बिहार NDA के साथ जाएगा या महागठबंधन के? जानिए लोकसभा चुनाव 2024 में बिहार का सियासी गणित
Lok Sabha Election 2024: बिहार की 40 लोकसभा सीटों को साधे बिना दिल्ली का रास्ता तय करना किसी भी पार्टी या गठबंधन के लिए आसान नहीं होता है. पिछले चुनाव में NDA को जहां एकतरफा जीत मिली थी, वहीं इस बार काफी कुछ बदला हुआ नजर आ रहा है.
लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024). चुनावी बिगुल फूंका जा चुका है. सभी पार्टियों और गठबंधनों की तैयारी शुरू हो गई है. फोकस बिहार पर भी है. पिछले चुनावों के बारे में बात करें तो दो बार से BJP के नेतृत्व वाली NDA गठबंधन बिहार में कमाल कर रहा है. वहीं इस बार RJD और कांग्रेस के नेतृत्व वाले I.N.D.I.A गठबंधन को लेकर सियासी गलियारों में तमाम चर्चाएं चल रही हैं.
राज्य में लोकसभा चुनाव से ऐन पहले एक ऐसा गठबंधन बना है, जिसने सारे सियासी समीकरणों को बदल डाला. बात हो रही है मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के NDA से हाथ मिलाने की. वही, नीतीश कुमार जो I.N.D.I.A गठबंधन के सबसे बड़े सूत्रधार माने जा रहे थे. जिनके नेतृत्व में गठबंधन की पटना में सबसे पहली और सबसे बड़ी बैठक हुई थी. उन्होंने चुनाव से कुछ महीने पहले ही यानी जनवरी 2024 में फिर से NDA का दामन थाम I.N.D.I.A गठबंधन को झटका दे दिया. वैसे 2019 में भी नीतीश NDA के साथ लोकसभा चुनाव लड़े थे. लेकिन साल 2022 में उन्होंने NDA का साथ छोड़ RJD-कांग्रेस गठबंधन का दामन थाम लिया था.
नीतीश कुमार ने जब एक बार फिर से पाला बदला तो फिर उन्हें लेकर तमाम बातें होने लगीं. कहा गया कि नीतीश कब पलट जाएंगे, उन्हें खुद भी ये नहीं पता होता है. ऐसे में सवाल उठता है कि कई बार धोखा खाने के बावजूद BJP ने नीतीश कुमार पर भरोसा क्यों किया? सियासत को लेकर अक्सर माना जाता है कि यूं ही कोई फैसला नहीं लिया जाता है. हर समझौते के नफा-नुकसान होते हैं. अब नीतीश के I.N.D.I.A गठबंधन का साथ छोड़ने और NDA गठबंधन का दामन थामने के क्या फायदे-नुकसान हैं? और अब तक बिहार का चुनावी पैटर्न कैसा रहा है? सब विस्तार से जानते हैं.
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40 सीटों को लेकर जंगएकदम शुरू से शुरू करते हैं. बिहार में लोकसभा की टोटल सीटें 40 हैं. पिछली बार के चुनाव में BJP को 17, JDU को 16, LJP (ओवरऑल) को 6 और कांग्रेस को एक सीट मिली थी. मौजूदा गठबंधन पर नजर डालें तो NDA में BJP और नीतीश के अलावा चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी भी हैं. दूसरी तरफ I.N.D.I.A गठबंधन में राहुल गांधी के साथ खड़े हैं- तेजस्वी यादव. तेजस्वी और I.N.D.I.A को लेफ्ट की पार्टियों का भी साथ है.
सीटों के बंटवारे की बात करें तो NDA की तरफ से इसका औपचारिक एलान किया जा चुका है. बीजेपी को 17, जदयू को 16 और लोजपा (रामविलास) को 5 सीटें मिली है. जीतन राम मांझी की हम और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा पार्टी को एक-एक सीट मिली है. इधर, I.N.D.I.A की तरफ से अभी शीट शेयरिंग फॉर्मूला फाइनल नहीं हुआ है.
