The Lallantop
Advertisement

फिल्म रिव्यू- जादूगर

'जादूगर' आइडिया के लेवल पर बिज़ार साउंड करती है. मगर यही चीज़ इसे खास भी बनाती है. जब तक आप कुछ अलग ट्राय नहीं करेंगे, कुछ नया कैसे कर पाएंगे.

Advertisement
jaadugar-review-netflix
फिल्म के एक सीन में जीतेंद्र कुमार. 'जादूगर' को समीर सक्सेना ने डायरेक्ट किया है.
pic
श्वेतांक
15 जुलाई 2022 (Updated: 15 जुलाई 2022, 01:33 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

नेटफ्लिक्स पर एक फिल्म रिलीज़ हुई है, जिसका नाम है 'जादूगर'. मगर ये फिल्म फुटबॉल पर बेस्ड है. मध्य प्रदेश में नीमच नाम का एक शहर है. यहां से दाभोलकर नाम के बड़े मशहूर फुटबॉलर निकले थे. तब से उस इलाके में फुटबॉल का जोर रहता है. नीमच में आदर्श नगर नाम का एक मोहल्ला है. इनकी एक फुटबॉल टीम है, जो सालों से इंटर-मोहल्ला फुटबॉल टूर्नामेंट में हिस्सा लेती आई है. अच्छे प्लेयर्स होने के बावजूद ये टीम कभी टूर्नामेंट नहीं जीत पाई. फुटबॉल टीम के कोच प्रदीप का भतीजा है मीनू. मीनू को बचपन से जादूगर बनना था. कुछ ट्रिक्स जानता है. बाकी पर काम चालू है. सालाना टूर्नामेंट शुरू होने जा रहा है, ठीक तभी उसे दिशा नाम की लड़की से प्यार हो जाता है. मगर यहां एक पेच है. या तो मीनू का प्यार पूरा होगा या आदर्श नगर फुटबॉल टूर्नामेंट जीत पाएगा.

'जादूगर' कई बार आइडिया के लेवल पर बिज़ार साउंड करती है. मगर यही चीज़ इसे खास भी बनाती है. जब तक आप कुछ अलग ट्राय नहीं करेंगे, कुछ नया कैसे कर पाएंगे. खैर, 'जादूगर' कई मसलों पर बात करती है. फिल्म में फुटबॉल है. मैजिक है. लव स्टोरी है. एकलव्य और द्रोणाचार्य वाला मायथोलॉजिकल एंगल भी दिखता है. इन ढेर सारी चीज़ों के बीच ये फिल्म कंफ्यूज़ सी हो जाती है. उसे पता नहीं कि किस तरफ जाना चाहिए, इसलिए वो हर जगह जाकर ट्राय करती है. इस चक्कर में मामला खिंच जाता है. और 'जादूगर' मेस्ड अप सी फिल्म बनकर रह जाती है. 

बिट्स एंड पीसेज़ में आप फिल्म एंजॉय करते हैं. उसके मोमेंट्स हैं. कुछ गंभीर विमर्ष है. जैसे फिल्म में एक सीन है, जहां प्रदीप चाचा, मीनू को समझाते हुए कहते हैं कि उसे अपने पापा का अधूरा सपना पूरा करना है. इसके जवाब में फुटबॉल खेलने के प्रेशर से फ्रस्ट्रेट हो चुका मीनू कहता है-

मुझे नहीं ढोना खानदानी सपनों का बोझ

ये इंडिया में बड़ी कॉमन प्रथा है. जो पिता नहीं कर पाया, उसे उम्मीद रहती है कि उसका बेटा वो कर दिखाएगा. बेटे से कोई नहीं पूछता कि वो पापा का सपना पूरा करना चाहता है या खुद सपने के देखे हुए सपने. ये अपने यहां इतना कॉमन है कि इस पर सीरियसली बात भी नहीं होती. 'जादूगर' में भी ये गुस्से में निकली एक लाइन की तरह सुनने को मिलती है. जिसे बोलने के बाद मीनू भी अपराधबोध से भर जाता है. अपने कहे के लिए माफी मांगता है.

