इस बार लोगों का सच, गांगुली के बताए सच से अलग था. लोग कह रहे थे कि नागपुर के ग्रीन विकेट से नाराज़ होकर गांगुली ने टेस्ट खेलने से इनकार किया. अखबारों ने इस बात को खूब उछाला. सवाल दो थे- क्या आरोप सच हैं? और क्या नागपुर क्रिकेट असोसिएशन इतना दमदार है कि उसने नेशनल टीम की रिक्वेस्ट नहीं मानी? बात काफी हद तक सच थी, नागपुर क्रिकेट असोसिएशन ने स्पिन फ्रेंडली विकेट बनाने से इनकार कर दिया था. वह स्पोर्टिंग, माने कि ग्रीन टॉप विकेट बनाने के पक्ष में थे. अंत में विकेट ग्रीन टॉप ही बना. गांगुली के बिना खेली टीम इंडिया 342 रन से मैच गंवा बैठी. ऑस्ट्रेलिया ने 35 साल बाद भारत में टेस्ट सीरीज जीत ली.
# शरद पवार का 'उल्टा दांव'
कट टू 2008. शरद पवार की जगह BCCI की कुर्सी पर बैठा नागपुर का एक वकील. वकील, जिसके पिता शरद पवार के मुख्यमंत्री रहते हुए महाराष्ट्र के एटॉर्नी जनरल थे. पिता के साथ काम कर चुके शरद ने अब बेटे पर भरोसा जताया था. BCCI की पावर पॉलिटिक्स में यह नई एंट्री थी. उस वक्त पूरे देश ने दूसरी बार शशांक मनोहर का नाम सुना. पहली बार तो वह 2004 में सुन ही चुके थे. मनोहर BCCI पर लंबे वक्त तक राज कर चुके जगमोहन डालमिया के कट्टर विरोधी शरद पवार द्वारा आगे बढ़ाए गए थे.क्रिकेट एडमिनिस्ट्रेशन के गेम से दूर लोगों को शरद की ये चाल समझ नहीं आई. लेकिन जो क्रिकेट एडमिनिस्ट्रेशन को करीब से फॉलो करते थे, उन्हें पता था कि शरद क्या कर रहे हैं. साल 1996 से विदर्भ क्रिकेट असोसिएशन (VCA) पर कब्जा जमाए बैठे शशांक मनोहर अब नेशनल डेब्यू के लिए तैयार थे. इधर शरद अब अपना गेम इंटरनेशनल लेवल पर ले जा रहे थे. इसी साल उन्हें इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (ICC) का वाइस प्रेसिडेंट चुना गया. ये अलग बात है कि शरद पवार समेत पूरे इंडियन क्रिकेट एडमिनिस्ट्रेशन को इस बात का अंदेशा भी नहीं था कि उन्होंने अपने लिए किसे चुना है.

Shashank Manohar को Sharad Pawar ही BCCI में लाए थे (ट्विटर से साभार)
साल 2010 में IPL से जुड़ी घपलेबाजी में IPL कमिश्नर ललित मोदी का नाम आया. मोदी पवार के खास थे, इसीलिए उनको लगा था कि पवार के खास, शशांक मनोहर के होते हुए उन्हें कोई दिक्कत नहीं होगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. पवार तो खुलकर मोदी के लिए बोले, लेकिन उन्हें शशांक से कोई सपोर्ट नहीं मिला. BCCI में शशांक मनोहर को शरद पवार का वारिस माना जाता था. लेकिन ऐसे वक्त में शशांक मनोहर ने पवार के साथ खड़े होने से भी इनकार कर दिया. जहां पवार खुलकर मोदी के पक्ष में थे, वहीं बोर्ड लगातार उन्हें घेर रहा था.