NDA की सीटें | पार्टी |
BJP | 17 |
JDU | 16 |
LJP | 5 |
HAM | 1 |
RLMP | 1 |
अब आप भी जनबे करते हैं कि बिहार की राजनीति को कुछ हजार शब्दों में समेटना आसान नहीं होने वाला है. तो थोड़ी सहूलियत के लिए हम इसे मोटा-मोटी छह क्षेत्रों में बांट ले रहे हैं. मगध, भोजपुर, मिथिलांचल, सीमांचल, कोसी और चंपारण. इन इलाकों में कुल 38 जिले और 40 लोकसभा सीटें हैं.
मगध
ये बिहार का सबसे महत्वपूर्ण इलाका माना जाता है. इसमें कुल 10 लोकसभा सीटें हैं. पटना साहिब, पाटिलपुत्र, गया, नवादा, जहानाबाद, औरंगाबाद, जमुई, बांका, मुंगेर और नालंदा.
मिथिलांचल
मिथिलांचल के अंदर लोकसभा की 10 सीटें हैं. जिसमें दरभंगा के अलावा सीतामढ़ी, शिवहर, मुजफ्फरपुर, वैशाली, हाजीपुर, मधुबनी, झंझारपुर, समस्तीपुर और उजियारपुर की सीटें शामिल हैं.
सीमांचल
सीमांचल के अंदर लोकसभा की चार सीटें हैं. अररिया, पूर्णिया, कटिहार और किशनगंज.
सारण
लोकसभा की कुल 8 सीटें हैं. महाराजगंज, बक्सर, आरा, सासाराम, काराकाट, गोपालगंज, सीवान, और सारण.
चंपारण
चंपारण से लोकसभा की कुल तीन सीटें हैं. बाल्मीकि नगर, पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण.
कोसी
कोसी से लोकसभा की चार सीटें निकलती हैं. सुपौल, मधेपुरा, बेगूसराय, खगड़िया और भागलपुर.
नोट: इनका बंटवारा सिर्फ समझने और समझाने के लिए किया गया है. इन क्षेत्रों में से कई सीटों को लेकर लोगों की अलग-अलग राय हो सकती है.
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जातिगत पॉलिटिक्सबिहार में चुनाव हो और जातियों का रोल ना हो, ये संभव हो ही नहीं सकता. इसलिए पहले जातियों का पूरा समीकरण जान लेते हैं. पिछले साल राज्य में जातिगत सर्वे के जो आंकड़े जारी हुए, उनमें पिछड़े वर्ग की संख्या 3 करोड़ 54 लाख 63 हजार थी. यानी 27.12 प्रतिशत. जबकि अत्यंत पिछड़ा वर्ग की आबादी 4 करोड़ 70 लाख 80 हजार थी. यानी 36.01%. अनुसूचित जाति यानी दलित समुदाय की आबादी है- 2 करोड़ 56 लाख 89 हजार. यानी 19.65 प्रतिशत. अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासी आबादी है- 21 लाख 99 हजार. यानी 1.68 फीसदी. वहीं अगड़ी जातियों की आबादी है- 2 करोड़ 2 लाख 91 हजार. यानी 15.52 फीसदी.
सरकार ने पिछले साल जो आंकड़ा जारी किया है, उसके मुताबिक, राज्य में यादव 14 फीसदी, ब्राह्मण 3.66 फीसदी, भूमिहार 2.86 फीसदी, राजपूत 3.45 फीसदी, कुर्मी 2.87 फीसदी, मुसहर 3 फीसदी, तेली 2.81 परसेंट, मल्लाह 2.60 परसेंट हैं. बिहार में 200 से ज्यादा जातियां अलग-अलग वर्गों में कैटगराइज हैं, इसलिए एक साथ सभी को पूरा रखना संभव नहीं है.
धर्म के आधार पर बताएं तो हिंदुओं की आबादी है 10 करोड़ 71 लाख 92 हजार. यानी 81.99 परसेंट. मुस्लिमों की आबादी है 2 करोड़ 31 लाख 49 हजार. यानी 17.70 फीसदी. इनमें चार से साढ़े चार फीसदी आबादी अगड़े मुस्लिमों की है. बौद्ध एक लाख 11 हजार यानी 0.08 परसेंट. ईसाई आबादी है 75 हजार यानी 0.05 फीसदी.