'जादूगर' की कहानी का एक बड़ा हिस्सा फुटबॉल ग्राउंड पर घटता है. वहां कुछ न कुछ चल रहा है. मगर ऐसा कुछ नहीं चल रहा कि आप फिल्म को पॉज़ किए बिना फोन चेक न कर सकें. मामला थोड़ा टाइट और क्रिस्प हो सकता था. पौने तीन घंटे की लंबाई आपको थका देती है. 'जादूगर' के डायलॉग्स मज़ेदार हैं. ढेर सारा वर्ड प्ले है. वो चीज़ व्यूइंग एक्सपीरियंस को बेहतर बनाने की कोशिश करती है.

फिल्म के एक सीन में स्टेज पर जादू करता मीनू

'जादूगर' में दो चीज़ें कमाल लगती है. अव्वल, आपको हर प्राइमरी कैरेक्टर की यकीनी बैकस्टोरी बताई जाती है. और दूसरी चीज़ है, हीरो और विलन के बीच की फाइन लाइन का ब्लर हो जाना. यहां हीरो ही फिल्म का विलन भी है. 'जादूगर' में मीनू का रोल किया है जीतेंद्र कुमार ने. हालांकि क्रेडिट प्लेट पर उनका नाम- जीतू ही दिखलाई पड़ता है. जीतू ने अपने लिए एक स्पेस बना लिया है. अपने करियर में अधिकतर मौकों पर उन्होंने छोटे शहरों के बॉय नेक्स्ट डोर वाले कैरेक्टर प्ले किए हैं. ये चीज़ उन पर फबती है. इस फिल्म में दो मोंट्स ऐसे हैं, जहां जीतू माइटी इंप्रेसिव लगते हैं. पहला सीन वो, जिसमें उनका किरदार पहली बार अपनी गर्लफ्रेंड के पिता से मिलता है. वहां एक सीन है, जहां जीतू पर शाहरुख खान का हैंगोवर नज़र आता है. मगर वो उसे अपने तरीके से पुल ऑफ करते हैं. दूसरा सीन फिल्म के क्लाइमैक्स में आता है, जब मीनू को अपनी गलती का अहसास होता है. वो खुद से निराश है. दुखी है. रो रहा है. उसमें जीतू का काम अच्छा लगता है.

फिल्म के एक सीन में आरुषी शर्मा. आरुषी ने मीनू की लव इंट्रेस्ट का किरदार निभाया है.

दिशा का रोल किया है 'लव आज कल' फेम आरुषी शर्मा ने. वो अपनी लाइफ में जो कुछ भी कर रही है, उसकी एक वजह है. आरुषी को फिल्म में ठीक-ठाक स्क्रीनटाइम मिलता है. और वो डीसेंट लगती है. जावेद जाफरी ने मीनू के चाचा प्रदीप का रोल किया है. आज कल जावेद जाफरी को देखकर अनिल कपूर वाली वाइब्स आने लगी हैं. पीछे कई फिल्मों में कॉमिक रोल्स करने के बाद वो एक सीरियस रोल में देखने को मिलते हैं. अच्छा चेंज है. उन्हें अपने भीतर के एक्टर को और एक्सप्लोर करना चाहिए. उन्हें भी मज़ा आएगा और दर्शकों को भी. 'जादूगर' में मनोज जोशी भी छोटे से किरदार में नज़र आते हैं.

जावेद जाफरी बने हैं मीनू के चाचा औऱ नीमच के पूर्व फुटबॉल स्टार. 

‘जादूगर’ हटके सब्जेक्ट पर बनने के बावजूद लीक पकड़कर चलती सी लगती है. मगर ये फिल्म कन्वेंशनल एंडिंग से बचती है. ओवरऑल ये चीज़ फिल्म के फेवर में काम करती है. कुल मिलाकर बात ये है कि 'जादूगर' नए किस्म का सिनेमा बनने की राह पर चलती है. कोशिश के लेवल पर ये ठीक है. मगर फाइनल फिल्म वैसी नहीं बन सकी, जिसे आप थ्रूआउट एंजॉय कर सकें. कुछ नया करने की कोशिश के लिए फुल मार्क्स, मगर उस कोशिश में सफल न होने के मार्क्स तो कटने चाहिए.

'जादूगर' को आप नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम कर सकते हैं. 

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement