इस बजट के मौसम में निर्मला सीतारमण की प्लेलिस्ट में ये 12 फ़िल्मी गाने ज़रूर होने चाहिए
...और आपकी भी.
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ऊपर, गुलज़ार के लिखे एक गीत का मुखड़ा. नीचे 'पीपली' लाइव का पोस्टर.
मूवी- क्रांति (1981) लिरिक्स- संतोष आनंद म्यूज़िक- लक्ष्मीकांत प्यारेलाल गायक- महेंद्र कपूर# 2) फिर आता है वो गीत, जिस गीत को सुने बिना बजट वाला मौसम शुरू ही नहीं हो सकता. क्यूं? ये आप गेस करके देखिए. ‘आ गया, आ गया हलुवा वाला आ गया.’
मूवी- डांस डांस (1987) लिरिक्स- अंजान म्यूज़िक- बप्पी लाहिरी गायक- विजय, उत्तरा, सारिका# 3) अब बारी-बारी से आते हैं वो गीत, जिनमें पैसा है, महंगाई है, नून-तेल के दाम हैं, रियल इस्टेट है, और नौकरी है. जैसे, ‘सखी सैयां तो खूब ही कमात हैं, महंगाई डायन खाए जात है.'
मूवी- पीपली लाइव (2010) लिरिक्स- भादवाई, बृज मंडल म्यूज़िक- राम संपत गायक- रघुबीर यादव# 4) गुलज़ार. जिन्होंने शायद ही किसी विधा पर अपनी कलम न चलाई हो. तो बाज़ार पर भी चलाई. थोड़ी एबस्ट्रेक्ट लेकिन मारक- बाज़ारों के भाव, मेरे ताऊ से बड़े, मकानों पर पगड़ी वाले ससुर खड़े. बूढ़ी भूख मरती नहीं, ज़िन्दा है अभी, कोई इन बुज़ुर्गों से कैसे लड़े?
मूवी- मेरे अपने (1971) लिरिक्स- गुलज़ार म्यूज़िक- सलिल चौधरी गायक- मुकेश, किशोर# 5) महंगाई, बजट, रोटी, कपड़ा और मकान का रिश्ता दर्शाता गीत, 'बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई.'
मूवी- रोटी कपड़ा और मकान (1974) लिरिक्स- वर्मा मलिक म्यूज़िक- लक्ष्मीकांत प्यारेलाल गायक- लता मंगेशकर, मुकेश, जैन बाबू कव्वाल, नरेंद्र चंचल# 6) महंगाई. सिर्फ कमोडिटीज़ में ही नहीं, मेटल्स में भी. इसलिए ही तो ऋषि कपूर, जयाप्रदा के लिए सोने के बदले चांदी ले आए हैं.
मूवी- धरतीपुत्र (1993)लिरिक्स- समीरम्यूज़िक- नदीम श्रवणगायक- कुमार सानू, अलका याग्निक# 7) जावेद अख्तर. एक और बड़े नाम. उन्हें भी शायद बजट से राहत नहीं मिली. और यूं उनका प्रेम कॉस्ट कटिंग की भेंट चढ़ गया. तो लाज़िम था कि पूछें,’ये जो थोड़े से हैं पैसे, खर्च तुमपर करूं कैसे?’
मूवी- पापा कहते हैं (1996)लिरिक्स- जावेद अख्तरम्यूज़िक- राजेश रोशनगायक- कुमार सानू# 8) कुछ लोग जिन्हें शायद इनकम टैक्स रिटर्न भरने में, जीएसटी और बजट समझने में दिक्कत है उनके लिए ये गीत एंथम है. कि पैसा ये कैसा? ये हो मुसीबत, न हो मुसीबत.
मूवी- कर्ज़ (1980)लिरिक्स- आनंद बक्षीम्यूज़िक- लक्ष्मीकांत प्यारेलालगायक- किशोर कुमार# 9) रियल एस्टेट के हाल ऐसे, कि एक अदद ‘घरोंदे’ के लिए कभी एक अकेला और कभी दो दीवाने, कभी रात में और कभी दोपहर में आशियाना ढूंढ रहे हैं.
मूवी- घरोंदा (1977)लिरिक्स- गुलज़ारम्यूज़िक- जयदेवगायक- भूपिंदर# 10) मदर इंडिया. भारत की बेहतरीन मूवीज़ में से एक. किसानों और उनकी दिक्कतों से जुड़ी. इसके एक गीत को सुनिए. उसके पिक्चराईज़ेशन को देखिए. 'हमरी सारी मेहनत माया ठगुवा ठग ले जाए. उमरिया घटती जाए रे...'
मूवी- मदर इंडिया (1957)लिरिक्स- शकील बदायूंनीम्यूज़िक- नौशादगायक- मन्ना डे# 11) आम आदमी की दिक्कतों से जुड़ा मुद्दा हो और शैलेंद्र की लिरिक्स के बिना ही खत्म हो जाए? नहीं न. तो सुनिए, 'छोटे से घर में गरीब का बेटा.' या यूं कि 'दिल का हाल सुने दिलवाला.'
मूवी- श्री 420 (1955)लिरिक्स- शैलेंद्रम्यूज़िक- शंकर जयकिशनगायक- मन्ना डे# 12) और लास्ट में उम्मीद से शुरू हुआ सफर उम्मीद पर जाकर खत्म होगा. 'जिस दिन पैसा होगा...'
मूवी- खट्टा मीठा (1978)लिरिक्स- गुलज़ारम्यूज़िक- राजेश रोशनगायक- लता मंगेशकर, किशोरये थीं हमारी तरफ से 12 रेकमंडेशन आपकी ‘बजट प्लेलिस्ट’ के वास्ते. हालांकि इन 12 गीतों के अलावा भी कई गीत हैं. जैसे,’क्यूं पैसा-पैसा करती है’, या,’मुझे मिल जो जाए थोड़ा पैसा’. आप चाहें तो उन्हें भी अपनी प्लेलिस्ट में जगह दे सकते हैं. कुछ नौकरी से जुड़े भी गीत हैं, लेकिन वो कोर इश्यू नहीं. हालांकि कोर इश्यू तो इस वक्त बजट भी नहीं. खैर, जाते-जाते एक पंजाबी गीत, बोनस (दीवाली वाला नहीं) में. जिसके मायने हैं- अब तो पेट्रोल भी महंगा हो गया, तेरे आगे पीछे कैसे डोलूं-
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