मुस्लिम-यादव (MY) समीकरणअब बात जातीय समीकरण की कर लेते हैं. जैसा कि हम पहले बता चुके हैं कि राज्य में यादव 14 फीसदी और मुसलमान लगभग 18 फीसदी हैं. ऐसे में मुस्लिम और यादव का सूबे की करीब 100 विधानसभा सीटों पर राजनीतिक असर है. सूबे में 13 लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां मुसलमान वोटरों की संख्या 12 फीसदी से लेकर 67 फीसदी के आसपास है. सीमांचल इलाकों में मुसलमान सबसे बड़ी भूमिका में नजर आते हैं. किशनगंज में सबसे ज्यादा 67 फीसदी मुसलमान हैं. जबकि कटिहार में 38 फीसदी, अररिया में 32 फीसदी और पूर्णिया में 30 फीसदी के आसपास मुसलमान वोटर्स हैं.
इसके अलावा दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीवान, शिवहर, खगड़िया, भागलपुर, सुपौल, मधेपुरा, औरंगाबाद, पटना और गया में भी मुसलमान वोटर अहम भूमिका निभाते हैं. बात 2019 के लोकसभा चुनाव की करें तो डॉक्टर मोहम्मद जावेद संसद पहुंचने वाले इकलौते मुस्लिम सांसद थे. उन्होंने किशनगंज में कांग्रेस की तरफ से चुनाव जीता था. जबकि साल 2014 में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों से 4 मुस्लिम सांसद चुने गए थे.
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, 1989 के भागलपुर दंगों के बाद मुसलमानों ने कांग्रेस के खिलाफ मतदान करना शुरू कर दिया था. इसके बाद से मुसलमान वोटर्स को RJD लुभाने में कामयाब रही थी. हालांकि, साल 2005 के बाद से मुसलमान वोटर्स का झुकाव नीतीश कुमार की तरफ भी देखा गया है.
वहीं बात यादवों की करें तो पटना, बांका, आरा, मधुबनी, दरभंगा, वैशाली, समस्तीपुर, मधेपुरा, खगड़िया और सहरसा सीटों पर ये अहम रोल में होते हैं. पारंपरिक तौर पर इन्हें राजद का वोटर माना जाता है और ये काफी हद तक उन्हें वोट करते भी हैं. लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में यादव वोटर्स ने अच्छी संख्या में NDA गठबंधन को भी वोट किया. नतीजा ये रहा है कि BJP से नित्यानंद राय, अशोक कुमार यादव और राम कृपाल यादव संसद पहुंचे. जबकि जदयू से दिनेश चंद्र यादव और गिरधारी यादव ने चुनाव में जीत हासिल की थी. हालांकि, इस बार यादवों का झुकाव काफी हद तक तेजस्वी यादव की तरफ नजर आ रहा है. इसको लेकर वरिष्ठ पत्रकार शशि भूषण कुमार बताते हैं,
पिछले चुनावों में क्या हुआ?“यादव वोटर्स को तेजस्वी यादव में लालू यादव की छवि नजर आती है. जो ताजा स्थिति है उस हिसाब से यादवों के अधिकांश वोट RJD को मिलने जा रहे हैं. इस बार उनके वोटों के बिखराव की संभावना काफी कम नजर आ रही है. माले पार्टियों के आने से तेजस्वी को और फायदा मिलता दिख रहा है. हालांकि, मुसलमान वोटर्स को लेकर ये बात नहीं कही जा सकती है. सीमांचल इलाकों में ओवैसी फैक्टर अभी भी है. लेकिन जो ताजा स्थिति है, उस हिसाब से RJD की नेतृत्व वाले गठबंधन को 5-6 सीटें मिल सकती हैं.”
अब बिहार में पिछले कुछ सालों में वोटिंग पैटर्न किस तरीके का रहा है, ये भी जान लीजिए. हम साल 1999 से लेकर 2019 तक के चुनावों के आंकड़े आपके सामने रखने जा रहे हैं.
