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'ऐ मेरे वतन के लोगों' किस डब्बी पर लिखा गया था जान लिया तो खोपड़ी भन्ना जाएगी

कवि प्रदीप का आज बर्थडे है.

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'ऐ मेरे वतन के लोगों' के लेखक कवि प्रदीप के साथ लता और म्यू़ज़िक डायरेक्टर सी. रामचंद्र.
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श्वेतांक
6 फ़रवरी 2021 (Updated: 5 फ़रवरी 2021, 05:12 AM IST)
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ऐ मेरे वतन के लोगों... तुम खूब लगा लो नारा ये शुभ दिन है हम सब का लहरा लो तिरंगा प्यारा पर मत भूलो सीमा पर वीरों ने है प्राण गंवाएकुछ याद उन्हें भी कर लो जो लौट के घर न आये...

आजादी के पहले और बाद में कई देशभक्ति गीत बने. देश का, जवानों का बहुत बखान किया गया. लेकिन कुछ कमी जरूर रह गई होगी. जिसे कवि प्रदीप के लिखे इस गाने ने पूरा कर दिया. भारत-चीन युद्ध के शहीदों को याद करते हुए लिखे गए इस गीत को लता ने पहली बार 27 जनवरी, 1963 को दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में गाया था. ये गीत समय के साथ बहुत ही खास होता चला गया. इसने लोगों को बहुत भावुक किया. इस बात को लेकर कि बॉर्डर पर खड़े सेना के जवान अपने देशवासियों के लिए कितना त्याग करते हैं. उन्हीं की बदौलत हम अपने घरों में निश्चिंत होकर बैठते हैं.

हम अपने सैनिकों के लिए इस भाव को यूं महसूस कर पाते हैं तो रामचंद्र नाराणयजी द्विवेदी की वजह से जो कवि प्रदीप के नाम से जाने गए. 6 फरवरी, 1915 को कवि प्रदीप मध्य प्रदेश के बड़नगर में जन्मे थे. निधन 11 दिसंबर 1998 को मुंबई में हुआ था.


कवि प्रदीप के साथ लता मांगेशकर.
कवि प्रदीप के साथ लता मंगेशकर.

उनके लिखे इस गीत 'ऐ मेरे वतन के लोगों' के बनने का किस्सा बहुत मजेदार है.

1962 में इंडिया-चाइना वॉर के बाद सेना के जवानों को आर्थिक मदद देने के लिए हमारे फिल्म जगत के लोग भी आगे आए. 'मदर इंडिया' (1957) फेम डायरेक्टर मेहबूब खान ने एक फंड रेज़र आयोजित किया ताकि पैसे जमा किए जा सकें. ये कॉन्सर्ट 27 जनवरी 1963 को होने वाला था. इसकी गेस्ट लिस्ट बहुत लंबी और हाई प्रोफाइल थी. इसमें प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, राष्ट्रपति एस. राधाकृष्णन, दिलीप कुमार और देव आनंद समेत बॉलीवुड के बहुत सारे लोग मौजूद रहने वाले थे.

कॉन्सर्ट के लिए भारतीय फिल्मों के सभी मशहूर संगीतकारों को अपने एक-एक देशभक्ति गाने के साथ बुलाया गया, जो वो उस दिन गाने वाले थे. लिस्ट में नौशाद, शंकर-जयकिशन, मदन मोहन और सी. रामचंद्र जैसे नाम शामिल थे. सभी अपनी फिल्म के गानों के साथ तैयार थे लेकिन रामचंद्र के पास कोई गाना नहीं था. ऐसे में वो मशहूर कवि प्रदीप के पास पहुंचे और उनसे एक गाना लिखने की गुज़ारिश की. लेकिन प्रदीप ने मजाकिया अंदाज़ में झटकते हुए कहा कि 'फोकट का काम हो तो आते हो'. लेकिन बाद में प्रदीप से गाना लिखने का वादा लेकर रामचंद्र वहां से चले गए.

प्रदीप एक दिन ऐसे ही माहिम बीच पर टहल रहे थे. उनके दिमाग में एक लाइन कौंधी और फट से एक पूरा पैरा तैयार हो गया. अब टहलने आदमी बैग लेकर तो जाता नहीं है. बगल के एक राहगीर से पेन मांगा और अपने सिगरेट का डिब्बा फाड़कर उलट दिया और लिखने लगे. यहां से शुरुआत हो गई. घर पहुंचे और गाना खत्म किया. कुल सौ पैराग्राफ तैयार हो गए थे. रामचंद्र आए और पहला पैरा देखकर ही गाना पसंद कर लिया. जरूरत भर लिया और बाकि कवि के पास रहने दिया.

अब इसे गवाने की कवायद शुरू हुई. लता उस समय की टॉप सिंगर थीं लेकिन रामचंद्र से उनकी बातचीत बंद थी. ऐसे में आशा भोसले से रिहर्सल शुरू करवा दिया गया. लेकिन प्रदीप चाहते थे कि ये गाना लता ही गाएं. इसके लिए प्रदीप ने लता से गुज़रिश की और लता मान गईं. और बात तय हुई कि ये लता-आशा का ड्यूएट होगा. आशा ने अगले दिन म्यूज़िक डायरेक्टर को फोन करके कह दिया कि उनकी तबीयत थोड़ी नासाज़ है, इसलिए वो दिल्ली नहीं जा पाएंगी. अब ये गाना सोलो लता का हो गया.


ये गाना पहले आशा और लता का ड्यूएट होने वाला था, लेकिन आशा की तबियत खराब होने के कारण इसे लता ने अकेले गाया.
ये गाना पहले आशा और लता का ड्यूएट होने वाला था. आशा की तबीयत खराब होने के चलते लता ने सोलो गाया. 

कॉन्सर्ट वाला दिन आया और महफिल सज गई. रफी ने फिल्म 'लीडर' से 'अपनी आज़ादी को हम' गाया और मजमा लूट लिया. फिर लता का नंबर आया. उन्होंने शुरू किया ही था कि स्टेडियम में सन्नाटा पसर गया. गाना खत्म होने को आया और 'जय हिंद, जय हिंद. जय हिंद की सेना' गूंजने लगा. लोग बौखलाकर इधर-उधर देखकर उस कोरस वाली आवाज़ को ढ़ूंढ़ने लगे. रामचंद्र चाहते थे कि जब कोरस गाया जाए तब आवाज गूंजें इसलिए उन्होंने अपने कोरस सिंगर्स को पर्दे के पीछे छुपाकर रखा था. ऐसा लगे कि पूरा हिंदुस्तान एक साथ गा रहा है. उनकी ये जुगत काम कर गई.

गाना पूरा होने के बाद महबूब खान लता के पास आए और कहा कि उन्हें पंडित जी बुला रहे हैं. ये सुनकर लता के कान खड़े हो गए. उन्हें लगा कि उनसे कोई गलती हो गई है. लता नेहरू जी के पास पहुंचीं और देखा नेहरू आंखों में आंसू लिए खड़े थे. उन्होंने उनसे कहा 'लता, तुमने आज मुझे रुला दिया'. इसके बाद लता की सांस में सांस आई. ये बात लता ने अपने एक इंटरव्यू में बताई थी. लता ने बताया कि ये गाना वो तकरीबन 100 से ज़्यादा कॉन्सर्ट में गा चुकी हैं.


गाना खत्म करने के बाद नेहरू से मिलतीं लता.
गाना खत्म करने के बाद नेहरू के साथ लता.


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