The Lallantop
Advertisement

डॉ. विकास दिव्यकीर्ति की UPSC में रैंक क्या थी?

1996 में डॉ. विकास दिव्यकीर्ति ने पहली बार UPSC का फॉर्म भरा और पहले ही अटेम्प्ट में सेलेक्शन ले लिया.

Advertisement
Dr. Vikas Divyakirti
UPSC के पहले अटेम्प्ट में 384वीं रैंक थी डॉ. विकास दिव्यकीर्ति की.
7 अगस्त 2022 (Updated: 7 अगस्त 2022, 19:19 IST)
Updated: 7 अगस्त 2022 19:19 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

डॉ. विकास दिव्यकीर्ति. दृष्टि IAS के संस्थापक (Dr Vikas Divyakirti Drishti IAS) और UPSC सिविल सर्विस एग्जाम (UPSC CSE) की तैयारी करने वालों के लिए जाना-पहचाना नाम. UPSC से अगर आपका कोई वास्ता नहीं भी है तो भी सोशल मीडिया पर आपने डॉ. विकास दिव्यकीर्ति के वीडियो जरूर देखे होंगे. बीते दिनों डॉ. विकास दिव्यकीर्ति लल्लनटॉप के न्यूजरूम में बतौर मेहमान आए. यहां उनसे काफी लंबी बातचीत हुई. इस बातचीत में उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई से लेकर दृष्टि कोचिंग शुरू करने तक की कहानी बताई. इस बातचीत का कुछ हिस्सा आप यहां पढ़ सकते हैं.  

पहली नौकरी कब शुरू की? 

घर में कुछ दिक्कतों की वजह से साढ़े 17 की उम्र में सेल्समेन की नौकरी करनी पड़ी थी. इसके बाद मैंने और मेरे भाई ने साथ में प्रिंटिंग कंपनी शुरू की थी. ग्रेजुएशन के तीसरे साल तक ये सब ठीक हो चुका था, घर में भी चीजें ठीक हो चुकी थी. फिर ग्रेजुएशन पूरा होने के बाद मैं और मेरे दोस्त विजेंद्र ने पांडव नगर में एक फ्लैट लिया. वहां पहली बार UPSC की तैयारी शुरू की. मैंने फिर MA में हिस्ट्री छोड़कर हिंदी साहित्य सब्जेक्ट ले लिया, लेकिन दिल्ली यूनिवर्सिटी में एडमिशन नहीं हो पाया. फिर ज़ाकिर हुसैन इवनिंग कॉलेज में मेरा एडमिशन हुआ.

MA के पहले साल में मैं पढ़ाई को लेकर सीरियस हुआ. स्कूल में मैथ्स में 100 नंबर आते थे पर इंग्लिश में हमेशा फेल होता था. 10वीं तक आते-आते मेरी इंग्लिश ठीक हो गई, इसकी वजह अजीत सर थे, उन्होंन इंग्लिश पढ़नी और समझनी सिखाई. लेकिन 9वीं तक मेरे पेरेंट्स ये सोंचते थे कि मैं 10वीं बोर्ड में इंग्लिश में पास हो पाउंगा या नहीं? MA हिंदी इसलिये लिया क्योंकि मुझे ये पता चल गया थी की अब सेल्समैन की जॉब नहीं करनी है. प्रिंटिंग का बिजनेस ठीक चल रहा था. तो ये सोंचा की UPSC करेंगे या फिर हिंदी के प्रोफेसर बनेंगे. MA हिंदी के पहले साल में मैं सेकेंड टॉपर था, 62.5 प्रतिशत नंबरों के साथ. इसके बाद मैंने हिंदू कॉलेज में दूसरे साल में माइग्रेशन कर लिया, MA का दूसरा साल हिंदू कॉलेज से किया. साल 1995 में MA फाइनल में मैं गोल्ड मेडलिस्ट बनते-बनते रह गया, रीइवैल्यूएशन में मैं सेकेंड रैंक पर रह गया था. MA में कुल 65 प्रतिशत नंबर आये थे.

UPSC का पहला अटेम्प्ट

MA फाइनल में ही NET JRF क्लियर हो गया था. फिर 1996 में सोचा कि अब UPSC की तैयारी कर सकते हैं. UPSC के पहले अटेम्प्ट का फॉर्म भरा तो हिस्ट्री को ऑप्शनल सब्जेक्ट के तौर पर भर दिया. एक दिन सोशियोलॉजी की किताब हाथ लग गई, उसे पढ़ा तो लगा कि ये सब्जेक्ट UPSC में ले सकते हैं. तो मैंने दोबारा फॉर्म भरा(उस वक्त फॉर्म को दोबारा भरने का मौका होता था), उसमें सोशियोलॉजी को चुना. फॉर्म भरने और एग्जाम होने के बीच 3-4 महीने का वक्त होता था, उसी में मैंने सोशियोलॉजी को जम कर पढ़ा.

फिर सोशियोलॉजी की बहुत सी किताबें पढ़ी तो लगा कि ये नहीं पढ़ता तो जिंदा रहने का क्या फायदा होता. उस समय UPSC में GS पर उतनी अच्छी पकड़ ना भी हो तो काम चल जाता था, अगर आपकी ऑप्शनल सब्जेक्ट पर पकड़ अच्छी हो तो. इसलिये मैंने ऑप्शनल पर ही फोकस किया.

