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उस महान लेखक के रोल में नवाजुद्दीन जो भारत का विभाजन बर्दाश्त नहीं कर पाया

इस फिल्म का ट्रेलर आ गया है. देखें.

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मंटो की अधिकतर कहानियां बंटावारे के ही इर्द-गिर्द हैं. उनकी पहली कहानी 'तमाशा' थी, जिसमें जालियांवाला बाग कहानी का प्रमुख हिस्सा है.
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श्वेतांक
15 अगस्त 2018 (Updated: 15 अगस्त 2018, 11:52 AM IST) कॉमेंट्स
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नवाजुद्दीन सिद्दीकी की नई फिल्म आ रही है - 'मंटो'. ये मशहूर लेखक और नाटककार सआदत हसन मंटो की लाइफ पर बेस्ड है. इसमें नवाज मंटो बने हैं. मई में फिल्म का पहला टीज़र आया था, अब ट्रेलर आया है और जिस करारे तरीके से इसमें मंटो की सोच दिखती है वो ख़ास है. जैसे - वो क्या सोचते थे? क्यों सोचते थे? उनके ख्यालों से समाज चिढ़ता क्यों था? उनकी बातों से लोग आगबबूला क्यों हो जाते थे? उनकी ईमानदारी क्यों उनके करीबियों को भी कचोटती थी?
नंदिता दास ने इस मूवी को डायरेक्ट किया है. बतौर डायरेक्टर उनकी पहली फिल्म 'फिराक़' थी जो 2008 में आई थी. वो गुजरात दंगों पर आधारित थी और बहुत बेहतरीन फिल्म थी. अब वे 'मंटो' ला रही हैं जिसमें रसिका दुग्गल, इनामुलहक़, ताहिर राज भसीन, दिव्या दत्ता, ऋषि कपूर, रणवीर शौरी, तिलोत्तमा शोम, जावेद अख्तर, गुरदास मान और परेश रावल जैसे लोग भी अलग-अलग किरदारों में दिखने वाले हैं.
'मंटो' को फ्रांस के कैन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल की प्रतिष्ठित कैटेगरी 'अ सर्टेन रिगार्ड' में भी चुना गया.

लेखन में कथित अश्लीलता के लिए मंटो पर तीन बार ट्रायल चली लेकिन वे कभी दोषी साबित नहीं किए जा सके.

फिल्म के टीज़र में दिखता है कि 'ठंडा गोश्त' नाम की कहानी लिखने के लिए मंटो पर केस चल रहा है. उनकी तीन कहानियों 'बू', 'काली सलवार' और 'धुआं' पर अश्लीलता के आरोप लग रहे हैं. अदालत में जब पूछा जाता है तो मंटो जज और वहां बैठे लोगों से कहते हैंः "मैं वही लिखता हूं, जो जानता हूं, जो देखता हूं. मैं तो बस अपनी कहानियों को एक आईना समझता हूं, जिसमें समाज अपने आप को देख सके."
वे 1912 में ग़ुलाम भारत में पैदा हुए थे. बाद में भारत आज़ाद तो हो गया लेकिन उन्हें निजी रूप से इस आज़ादी की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. बंटवारे ने उन्हें तोड़ दिया. उस दौरान वो पाकिस्तान चले गए. इस बारे में फिल्म में मंटो एक बात कहते हैंः "जब गुलाम थे, तो आज़ादी का ख्वाब देखते थे. अब आज़ाद हैं तो कौन सा ख्वाब देखें ?"
बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए मंटो की मौत पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में हुई थी.
1947 के विभाजन के बाद पाकिस्तान शिफ्ट हुए मंटो की मौत वहीं के पंजाब प्रांत में हुई.

