The Lallantop
Advertisement

मूवी रिव्यू : Doctor G

आप 'Doctor G' को महान सिनेमा नहीं कह सकते. इसे उस लिहाज़ से बनाया भी नहीं गया है. पर ये एक बढ़िया सोशल कॉमेडी ड्रामा है.

Advertisement
doctor_g_review_ayushmann_Khurrana
शीबा चड्ढा ने अपने रोल में फोड़ दिया है
pic
अनुभव बाजपेयी
14 अक्तूबर 2022 (Updated: 14 अक्तूबर 2022, 10:32 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

पिछले हफ़्ते एक भोपाली फ़िल्म रिलीज़ हुई थी, 'चक्की'. इस सप्ताह भी रिलीज़ हुई है. भोपाली से मतलब इसका बैकड्रॉप भोपाल का है. फ़िल्म का नाम है,  'Doctor G'.  इसमें छोटे शहरों के हीरो आयुष्मान लीड रोल में हैं. इसे बनाया है अनुराग कश्यप की बहन अनुभूति कश्यप ने. वो इससे पहले एक वेब शो 'अफसोस' बना चुकी हैं. एक तरह से फ़ीचर फ़िल्म बनाने का ये उनका पहला अनुभव है. देखते हैं इसमें उन्होंने कैसा काम किया है?

'डॉक्टर जी'

भारत का एक मंझोला शहर भोपाल. यही रहते हैं उदय गुप्ता. एमबीबीएस कर चुके हैं. अब पीजी में एडमिशन लेना है. हड्डियों का डॉक्टर बनना चाहते हैं यानी ऑर्थोपिडिशियन. पर रैंक है कम, भोपाल में सीट की है किल्लत. इसलिए एडमिशन मिला है प्रसूति और स्त्री रोग विभाग में. उदय को गाइनकोलॉजिस्ट किसी कीमत पर नहीं बनना है. पर सारे रास्ते ब्लॉक हो चुके हैं. इसलिए एडमिशन ले लिया है. पर उसका मन, जो ख़ुद ऑर्थो मान चुका है, कैसे गाइन बनना स्वीकार करेगा? किन परिस्थितियों में करेगा. यही है 'Doctor G की कहानी'. पहली बार को फ़िल्म का नाम आपको ऑर्डनरी लग सकता है. पर इसके सहारे एक पंथ तीन काज किए गए हैं. इसमें सम्मानसूचक जी, गाइन का जी और और गुप्ता का जी भी आ गया.

फ़िल्म में रकुल और आयुष्मान

कहानी घिसीपिटी है. कुछ नई नहीं है. सैकड़ों दफ़ा हम ऐसी कहानियां देख चुके हैं. पर इसके कुछ एलिमेंट्स नए हैं. ट्रीटमेंट पूरी तरह से नहीं, पर कई मामलों में फ्रेश है. पढ़ाई से लेकर पेशे तक स्त्री-पुरुष के बीच समाज ने एक लाइन खींच दी है. औरत का जो काम है, उसे मर्द नहीं कर सकते. मर्द का जो काम है, वो औरत नहीं कर सकती. दोनों के काम एक-दूसरे के लिए वर्जित हैं. इसी मुद्दे को फ़िल्म ऐड्रेस करती है. उदय ऐसे ही पूर्वाग्रहों से ग्रसित है. अनुभूति कश्यप ने उदय के जरिए सोसाइटी के पूर्वाग्रहों को ठीक ढंग से उकेरा है. एक डायलॉग भी है, 'हमारे मोहल्ले में लड़के क्रिकेट खेलते हैं और लड़कियां बैडमिंटन'. सुमित सक्सेना के लिखे कुछ-कुछ डायलॉग बहुत अच्छे हैं. कुछ औसत हैं. कुछ क्लीशेज से लिपटे हुए भी हैं. कई जगह ऐसा लगता है कि ये बातें किरदारों के मुंह से न बुलवाई जातीं, तो और बेहतर होता. इन्हें दर्शकों पर छोड़ दिया जाना चाहिए था. थोड़ी परते छूटती, तो और मज़ा आता. एक जगह फातिमा के मुंह से बातों-बातों में 'हे राम' निकलता है, उस जगह उदय कहता है: उफ्फ अल्लाह, तुम्हारे मुंह से हे राम सुनकर कितना कूल लगा! और भी ऐसे कई मौके हैं, जहां सिर्फ़ हिंट देना बेहतर होता.