1999 में NDA गठबंधन का कमाल
1999 में बिहार में तब 54 लोकसभा सीटों पर चुनाव हुए थे. तब बिहार-झारखंड का बंटवारा नहीं हुआ था. राज्य में NDA गठबंधन ने इस चुनाव में कमाल किया. NDA ने 52 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें से 41 सीटों पर NDA को जीत मिली. भाजपा ने बिहार में 29 सीटों पर चुनाव लड़ा जिसमें से 23 पर जीत मिली. भाजपा के सहयोगी दल JDU ने 23 सीटों पर उम्मीदवार उतारे. इनमें से 18 पर जीत मिली. वहीं राजद और कांग्रेस गठबंधन को कुछ सफलता नहीं मिली. राजद को 36 सीटों में से 7 पर जबकि कांग्रेस को 16 में से 4 सीटों पर जीत मिली.
2004 में UPA की वापसी
2004 के लोकसभा चुनाव में राजद ने जबरदस्त वापसी की. UPA गठबंधन बना. इस गठबंधन में राजद और कांग्रेस के साथ लोजपा, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और CPI(M) शामिल हुए. इन सब दलों ने मिलकर बिहार में 29 सीटों पर जीत हासिल की. राजद ने 26 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा और 22 पर जीत हासिल की. 30.67 फीसदी का वोट शेयर रहा. लोजपा को 8 में से 4 सीट पर जीत मिली. जबकि कांग्रेस ने 4 सीटों पर अपनी किस्मत आजमाई. जीत मिली 3 पर. UPA के बाकी दोनों दलों ने एक-एक सीट पर चुनाव लड़ा था लेकिन जीत एक पर भी नहीं मिल पाई.
2004 में NDA गठबंधन का प्रदर्शन काफी साधारण रहा. जदयू और भाजपा गठबंधन को 40 में से मात्र 11 सीटों पर जीत मिली. जदयू को 24 में से 6 सीटों पर जीत मिली. जबकि भाजपा को 16 में से 5 सीटों पर जीत मिली.
2009 में NDA की वापसी
2009 के लोकसभा चुनाव में राज्य में राजद और लोजपा ने मिलकर चौथा मोर्चा बनाया. इनकी लड़ाई एक तरफ NDA गठबंधन जबकि दूसरी तरफ कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ थी. NDA की तरफ से जदयू को 25 में से 20 सीट पर जीत मिली, जबकि भाजपा को 15 में से 12 पर जीत मिली. कुल मिलाकर NDA ने 32 सीटें अपने गठबंधन के नाम की. चौथे मोर्चे से राजद को 4 सीटों पर जीत मिली. जबकि लोजपा को एक भी सीट नहीं मिली. वहीं कांग्रेस को दो सीटों पर जीत मिली.
2014 में NDA की लहर, नीतीश की लुटिया डूबी
2014 के लोकसभा चुनाव में JDU ने अपने आप को NDA से अलग कर लिया. नीतीश ने इस चुनाव में अकेले ही दम दिखाने का फैसला किया. 38 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे. लेकिन पार्टी को सिर्फ दो सीटों पर जीत मिली.
दूसरी तरफ कांग्रेस, राजद और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठजोड़ रहा. कांग्रेस ने 12 सीटों पर अपनी किस्मत आजमाई. जीत मिली 2 पर. राजद ने इस साल 27 सीटों पर चुनाव लड़ा था. जीत मिली मात्र 4 पर. वहीं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को कटिहार सीट पर जीत मिली.
बात भाजपा की करें तो पार्टी का गठबंधन लोजपा और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा के साथ था. भाजपा ने 30 सीटों पर चुनाव लड़ा और 22 पर जीत हासिल की. जबकि लोजपा ने 7 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे और 6 पर जीत गए. वहीं रालोसपा ने 3 सीटों पर चुनाव लड़ा और उन्होंने तीनों पर जीत हासिल की.