एग्जाम से 7 दिन पहले आया पिताजी का फोन

लेकिन UPSC एग्जाम से सात दिन पहले मैंने सोचा की एग्जाम छोड़ देता हूं. मैं उस वक्त रिलेशनशिप में था. मुझसे ज्यादा मेरी पत्नी की मेरे घरवालों से बात होती थी. मेरी पत्नी ने उस वक्त घरवालों को बताया की इनकी तैयारी ठीक है लेकिन ये एग्जाम देने से डर रहे हैं. फिर पिताजी ने फोन पर धमकाया और कहा कि तुम एग्जाम दो, वो बोले ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, नहीं होगा. मैंने एग्जाम दिया और प्रिलिम्स हो गया. मेंस में मुझे कॉनफिडेंस था तो मेंस में भी हो गया, इसके बाद इंटरव्यू में भी हो गया और फाइनल सेलेक्शन भी हो गया. कॉनफिडेंस इतना था कि 26 मई 1997 को UPSC के इंटरव्यू और रिजल्ट के बीच में ही हम दोनों ने शादी भी कर ली.

डॉ. विकास दिव्यकीर्ति की UPSC में रैंक क्या थी? 

4 जून 1998 को फाइन रिजल्ट आया, जिसमें 384 रैंक आई. मुझे लग रहा था कि मैं टॉप 20 में आ जाउंगा. उस वक्त IAS की 56 और IPS की 36 सीटें थी, मुझे CISF में असिस्टेंट कमांडेंट की पोस्ट ऑफर हुई थी. लेकिन मैं मेडिकली उसके लिये अनफिट था. तो मुझे सेंट्रल सेक्रेटेरियल सर्विस(CSS)ऑफर की गई और मैंने इस पोस्ट के लिये हां बोल दिया. इसलिये की इस सर्विस में रहकर UPSC के लिये पढ़ने की भी समय मिल जायेगा.

नौकरी क्यों छोड़ दी? 

दूसरा अटेम्प्ट मैंने घर से ही दिया और दूसरे अटेम्प्ट में मेंस एग्जाम में नहीं हुआ. ये मेरा इकलौता अटेम्प्ट है जिसमें मैंने इंटरव्यू नहीं दिया था. सोशियोलॉजी में नंबर कम होने की वजह से शायद नहीं हुआ. तीसरे अटेम्प्ट के लिये मैंने ऑप्शनल बदल लिया और Philosophy ले लिया. इस अटेम्प्ट में इंटरव्यू दिया लेकिन सेलेक्शन नहीं हुआ. फिर मैंने PG DAV कॉलेज में चार महीने पढ़ाया. तब तक नौकरी की जॉइनिंग का समय आ गया था, लेकिन मैंने मन बना लिया था कि मैं नौकरी नही करूंगा. घर पर मेरी इस बात से सब सहमत भी थे. जॉइनिंग वाले दिन मैं गया ही नहीं.

दृष्टि कोचिंग की शुरुआत कैसे हुई?

इसी बीच मेरे एक दोस्त ने घरवालों को जाकर ये समझा दिया की नौकरी ना जॉइन करके मैं कितनी बड़ी गलती कर रहा हूं. तो मैंने जून 1999 में सेंट्रल सेक्रेटेरियल सर्विस जॉइन कर ली. मैंने राजभाषा विभाग में डेस्क ऑफिसर के पद पर जॉइन किया और बाद में 4-5 महीने में रिजाइन कर दिया. इधर शिवाजी कॉलेज में पढ़ाने के लिये एक वैकेंसी निकली थी. जिसके लिये मैं इंटरव्यू देने भी गया था, लेकिन मेरा सेलेक्शन नहीं हु्आ. क्योंकि मुझे सेंट्रल सेक्रेटेरियल सर्विस से रिलीविंग लेटर नहीं मिला था. सरकार ने मुझे नौकरी से साल 2001 में रिलीव किया था और इन दो साल में बेरोजगारी से बचने के लिये मैंने हिंदी पढ़ाना शुरू किया. इस तरह से दृष्टि IAS कोचिंग की स्थापना हुई. आखिरी अटेम्प्ट मैंने साल 2003 में दिया था. प्रिलिम्स का सेंटर मुंबई में रखा था और मेन्स बेंगलुरू से दिया था. लेकिन इस अटेम्प्ट में भी मेरा फाइनल सेलेक्शन नहीं हो पाया. 

रंगरूट. दी लल्लनटॉप की एक नई पहल. जहां आपको खबर मिलेगी पढ़ाई-लिखाई, कॉलेज-यूनिवर्सिटी, कैंपस से लेकर प्लेसमेंट और करियर तक की. सरकारी भर्तियों का हाल भी और स्टार्ट अप्स की कहानियां भी यहीं मिलेंगी. अपने सुझाव और सवाल हमें लिखिए rangroot@lallantop.com पर. रंगरूट से जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें.फेसबुकयूट्यूबट्विटर

thumbnail

Advertisement

election-iconचुनाव यात्रा
और देखे

Advertisement

Advertisement

Advertisement