-कॉन्क्लेव सीरीज में राहुल कंवल ने उनसे 45 मिनट लंबी बातचीत की. ये बातचीत, वीडियो कोनफ़्रेंस फ़ॉर्मेट में थी और इंडिया टुडे ग्रुप के अंग्रेज़ी न्यूज़ चैनल के अलावा इंस्टाग्राम, यू ट्यूब, एफबी वग़ैरह पर भी लाइव स्ट्रीम हो रही थी. इस बातचीत का सार आप लल्लनटॉप में यहां पर पढ़ सकते हैं.

एक बुद्धिजीवी व्यक्ति की विशेषता ये भी होती है कि वो या तो अपनी आधे से ज़्यादा बातें कोट में करता है, या उसकी आधी से ज़्यादा बातें, अपने आप कोट बन जाती है. तो इस 45 मिनट लंबी चली बातचीत में से कुछ चुनिंदा कोट्स आपकी नज़र.
# 1) हमारे पास इस संकट से निपटने की ताक़त है. पर क्या हमारे पास इस ताक़त को सही तरीक़े से इस्तेमाल करने की अक़्ल है?

# 2) हम वायरस से इस मामले में एक कदम आगे हैं, कि हम उन तरीकों से एक दूसरे का सहयोग कर सकते हैं, जिन तरीक़ों से वायरस नहीं कर सकते. चीन का एक वायरस अमेरिका के एक वायरस को सलाह नहीं दे सकता.

# 3) दरअसल अमेरिका ने ग्लोबल लीडर के पद से इस्तीफा दे दिया है. वहां के वर्तमान शासकों ने दुनिया को बहुत स्पष्ट रूप से कह दिया है, ‘हम अब मानवता की परवाह नहीं करते. हमें सिर्फ अमेरिका की परवाह है. अमेरिका फ़र्स्ट.’ और अब अमेरिका फ़र्स्ट है. फ़र्स्ट, बीमार लोगों में. फ़र्स्ट, मृत लोगों में.
# 4) मुझे लगता है कि इस वक़्त दुनिया को सबसे बड़ा खतरा वायरस से नहीं. हम वायरस से निपट सकते हैं. वास्तव में बड़े ख़तरे तो मानवता के ख़ुद के भीतरी दानव हैं. नफरत. लालच. अज्ञानता.

# 5) यदि हम राष्ट्रवादी अलगाव चुनते हैं तो हम और अधिक गरीब, और अधिक दयनीय, और कम स्वस्थ होते चले जाएंगे.

# 6) सीमाओं को बंद कर देने भर से आप महामारी से नहीं निपट सकते. महामारी की वास्तिवक औषधि आइसोलेशन नहीं, सहयोग है.

# 7) पिछले कुछ वर्षों में दुनिया ने अमेरिकी नेतृत्व पर से भरोसा खो दिया है. अब दुनिया अमेरिकी क्षमता पर से भी भरोसा खो रही है.

# 8) आप किसी देश से डरते हुए, उस देश से नफरत करते हुए भी उसकी योग्यता का सम्मान कर सकते हैं.

# 9) मेरा 'आव्रजन के सार्वभौमिक अधिकार' पर विश्वास नहीं है. मतलब मैं नहीं मानता कि हर किसी को ये अधिकार हो कि वो किसी भी देश में इमिग्रेट कर सके. और मैं देशों के 'आव्रजन के सार्वभौमिक कर्तव्य' पर भी विश्वास नहीं करता. मतलब मैं नहीं मानता कि किसी देश का ये कर्तव्य हो कि वो उन सभी इमिग्रेंट्स को आने दे, जो आना चाह रहे हैं.
# 10) धार्मिक नेता महामारी रोकने में बहुत कारगर साबित नहीं होते. ये उनकी विशेषज्ञता का क्षेत्र नहीं है. उनको असली विशेषज्ञता तो बहाने बनाने में हासिल है.

# 11) अगर आपको एक वैज्ञानिक, जो आपकी बीमारी को वाक़ई में सही कर सकता है, और एक धार्मिक नेता के बीच चुनाव करना है तो वैज्ञानिक के साथ जाना बेहतर होगा.

# 12) अगर कोई आपके पास कोविड 19 से जुड़ी किसी कॉन्सपरेसी थ्योरी को लेकर आता है तो बस उस इंसान से एक आसान सा सवाल पूछें, ‘प्लीज़ मुझे समझाएं कि वायरस क्या होता है और वायरस कैसे बीमारी का कारण बनता है?'