आयुष्मान और शेफाली शाह 

अनुभूति के साथ सुमित सक्सेना, सौरभ भारत और विशाल वाघ ने स्क्रीनप्ले लिखा है. जो कि एकाध जगह पर ओवर ड्रामैटिक हो जाता है, क्लाइमैक्स में तो ख़ासकर. पूरी फ़िल्म में इसका स्क्रीनप्ले बहुत सही चल रहा होता है. पर अंत में मामला गड़बड़ा जाता है. पर, स्क्रीनप्ले की एक बात अच्छी है कि ये थ्री ऐक्ट स्ट्रक्चर को रिलीजियसली फॉलो करता है. माहौल बिल्ट होता है. कॉन्फ्लिट्स पैदा होते हैं और फिर ड्रामे के साथ उनके सॉल्यूशन. फ़िल्म कई मुद्दों को उठाती हैं. जैसे: रैगिंग. एक उम्रदराज स्त्री, जो एक मां है. वो भी किसी पुरुष को मित्र बना सकती है. फ़िल्म मेल टच को लेकर भी शिक्षित करती है. 'Doctor G' के लिए कहा जा सकता है कि यहां दिल नहीं, स्टीरियोटाइप्स तोड़े जाते हैं. गानों में 'न्यूटन एक दिन सेब गिरेगा' टाइप्स कुछ नए प्रयोग हैं. अमित त्रिवेदी ने सही गाने बनाए हैं. पर गानों से अच्छा इसका बैकग्राउंड स्कोर है. केतन सोढ़ा ने बहुत बढ़िया काम किया है. कई-कई कॉमिक और इमोशनल सीक्वेन्सेज़ को उनका बीजीएम एक लेवल और ऊपर लेकर जाता है.

शीबा चड्ढा ने बेहतरीन काम किया है

आयुष्मान खुराना उदय जैसे रोल्स में महारथ हासिल कर चुके हैं. ‘विकी डोनर’, ‘बधाई हो’, ‘शुभ मंगल सावधान’ सरीखी फ़िल्में उसका उदाहरण हैं. छोटे शहर का लड़का आयुष्मान को चिड़िया की आंख सरीखा दिखता है. वो खटाक से ऐसे रोल्स पर निशाना साध देते हैं. सोशल मैसेज देने वाली लाइट हार्टेड कॉमेडी उनके बाएं हाथ का खेल हैं. 'Doctor G' में उनका फ्लॉलेस अभिनय इसकी बानगी है. रकुल प्रीत ने भी ठीक काम किया है. इधर 'कठपुतली' में भी उनका कुछ ऐसा ही रोल था. कुछ जगहों पर वो चूकती हैं, बाक़ी बढ़िया काम है. शेफ़ाली शाह हर बार की तरह सधा हुआ अभिनय करती हैं. शीबा चड्ढा ने आयुष्मान की मां के रोल में बहुत ही बेहतरीन काम किया है. इसे ही शास्त्रों में अद्धभुत कहा गया है. एक जगह वो अपने बेटे से कहती हैं: विनोद जी का मैसेज आया था, थैंक्यू. वो जिस तरह से थैंक्यू कहती हैं. मुझे वहां ऐसा लगा अगर मेरी मां मुझसे थैंक्यू कहेंगी, तो शायद बिल्कुल ऐसे ही कहेंगी. कमाल है. बाक़ी सभी ऐक्टर्स ने भी सही काम किया है. चाहे वो आयुष्मान के सीनियर्स हों या फिर आयुष्मान का दोस्त. 

आप 'Doctor G' को महान सिनेमा नहीं कह सकते. इसे उस लिहाज़ से बनाया भी नहीं गया है. पर ये एक बढ़िया सोशल कॉमेडी ड्रामा है. एक बार देखी जा सकती है.

मूवी रिव्यू: PS-1

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement