# दांव पर सबकुछ
अपने पर्सनल ऐप 100MB पर सचिन ने कहा,'जब मैं सुबह होटल से निकला, मुझे नहीं पता था कि मैं ओपन करूंगा. हम ग्राउंड पर पहुंचे. अज़हर और वाडेकर सर ड्रेसिंग रूम में थे. उन्होंने कहा कि सिद्धू अनफिट है, क्योंकि उसकी गर्दन अकड़ गई है. अब हम किसके साथ ओपन करें. तभी मैंने कहा कि मुझे एक मौका दिया जाए. मुझे पक्का यकीन था कि मैं वहां जाकर उन सारे बोलर्स को पीट सकता हूं. मेरी बात पर उनका पहला रिएक्शन था कि मैं क्यों ओपन करना चाहता हूं? लेकिन मैं बहुत ज्यादा कॉन्फिडेंट था कि मैं कर सकता हूं. और यह ऐसा भी नहीं था कि मैं जाऊंगा, थोड़े बड़े शॉट खेलूंगा और वापस आ जाऊंगा. मैंने सोच रखा था कि मैं खेलता रहूंगा और अपना नॉर्मल अटैकिंग गेम खेलूंगा. उस वक्त तक सिर्फ एक बार, 1992 वर्ल्ड कप मैं मार्क ग्रेटबैच ने यह किया था. दरअसल उस दौर में नॉर्मल ट्रेंड था कि पहले 15 ओवर, जब तक बॉल नई है, संभलकर खेलो. एक बार बॉल की चमक चली जाए फिर धीरे-धीरे स्पीड बढ़ाओ और आखिरी के सात-आठ ओवर्स में जितने ज्यादा रन बना पाओ बना लो. इसलिए मैंने सोचा कि अगर मैं पहले 15 ओवर्स में ही ये काम कर देता हूं तो सामने वाली टीम पर काफी प्रेशर हो जाएगा. मैंने उनसे कहा कि अगर आज मैं फेल हुआ तो कभी भी आपके पास नहीं आऊंगा, लेकिन मुझे एक चांस दीजिए प्लीज. और यह काम कर गया.'सचिन ने उस मैच में सिर्फ 49 बॉल्स में 82 रन मारे थे, जिसमें 15 चौके और दो छक्के शामिल थे. इस इनिंग के बाद सचिन का करियर आगे ही बढ़ता गया. उन्होंने अपना वनडे करियर 18,426 रनों के साथ खत्म किया. इसमें 49 शतक और 96 पचासे शामिल थे.
कपिल देव के अंतिम टेस्ट मैच की कहानी जिसमें हरियाणा हरिकेन नहीं, सचिन चमके थे