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आज़ादी से पहले जन्मे इस गायक ने सलमान को टॉप पर पहुंचाने के लिए सबसे ज़्यादा एफर्ट किए

उस कॉलेज ड्रॉपआउट के 6 गीत और ढेरों किस्से, जिसने 40,000 गाने गाकर वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया

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मैंने प्यार किया के एक पोस्टर में सलमान और एस पी बालसुब्रमण्यम स्टेज परफोर्मेंस देते हुए.
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दर्पण
4 जून 2020 (Updated: 4 जून 2020, 01:42 PM IST) कॉमेंट्स
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सलमान का गीत आया है. गीत आया है मतलब उन्होंने इस गीत को लिखा है. गीत का नाम है – सेल्फिश.
अगर आप अपने कानों, अपनी आत्मा और अपने लिए सेल्फिश हैं तो प्लीज़ ये गीत अवॉयड कीजिएगा. क्यूंकि मैंने सुना है कि आत्महत्या करने के कुछ और आसान तरीके भी मार्केट और गूगल सर्च में उपलब्ध हैं. :P
बहरहाल, इससे पहले भी भाई जान के कई गीत आ चुके हैं. लेकिन उन गीतों में उन्होंने लेखन कला की बजाय अपनी गायन कला का प्रदर्शन किया था. एक ऐसा ही गीत जो मुझे याद आ रहा है –
चांदी की डाल पर सोने का मोर.
लेकिन इन सभी प्रयोगों से पहले कई सालों तक ‘अच्छे दिन’ और ‘अच्छे गीत’ सलमान खान का पर्यायवाची थे और लोग न केवल पलकें बल्कि कान बिछाकर भी सलमान की अगली फ़िल्म का इंतज़ार करते थे. साथ ही जिस तरह बसंत के इंतज़ार में प्रेम का इंतज़ार भी छुपे ढंग से शमिल रहता है ठीक उसी तरह सलमान की अगली मूवी के इंतज़ार में एस पी बालसुब्रमण्यम की आवाज़ की उम्मीद भी जाने अंजाने बनी रहती ही थी.
सलमान खान की फैन फोलॉइंग तीन-चार जनरेशन तक फैली है. प्यार किया तो डरना क्या में उनके कमबैक के बाद बनी फोलॉइंग में एस पी बालसुब्रमण्यम मिसिंग थे. उसमें सलमान लेकर आए थे - पेट के बिस्कुट, डांस, ‘ओ ओ जाने जाना’ गीत को गाने वाले कमाल खान और म्यूज़िक डायरेक्टर हिमेश रेशमिया.
और इस तरह चिर युवा सलमान, जनरेशन गैप को लांघकर एक जनरेशन छोड़ दूसरी जनरेशन के फेवरेट बन गए थे. ये सलमान टू पॉइंट ओ थे.
दीवाना मैं चला (फ़िल्म 'प्यार किया तो डरना क्या)
दीवाना मैं चला (फ़िल्म 'प्यार किया तो डरना क्या')