2019 में RJD का बुरा हाल
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में नीतीश फिर से NDA गठबंधन का हिस्सा बन गए. NDA में BJP और JDU के अलावा LJP भी रही. इस बार बिहार में NDA गठबंधन का प्रदर्शन धुआंधार रहा. 40 लोकसभा सीटों में से 39 सीटें NDA के खाते में रहीं.
भाजपा ने 17 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे और सभी सीटों पर जीत हासिल की. नीतीश कुमार की JDU ने भी 17 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. 16 सीटों पर JDU के उम्मीदवार जीत गए. लोजपा ने भी कमाल किया. पार्टी ने सभी 6 सीटों पर जीत हासिल की.
NDA का मुकाबला कर रहे महागठबंधन के लिए ये चुनाव भूल जाने वाला रहा. कांग्रेस पार्टी को नौ में से सिर्फ एक सीट पर जीत मिली. वहीं राजद का तो खाता भी नहीं खुला.
नीतीश कुमार के लिए जरूरी BJP
अब बात बड़े चेहरों की करें तो पहला नाम आता है मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का. लोकसभा चुनाव से कुछ समय पहले ही नीतीश कुमार पलटी मारकर NDA के साथ आ गए हैं. जिस BJP को लेकर पिछले कुछ समय में वो लगातार तल्ख बयान देते रहे थे, अचानक उस पार्टी और गठबंधन के साथ नीतीश क्यों गए? इसके पीछे सॉलिड वजह है. ये आप इन आंकड़ों से समझ सकते हैं. साल 2009 और 2019 में बीजेपी के साथ रहते हुए जब नीतीश कुमार ने चुनाव लड़ा तो उनको बड़ा फायदा पहुंचा. पार्टी ने जहां 2009 में 24, वहीं 2019 के चुनाव में 16 सीटें अपने नाम कीं. लेकिन जब नीतीश कुमार ने 2014 में अकेले चुनाव लड़ा था, तब पार्टी को महज 2 सीटें ही मिली थीं. नीतीश के NDA का दामन थामने को लेकर वरिष्ठ पत्रकार शशि भूषण कुमार बताते हैं,
“नीतीश कुमार का बिहार में पहले जैसा जनाधार रह नहीं गया है. वो जानते हैं कि अकेले चुनाव लड़कर को ज्यादा कुछ हासिल नहीं कर सकते हैं. हालांकि, कुछ जातियों का वोट बैंक अभी भी नीतीश कुमार के साथ है. कुछ इलाके जहां BJP के लिए अकेले दम पर सीट निकाल पाना मुश्किल होता, वहां नीतीश कुमार के आने से NDA को फायदा मिलेगा. ऐसे में दोनों के लिए ये फायदे का सौदा है.”
तेजस्वी यादव का बढ़ा कद
अब बात करते हैं उस एक नाम की, जो इस बार काफी चर्चा में है. वो नाम है तेजस्वी यादव का. लालू यादव ने अनौपचारिक रूप से अपनी गद्दी बेटे तेजस्वी यादव को सौंप दी है. लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) पिछला लोकसभा और विधानसभा चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में ही लड़ी. 2019 के लोकसभा चुनाव में भले ही RJD का खाता नहीं खुल पाया था, लेकिन जिस तरह से तेजस्वी ने बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में RJD की वापसी कराई, उससे बीजेपी और NDA गठबंधन का चिंतित होना स्वाभाविक है. वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र बताते हैं,
“इस बार तेजस्वी यादव के नेतृत्व में RJD मजबूत स्थिति में दिख रही है. तेजस्वी को लेकर जनता और खासकर युवा वोटर्स में एक क्रेज दिख रहा है. उनकी रैलियों में काफी संख्या में लोग जुट रहे हैं. लेफ्ट पार्टियों के साथ होने का भी फायदा तेजस्वी और I.N.D.I.A गठबंधन को मिल सकता है. ताजा स्थिति जो है उस हिसाब से RJD की अगुवाई में I.N.D.I.A गठबंधन 7-8 सीट निकाल सकता है. JDU-RJD की टूट का फायदा भी RJD को मिल सकता है.”