बंटवारे की विभीषिका उनके ज़ेहन से कभी नहीं उतरी. इस दौरान उन्होंने जो देखा, उम्र भर उसे अपनी कहानियों में और किरदारों में लिखने-दिखाने की कोशिश करते रहे. उनकी वेदना की मिसाल है उनकी लिखी कहानी - 'टोबा टेक सिंह.' मंटो के लिखे सच से लोगों को दिक्कत थी जिससे समाज में उन्हें औऱ उनके परिवार को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता था. एक सीन में जब उनका पात्र अपनी पत्नी से कहता हैः "मैं इतना लिखूंगा कि तुम भूखी नहीं मरोगी."
तो उनकी कड़वी लेखनी से हो रही परेशानियों के संदर्भ में पत्नी साफिया जवाब देती हैंः "यही तो फिक़्र है कि आपके लिखने की वजह से ही हम भूखे मरेंगे."
फिल्म में रसिका मंटो की पत्नी साफिया का रोल कर रही हैं.
फिल्म में रसिका, मंटो की पत्नी साफिया का रोल कर रही हैं.

आज़ादी के पहले मंटो बंबई में हिंदी फिल्मों के स्क्रीनप्ले लिखते थे. उनका काम, उनका लिखा, उनकी सोच बंबई के लोगों को बहुत भाती थी. उनके खाते में 'आठ दिन', 'शिकारी', 'चल-चल रे नौजवान' और 'मिर्ज़ा ग़ालिब', जैसी फिल्में थीं. लेकिन तभी बंटवारा हुआ और उन्हें सब कुछ छोड़कर जाना पड़ा. इसके बाद वे शराब पीने लगे और बहुत पीने लगे. और ख़ुद को लिखने में और ज्यादा डुबो लिया. इस पर रसिका दुग्गल द्वारा निभाया उनका पत्नी साफिया का किरदार पूछता हैः "सारी हमदर्दी अपने किरदारों के लिए ही बचा रखी है?"

इस फिल्म से पहले नंदिता ने नवाज को ही लेकर मंटो पर एक शॉर्ट फिल्म भी बनाई थी.

इस पर मंटो जवाब देते हैंः "आखिर में बस अफसाने ही रह जाते हैं और उनके किरदार."
आज़ादी के सात साल बाद 1954 में वो चल बसे. तब मंटो सिर्फ 42 साल के थे.
नंदिता दास डायरेक्टेड इस फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी के अलावा रसिका दुग्गल, ऋषि कपूर, जावेद अख्तर, नीरज कबी, परेश रावल, गुरदास मान, दिव्या दत्ता, रणवीर शौरी, राजश्री देशपांडे, तिलोत्तमा शोम और शशांक अरोड़ा जैसे कलाकार दिखाई देंगे. ये फिल्म 21 सितंबर को सिनेमाघरों में लग रही है.


'मंटो' का ट्रेलर:



मंटो की लिखी कुछ कहानियां आप यहां पढ़ सकते हैं:
'मज़े के लिए फोज़ा हरामज़ादा नंग धड़ंगा होकर घूमने लगता'
'मेरा हुक्का पानी बंद कर दिया, यह भी ख़ुश लतीफ़ा रहा'
लाहौर की हीरा मंडी से फुस्स होकर लौटी जावेद की मुहब्बत
मैडम डिकॉस्टा खोपरे का तेल गिराकर बता देती थीं, लडका होगा या लड़की
‘कुलवंत मेरी जान! मैं तुम्हें नहीं बता सकता, मेरे साथ क्या हुआ’
लड़की ने कहा, आज मैं भी एक मुसलमान मारूंगी
मेरा ख़याल है शायद यह चौदहवीं का चांद ही उसकी मौत का सबब हो
'आग पर चलते हुए मंटो पहली बार खुद को ढूंढ़ पाया था'
'जमीन पर पड़ी शरीफन की नंगी लाश देख कासिम ने गंड़ासा उठा लिया'



वीडियो देखें: एक कविता रोज़: दर्पण साह की बिना शीर्षक वाली कविता

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