साल 2001 में मुंबई क्रिकेट असोसिएशन के चीफ के रूप में क्रिकेट एडमिनिस्ट्रेशन में आए पवार के लिए यह सबसे बुरा वक्त था. उस दौर में कहते थे कि बारामती (पवार का गृहक्षेत्र) के बाद उनकी सबसे ज्यादा चलती BCCI में है. लेकिन शशांक मनोहर के अड़े रहने के बाद लोगों का यह भरोसा भी जाता रहा. शशांक मनोहर के पहले कार्यकाल में एंटी शरद पवार माने जाने वाले एन श्रीनिवासन बोर्ड के सेक्रेटरी थे. बाद में उन्होंने ही BCCI प्रेसिडेंट के रूप में शशांक को रिप्लेस किया. लेकिन बाद में इन दोनों के रिश्ते भी बेहद तल्ख हो गए.
# एंटी BCCI हुआ ICC
साल 2015 में मनोहर पहली बार ICC के चेयरमैन चुने गए. चेयरमैन बनते ही उन्होंने कहा कि BCCI स्पेशल स्टेटस डिजर्व नहीं करता. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि BCCI को ICC के टोटल रेवेन्यू का 22 परसेंट नहीं मिलना चाहिए, जैसा कि बरसों से मिलता आया था. इस पर BCCI ने कड़ी प्रतिक्रिया दी. BCCI को शशांक के इस फैसले से लगभग 1200 करोड़ की चपत लगनी थी.लंबे विवाद के बाद आखिरकार 2017 में दोनों पक्षों में सहमति बनी. नया रेवेन्यू सिस्टम बना. इस सिस्टम के तहत भारत को 2016 से 2023 के बीच ICC से 29,81,00,25,000 रुपये मिलने तय हुए. यह इन बरसों में ICC की कुल कमाई का 22.8 परसेंट था. यहां शशांक की नहीं चली, लेकिन इससे उनका रुतबा कम नहीं हुआ. तभी तो BCCI के ना चाहने के बाद भी उन्हें ICC चेयरमैन की पोस्ट पर दूसरा कार्यकाल भी मिला. ICC की टॉप पोस्ट पर रहते हुए शशांक की BCCI से कभी नहीं बनी, लेकिन बाकी के बोर्ड्स और इंटरनेशनल मीडिया ने हमेशा ही उनकी तारीफ की.

Shashank Manohar के ICC चेयरमैन रहने के दौरान ICC और BCCI के संबंध बहुत अच्छे नहीं थे (ट्विटर से साभार)
सुप्रीम कोर्ट द्वारा BCCI को सुधारने के लिए जब लोढ़ा कमिटी भेजी गई, तब BCCI प्रेसिडेंट अनुराग ठाकुर ने ICC से मदद मांगी. वह चाहते थे कि ICC अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करे, अपने आर्टिकल्स ऑफ असोसिएशन के आर्टिकल 2.9 के तहत BCCI को कोर्ट से बचाए. यह आर्टिकल इस बात को सुनिश्चित करता है कि किसी भी बोर्ड के कामकाज में उसकी सरकार का दखल ना हो.
BCCI ने जब यह कहा, तो ICC प्रेसिडेंट शशांक मनोहर ने उनसे कहा कि वह इस बात को लिखकर दें कि उनके कामकाज में दखलअंदाजी हो रही है. शशांक जानते थे कि ठाकुर के लिए यह करना संभव नहीं होगा, क्योंकि ऐसा कुछ भी करना सीधे सुप्रीम कोर्ट का अपमान होता. इस बारे में मनोहर ने बाद में 'इंडियन एक्सप्रेस' से कहा था,
'आज मेरा ICC के किसी भी सदस्य से कोई संबंध नहीं है. मैं ICC का स्वतंत्र चेयरमैन हूं, इसलिए मुझे ICC का हित देखना है. BCCI के हितों को देखना BCCI के लोगों का काम है.'