तेजस्वी हाल ही में अपनी रैलियों में काफी आक्रामक तेवर में नजर आए हैं. अगड़ी जातियों को लेकर उनके बयानों में काफी रोष दिखा है. BBC से लंबे समय तक जुड़े रहे वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर बताते हैं,
“तेजस्वी के इस तरह के बयानों को देखकर कई लोगों को लगता है कि वो भेदभाव के मामले में लालू यादव से भी ज्यादा कट्टर हो सकते हैं. इस वजह से अगड़ी जातियों के लोग अभी भी तेजस्वी पर भरोसा करने से कतरा रहे हैं.”
चिराग पासवान ने चाचा को पछाड़ा
लिस्ट में अगला नाम है दिवंगत रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान का. जिनको NDA ने अपने पाले में कर लिया है. पिछली बार लोकसभा चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी ने सभी 6 सीटों पर जीत हासिल की थी. हालांकि, इस बार का चुनाव लोजपा के लिए काफी अलग होने वाला है. अक्टूबर 2020 में रामविलास पासवान के निधन के बाद पार्टी दो फांक हो चुकी है. एक हिस्से पर रामविलास पासवान के भाई पशुपति पारस अपना दावा ठोक रहे हैं. जबकि दूसरा खेमा चिराग के पास है.
इधर, NDA ने चिराग गुट को लोकसभा चुनाव 2024 के लिए 5 सीटें दी हैं. जबकि अभी तक मंत्रीमंडल में शामिल रहे पशुपति पारस को NDA ने एक भी सीट नहीं दी. नतीजतन, राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी) के अध्यक्ष पशुपति पारस ने केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. जानकारों के मुताबिक, चिराग पासवान की छवि पिछड़ी जातियों खासकर उनकी खुद की जाति में काफी अच्छी है. साथ ही बीजेपी उन्हें भविष्य के प्रभावी नेता के तौर पर भी देख रही है. इसलिए NDA ने पशुपति पारस की जगह चिराग को चुनना बेहतर समझा.
सम्राट चौधरी बीजेपी को दिलाएंगे सफलता?
अब बात करते हैं सम्राट चौधरी की. जिनको बीजेपी एक फायरब्रांड नेता के तौर पर प्रोजेक्ट कर रही है. बिहार बीजेपी का अध्यक्ष होने के साथ-साथ उन्हें नवगठित नीतीश सरकार में उपमुख्यमंत्री बनाया गया है. बिहार में सम्राट चौधरी का नाम नीतीश कुमार के धुर विरोधी नेता के तौर पर लिया जाता रहा है. लेकिन नीतीश के पाला बदल कर NDA में आने के बाद अब समीकरण बदल चुका है. सम्राट चौधरी चूंकि ओबीसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. ऐसे में उनके के जरिए बीजेपी अपने परंपरागत सवर्णों के वोटों के अलावा बाकी वोटर्स के बीच भी अपनी पैठ और मजबूत कर सकती है.
बिहार में किस सीट पर कब मतदान?बिहार में सात चरणों में लोकसभा चुनाव होंगे. पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल, जबकि आखिरी चरण का मतदान 1 जून को होगा.
19 अप्रैल (पहला चरण): गया, नवादा, औरंगाबाद, जमुई
26 अप्रैल (दूसरा चरण): किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर, बांका
7 मई (तीसरा चरण): झंझारपुर, सुपौल, अररिया,मधेपुरा, खगड़िया
13 मई (चौथा चरण): दरभंगा, उजियारपुर, समस्तीपुर, बेगूसराय, मुंगेर
20 मई (पांचवा चरण): सीतामढ़ी, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, सारण, हाजीपुर
25 मई (छठा चरण): पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, गोपालगंज, वाल्मीकि नगर, सिवान, वैशाली, महाराजगंज, शिवहर
1 जून (सातवां चरण): नालंदा, पटना साहिब, पाटलिपुत्र, आरा, बक्सर, सासाराम, काराकाट, जहानाबाद
वीडियो: लोकसभा चुनाव से पहले गौतम गंभीर ने अचानक पॉलिटिक्स छोड़ने का प्लान क्यों बनाया?