मगर हमें तस्वीर का वही रंग सबसे ज़्यादा अच्छा लगता है, जिससे हम रिलेट कर पाएं. यूं एक तरफ सलमान अपने 6 पैक एब्स के साथ कमबैक कर चुके थे, दूसरी तरफ उनके ‘मैंने प्यार किया’ वाले फ़ॉलोवर्स की तोंद उनकी उम्र से सिंक करके 32 34 36 हुआ चाहती थी. ये सलमान के ‘डेस्कटॉप’ वर्ज़न वाले फोलोवर उनके ‘लैपटॉप’ अवतार के बाद अपनी हार्ड डिस्क, ‘अपना’ एस पी बालसुब्रमण्यम संभाल के निकाल लाए थे. नए सलमान को, बगैर एस पी वाले सलमान को, वो नहीं जानते थे.
‘अब न रहे वे पीने वाले, अब न रही वो मधुशाला.’ कहते हुए उन्होंने ‘मैंने प्यार किया’ का बी साइड लगा दिया –
बन के लहू नस-नस में मुहब्बत दौड़े और पुकारे, प्यार में सब कुछ हार दिया अब हिम्मत कैसे हारें.
इस सारे दौरान न दोष सलमान का था, न दोष एस पी का था, न ही दोष फैन की बढ़ती उम्र का था. दोषी थे इमोशंस, जो ‘आया मौसम दोस्ती का’ पर कुछ थे और ‘हम आपके हैं कौन’ पर कुछ और.
एस पी ने गाना तब भी नहीं छोड़ा, लेकिन सलमान ने जहां युवाओं वाला ट्रैक पकड़ लिया था वहीं मैच्योरटी को लोग एस पी से रिलेट करने लगे थे.
लेकिन ईश्वर और एस पी के फ़ॉलोवर्स दोनों जानते हैं कि सलमान खान भी एस पी की टोटल प्रोफेशनल लाईफ का एक बहुत छोटा स्पेक्ट्रम हैं.
आज़ादी से भी एक साल पहले यानी 4 जून 1946 को जन्मे एस पी अब बहत्तर साल के हो गए हैं. वे ‘मैंने प्यार किया’ (1989) में ही सलमान खान के लिए बहुत ज़्यादा मैच्योर आवाज़ कंसीडर हो गए थे.
मैंने जब एस पी को देखा नहीं था, तब सुना था और ऐसा दसियों सालों तक चला. और जब वो 'हम आपके हैं कौन' के एक गीत में उलटी गिनती गिनते हैं – 10, 9, 8, 7...., तो यकीन करना मुश्किल होता है कि तब वो 48 वर्ष के थे.
अभी कुछ ही साल पहले, अपनी 67 वर्ष की उम्र में उन्होंने ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ (2013) में बतौर गायक कमबैक किया था. ('बतौर गायक' कहना इसलिए ज़रूरी है क्यूंकि, उन्होंने केवल गायकी ही नहीं की.)
हिंदी फिल्मों के लिए उन्होंने सबसे पहला गाना ‘एक दूजे के लिए’ (1981) के लिए गाया. दूसरा, तीसरा, चौथा और पांचवा भी. यानी कुल मिला के पांच गीत. ये ‘मैंने प्यार किया’ यानी सलमान से ‘उदय’ से आठ साल पहले की बात है.
दक्षिण भारतीय कलाकारों की ये हिंदी फ़िल्म सुपरहिट रही थी. नए-नए फेमस हुए टेप-रिकॉर्डर में नए-नए फेमस हुए एस पी का एक ही गीत बजता था. वो रेडियो में भी गाहे बगाहे आता रहता –
एक डोर खींचे दूजा दौड़ा चला आए. कच्चे धागे में बंधा चला आए, ऐसे जैसे कोई दीवाना.
एस पी बालसुब्रमण्यम
एस पी बालसुब्रमण्यम


लेकिन ये भी एस पी के कैरियर की शुरूआत नहीं थी. वो एक दक्षिण भारतीय थे और ‘एक दूजे...’ से पहले कई दक्षिण भारतीय फिल्मों में गीत गा चुके थे. उनका पहला गीत था एक तेलेगु फ़िल्म ‘श्री श्री श्री मर्यादा रमन्ना’ के लिए. और ये 1966 की बात है. उससे पहले वो इंजीनियरिंग कर रहे थे. लेकिन तबियत इतनी बिगड़ी कि पढ़ाई बीच में ही छोड़ देनी पड़ी. और फिर जब सुधरी तो दिमाग बदल चुका था. गीत संगीत में स्टेज से लेकर कंपटीशन तक में एस पी की धाक जमती चली गई. और फिर टैलेंट भी पंछी नदिया और पवन के झोंकों की तरह ही ठहरा.
अच्छा, एस पी बालसुब्रमण्यम केवल गायक ही नहीं हैं. एक्टर के रूप में ढेरों फ़िल्में कर चुके हैं. अच्छी-अच्छी फिल्मों में अच्छे-अच्छे कलाकारों की डबिंग (वॉइस ओवर) कर चुके हैं. और अगर आप कहते हैं कि हम उनके गानों के बारे में ही बताएं, तो चलिए आपको 6 गाने सुनाने से पहले उनसे जुड़े दो रिकॉर्ड बता देते हैं –
# 1 – एस पी को खुद नहीं पता कि उन्होंने कितने गीत गाए हैं. मगर ये संख्या 40 हज़ार के करीब है. जो एक रिकॉर्ड है. गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड.
# 2 – पद्म श्री, पद्म भूषण, 6 राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार, 4 फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार, सैकड़ों राज्य स्तर के पुरस्कार पा चुके बालसुब्रमण्यम एक ही दिन में कभी 19 और कभी 16 गीत रिकॉर्ड कर लेते थे. एक बार तो हद ही हो गई. साउथ इंडिया के संगीतकार उपेन्द्र कुमार के लिए उन्होंने एक ही दिन, बल्कि सिर्फ़ बारह घंटों में 21 गीत रिकॉर्ड करने का रिकॉर्ड बना दिया. जिसे आज तक कोई नहीं तोड़ पाया. एस पी ने एक बार बताया कि – कई बार तो ऐसा हुआ है कि मुझे आनंद मिलिंद के लिए एक ही दिन में 15 से 20 गीत रिकॉर्ड करने पड़ते थे.
फ़िल्म एक दूजे के लिए का एक सीन. (नॉर्थ और साउथ के प्रेमी जोड़े की अमर कहानी, जिसने एस पी की आवाज़ को घर घर पहुंचा दिया था.)
फ़िल्म एक दूजे के लिए का एक सीन. (नॉर्थ और साउथ के प्रेमी जोड़े की अमर कहानी, जिसने एस पी की आवाज़ को घर घर पहुंचा दिया था.)


