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एक कविता रोज़ में पढ़िए त्रिभुवन की कविताएं

बाघ का भय इतना है/कि डरा हुआ पिंजरा भी बाघ के भीतर छुपा हुआ है

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त्रिभुवन पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं, जयपुर रहते हैं और इन दिनों हरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय में शिक्षक की भूमिका में भी हैं. आज के एक कविता रोज़ के सेक्शन में पढ़िए त्रिभुवन की कविताएं.
एक कविता रोज़ में आज त्रिभुवन की कविताएं. भारत-पाकिस्तान बॉर्डर के एक छोटे से गांव चक 25 एमएल में एक अश्वपालक के घर पैदा हुए त्रिभुवन मूलत: रिपोर्टर हैं. भाषा के लाघव और अर्थ की गहनता वाली उनकी एक ताज़ा कविता  "मैं आपको बस सुरक्षित दिख रहा हूं" में लोकतंत्र और अभिव्यक्ति पर मंडराते ख़तरों के प्रति अनोखे ढंग से ऐतिहासिकता के साथ रेखांकित किया गया है. इसमें अतीत, वर्तमान और भविष्य का एक अनोखा तनाव बिंदु बनता है. त्रिभुवन पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं, जयपुर रहते हैं और इन दिनों हरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय में शिक्षक की भूमिका में भी हैं.  त्रिभुवन से आप उनके ट्विटर हैंडल @tribhuvun पर संपर्क कर सकते हैं. आज के एक कविता रोज़ के सेक्शन में पढ़िए त्रिभुवन की कविताएं - 1. मैं आपको बस सुरक्षित दिख रहा हूं मैं ये कविता एक अंधेरे पिंजरे में बैठकर लिख रहा हूं दरअसल, यह पिंजरा बाघ के भीतर रखा हुआ है. आप मेरी कविता में अभिधा, लक्षणा और व्यंजना नहीं ढूंढ़ें ध्वनि, रस निरूपण, आलंबन-उद्दीपन, भाव-अनुभाव और संचारी-व्यभिचारी की अपेक्षा नहीं रखें क्योंकि मैं बाघ के भीतर रखे इस ऐतिहासिक पिंजरे में बैठकर यह कविता लिख रहा हूं. यह पिंजरा काेई साधारण पिंजरा नहीं है इस पिंजरे में सिकंदर के बाघ रखे गए थे इस पिंजरे में चिंगिज़ खां लाया था चीन से दुर्दांत शेर इस पिंजरे में ह्वेनसांग ने सुरक्षित रखी थीं पांडुलिपियां इस पिंजरे में रखी गई थीं कई सम्मोहक विषकन्याएं इस पिंजरे में अजातशत्रु ने रखे थे नरभक्षी शेर इस पिंजरे में चंद्रगुप्त माैर्य ने रखा था अपनी प्रेयसियों के प्रेमियों को. इस पिंजरे में कृष्णदेव आर्य से अक़बर तक कई शाहंशाह लड़े थे बाघिनों से इस पिंजरे को लूटा था प्रताप ने मानसिंह से हल्दीघाटी के जंगलों में इस पिंजरे में, जिसमें लोकतंत्र के शावक हाथाें में बघनखे पहनकर करुणा की गायों का भक्षण करते हैं और पिंजरा मर्मांतक पीड़ा से रंभाता है, शासक वर्ग के शुक कहते हैं, यह अद्भुत गाता है उसी में बैठकर मैं यह कविता लिख रहा हूं. आप छंद और अलंकार भी छोड़ दें आप बस भ्रांतिमान को सही-सही समझ लें बाघ का भय इतना है कि डरा हुआ पिंजरा भी बाघ के भीतर छुपा हुआ है और मैं उस पिंजरे में बैठकर यह कविता लिख रहा हूं! ### 2. जादूगर वह हमेशा रहता है अकेला वह बिना सीढ़ी के ऊपर चढ़ जाता है और दूसरे लोगों की सीढ़ियों को बिना छुए नीचे से खींच लेता है. वह ज़मीन पर ऐसे रहता है जैसे कोई रहता हो ऊंचे आसमान में बने टॉवर पर, यह जादूगर युग की शक्तियों को ऐसे टटोलता है जैसे दही बिलौती नानी झेरनिये की चौपंखी को या जैसे चरखा कातते हुए कोई बुढ़िया आठ कमलदल को घुमाती हो. वह जादू में बिलकुल विश्वास नहीं करता, लेकिन सारा दिन टोटके गणित की तरह शुद्ध करता है वह माइनस काे प्लस और प्लस को माइनस कर देता है. उसे कितनी भी उतावला हो, वह पिसे हुए चूने के साथ ठंडा होकर सफेदी में नील की तरह घुल जाता है वह इतना पक्का जादूगर है कभी