चंद्रकांत देवताले की कविता 'मां पर नहीं लिख सकता कविता'
हड्डियों में छिपा ज्वर, दीवारों पर खून से, लकड़बग्घा हंस रहा है जैसी किताबें लिखने वाला कवि जो 14 अगस्त 2017 को ये दुनिया छोड़ गया
मां के लिए संभव नहीं होगी मुझसे कविता
अमर चिउंटियों का एक दस्ता
मेरे मस्तिष्क में रेंगता रहता है
मां वहां हर रोज चुटकी-दो-चुटकी आटा डाल देती है मैं जब भी सोचना शुरू करता हूं
यह किस तरह होता होगा
घट्टी पीसने की आवाज
मुझे घेरने लगती है
और मैं बैठे-बैठे दूसरी दुनिया में ऊंघने लगता हूं