अब सुनिए और देखिए वो 6 गीत जिनके चलते एस पी गायकों की पहली कतार में शामिल हो गए. मुकेश-रफ़ी-किशोर के बाद आए वॉयड को सबसे पहले अगर किसी ने भरा तो वो बालसुब्रमण्यम ही थे –


# 1 – आया मौसम दोस्ती का –
फ़िल्म मैंने प्यार किया का एक एक गीत सुपर हिट था. इसी फ़िल्म के एक गीत ‘दिल दीवाना’ के लिए एस पी को फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड मिला था. इस फ़िल्म के अन्य गीत, जैसे आते जाते, कबूतर जा जा, आजा शाम होने आई, मेरे रंग में रंगने वाली और टाइटल सॉंन्ग (मैंने प्यार किया) में भी एस पी ने अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा है. लेकिन हर फ़िल्म से एक गीत चुनने की सोची है, और इस गीत का ‘तुरू रूरू रूरू रूरूरूरू’ एस पी की आवाज़ का एक ‘सिंबल’ बन गया. जैसे कुछ कुछ होता है की सीटी, जैसे डीडीएलजे का वायलन वाला पीस.



# 2 – हम आपके हैं कौन (टाइटल सॉन्ग) –
बॉलीवुड म्यूज़िक की ये एक दुर्योग ही रहा है कि दो कलाकारों को शायद उनका ड्यू क्रेडिट नहीं मिला है, और ये दोनों ही सिख हैं. एक तो म्यूज़िक डायरेक्टर – उत्तम सिंह. जिन्होंने दिल तो पागल है, दुश्मन, बागबान और ग़दर एक प्रेम कथा जैसी फिल्मों का म्यूज़िक दिया, और इस फ़िल्म (हम आपके हैं कौन) में भी वो बतौर म्यूज़िक अरेंज़र काम कर रहे थे. और दूसरे लिरिक्स राइटर – देव कोहली. जिनका स्पेक्ट्रम इतना विशाल था कि एक तरफ ‘टन टना टन, टन टन तारा’ जैसी मस्ती भरी लिरिक्स लिखीं और दूसरी तरफ ‘बैचेन है मेरी नज़र, है प्यार का कैसा असर’ जैसी डीप, अर्थपूर्ण और शायद नब्बे के दशक की कुछ सबसे इनोसेंट रोमेंटिक लिरिक्स में से एक. आईये इस ‘प्यार के असर’ को एस पीबी की आवाज़ में सुनते हैं. ये प्रेम गीत नहीं ये गीत ही दरअसल प्रेम है.



# 3 – एक दूजे के लिए (टाइटल सॉन्ग) –
ये एस पी की पहली हिंदी फ़िल्म थी. ट्रेजिक एंडिंग वाली लव स्टोरी. पहले ये एस पी को नहीं दी जा रही थी. म्यूज़िक डायरेक्टर्स लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को लगा कि हिंदी फिल्मों में किसी साउथ इंडियन सिंगर को लेने से डिक्शन या तलफ़्फ़ुज़ की प्रॉब्लम आएगी. मगर ये निर्देशक के. बालचन्द्रन के अनुसार बुरी नहीं, अच्छी बात थी. क्यूंकि बेशक ये हिंदी फ़िल्म थी लेकिन इसका लीड कैरेक्टर हिंदी नहीं जानता था, वो साउथ इंडियन था. इस तमिलियन किरदार ‘वासु’ को एक्ट किया था कमल हासन ने. तो यूं हिंदी फिल्मों में बालसुब्रमण्यम नामक गायक की एंट्री हुई. जब इसके गीत आए तो क्या शादी, क्या बड्डे, हर जगह छा गए. उस वक्त का ‘रिबेलियन एंथम’ बन गए. एंथम जो वीर रस नहीं श्रृंगार रस से ओतप्रोत था. अपने पहली ही हिंदी फ़िल्म में एस पी ने राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार जीत लिया. उधर फ़िल्म की एंडिंग के बाद दर्शक के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे, इधर एस पी अपनी पहली ‘उत्तर भारतीय सफलता’ सेलिब्रेट कर रहे थे. -