सूत, कभी चरखी, कभी तांत, कभी मोगरी और कभी-कभी कूकड़ी दिखते हुए पिंजारे का काम करता है. बेदाग़ भोर में वह हवा की तरह उठता है, अपनी झोली में रखे वर्षों, सदियों और सहस्राब्दियों पुराने क्रिस्टल खोलकर वह कई बार सूर्य को अपनी मुस्कुराती ढंकी हुई वाक्पटुता से पकड़ता है, वह अक्सर ऐसे-ऐसे टोटके करता है दूर बैठकर किसी और की देह के भीतर शांत और निष्क्रिय बैठी इंद्रियों के सम्मोहक सांपों को खोल देता है और मंद-मंद मुस्कुराता है. उसकी कला लंबी है, जो यह देखने के लिए भोर में उठती है. लोग सोचते हैं, जादूगर कभी मौलिक अंधेरे में अपनी ही आग से जल जाएगा काठ की आत्मा उस पर एक चिंगारी की तरह प्रहार करेगी. लोग सोचते हैं, जादूगर उस बोतल में बंद हो जाएगा, जिसमें अब तक वह हर जिन्न को अपनी जादूगरी से बंद किए रहता है. लेकिन मुझे अभी-अभी किसी ने बताया, लोग भ्रम में हैं यह वह जादूगर नहीं है, अब यह आंख में हीरे वाला जादूगर है. ### 3. मर्लिन मुनरों के कानों की बालियां इस भवन में काठ की कुर्सियां पेड़ों को ही नहीं, पक्षियों, पशुओं और मनुष्यों तक को यहां तक कि उनके सबसे सुंदर सपनों को भी खा जाती हैं. अटेरन के चारों तरफ लिपटी हवाएं चिढ़ाती हैं जब तब लोकतंत्र की भुरभराती दीवारों को किसी वीथिका में टूटे पड़े होंगे संध्या के सुहाने संवाद और उदास गिरी होंगी आत्मदर्प की अट्ठनियां लोहे की लगाम चबा रहे होंगे किसी अंधेरे कक्ष में सर्वोच्च न्याय के लिए रखे गए काठ के टट्टू. हत्प्रभ कुर्सियां प्रफुल्लित होंगी बिच्छुओं की छाया के नीचे मर्लिन मुनरों के कानों की बालियां तलाशती प्रजा की आंखों में चमक देखकर. ### 4. इस देश में संख्या ही तो रहती है कुछ लोग कहते हैं इस देश में लोग रहते हैं मुझे लगता है, इस देश में सिर्फ़ एक संख्या भर रहती है. अगर यह जुलाई 2021 है तो यह संख्या 36 मुसलमान और 15 हिन्दू है इसे आप दिल्ली दंगा भी कह सकते हैं. यह संख्या मुजफ्फरपुर में 42 मुसलमान और 20 हिन्दू हो सकती है लेकिन हाे सकता है आपको उसमें 50 हजार मुसलमानों का विस्थापन कभी दिखाई नहीं दे! यह संख्या अगर 1984 के एक नवंबर से तीन नवंबर के महज तीन दिनों में गिनी जाए तो यह सिर्फ़ 3350 होती है आप इसे इतने सिखों का एक नरसंहार कहते होंगे या अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इसके लिए पोग्रोम, जेनोसाइड, मास रेप, एरज़ॉन, एसिड थ्राॅइंग या इमोलेशन जैसे शब्द भी पढ़े जाते होंगे, लेकिन यह संख्या ही तो है! यह बंदूकों और बम धमाकों का खू़बसूरत कश्मीर हो सकता है, और जहां सतत नरसंहार जारी है जहां कुछ लोग सुरक्षा सैनिक और कुछ लोग मिलिटेंट होने के कारण मारे जाते रहते हैं. या आप इसे 53 साल 11 महीने एक सप्ताह और दो दिन से चल रही माओवादी हिंसा से जुड़ी एक संख्या मान सकते हैं और एक आंकड़ा रख सकते हैं 14 हजार 369! यह 2006 हो सकता है और इसका नाम मालेगांव इस संख्या को आप 40 मान सकते हैं यह संख्या एक साइकिल के पुर्जों से बंधी हो सकती है. एक संख्या है 3323 यह वह लंबी रेखा है, जिसे रेडक्लिफ़ ने खींचा था और उसके दोनों तरफ दस लाख शव 40 लाख ज़ख्मी देहें और ढाई करोड़ लूट लिए गए लोगों के आंसू थे और दुनिया के इस सबसे बड़े रक्तकुंड से अहिंसा का एक चरखा निकला था, जिसके आठ कमल दल थे. आप अब 3,99,459 की क्या चिंता करते हैं यह भी पैंडेमिक से जुड़ी एक संख्या ही तो है ये गोधरा से कितनी ज़्यादा है? आप हिसाब लगा लें 790 मुसलमान और 254 हिन्दू! साल भी तो कितने हो गए विकास दर की रफ़्तार भी तो कुछ चीज़ होती है!

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