मूवी रिव्यू: 200 हल्ला हो
उस सच्ची घटना पर आधारित फिल्म, जहां 200 औरतों ने एक आदमी को कोर्ट में घुस कर मार डाला.
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जब 200 औरतों ने दिनदहाड़े कोर्ट में घुसकर लोकल गुंडे को मार डाला था. फोटो - ट्रेलर
दिन था 13 अगस्त, 2004 का. नागपुर के कस्तूरबा नगर की घटना. वहां के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में अक्कू यादव नामक शख्स की पेशी थी. दोपहर का वक्त था. एकाएक कोर्ट में औरतों की एक भीड़ घुस आई. जिनकी संख्या थी 200. उनके हाथों में रसोईघर वाला चाकू, पत्थर और मिर्च पाउडर था. बिना ज्यादा समय गवाएं ये औरतों की भीड़ अक्कू यादव पर टूट पड़ीं. 15 मिनट बाद सीन क्लियर. कोर्ट के व्हाइट मार्बल फ्लोर पर अक्कू का खून बह रहा था. उसके शरीर पर 70 से ज्यादा घाव के निशान थे. कौन था ये शख्स अक्कू यादव? क्या दुश्मनी थी उन महिलाओं की उससे. और क्या थे वो हालात जिनके चलते उन्होंने दिनदहाड़े ऐसा कदम उठाने की सोची.ऐसे ही सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश में एक फिल्म बनाई गई है. ‘200 हल्ला हो’ के टाइटल से. फिल्म ज़ी5 पर स्ट्रीम हुई है. एक असाधारण घटना को स्क्रीन पर कैसे उतारा गया है, यही जानने के लिए हमने भी ये फिल्म देखी. फिल्म में क्या अच्छा लगा और क्या नहीं, आइए जानते हैं. # 200 Halla Ho की कहानी क्या है? गैस स्टोव पर प्रेशर कुकर चढ़ा हुआ है. फिल्म का सबसे पहला शॉट. जैसे गृहस्थ औरतों को दिखाने का प्रतीक बन गया हो. टाइटल रोल होते हैं और कट-टू-कट शॉट्स चलते हैं. सिलाई मशीन के बगल में पड़ी कैंची उठाने का. बच्चे के ज्योमेट्री बॉक्स से कम्पास निकालने का. रसोई में लगभग सभी सेम लगने वाले डिब्बों में से किसी एक से मिर्ची पाउडर निकालने का. तेज़ सीटी के साथ ध्यान भंग करता हुआ प्रेशर कुकर बज उठता है. औरतों की भीड़ अपने-अपने घरों से निकलती दिखती है. कोर्ट पहुंचती हैं.

शोषित और शोषक की कहानी बताती है फिल्म.
बल्ली एक दलित बस्ती का रहने वाला था. जात-पात वाला मामला बनने से पहले ही प्रशासन इसे दबाना चाहता है. पूरी फिल्म एक रियल घटना पर बेस्ड है. इसलिए हम टर्न ऑफ इवेंट्स से पहले ही परिचित रहते हैं. बावजूद इसके, फिल्म एक न्यूज़पेपर आर्टिकल बनकर नहीं रह जाती. हर कहानी को दूसरी से अलग उसका नज़रिया ही करता है. वरना तो दुनिया में हर दूसरी कहानी लगभग सेम है. फिल्म के पास वो नज़रिया है, पर्स्पेक्टिव है. इस बात के लिए ‘200 हल्ला हो’ की तारीफ होनी चाहिए.