# 4 – तुमसे मिलने की तमन्ना है –
साजन फ़िल्म ने कुमार शानू को एक और फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड दिलवाया. गीत था – मेरा दिल भी कितना पागल है. जहां एक तरफ ये प्लेबैक सिंगिंग में कुमार शानू का दौर था वहीं दूसरी तरफ ये सलमान - एस पी के कॉम्बो का दौर भी था. तो बेशक साजन फ़िल्म में कुमार शानू के गिनती के दो गाने थे, जिसमें से एक ने फ़िल्मफ़ेयर झटक लिया, लेकिन साजन फ़िल्म/एल्बम में कुल 10 गीत थे और सारे ही कमाल. इन दस गीतों में से 5 गीत एस पी ने गाए थे. और वो सब भी उतने ही चले थे जितना फ़िल्मफ़ेयर पाने वाला गीत. मुझे इनमें से एक गीत अपने अलहदा अंदाज़ और अलहदा हरकतों के चलते इस एल्बम का सबसे बेहतरीन गीत लगता था – तुमसे मिलने की तमन्ना है. बेशक एस पी और मुहम्मद रफ़ी की आवाज़ बिल्कुल अलग है लेकिन एक नशीला अंदाज़ जो रफ़ी के रोमांटिक गीतों में सुनने को मिलता है, वो यहां भी सुनने को मिलेगा. सुनिए और बताइए –



# 5 – यूं ही गाते रहो –
सलमान के अलावा कमल हासन भी ऐसे एक्टर थे जिनके लिए एस पी को ही लिया जाता था. इन दोनों की जोड़ी ने फिर से ‘सदमा’ (1983) और उसके बाद ‘सागर’ (1985) में धमाल मचाया. सागर फिल्म में तो कमल हासन को दो फिल्मफ़ेयर अवार्ड मिले हैं – बेस्ट एक्टर और बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का अवार्ड. उधर इसी फिल्म का एस पी से रिलेटेड किस्सा भी कम रोचक नहीं है.
‘सागर’ में ऋषि कपूर और कमल हासन पे फिल्माया एक मस्ती भरा गीत है- ' यूं ही गाते रहो'. इसके लिए एस पी और किशोर कुमार को फाइनल किया गया था. लेकिन रिकॉर्डिंग से पहले किशोर कुमार की तबियत गिरती जा रही थी. साथ में उम्र भी. इसलिए पहले एस पी वाला पार्ट रिकॉर्ड कर लिया गया जिससे कि तबियत में सुधर होने पर किशोर वाला पार्ट बाद में रिकॉर्ड करके दोनों को जोड़क्र पूरा गीत बनाया जा सके. जन एस पी अपना वाला पार्ट रिकॉर्ड कर चुके तो इस फ़िल्म के गीतकार जावेद अख़्तर ने देखा कि एस पी ने अपने वाले हिस्से को जबरदस्त तरीके से गाया है, उन्हें रातभर टेंशन रही कि किशोर कुमार एस पी की इस एनरजेटिक परफॉरमेंस के साथ इस बीमारी और ढलती उम्र में कैसे कम्पीट कर पाएंगे? उन्होंने इस बात का ज़िक्र किशोर दा से भी किया. किशोर कुमार ने कहा – ‘वाह! बहुत बढ़िया!! चलो देखते हैं.’
बाद में जब किशोर दा ने कुछ स्वस्थ होने के बाद अपना पार्ट गाया तब अख़्तर साहब ने चैन की सांस ली क्यूंकि न एस पी न ही किशोर एक दूसरे के सामने उन्नीस साबित हुए.
सुनिए वही गीत -



# 6 – कभी तू छलिया लगता है -
वो रीमिक्स गीत सुना है, बद्रीनाथ की दुल्हनिया का – तम्मा तम्मा लोगे?
मैं इस गीत की बात क्यूं कर रहा हूं. इसलिए क्यूंकि इस गीत में जो बीच में ‘बीन बजाती हुई नागिन और सलाम ले जाता हुआ उड़नखटोला’ वाली लाइन है, वो दरअसल मुझे सलमान खान की फ़िल्म – 'पत्थर के फूल' की याद दिलाती है. कारण है – मेरे शहर में बागेश्वर में होने वाला उत्तरायणी का मेला. उस मेले में ढेरों तरह के झूले, मौत का कुआं और न जाने क्या क्या शो होते थे, होते हैं. 1991 में पहली बार मैंने इतने विशाल स्तर पर कोई मेला देखा था. और टिकट बेचने के दौरान पत्थर के फूल के गीत. गोया हर जादू वाले, हर मौत के कुएं वाले, हर सर्कस वाले टेंट के पास एक यही कैसिट था. इसके गीत – ‘कभी तू छलिया लगता है’ और बीच में अपने खेल मज़मे का विज्ञापन – दोस्तों, शो शुरू हो रहा है.
अब पता नहीं वो मेले होते होंगे या नहीं, और वैसी ही चहल पहल रहती होगी या नहीं - अब न रहे वो पीने वाले, अब न रही वो मधुशाला’.
खैर इस फ़िल्म का गीत सुनिए और इससे जुड़ी हुई किसी याद को चैरिश कीजिए –



 
वीडियो: ये फिल्म विचलित भी करती है और हिम्मत भी देती है

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