# 13) अगर आप 'थ्योरी ऑफ़ एवेल्यूशन' पर विश्वास नहीं करते हैं तो आप महामारी को नहीं समझ सकते.

# 14) इस महामारी को लेकर इंसानों की प्रतिक्रिया, हाथ खड़े कर देने की नहीं रही. उनकी प्रतिक्रिया ग़ुस्से और उम्मीद का मिश्रण रही है.

# 15) यदि एक महामारी फैलती है, तो ये एक न टाली जा सकने वाली त्रासदी नहीं, एक मानवीय असफलता है.

# 16) इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब हम नहीं जानते कि आने वाले दशकों में नौकरियों का भविष्य क्या होगा.

# 17) सबकुछ इसपर निर्भर करता है कि हम क्या चुनते हैं. और मुझे आशा है कि हम राष्ट्रवादी प्रतिस्पर्धा नहीं वैश्विक एकजुटता चुनेंगे.

# 18) संकट के समय में लोग बहुत जल्दी अपना विचार बदल सकते हैं.

# 19) इन ताकतवर लोगों के लिए आपातकाल या महामारी सत्ता हासिल करने का बहाना है. और हमें इन पर विश्वास नहीं करना चाहिए. हमें इस जाल में नहीं फंसना चाहिए.

# 20) एक बार जब आप अपनी स्वतंत्रता छोड़ देते हैं, तो इसे वापस हासिल करना बहुत मुश्किल होता है.

# 21) कई लोग मजबूत शक्तिशाली नेता का सपना देखते हैं. वो, जो सब कुछ जानता है और हमारी रक्षा करेगा. और उसके एवज़ में ये लोग सभी लोकतांत्रिक 'बाधाओं' और 'सतुलनों' को त्यागने के लिए तैयार हो जाते हैं. संकट के वक्त अगर आपने ऐसा बड़ा नेता चुन लिया, तो संकट खत्म होने के बाद भी वो सत्ता नहीं छोड़ेगा. वो हमेशा सत्ता में बने रहने का बहाना ढूंढेंगा.
# 22) आपातकालीन उपायों के साथ समस्या ये है कि वो हमेशा-हमेशा के लिए रह जाते हैं.

# 23) लोगों को यह महसूस करना होगा कि गोपनीयता और स्वास्थ्य के बीच चयन करने का विकल्प नहीं होना चाहिए. उनके पास दोनों होने चाहिए.

# 24) यह कोई युद्ध नहीं है. यह एक स्वास्थ्य संकट है. हमारे पास शत्रु के ठिकानों पर हमला करने वालीं राइफ़ल्स लिए सैनिक नहीं हैं. हमारे पास अस्पतालों में नर्सें हैं, जो बिस्तरों की चादरें बदल रही हैं. इसे मैनेज करने के लिए हमको 'विशेषज्ञ हत्यारों' की नहीं, 'विशेषज्ञ देखभाल कर्ताओं' की आवश्यकता है.
# 25) लोकतंत्र में निगरानी, दोनों तरफ़ से और दोनों तरफ़ की होनी चाहिए. ऐसा नहीं कि सिर्फ़ सरकार लोगों पर नज़र रखे. लोगों को भी सरकार पर नज़र रखनी चाहिए.

# 26) चीजें काम कर रही हैं या नहीं? पैसे सही जगह लगे कि नहीं? अंत में इन सवालों का निर्णय इस बात से नहीं होगा कि स्टॉक एक्सचेंज में क्या हो रहा है. इनका निर्णय इस बात से होगा कि आम लोगों पर क्या प्रभाव पड़ रहे हैं.

# 27) पहले निगरानी मुख्य रूप से ऊपर-ऊपर ही थी, अब यह त्वचा के भीतर जा रही है. सरकारें न केवल ये जानना चाहती हैं कि हम कहां जाते हैं, या हम किससे मिलते हैं. वे अब ये भी जानना चाहती हैं कि हमारे भीतर क्या चल रहा है? हमारे शरीर का तापमान क्या है? हमारा रक्तचाप क्या है? हमारी चिकित्सा स्थिति क्या है? बेशक ये महामारी से निपटने के लिए ज़रूरी है, लेकिन अगर यह लंबे समय तक रहता है, तो एक नए, अभूतपूर्व अधिनायकवादी शासन के स्थापित होने का खतरा है.
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