# लगाया पापा पर जुर्माना
शशांक मनोहर को शुरू से जानने वाले लोग उन्हें अवसरवादी कहते हैं. लेकिन उनके गुट के लोगों का मानना है कि वह बेहद सीधे और नागपुर से प्रेम करने वाले इंसान हैं. शशांक टेक्नोलॉजी फ्रेंडली नहीं हैं और उन्हें इसका अफसोस भी नहीं है. यहां तक कि साल 2007 तक उनके पास पासपोर्ट भी नहीं था. वह साल 2008 में एक ICC मीटिंग के लिए दुबई गए. यह उनकी पहली विदेश यात्रा थी.पर्सनल सेक्रेटरी तक ना रखने वाले शशांक के VCA कार्यकाल में उनके पिता भी फाइन भर चुके हैं. उन्होंने स्टेडियम के अंदर अपनी कार सही जगह नहीं लगाई, जिसके चलते उन पर फाइन लगा और उन्हें वह फाइन भरना भी पड़ा. शशांक से पहले उनके पिता वीआर मनोहर विदर्भ क्रिकेट असोसिएशन के प्रेसिडेंट थे. शशांक के बेटे अद्वैत मनोहर भी दो बाद VCA के वाइस-प्रेसिडेंट रह चुके हैं.
अद्वैत साल 2011 में सिर्फ 31 साल की उम्र में VCA के वाइस-प्रेसिडेंट बन गए थे. वह इस पोस्ट को संभालने वाले सबसे युवा व्यक्ति थे. पेशे से वकील अद्वैत ने छह फर्स्ट क्लास मैच भी खेले हैं. शशांक मनोहर के दादाजी भी वकील थे. वह जनसंघ से जुड़े थे. बाद में उनके बेटे यानी शशांक के पिता वीआर मनोहर, शरद पवार के करीबी बने और बाद में महाराष्ट्र के एडवोकेट जनरल. शशांक के भाई सुनील भी महाराष्ट्र के एडवोकेट जनरल रह चुके हैं. सुनील के बेटे अथर्व मनोहर जूनियर क्रिकेट में विदर्भ के लिए खेल चुके हैं.
# VCA के साहब
ऐसा नहीं है कि लोढ़ा कमिटी के आने के बाद VCA पर शशांक मनोहर का प्रभाव कम हो गया हो. VCA में साहब कहकर पुकारे जाने वाले मनोहर आज भी वहां के सारे फैसले लेते हैं. VCA के मौज़ूदा प्रेसिडेंट आनंद जायसवाल भी एक वकील हैं और मनोहर परिवार के खास माने जाते हैं. बताते हैं कि VCA के कुल 1200 सदस्यों में से 800 से 950 तक मनोहर परिवार के वफ़ादार हैं.मनोहर शुक्रवार, 2 जुलाई 2020 को ICC के प्रेसिडेंट की पोस्ट से अलग हो गए. उनके पास तीसरा कार्यकाल लेने का मौका था, लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया. मनोहर के ICC से अलग होने के बाद श्रीनिवासन ने रिएक्ट करते हुए कहा,
'मेरी व्यक्तिगत राय में उन्होंने भारतीय क्रिकेट का इतना नुकसान किया है कि इससे जुड़ा हर व्यक्ति उनके जाने से खुश होगा. उन्होंने भारत (BCCI) को आर्थिक रूप से चोट पहुंचाई, ICC में भारत के मौकों को चोट पहुंचाई, वह हमेशा ही एंटी-इंडियन रहे और उन्होंने वर्ल्ड क्रिकेट में भारत का महत्व कम कर दिया.'देखने वाली बात होगी कि 29 सितंबर 1957 को नागपुर में पैदा हुए शशांक मनोहर क्रिकेट एडमिनिस्ट्रेशन में अब क्या करते हैं. वह पर्दे के पीछे से VCA को कंट्रोल करते रहेंगे या फिर खुलकर मैदान में उतरने की जुगत भिड़ाएंगे.
2002 का वो किस्सा जब न्यूज़ीलैंड एयरपोर्ट पर हरभजन सिंह की एंट्री रोक दी गई!