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मेडिकल कॉलेज में रैगिंग के नाम पर कपड़े उतरवाकर क्या करवाते थे?

क्या मेडिकल कॉलेज में जूनियर्स से मोर्चरी में रखे शव के पैर से धागा खोलकर लाने को कहा जाता था?

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सांकेतिक तस्वीर
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फातमा ज़ेहरा
10 सितंबर 2022 (Updated: 10 सितंबर 2022, 11:58 AM IST) कॉमेंट्स
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मेडिकल कॉलेज में रैगिंग को लेकर अकसर कई तरह बातें होती हैं. कहा जाता है कि डॉक्टरों की तो कॉलेज में खूब रैगिंग होती है. कुछ लोग तो ये दावा भी कर देते हैं कि मोर्चरी में कोई शव रखा है और जूनियर्स को उसके पांव से धागा खोलकर लाने को कहा जाता है. लोग दावा करते है कि कई जूनियर डॉक्टर्स ये काम करने में बेहोश तक हो जाते हैं. इस तरह की कई कहानियां आपने भी जरूर सुनी होंगी. लेकिन असल में मेडिकल कॉलेज में होता क्या है ये सिर्फ डॉक्टर्स ही जानते हैं. तो हमारे न्यूज़रूम में आए जब दिल्ली एम्स के जाने माने ट्रॉमा सर्जन अमित गुप्ता तो हमने इन सवालों के जवाब उनसे जानने की कोशिश की. 

कैसे होती है मेडिकल कॉलेज में रैगिंग

मेडिकल कॉलेज में रैगिंग को लेकर डॉ. अमित गुप्ता ने हमारे सवालों का जवाब देते हुए कहा कि, ये सारी कहानियां ही है. या फिर इन्हें बढ़ा चढ़ा कर लोगों को बताया जाता है. उन्होंने कहा कि इस तरह की तो कभी रैगिंग नहीं होता थी. हालांकि हमारे टाइम पर काफी अलग तरह की रैगिंग होती थी. इस समय तो ज्यादा तर कॉलेजों में रैंगिग बंद हो गई है. 

उन्होंने अपने कॉलेज के किस्से याद करते हुए बताया, हमारे समय में कानपुर की रैगिंग बहुत फेमस थी. क्योंकि वहां काफी अलग रैंगिग होती थी. उन्होंने कहा,

जब हमने फर्स्ट ईयर में मेडिकल में एडमिशन लिया, तो उस समय काफी सारे लड़के कॉलेज हॉस्टल में नहीं रहते थे. बाहर कमरे लेकर रहा करते थे. क्योंकि हॉस्टल में ऐसा होता था कि सारे जूनियर्स को बुलाया जाता था और उनकी लाइन लगवाई जाती थी और फिर उनके कपड़े उतरवाए जाते थे. इसे मेडिकल ड्रेस बोला जाता था. इसका मतलब होता है था आपकी शर्म उतर जाना. इसके अलावा फिजिकल रैंगिग भी की जाती थी, जो एक तरह का मेंटल टॉर्चर होता था. बहुत सारी चीजें कराई जाती थी, न करने पर मार भी पड़ती थी. और कहा जाता था कि ये सब आपको मजबूत बनाने के लिए किया जा रहा है.

उन्होंने एक किस्सा याद करते हुए बताया कि, रैगिंग से बचने के लिए एक लड़का हॉस्टल से भागा और छत से कूद गया. उसे गंभीर चोटें आई. उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया और बाद में उसकी मौत हो गई.  

डॉ. गुप्ता बताते हैं कि रैंगिग को लेकर सिनियर्स मानते थे कि अगर ऐसा नहीं किया तो जूनियर और सीनियर के बीच रिश्ता अच्छा नहीं बनेगा. प्रोफेसर लोग खुद कहते थे कि नए लड़के आए हैं इन्हें 'डिसिप्लिन' सिखाओं. और डिसिप्लिन के नाम पर रैगिंग होती थी.

लड़कियों की रैगिंग कैसे होती थी?

डॉ. गुप्ता से लड़कियों की रैगिंग को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने बताया कि लड़कियों की ज्यादा फिजिकल रैगिंग नहीं होती थी. यानी कि मार पिटाई नहीं होती थी. उनसे ज्यादातर उल्टी सीधी चीजें कराई जाती थी. जैसे दीवार से लगकर खड़े कर देना और कहना जाओ छिपकली बन जाओ.

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