साल 1995 और जुलाई के महीने की आखिरी तारीख. पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री Jyoti Basu ने कोलकाता की Writers बिल्डिंग से दिल्ली में संचार मंत्री Sukh Ram को फोन किया. ये कोई आम फोन कॉल नहीं बल्कि भारत में मोबाइल वाला पहला कॉल था. तब से गुजरे 29 सालों में मोबाइल की कहानी एकदम बदल चुकी है. तब मोबाइल डिवाइस अच्छे खासे वजनी होते थे. हाथ में थोड़ी देर में दर्द होने लगता था. बैटरी मिनटों में फुर्र हो जाती थी. मगर अब मोबाइल एकदम लाइटवेट हैं. पतले-दुबले, स्लिम-ट्रिम. इतने पतले कि हाथ से छूटने का डर रहता है.
कंपनियों ने मोबाइल को 'डाइटिंग' करा कर पतलू कर दिया, लेकिन चार्जर की 'ओवरईटिंग' क्यों? ईंटा हो गया है
मोबाइल का साइज बदलकर पतला, बेहद पतला और पतला प्रो मैक्स हो गया है, मगर एक चीज नहीं बदली. मोबाइल का चार्जर. पहले भी इसका साइज (mobile chargers work) बड़ा था. आज भी कम नहीं हुआ, बल्कि और बड़ा हो गया है. चार्जर नहीं ईंट हो रखा है. आखिर इसके पीछे क्या वजह होगी. मोबाइल को डाइटिंग करवा दी और और चार्जर को ओवरईटिंग.

मगर एक चीज नहीं बदली, वो है मोबाइल का चार्जर. पहले भी इसका साइज (mobile chargers work) बड़ा था. आज भी कम नहीं हुआ. बल्कि और बड़ा हो गया है. चार्जर नहीं ईंट हो रखा है. आखिर इसके पीछे क्या वजह होगी. मोबाइल को डाइटिंग करवा दी और और चार्जर को ओवरईटिंग. जानना बनता है.
वोल्टेज का चक्कर बाबू भईयाचार्जर के साइज में बड़े होने का सबसे बड़ा कारण इसके अंदर लगे एक दर्जन से भी ज्यादा पार्ट्स हैं. यही पार्ट्स घर के प्लग से आने वाली पावर सप्लाई को झेलते हैं. हमारे घरों में जो बिजली आती है वो 230 वोल्ट की होती है. घरों में लगने वाले इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट तो इस पावर आउटपुट के हिसाब से चलते हैं, मगर फोन से लेकर स्पीकर्स जैसे छोटे प्रोडक्ट को सिर्फ 5 या 10 वोल्ट के करेंट की जरूरत होती है. चार्जर में लगे स्टेप डाउन ट्रांसफॉर्मर यही काम करते हैं. वैसे काम यहीं खत्म नहीं होता, क्योंकि AC-DC का कार्यक्रम भी मैनेज करना होता है.

ये भी पढ़ें: सिनेमा हॉल में फिल्म एन्जॉय करते हुए कभी DCP, KDM के बारे में सोचा है?
AC करेंट से DC करेंटAC मतलब अल्टरनेटिव करेंट. अपनी भाषा में कहें तो करेंट जंपनिंग जपाक करते हुए चलता है. ऊपर-नीचे होते हुए. हालांकि ये उतार चढ़ाव इतना ज्यादा नहीं होता कि इसको देखा जा सके. महज मिली सेकंड के लिए सप्लाई बंद होती है. इससे डिवाइस पर कोई असर नहीं पड़ता, लेकिन इसका फायदा करेंट की जद में आने पर जरूर होता है. अगर गलती से कोई करेंट की पकड़ में आया तो ये मिली सेकंड उसको बचाने का काम करते हैं.
लेकिन चार्जर जैसे डिवाइस को डायरेक्ट करेंट, मतलब DC सप्लाई की जरूरत होती है. अब इसके लिए कोई अलग से लाइन तो बिछा नहीं सकते, इसलिए डिवाइस में ही Rectifier लगाए जाते हैं. इसके साथ में चार्जिंग सर्किट से लेकर कई सारे कनेक्टर्स भी एक चार्जर का हिस्सा होते हैं. इसलिए फिलहाल इनको पतला कारण मुमकिन नहीं. भविष्य में कोई नई तकनीक आ जाए तो बात अलग है. और फोन में भी फिट कर नहीं सकते, नहीं तो वो बड़ा होकर ईंट बन जाएगा.
इसलिए चार्जर तो ऐसा ही रहेगा. मोबाइल से भले कितनी डाइटिंग करवा लीजिए.
वीडियो: क्या ED वाले खोल ही लेंगे अरविंद केजरीवाल का iPhone?